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अध्याय 35

ज़ोर देने के लिए दोहराना

आपको क्या करने की ज़रूरत है?

जो मुद्दे आप खास तौर से अपने सुननेवालों के दिमाग में बिठाना चाहते हैं, उन्हें कई बार दोहराइए।

इसकी क्या अहमियत है?

दोहराने से न सिर्फ मुद्दों को याद रखना आसान होता है, बल्कि आप खास विचारों पर ज़ोर दे सकेंगे और उन्हें ठीक-ठीक समझने में लोगों की मदद कर सकेंगे।

सिखाने में निपुण होने के लिए एक ज़रूरी बात है, दोहराना। खास मुद्दों को कई बार बताने से सुननेवालों को उन्हें याद रखने में आसानी होगी। दोहराते वक्‍त अगर मुद्दों को थोड़ा अलग तरीके से बताएँ, तो लोग उन्हें और अच्छी तरह समझ पाएँगे।

आप जो बताते हैं, वह अगर लोगों को याद न रहे, तो आपकी बातों का उनके सोच-विचार या उनकी ज़िंदगी पर कोई असर नहीं पड़ेगा। जिन बातों पर आप खास ज़ोर देते हैं, वे शायद उन्हीं मुद्दों के बारे में बाद में भी सोचते रहेंगे।

अपनी बात दोहराने में हमारे महान उपदेशक, यहोवा ने हमारे लिए एक अच्छी मिसाल रखी है। उसने इस्राएल जाति को दस आज्ञाएँ दी थीं। उसने एक स्वर्गदूत के ज़रिए सीनै पर्वत के पास, इस्राएल जाति को वे आज्ञाएँ सुनायीं। बाद में उसने ये नियम मूसा को लिखकर दिए। (निर्ग. 20:1-17; 31:18; व्यव. 5:22) और इससे पहले कि इस्राएली वादा किए गए देश में कदम रखते, मूसा ने यहोवा के कहने पर, वे नियम उनको फिर से सुनाए। और जैसा कि व्यवस्थाविवरण 5:6-21 में हम पाते हैं, मूसा ने पवित्र आत्मा की मदद से उन नियमों को लिख डाला। इस्राएलियों को दी गयी आज्ञाओं में से एक यह थी कि वे अपने पूरे दिल, पूरी जान और पूरी शक्‍ति से यहोवा से प्रेम करें और उसकी सेवा करें। इस आज्ञा को भी बार-बार दोहराया गया। (व्यव. 6:5; 10:12; 11:13; 30:6) क्यों? क्योंकि जैसे यीशु ने बताया वह सबसे “बड़ी और मुख्य आज्ञा” थी। (मत्ती 22:34-38) यहोवा ने भविष्यवक्‍ता यिर्मयाह के ज़रिए, यहूदा के लोगों को 20 से ज़्यादा बार याद दिलाया कि उसकी सभी आज्ञाओं को मानना कितना ज़रूरी है। (यिर्म. 7:23; 11:4; 12:17; 19:15) और यहेजकेल के ज़रिए, परमेश्‍वर ने 60 से ज़्यादा बार कहा कि जातियाँ “जान लेंगी कि मैं यहोवा हूं।”—यहे. 6:10; 38:23.

यीशु की सेवा का ब्यौरा देनेवाले वृत्तांतों में भी हम पाते हैं कि दोहराने की कला का बढ़िया इस्तेमाल किया गया है। एक मिसाल है, सुसमाचार की चार किताबें। हर किताब में ऐसी अहम घटनाएँ दर्ज़ हैं जिनका ज़िक्र सुसमाचार की दूसरी किताबों में भी मिलता है। लेकिन हर किताब में घटनाओं को थोड़ा अलग तरीके से पेश किया गया है। यीशु ने भी सिखाते वक्‍त अलग-अलग मौकों पर एक ही मुद्दा बताया, मगर उसने हर बार अलग तरीके से उसे पेश किया। (मर. 9:34-37; 10:35-45; यूह. 13:2-17) और अपनी मौत से कुछ दिन पहले, यीशु जब जैतून पर्वत पर था, तब उसने इस ज़रूरी सलाह पर ज़ोर देने के लिए उसे दोहराया: “जागते रहो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारा प्रभु किस दिन आएगा।”—मत्ती 24:42; 25:13.

प्रचार में। लोगों को गवाही देते वक्‍त आप उम्मीद करते हैं कि वे आपकी बात याद रखें। अगर आप दोहराने की कला का अच्छा इस्तेमाल करें, तो आप इसमें ज़रूर कामयाब होंगे।

जब आप किसी मुद्दे पर बात करते हैं, तभी अगर आप उसे बार-बार दोहराएँ तो सुननेवाले के दिमाग में यह अच्छी तरह बैठ जाएगा। एक आयत पढ़ने के बाद, उस पर ज़ोर देने के लिए आप आयत के खास भाग की तरफ ध्यान दिलाकर पूछ सकते हैं: “क्या आपने देखा कि इस आयत में क्या लिखा है?”

बातचीत के आखिर में भी आप खास बातों को दोहराकर उन पर ज़ोर दे सकते हैं। मसलन, आप कह सकते हैं: “उम्मीद है कि आपको हमारी बातचीत का यह खास मुद्दा याद रहेगा . . .।” फिर चंद शब्दों में वह मुद्दा दोहराइए। वह मुद्दा कुछ इस तरह हो सकता है: “परमेश्‍वर का मकसद है कि धरती को एक फिरदौस में तबदील किया जाए। और यह मकसद हर हाल में पूरा होगा।” या शायद आप यह कहें: “बाइबल साफ-साफ बताती है कि हम इस बुरे संसार के आखिरी दिनों में जी रहे हैं। अगर हमें इस संसार के अंत से बचना है, तो हमें जानना होगा कि परमेश्‍वर हमसे क्या माँग करता है।” या फिर हम यूँ कह सकते हैं: “जैसे हमने चर्चा की कि बाइबल, परिवार में उठनेवाली समस्याओं का हल करने के लिए कारगर सलाह देती है।” कुछ मामलों में, घर-मालिक के दिमाग में एक मुद्दे को बिठाने के लिए बाइबल का कोई हवाला दोहराना काफी होगा। लेकिन ऐसा असरदार तरीके से करने के लिए पहले से अच्छी तैयारी करनी चाहिए।

वापसी भेंट और बाइबल अध्ययन में आप सीखी हुई बातों के बारे में सवाल पूछकर उन्हें दोहरा सकते हैं।

अगर एक विद्यार्थी, बाइबल की किसी सलाह का मतलब समझ नहीं पा रहा है या उस पर अमल करना उसे मुश्‍किल लगता है, तो आपको शायद वह विषय बार-बार समझाना पड़ेगा। उस सलाह को अलग-अलग तरीके से समझाने की कोशिश कीजिए। ज़रूरी नहीं कि ये चर्चाएँ लंबी-चौड़ी हों, लेकिन इनसे विद्यार्थी को उस विषय के बारे में सोचते रहने का बढ़ावा मिलना चाहिए। याद कीजिए कि यीशु ने भी कैसे दोहराने का यही तरीका अपनाकर, अपने चेलों को सिखाया कि क्यों उन्हें ऊँची पदवी हासिल करने की इच्छा पर काबू पाना चाहिए।—मत्ती 18:1-6; 20:20-28; लूका 22:24-27.

भाषण देते वक्‍त। स्टेज से भाषण देते वक्‍त, आपका मकसद सिर्फ जानकारी पेश करना नहीं है। आप चाहते हैं कि हाज़िर लोग आपकी बात को समझें, उसे याद रखें और उस पर अमल करें। यह मकसद हासिल करने के लिए आपको दोहराने की कला का अच्छा इस्तेमाल करना चाहिए।

लेकिन अगर आप खास मुद्दों को बहुत ज़्यादा दोहराएँगे, तो लोगों का ध्यान भटक सकता है। दोहराने के लिए सिर्फ ऐसे मुद्दे चुनिए जिन पर ज़्यादा ज़ोर दिया जाना चाहिए। आम तौर पर उन मुख्य मुद्दों को दोहराने की ज़रूरत होती है जिनके आधार पर आपका भाषण तैयार किया गया है। इनके अलावा, आप ऐसे खास विचारों को भी दोहरा सकते हैं जिनसे आपके सुननेवालों को फायदा होगा।

दोहराने के लिए, आप भाषण की शुरूआत में बता सकते हैं कि आप किन मुख्य मुद्दों पर बात करनेवाले हैं। ये मुख्य मुद्दे आप छोटे-छोटे वाक्यों के रूप में बता सकते हैं, जिससे कि पूरे भाषण की एक झलक मिल जाएगी, या फिर आप सवालों का इस्तेमाल कीजिए या समस्याएँ पेश करनेवाले ऐसे छोटे-छोटे उदाहरण दीजिए जिनका हल ढूँढ़ना है। आप चाहें तो बता सकते हैं कि आपके भाषण में कितने मुख्य मुद्दे हैं और फिर एक-एक करके ये मुद्दे बता सकते हैं। इसके बाद, भाषण के खास भाग में हर मुख्य मुद्दे के बारे में विस्तार से समझाइए। जब आप भाषण के खास भाग पर आते हैं, तब अगले मुख्य मुद्दे पर जाने से पहले, पिछले मुद्दे को दोहराकर उस पर ज़ोर दे सकते हैं। या फिर आप किसी मुख्य मुद्दे को लागू करने के लिए कोई उदाहरण बता सकते हैं और इस तरह उस पर ज़ोर दे सकते हैं। इन सबके अलावा, आप मुख्य मुद्दों पर ज़ोर देने के लिए भाषण की समाप्ति में उन्हें दोहरा सकते हैं, फर्क बताकर उन पर ज़ोर दे सकते हैं, उठाए गए सवालों के जवाब दे सकते हैं या जिन समस्याओं का आपने ज़िक्र किया था, चंद शब्दों में उनके हल बता सकते हैं।

दोहराने के इन सभी तरीकों के अलावा, एक तजुर्बेकार वक्‍ता ध्यान से देखता है कि उसके सुननेवाले कौन हैं। अगर कुछ लोगों को एक मुद्दा समझना मुश्‍किल लग रहा है, तो उसे मालूम हो जाता है। अगर यह कोई अहम मुद्दा है, तो वह उसे दोबारा समझाता है। लेकिन उन्हीं शब्दों को दोहराने का कोई फायदा नहीं होगा। सिखाने का मतलब सिर्फ शब्द दोहराना नहीं है। उसे सुननेवालों की ज़रूरत के मुताबिक अपने भाषण में फेरबदल करनी चाहिए। हो सकता है ज़रूरत को देखते हुए उसे उसी वक्‍त अपने भाषण में कुछ जानकारी जोड़नी पड़े। आप सुननेवालों की ज़रूरतों के मुताबिक भाग पेश करना जितना अच्छी तरह सीखेंगे, उसी से यह तय होगा कि आप सिखाने में कितने निपुण हैं।

कब-कब दोहराएँ

  • कोई खास मुद्दा बताने या किसी मुख्य मुद्दे को पूरी तरह समझाने के तुरंत बाद।

  • अपनी बातचीत या अपने भाग के आखिर में।

  • जब आप पाते हैं कि आपके सुननेवालों को एक अहम मुद्दा समझने में मुश्‍किल लग रहा है।

  • वापसी भेंट और बाइबल अध्ययन पर जाने में कई बार जब कुछ दिन या हफ्ते बीत जाते हैं।

अभ्यास: (1) प्रचार में जब आप किसी से पहली मुलाकात में बात करते हैं, तब बातचीत के आखिर में सिर्फ एक अहम मुद्दे को दोहराइए जिस पर आपने चर्चा की थी और जिसे आप घर-मालिक के दिमाग में बिठाना चाहते हैं। (2) वापसी भेंट में अपनी बात खत्म करते वक्‍त, अपनी चर्चा के एक या दो ऐसे अहम मुद्दे दोहराइए जो आप चाहते हैं कि दिलचस्पी लेनेवाले याद रखें।

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