अध्याय 14
सहजता
अगर आप सहजता से बात करेंगे, तो आप दूसरों का विश्वास जीत पाएँगे। ज़रा सोचिए, क्या आप एक बहुरूपिए की बातों पर विश्वास करेंगे जिसने अपना असली चेहरा छिपा रखा हो? और अगर उसने ऐसा नकाब पहन रखा हो जो उसके असली चेहरे से ज़्यादा खूबसूरत है, तब भी क्या आप उस पर विश्वास करेंगे? हरगिज़ नहीं। इसलिए, आप भी बातचीत करते वक्त बनावटी मत बनिए, जैसे आप आम तौर पर बात करते हैं, वैसे ही कीजिए।
सहज होने का मतलब लापरवाह होना हरगिज़ नहीं है। गलत व्याकरण या उच्चारण का इस्तेमाल करना, साथ ही दबी आवाज़ में मिनमिनाना सही नहीं होगा। अशुद्ध और सड़क-छाप भाषा बिलकुल भी इस्तेमाल नहीं की जानी चाहिए। हमारी बोली और तौर-तरीके से हमेशा गरिमा झलकनी चाहिए। सहजता से पेश आनेवाला इंसान, ना तो हद-से-ज़्यादा औपचारिक होता है, ना ही वह दूसरों पर अपनी धाक जमाने की फिराक में लच्छेदार भाषा इस्तेमाल करता है।
प्रचार में। जब आप किसी दरवाज़े पर जाते हैं या बाहर किसी को गवाही देने के लिए उसके पास पहुँचते हैं तब क्या आपको घबराहट होती है? हममें से ज़्यादातर लोग ऐसा महसूस करते हैं, लेकिन कुछ लोगों पर यह भावना हद-से-ज़्यादा हावी हो जाती है। तनाव की वजह से उनकी आवाज़ खिंची-खिंची और काँपती हुई सी निकलती है। घबराहट की वजह से उनके हाथ और सिर अजीब से हिलते हैं।
एक प्रचारक कई वजहों से घबराहट महसूस कर सकता है। उसके दिमाग में शायद यह बात घूम रही हो कि दूसरे उसके बारे में क्या सोचेंगे या वह ढंग से गवाही दे भी पाएगा या नहीं। ऐसे खयाल अपने आप में बुरे नहीं हैं, लेकिन जब हम इनके बारे में ज़रूरत से ज़्यादा फिक्र करने लगते हैं, तब ये बड़ी समस्या बन सकते हैं। अगर प्रचार शुरू करने से पहले आप घबराने लगें, तो आप क्या कर सकते हैं? पहले से अच्छी तैयारी कीजिए और मदद के लिए यहोवा से बिनती कीजिए। (प्रेरि. 4:29) यहोवा की उस दया को याद कीजिए जिस वजह से वह लोगों को फिरदौस में ज़िंदगी पाने का बुलावा दे रहा है, जहाँ वे पूरी तरह से सेहतमंद होंगे, और हमेशा की ज़िंदगी का आनंद उठाएँगे। उन लोगों के बारे में सोचिए जिनकी आप मदद करने जा रहे हैं और जिन्हें सुसमाचार सुनने की सख्त ज़रूरत है।
यह भी याद रखिए कि लोग आज़ाद मरज़ी के मालिक हैं इसलिए वे आपके संदेश को स्वीकार कर सकते हैं या ठुकरा भी सकते हैं। जब यीशु ने प्राचीन इस्राएल में गवाही दी, तो कुछ लोगों को छोड़ बहुतों ने उसके समाचार को ठुकरा दिया था। हमारा काम है, प्रचार करने की अपनी ज़िम्मेदारी को निभाते रहना। (मत्ती 24:14) चाहे लोग आपको एक भी शब्द बोलने का मौका न दें, आपका वहाँ मौजूद होना ही उनके लिए एक गवाही है। आप इसलिए भी कामयाब हैं, क्योंकि आपने खुद को यहोवा के हवाले कर दिया ताकि वह अपनी इच्छा पूरी करने के लिए आपका इस्तेमाल करे। दूसरी तरफ, जब आपको बात करने का मौका मिलता है, तब आपकी बोली कैसी होनी चाहिए? अगर आप दूसरों की ज़रूरतों पर ध्यान देना सीखेंगे, तो आपकी बोली सुहावनी और सहज होगी।
हर दिन आप जिस तरह बात करते और लोगों से मिलते-जुलते हैं, उसी सहजता के साथ अगर आप गवाही देंगे, तो लोगों को भी आपके साथ बात करने में कोई हिचक महसूस नहीं होगी। यहाँ तक कि अगर आप उन्हें बाइबल से कुछ आयत पढ़कर सुनाना चाहेंगे तो वे शायद मान भी जाएँगे। ऐसे बात मत कीजिए जैसे आप भाषण झाड़ रहे हों, बल्कि उन्हें भी बातचीत में शामिल कीजिए। एक दोस्त की तरह पेश आइए। उनमें दिलचस्पी दिखाइए और बीच-बीच में उनकी राय पूछिए। और अगर भाषा या आपकी संस्कृति किसी खास अदब-कायदे पर चलने की माँग करती है, जैसे ‘आप’ या ‘जी’ शब्दों का इस्तेमाल करना, तो आप बेशक इनका पालन कीजिए। और अगर आपके चेहरे पर हमेशा मुस्कान हो तो क्या कहने!
स्टेज पर। जब आप एक सभा में बोल रहे हैं, तब सहजता से और बोलचाल की शैली में भाषण देना सबसे अच्छा होगा। लेकिन जब आपको एक बड़े हॉल में भाषण देना है जहाँ बड़ी तादाद में लोग जमा हुए हैं, तब आपको साफ और ऊँची आवाज़ में बोलने की ज़रूरत होगी। अगर आप अपना पूरा भाषण रटने या हर बात को कागज़ पर लिखने की कोशिश करेंगे, तो इससे यह ज़ाहिर होगा कि आपको सही शब्द इस्तेमाल करने की बहुत चिंता है। माना कि सही शब्दों का इस्तेमाल अहमियत रखता है, मगर जब इन्हें हद-से-ज़्यादा अहमियत दी जाती है तो आपका भाषण बहुत बनावटी और रूखा लगेगा। वह सहज और सुनने में अच्छा नहीं लगेगा। आप जो विचार बताना चाहते हैं, उनके बारे में पहले से ही अच्छी तरह सोच लीजिए। मगर भाषण देने के लिए शब्दों पर नहीं बल्कि विचारों पर ज़्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए।
सिर्फ भाषण देते वक्त ही नहीं बल्कि किसी सभा में इंटरव्यू देते समय भी आपको सहजता से बात करनी चाहिए। अच्छी तैयारी कीजिए, मगर पढ़कर या रटकर जवाब मत दीजिए। इसके बजाय आवाज़ में, सहजता से और सही उतार-चढ़ाव लाते हुए बोलिए। इससे आप दिल से बात कर पाएँगे, साथ ही लोग कान लगाकर आपकी बात सुनेंगे।
भाषण के अच्छे गुणों का बढ़-चढ़कर इस्तेमाल करने से भी सुननेवालों को यह बनावटी लग सकता है। मिसाल के लिए, आपको साफ-साफ और सही उच्चारण के साथ बात करनी चाहिए, लेकिन इतना भी नहीं कि आपकी बोली कठोर या खिंची-खिंची लगे। ज़ोर देने के या वर्णन करने के हाव-भाव का अगर सही तरह से इस्तेमाल किया जाए, तो यह आपके भाषण को जानदार बना सकते हैं। दूसरी तरफ, अगर आप बार-बार एक ही तरह के हाव-भाव करेंगे या फिर, इन्हें बढ़ा-चढ़ाकर करेंगे तो लोग आपकी बातों पर ध्यान नहीं दे पाएँगे। ज़रूरत के हिसाब से आवाज़ ऊँची कीजिए, मगर चिल्ला-चिल्लाकर बात मत कीजिए। अपने भाषण में कभी-कभी शोलों की धधक पैदा करना अच्छी बात है, मगर भारी-भरकम शब्दों की भरमार करके बड़बोले मत बनिए। आवाज़ में उतार-चढ़ाव, जोश और भावनाओं के साथ बात करना, इन सारे गुणों को इस तरीके से इस्तेमाल करना चाहिए कि लोगों का ध्यान आप पर न जाए और उन्हें सुनने में परेशानी न हो।
कुछ लोगों में सहजता से अपनी बात साफ-साफ कहने का एक खास तरीका होता है, उस वक्त भी जब वे भाषण नहीं दे रहे होते। और कुछ लोग अपनी बातचीत में बोलचाल की भाषा ज़्यादा इस्तेमाल करते हैं। आपके बात करने का जो भी तरीका हो, ज़रूरी बात तो यह है कि आपको हर दिन सही तरीके से बात करनी चाहिए और इस तरीके से पेश आना चाहिए जिससे मसीही गरिमा झलके। तभी स्टेज पर से आपके बोलने का तरीका और व्यवहार सहज होगा।
पढ़कर सुनाते वक्त। सहजता से पढ़कर सुनाने में मेहनत लगती है। इसमें कामयाब होने के लिए, आप जो पढ़ने जा रहे हैं, उसके खास विचारों को पहचानिए और फिर देखिए कि उन्हें किस तरह समझाया गया है। इन खास विचारों को अपने मन में अच्छी तरह बिठा लीजिए; वरना आप महज़ शब्द पढ़ रहे होंगे। जो-जो शब्द आपके लिए नए हैं, उनका सही उच्चारण पता कीजिए। ज़ोर-ज़ोर से पढ़ने का अभ्यास कीजिए ताकि आप अपनी आवाज़ में सही उतार-चढ़ाव ला सकें और शब्दों को इस तरीके से मिलाकर पढ़ सकें जिससे विचार खुलकर ज़ाहिर हों। जब तक कि आप अच्छी तरह, बिना रुके पढ़ नहीं पाते, तब तक बार-बार अभ्यास कीजिए। लेख से इतनी अच्छी तरह वाकिफ हो जाइए जिससे उसे पढ़कर सुनाते वक्त ऐसा लगे कि आप जोश और उत्साह के साथ बात कर रहे हैं। इसी को सहजता कहते हैं।
हम ज़्यादातर समय बाइबल की समझ देनेवाले साहित्य से पढ़कर लोगों को सुनाते हैं। परमेश्वर की सेवा स्कूल में पढ़ने के भाग के अलावा, हम प्रचार में और स्टेज से भाषण देते वक्त आयतें पढ़कर सुनाते हैं। भाइयों को प्रहरीदुर्ग अध्ययन और कलीसिया के पुस्तक अध्ययन के दौरान चर्चा किए जा रहे साहित्य से पढ़ने की ज़िम्मेदारी दी जाती है। कुछ काबिल भाइयों को अधिवेशन में मैन्यूस्क्रिप्ट से पढ़कर भाषण देने को कहा जाता है। आप चाहे बाइबल से पढ़ें या किसी और साहित्य से, उद्धरण चिन्हों के अंदर दिए वाक्यों को इस तरह पढ़िए जिससे कि आप जानदार तरीके से जानकारी पेश कर सकें। अगर एक से ज़्यादा लोगों के शब्दों का हवाला दिया गया है, तो अपनी आवाज़ को बदल-बदलकर हरेक की बात पढ़िए। मगर खयाल रहें: यह हद-से-ज़्यादा नाटकीय नहीं होनी चाहिए बल्कि सहजता के साथ अपनी पढ़ाई में जान डालिए।
सहजता से पढ़ना, बातचीत करने के बराबर है। और इस तरह की पढ़ाई बनावटी नहीं लगती बल्कि इसमें विश्वास झलकता है।