“लोभ का युग”
अगर मनुष्य को साधारण ज़ुकाम का उन्मूलन करने में कठिनाई है, तो लोभ का कहीं अधिक जटिल रोग मिटाने की उसकी क्या संभावना है?
ऐसा प्रतीत होता है कि लोभ और स्वार्थ को सीखने तक की ज़रूरत नहीं—वे प्रत्यक्षतः बचपन से ही मौजूद हैं। आप दो बच्चों को उनके खिलौनों के साथ खेलते हुए देखकर, उस बात को समझ सकते हैं।
वैयक्तिक मानवी लोभ काफ़ी साधारण और बुरा है, लेकिन जब राष्ट्रीय या अन्तरराष्ट्रीय लोभ की बात होती है, तब लाखों की हानि होती है। उदाहरण के लिए, नशीली दवाओं का अन्तरराष्ट्रीय व्यापार ही लीजिए। स्पॅनिश भाषा की एक पत्रिका दावा करती है कि यह संसार का सबसे बड़ा व्यवसाय है—प्रति वर्ष ३ अरब डॉलर्स। इन दवाओं के दुरुपयोग के द्वारा लाखों जानें बरबाद होती हैं और अनगिनत असामायिक मरण होते हैं। इस नशीली दवाओं के व्यापार का भयप्रद बहुप्रजता का कारण क्या है? बेशक, यह लोभ है।
वर्ल्ड प्रेस रिव्यू लोभ के इस उद्देश्य पर विशेष बल देता है। वह मॅड्रिड समाचार पत्रिका कॅम्बियो १६ से उद्धरण करता है, जो निश्चयपूर्वक कहती है कि “इन दवाओं की बिक्री के सभी मुनाफ़ों से मुश्किल से १० से २० प्रतिशत ही निर्माता राष्ट्रों को जाता है। एक और १०-प्रतिशत प्रयोगशालाओं में, वाहन-व्यवस्था में, और शस्त्रों में पुनर्निवेश के द्वारा वापस अवैध व्यापार व्यवस्था में लगाया जाता है। . . . बाक़ी जो बचता है, वह उपभोक्ता राष्ट्रों में और विश्व बैंकिंग व्यवस्था के कर आश्रय में समापन होता है।”
यह उस दृष्टिकोण को झुठला देता है कि लोभ का कारण केवल ग़रज़ है, और यह कि लोभ केवल ग़रीबों या अल्पसुविधा-प्राप्त व्यक्तियों की विशेषता है। प्रत्यक्षतः, लोभ एक व्यापक मानवी कमी है जो संपूर्ण समाज को शामिल करता है, जिन में वे भी हैं, जो सचमुच ग़रज़मन्द ही नहीं हैं। लोभ की एक अजीब विशेषता यह है कि वह इतना कपटपूर्ण है—कि वे लोग भी जो साधारणतः अपनी ज़िन्दगी से संतुष्ट हैं, लोभ प्रकट करेंगे, अगर अचानक अवसर दिया जाए।
मेग ग्रीनफील्ड शोक प्रकट करती है: “आप किसी भी दिन अपना समाचार पत्र खोलते हैं और आप ग्रैंड जूरियों और विशेष अभियोजकों और शंकास्पद अध्यर्थनों, लुक-छिपकर किए हुए कार्यों और चालबाज़ी से किसी को मात करने के बारे में पढ़ते हैं, और यह काफ़ी निराशजनक है। यह स्वीकार करने के बावजूद भी कि कुछ दावे निराधार हैं और दूसरे अति-विकसित हैं, मेरे लिए यह स्पष्ट है कि कई बार लोगों ने ऐसे कार्य किए हैं, और कुछ ऐसे कामों को करने दिया गया है जिनकी अनुमति ही नहीं दी जानी चाहिए थी। . . . हम इतनी दूर आ चुके हैं: हमारा परहितवाद भी काफ़ी असंयमी और लोभी है।”
कितना व्यापक?
लोभ मानव-जाति के बीच एक नई बात नहीं है, यद्यपि २०-वीं सदी के दबावओं के कारण इस में बेशक वृद्धि हुई है। लोभ इतना व्यापक हो चुका है कि द क्रिस्टियन सेंच्यूरी का एक संपादकीय लेख १९८० के दशक को एक ऐसा नाम देता है जो उनके ख़याल में १९५० के दशक का “चिन्ता का युग” या १९७० के दशक का “मैं दशक” नामों से बराबर मिलता है। वह १९८० के दशक को “लोभ का युग,” यह नाम देता है!
आज, लोभ हर क्षेत्र में देखा जाता है, जहाँ लोग इकट्ठा होते हैं—जैसे कार्यस्थलों में, पाठशालाओं में, और आम बिरादरी में। उसने अपना दूषित प्रभाव वाणिज्य में, राजनीति में और संसार के मुख्य धर्मों में भी फैलाया है।
बहुधा, लोभ अवैध भ्रष्टाचार या कपट में विकसित होता है। उदाहरण के लिए, द कॅन्बेरा टाइम्स ऑस्ट्रेलिया को गाड़ी के बीमा में, धोखेबाज़ी में प्रथम रहने की संदेहजनक प्रतिष्ठा प्रदान करती है। ऐसा प्रतीत होता है कि ऑस्ट्रेलिया का लॉ सोसायटी जर्नल यह कहते हुए इसका समर्थन करती है: “बीमाकृत व्यक्तियों द्वारा किए गए छलपूर्ण दावों/वक्तव्यों ने बीमा कम्पनियों, और अप्रत्यक्ष रूप से बीमाकृत व्यक्तियों को लाखों डॉलर्स का नुक़सान पहुँचाया है।” वह पत्रिका आगे कहती है कि “यह एक बढ़ती हुई गम्भीर समस्या है, विशेषकर आगज़नी, घाट-लूटमार, वाहन और गृह वस्तु बीमा जैसे क्षेत्रों में।”
इसलिए यह समझना आसान है कि क्यों कई लोग उस विचार का मज़ाक उड़ाते हैं कि लोभ कभी उन्मूलन किया जाएगा। वे यह महसूस करते हैं कि लोभ हमेशा हमारे साथ रहेगा और यह कि एक लोभ-मुक्त संसार केवल एक असंभव सपना है।
लोभ का उन्मूलन किया जाएगा
किस आधार पर यह उपर्युक्त असंभव-सा लगनेवाला दावा किया जा सकता है? यह इस तथ्य के आधार पर है कि लोभ-मुक्त जीवन प्राप्त किया गया है। जब कि यह प्राप्ति परिपूर्ण नहीं है, यह ज़रूर दिखाती है कि सही शिक्षण और प्रेरणा के द्वारा क्या किया जा सकता है। आगामी लेख दिखाएगा कि कैसे एक सम्पूर्ण संसार लोभ रहित बन सकता है।