अध्याय 28
बोलचाल की शैली
आम तौर पर जब दोस्त आपस में बातें करते हैं, तो उन्हें किसी तरह की घबराहट महसूस नहीं होती। उनके मन में जो भी आता है, उसे वे बेझिझक बोल देते हैं। कुछ लोग जोश के साथ बात करते हैं, तो कुछ लोग बहुत कम बोलते हैं। एक इंसान का स्वभाव जैसा भी हो, उनकी सहज बातचीत सुनने में अच्छी लगती है।
लेकिन, किसी अजनबी से बात करते वक्त, उसके साथ बेतकल्लुफी से या ऐसे बात करना ठीक नहीं रहेगा मानो उसके साथ हमारी पुरानी जान-पहचान हो। दरअसल, कुछ संस्कृतियों में अजनबियों से औपचारिक ढंग से बात शुरू करने का दस्तूर है। उचित तरीके से इज़्ज़त देने के बाद, समझदारी से काम लेते हुए आप अगर औपचारिक भाषा के बजाय बोलचाल की शैली में उनसे आगे बात करेंगे तो ज़्यादा सही रहेगा।
स्टेज से बोलते वक्त भी आपको अपने बात करने के अंदाज़ पर ध्यान देना चाहिए। बहुत ज़्यादा लापरवाह होने से, मसीही सभा की गरिमा कम होती है और लोग आपकी बात की गंभीरता नहीं समझेंगे। कुछ भाषाओं में बड़े-बुज़ुर्गों, अध्यापकों, अधिकारियों या माता-पिता से बात करते वक्त कुछ खास शब्दों का इस्तेमाल करना ज़रूरी होता है। (प्रेरितों 7:2 और 13:16 में इस्तेमाल किए गए शब्दों पर गौर कीजिए।) अपने पति या पत्नी से, या किसी करीबी दोस्त से बात करते वक्त अलग तरह के शब्द इस्तेमाल किए जाते हैं। स्टेज से बोलते वक्त हमारी बोली बहुत ज़्यादा औपचारिक नहीं होनी चाहिए, मगर साथ ही इसमें इज़्ज़त और लिहाज़ नज़र आना चाहिए।
लेकिन कुछ ऐसे कारण हैं, जिनसे हमारी बातचीत बहुत ज़्यादा औपचारिक या बेरुखी लग सकती है। इनमें से एक कारण है, वाक्य की रचना या शब्दों का इस्तेमाल। जब एक वक्ता, किसी किताब में लिखी बात को शब्द-ब-शब्द बोलता है, तो वह सुनने में सहज नहीं लगती। किताबों में लिखे शब्द, अकसर बोलचाल में इस्तेमाल होनेवाले शब्दों से काफी अलग होते हैं। यह सच है कि भाषण की तैयारी करते वक्त हम ज़्यादातर छपे साहित्य में दी गयी जानकारी से खोजबीन करते हैं। और हो सकता है, आपको भाषण के लिए संस्था से बनी-बनायी एक आउटलाइन दी जाए। लेकिन अगर आप भाषण के विचारों को उसी तरीके से ज़ाहिर करेंगे जैसे वे साहित्य में लिखे हैं, या फिर आप भाषण देते वक्त सीधे आउटलाइन से पढ़ेंगे, तो यह मुमकिन नहीं कि आपकी बातचीत, बोलचाल की शैली जैसी लगे। बोलचाल की शैली बनाए रखने के लिए, विचारों को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए और लंबे-चौड़े या मुश्किल वाक्य मत बोलिए।
एक और वजह है, बोलने की रफ्तार में बदलाव लाना। एक इंसान जब एक ही लय और रफ्तार में बोलता है, तो उसकी बात काफी रूखी और औपचारिक लगती है। आम बातचीत में, हम अकसर बोलने की रफ्तार बदलते हैं और शब्द बोलने से पहले कभी ज़्यादा, तो कभी कम समय के लिए रुकते हैं।
बेशक, जब आप किसी बड़े समूह के सामने भाषण देते हैं, तब आपको बोलचाल की शैली के अलावा, ऊँची आवाज़ में, ज़ोर देकर और पूरे जोश के साथ बात करनी चाहिए, तभी आप उनका ध्यान बाँधे रख सकेंगे।
प्रचार में बोलचाल की सही शैली में बात करने के लिए ज़रूरी है कि आप रोज़मर्रा की बातचीत सही ढंग से करने की आदत डालें। इसका मतलब यह नहीं कि आपको बहुत पढ़ा-लिखा होना चाहिए। लेकिन बात करने में ऐसी शैली अपनाना फायदेमंद है जिससे लोग आपकी बात को पूरे आदर के साथ सुनते हैं। इसे मद्देनज़र रखते हुए, खुद को जाँचिए कि क्या रोज़ की बातचीत में, आपको नीचे बताए मुद्दों पर काम करने की ज़रूरत है।
ऐसे शब्द मत बोलिए जो व्याकरण के नियमों से मेल नहीं खाते, या जिनसे आपका नाता ऐसे लोगों से जोड़ा जाए जो परमेश्वर के स्तरों पर नहीं चलते। कुलुस्सियों 3:8 में दी सलाह के मुताबिक ओछी या घटिया किस्म की भाषा से दूर रहिए। दूसरी तरफ, आप बोलचाल की आम भाषा बेझिझक इस्तेमाल कर सकते हैं। बोलचाल की भाषा या रोज़मर्रा इस्तेमाल होनेवाले शब्द भले ही साधारण हों, मगर वे बातचीत के ठहराए गए स्तरों के मुताबिक होते हैं।
अलग-अलग विचार ज़ाहिर करने के लिए, एक ही तरह के शब्दों और वाक्यों का इस्तेमाल मत कीजिए। इसके बजाय ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करना सीखिए जिनसे आप अपनी बात साफ-साफ कह सकें।
एक ही बात को बेवजह बार-बार मत दोहराइए। पहले मन में तय कर लीजिए कि आप क्या कहना चाहते हैं; फिर अपनी बात शुरू कीजिए।
ढेर सारे शब्द मत बोलिए जिससे बढ़िया विचार छिप जाएँगे। जो मुद्दा लोगों के लिए याद रखना ज़रूरी है, उसे हमेशा सरल वाक्य में और साफ-साफ कहने की आदत डालिए।
इस तरह बात कीजिए जिससे दूसरों के लिए आदर की भावना ज़ाहिर हो।