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अध्याय 42

जिससे सुननेवाले सीखें

आपको क्या करने की ज़रूरत है?

जानकारी को इस तरह पेश कीजिए कि सुननेवाले उसके बारे में गहराई से सोचें और उन्हें यह लगे कि उन्होंने काम की बातें सीखी हैं।

इसकी क्या अहमियत है?

अगर आप लोगों को सिर्फ वही बातें बताएँगे जो वे पहले से जानते हैं, तो वे ज़्यादा देर तक आपकी बात नहीं सुनेंगे।

अगर आप चाहते हैं कि सुननेवाले आपके भाग से सीखें, तो आपको एक अच्छे विषय पर बोलने के अलावा और भी कुछ करने की ज़रूरत है। इसके लिए खुद से पूछिए: ‘इन लोगों के लिए इस विषय के बारे में जानना क्यों ज़रूरी है? मुझे ऐसा क्या कहना चाहिए जिससे सुननेवालों को लगे कि उन्हें इस चर्चा से सचमुच फायदा हुआ है?’

अगर सेवा स्कूल में आपको किसी को गवाही देने का प्रदर्शन करना है, तो आपका घर-मालिक ही आपका श्रोता होगा। और दूसरे भागों में, आप पूरी कलीसिया से बात कर रहे होंगे।

आपके सुननेवालों को कितनी जानकारी है। खुद से पूछिए: ‘मेरे सुननेवाले इस विषय के बारे में कितना जानते हैं?’ इसी के मुताबिक आपको अपने भाषण की शुरूआत करनी होगी। अगर आप किसी ऐसी कलीसिया के सामने भाषण दे रहे हैं, जिसमें बहुत-से तजुर्बेकार और प्रौढ़ मसीही हैं, तो सिर्फ बुनियादी सच्चाइयाँ मत दोहराइए क्योंकि उनमें से ज़्यादातर इनके बारे में पहले से जानते हैं। इसके बजाय, इन बुनियादी सच्चाइयों के बारे में और ज़्यादा जानकारी दीजिए। लेकिन हाँ, अगर सुननेवालों में बहुत-से नए लोग मौजूद हैं, तो आपको उनकी भी ज़रूरत ध्यान में रखनी चाहिए।

आपके सुननेवालों को जितनी बातों की जानकारी है, उसके हिसाब से अपने बोलने की रफ्तार बदलिए। अगर आप कुछ ऐसी बातें बता रहे हैं, जिनके बारे में ज़्यादातर लोग शायद अच्छी तरह से जानते हैं, तो अपने बोलने की रफ्तार तेज़ कीजिए। लेकिन जब आप कुछ ऐसे मुद्दे बताते हैं, जो ज़्यादातर सुननेवालों के लिए नए हैं, तो धीरे बोलिए ताकि वे इन्हें ठीक-ठीक समझ पाएँ।

क्या बात सिखाएगी। कुछ सिखाने का यह मतलब नहीं कि आपके पास बताने के लिए हमेशा कोई नयी बात हो। कुछ वक्‍ता, जानी-पहचानी सच्चाइयों को इतने आसान तरीके से पेश करने की काबिलीयत रखते हैं कि सुननेवालों में ज़्यादातर लोग, उन सच्चाइयों को पहली बार पूरी तरह समझ पाते हैं।

प्रचार में, यह समझाने के लिए कि हम अंतिम दिनों में जी रहे हैं, अखबार में दी किसी घटना का सिर्फ ज़िक्र करना काफी नहीं। बाइबल का इस्तेमाल करके बताइए कि वह घटना क्या मायने रखती है। इससे घर-मालिक सही मायनों में कुछ सीखेगा। उसी तरह पेड़-पौधों, जानवरों के बारे में या प्रकृति के किसी नियम का ब्यौरा देते वक्‍त, आपका मकसद यह नहीं होना चाहिए कि घर-मालिक को विज्ञान की ऐसी दिलचस्प जानकारी दें जो उसने पहले कभी नहीं सुनी। इसके बजाय, आपका मकसद होना चाहिए कि बाइबल की आयतों के साथ-साथ प्रकृति से ऐसे सबूत पेश करना जिनसे ज़ाहिर हो कि हमें प्यार करनेवाला एक सिरजनहार है। ऐसा करने से घर-मालिक, इन बातों को एक अलग नज़रिए से देख पाएगा।

ऐसे विषय पर जानकारी पेश करना मुश्‍किल हो सकता है जिसके बारे में लोग पहले बहुत बार सुन चुके हैं। लेकिन एक काबिल शिक्षक बनने के लिए आपको यह सीखना होगा कि सुनी-सुनायी जानकारी को बढ़िया तरीके से कैसे पेश करें। यह कैसे किया जा सकता है?

खोजबीन करने से आपको इसमें मदद मिलेगी। आपको आसानी से जितनी जानकारी याद आती है, सिर्फ उतनी अपने भाषण में पेश करने के बजाय, खोजबीन के लिए पेज 33 से 38 पर बताए साहित्य का इस्तेमाल कीजिए। खोजबीन करते वक्‍त आपका जो मकसद होना चाहिए उसके बारे में वहाँ दिए सुझावों को ध्यान में रखिए। खोजबीन करते-करते, आप शायद पाएँ कि इतिहास की एक घटना का आपके विषय से सीधा संबंध है, हालाँकि उस बारे में लोग बहुत कम जानते हों। या हो सकता है कि आप समाचार में कोई ऐसी खबर सुनें, जो उस मुद्दे के लिए उदाहरण के तौर पर इस्तेमाल की जा सकती है जिस पर आप बात करने जा रहे हैं।

जब आप अपने विषय को गहराई से जाँचते हैं, तो अपनी सोचने की शक्‍ति को जगाने के लिए ऐसे सवाल पूछिए जैसे क्या? क्यों? कब? कहाँ? कौन? और कैसे? मिसाल के लिए: यह क्यों सच है? इसका मैं कैसे सबूत दे सकता हूँ? लोगों के ऐसे कौन-से आम विश्‍वास हैं जिनकी वजह से उन्हें बाइबल की यह सच्चाई समझना मुश्‍किल लगता है? इस सच्चाई को जानना क्यों ज़रूरी है? इसका एक इंसान के जीवन पर कैसा असर पड़ना चाहिए? किसकी मिसाल दिखाती है कि इस सच्चाई पर अमल करना फायदेमंद है? बाइबल की यह सच्चाई, यहोवा की शख्सियत के बारे में क्या बताती है? आप जिस जानकारी पर चर्चा कर रहे हैं, उसे ध्यान में रखते हुए आप पूछ सकते हैं: यह घटना कब घटी? इस जानकारी को आज हम कैसे अमल में ला सकते हैं? आप चाहें तो भाषण में भी ऐसे सवाल पूछकर और उनका जवाब देकर, अपने भाषण को जानदार बना सकते हैं।

आपको शायद भाषण में ऐसी आयतों का इस्तेमाल करना पड़े, जिनसे सुननेवाले अच्छी तरह वाकिफ हैं। आप इन आयतों को किस तरह पेश कर सकते हैं ताकि सुननेवाले इनसे कुछ सीखें? इन्हें सिर्फ पढ़िए नहीं, बल्कि समझाइए भी।

एक जानी-पहचानी आयत को अगर आप अलग-अलग भागों में बाँटें और जो भाग आपके भाषण के विषय से ताल्लुक रखते हैं, उन्हें अलग से समझाएँ, तो सुननेवाले इस आयत से भी कुछ सीखेंगे। गौर कीजिए कि मीका 6:8 को किन अलग-अलग भागों में बाँटकर समझाया जा सकता है। “न्याय” क्या है? यहाँ किसके न्याय के स्तर की बात की गयी है? ‘न्याय से काम करने’ का मतलब समझाने के लिए आप कौन-सा उदाहरण देंगे? ‘कृपा से प्रीति रखने’ का मतलब क्या है? नम्रता क्या है? एक बुज़ुर्ग इंसान के मामले में आप यह जानकारी कैसे लागू करेंगे? बेशक, इसमें से आप कितनी जानकारी भाषण में पेश करेंगे, यह इस पर निर्भर करेगा: आपके भाषण का विषय, मकसद, आपके सुननेवाले और आपके पास कितना समय है।

कई शब्दों की परिभाषा, सरल भाषा में समझाना अकसर अच्छा होता है। मसलन, जब कुछ लोगों को मत्ती 6:10 में बताए “राज्य” का अर्थ समझाया गया तो मानो उनकी आँखें खुल गयीं। यहाँ तक कि शब्दों की परिभाषा दोहराने से, एक अनुभवी मसीही को यह और अच्छी तरह समझ आता है कि आयत का मतलब क्या है। मिसाल के लिए, जब हम 2 पतरस 1:5-8 पढ़ते हैं और उनमें बताए विश्‍वास, सद्‌गुण, समझ, संयम, धीरज, भक्‍ति, भाईचारे की प्रीति और प्रेम जैसे शब्दों का एक-एक करके मतलब बताते हैं, तो ये आयतें और भी साफ समझ में आती हैं। जब किसी आयत में मिलता-जुलता अर्थ रखनेवाले कई शब्द इस्तेमाल किए जाते हैं, तो उनमें से हरेक की परिभाषा देने से यह ज़ाहिर होगा कि वे एक-दूसरे से कैसे अलग हैं। उदाहरण के लिए, नीतिवचन 2:1-6 पढ़ने के बाद आप उसमें बताए मिलते-जुलते शब्द जैसे बुद्धि, ज्ञान, प्रवीणता और समझ की परिभाषा बता सकते हैं।

कभी-कभी अगर आप एक आयत पर सिर्फ तर्क करें, तो इससे भी सुननेवाले काफी कुछ सीख सकते हैं। बहुत-से लोगों को जब पहली बार यह एहसास होता है कि 1 यूहन्‍ना 2:17 में बताया गया संसार, यह पृथ्वी नहीं बल्कि अधर्मी लोगों का संसार है, तो उन्हें काफी हैरानी होती है। क्योंकि पृथ्वी की कोई अभिलाषाएँ नहीं होती, साथ ही भजन 104:5 में यह सच्चाई भी दर्ज़ है कि ‘पृथ्वी कभी न डगमगाएगी।’ एक अवसर पर, यीशु ने सदूकियों से बात करते वक्‍त निर्गमन 3:6 का हवाला दिया, जिस पर विश्‍वास करने का वे दावा करते थे। यीशु ने इस आयत की मदद से पुनरुत्थान के सच होने का सबूत दिया। यीशु की यह दलील सुनकर सदूकी हक्के-बक्के रह गए।—लूका 20:37, 38.

कभी-कभी आस-पास की आयतों की जानकारी देने से कि यह आयत किन हालात में लिखी गयी थी और यह किसने कही, किससे कही, सुननेवालों को काफी कुछ सीखने को मिलता है। फरीसी, भजन 110 से अच्छी तरह वाकिफ थे। फिर भी, यीशु ने उस भजन की पहली आयत में बतायी एक अहम बात की तरफ उनका ध्यान दिलाया। यीशु ने उनसे पूछा: “मसीह के विषय में तुम क्या समझते हो? वह किस का सन्तान है? उन्हों ने उस से कहा, दाऊद का। उस ने उन से पूछा, तो दाऊद आत्मा में होकर उसे प्रभु क्यों कहता है? कि प्रभु ने, मेरे प्रभु से कहा; मेरे दहिने बैठ, जब तक कि मैं तेरे बैरियों को तेरे पांवों के नीचे न कर दूं। भला, जब दाऊद उसे प्रभु कहता है, तो वह उसका पुत्र क्योंकर ठहरा?” (मत्ती 22:41-45) जब आप भी यीशु की तरह, आयतों पर तर्क करके समझाएँगे, तो आप परमेश्‍वर का वचन ध्यान से पढ़ने में लोगों की मदद कर पाएँगे।

जब एक वक्‍ता, बाइबल की किसी किताब के बारे में बताता है कि वह कब लिखी गयी थी या वह बताता है कि एक घटना किस समय पर घटी थी, तो उसे यह भी बताना चाहिए कि उस वक्‍त के हालात कैसे थे। तब सुननेवाले, उस किताब या घटना की अहमियत को और अच्छी तरह समझ पाएँगे।

दो चीज़ों की तुलना करने से लोग आपकी कही हुई बातों से सीख सकते हैं। उदाहरण के लिए, आप बता सकते हैं कि एक विषय पर लोगों की आम धारणा क्या है जबकि बाइबल उस बारे में क्या कहती है। या आप तुलना करके बता सकते हैं कि एक ही घटना के बारे में बाइबल के अलग-अलग भाग क्या कहते हैं। क्या उनमें कोई फर्क है? अगर फर्क है, तो क्यों है? हम इन घटनाओं से क्या सीखते हैं? ऐसी जानकारी देने पर आपके सुननेवाले, उस विषय को अलग ढंग से देख सकेंगे।

अगर आपको मसीही प्रचार के किसी पहलू पर चर्चा करने का भाग सौंपा जाता है, तो शुरूआत में ही अपने भाग का सारांश देना फायदेमंद होगा। बताइए कि क्या किया जाना है, क्यों किया जाना है और प्रचार के मामले में यहोवा के साक्षियों के जो लक्ष्य हैं, उनसे यह कैसे ताल्लुक रखता है। उसके बाद समझाइए कि उस काम को कहाँ, कब और कैसे करना है।

अगर आपको अपने भाषण में ‘परमेश्‍वर की गूढ़ बातों’ पर चर्चा करनी है, तो आप क्या कर सकते हैं? (1 कुरि. 2:10) अगर आप भाषण की शुरूआत में, अपने विषय के खास तत्वों की पहचान दें और उनके बारे में समझाएँ, तो फिर इनसे जुड़ी बाकी छोटी-मोटी जानकारी लोगों को आसानी से समझ आ सकेगी। और आखिर में, अगर आप अपने विषय का सारांश दें, तो आपके सुननेवालों को इस बात का संतोष होगा कि उन्होंने वाकई कुछ सीखा है।

मसीही जीवन पर सलाह। आपके सुननेवालों को खासकर तब फायदा होगा जब आप यह समझने में उनकी मदद करेंगे कि आपके भाषण की जानकारी उनकी ज़िंदगी से कैसे ताल्लुक रखती है। इसलिए जो विषय आपको पेश करने के लिए कहा गया है, उसमें दी गयी आयतों की जाँच करते वक्‍त खुद से पूछिए, ‘बाइबल में इस जानकारी को हमारे दिनों तक क्यों सुरक्षित रखा गया है?’ (रोमि. 15:4; 1 कुरि. 10:11) अपने सुननेवालों के बारे में सोचिए कि वे ज़िंदगी में किन हालात से गुज़र रहे हैं। गौर कीजिए कि उन हालात पर, बाइबल में दी गयी सलाह और सिद्धांत कैसे लागू होते हैं। अपने भाषण में, बाइबल की आयतों पर तर्क कीजिए ताकि आप दिखा सकें कि उन पर अमल करने से एक इंसान कैसे इन हालात में समझदारी से काम कर सकता है। आम बातें मत बताइए। इसके बजाय, साफ-साफ बताइए कि किन रवैयों और कामों से दूर रहना ज़रूरी है।

अपने भाषण को ऐसा बनाने के लिए जिससे सुननेवाले सीखें, ऊपर बताए एक-दो सुझावों पर अमल कीजिए। फिर जैसे-जैसे आप तजुर्बा हासिल करेंगे, दूसरे सुझावों को भी लागू कीजिए। कुछ वक्‍त के बाद, आप पाएँगे कि लोग आपका भाषण सुनने का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं, क्योंकि उन्हें यकीन है कि वे आपके भाषण से ज़रूर कुछ ऐसी बात सीखेंगे जिससे उन्हें वाकई फायदा होगा।

यह कैसे करें

  • ध्यान दीजिए कि सुननेवाले, आपके विषय के बारे में पहले से क्या जानते हैं।

  • तय करें कि आप जानकारी को किस रफ्तार से पेश करेंगे—जो मुद्दे जाने-पहचाने हैं, उन्हें तेज़ी से बोलिए और नए मुद्दों को धीरे बोलिए।

  • सिर्फ जानकारी मत दीजिए; बताइए कि इसका मतलब क्या है और इसकी कितनी अहमियत है।

  • अपनी सोचने की शक्‍ति को जगाने के लिए पूछिए: क्या? क्यों? कब? कहाँ? कौन? कैसे?

  • आयतों पर तर्क करने में वक्‍त बिताइए; उनके खास भागों को खोलकर समझाइए।

  • तुलना करने और फर्क समझाने का तरीका अपनाइए।

  • चंद शब्दों में जानकारी का सारांश बताइए।

  • बताइए कि यह जानकारी, समस्याओं का हल करते वक्‍त और फैसले करते वक्‍त कैसे काम आती है।

अभ्यास: (1) मत्ती 24:14 या यूहन्‍ना 17:3 जैसी जानी-पहचानी आयतों पर खोजबीन करके देखिए कि उनके बारे में क्या कह सकते हैं जिससे सुननेवाले सीखें। (2) नीतिवचन 8:30, 31 और यूहन्‍ना 5:20 पढ़िए। इन आयतों में, यहोवा परमेश्‍वर और मसीह यीशु के आपसी रिश्‍ते के बारे में दी गयी जानकारी पर मनन करने से, आप उन आयतों का इस्तेमाल एक परिवार को फायदा पहुँचाने के लिए कैसे कर सकते हैं?

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