सांसारिक अतिकल्पनाओं को ठुकराइये, राज्य वास्तविकताओं के पीछे लगे रहिये
“इसलिये पहिले तुम उसके राज्य और धर्म की खोज करो तो ये सब वस्तुएं भी तुम्हें मिल जाएंगी।”—मत्ती ६:३३.
१. सांकेतिक हृदय के बारे में परमेश्वर का वचन क्या चेतावनी देता है, और हमें धोखा देने का इसका एक प्रमुख ढंग क्या है?
“सब से अधिक अपने मन की रक्षा कर; क्योंकि जीवन का मूल स्रोत वही है।” (नीतिवचन ४:२३) बुद्धिमान राजा सुलैमान का यह चेतावनी देना क्यों ज़रूरी था? क्योंकि “मन तो सब वस्तुओं से अधिक धोखा देनेवाला होता है, उस में असाध्य रोग लगा है।” (यिर्मयाह १७:९) हमें सांसारिक अतिकल्पनाओं में मग्न होने के लिये प्रेरित करना हमारे सांकेतिक हृदय द्वारा हमें धोखा देने का एक प्रमुख ढंग है। लेकिन अतिकल्पनाएँ हैं क्या? वे अवास्तविक कल्पनाएँ, दिवास्वप्न, कार्यहीन मन की उड़ान हैं। जब ये दिवास्वप्न सांसारिक अतिकल्पनाएँ बन जाते हैं, तो ये केवल समय की बरबादी ही नहीं बल्कि बहुत हानिकर भी होते हैं। अतः, हमें इनको पूरी तरह ठुकराना है। दरअसल, यदि हम अधर्म से बैर रखते हैं जैसा यीशु ने रखा, तो हम अपने हृदय को सांसारिक अतिकल्पनाओं में मग्न होने से बचाएंगे।—इब्रानियों १:८, ९.
२. सांसारिक अतिकल्पनाएँ क्या हैं, और हमें इनको क्यों ठुकराना चाहिये?
२ लेकिन सांसारिक अतिकल्पनाएँ हैं क्या? ये ऐसी अतिकल्पनाएँ हैं जो शैतान के वश में पड़े इस संसार की विशिष्टता है। इसके विषय में, प्रेरित यूहन्ना ने लिखा: “जो कुछ संसार में है, अर्थात् शरीर की अभिलाषा, और आंखों की अभिलाषा और जीविका का घमण्ड, वह पिता की ओर से नहीं, परन्तु संसार ही की ओर से है।” (१ यूहन्ना २:१६; ५:१९) मसीहियों को सांसारिक अतिकल्पनाओं को क्यों ठुकराना चाहिये? क्योंकि ऐसी अतिकल्पनाएँ मन और हृदय में स्वार्थी अभिलाषाएँ भड़काती हैं। ग़लत काम करने के बारे में दिवास्वप्न देखना वास्तव में एक व्यक्ति का ऐसा असलियत में करने का मन में पूर्वाभ्यास हो सकता है। शिष्य याकूब हमें चेतावनी देता है: “प्रत्येक व्यक्ति अपनी ही अभिलाषा से खिंचकर, और फंसकर परीक्षा में पड़ता है। फिर अभिलाषा गर्भवती होकर पाप को जनती है और पाप जब बढ़ जाता है तो मृत्यु को उत्पन्न करता है।”—याकूब १:१४, १५.
चेतावनी देनेवाले उदाहरण
३. किसका मामला स्वार्थी अतिकल्पनाओं की हानिकारकता का चेतावनी देनेवाला सर्वप्रथम उदाहरण देता है?
३ आइये, ऐसे उदाहरणों पर विचार करते हैं जो यह दिखाते हैं कि सांसारिक अतिकल्पनाओं को क्यों ठुकराना चाहिये। शैतान इबलीस का मामला, स्वार्थी अतिकल्पनाओं में मग्न होने के हानिकर परिणाम का सर्वप्रथम उदाहरण है। उसने अपने हृदय में अहंकार की भावनाओं को इस हद तक विकसित होने दिया कि उसे यहोवा के विश्व सर्वसत्ताधारी के रूप में अन्नय पद से ईर्ष्या हो गई और वह चाहता था कि उसकी उपासना हो। (लूका ४:५-८) एक अवास्तविक अतिकल्पना? यह निश्चित ही थी! यह हर संदेह से परे प्रमाणित हो जायेगा जब शैतान को एक हज़ार साल के लिये बाँधा जायेगा और ख़ासकर जब उसे ‘आग की झील’ में डाल दिया जायेगा, अर्थात् दूसरी मृत्यु।—प्रकाशितवाक्य २०:१-३, १०.
४. शैतान ने हव्वा को कैसे बहकाया?
४ हमारे पास चेतावनी देनेवाला दूसरा उदाहरण पहली औरत हव्वा का है। अपनी महत्त्वकांक्षा को साकार करने के प्रयासों में शैतान ने हव्वा के मन में यह अतिकल्पना प्रस्तुत करके उसे बहकाया कि यदि वह वर्जित फल खायेगी तो मरेगी नहीं बल्कि भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्वर के तुल्य हो जायेगी। क्या वह अतिकल्पना अवास्तविक, स्वार्थी थी? सचमुच वह थी, जैसे कि हव्वा और उसके पति आदम को दी गयी यहोवा की दंडाज्ञा से देखा जा सकता है, जब विधिवत् सुनवाई के समय यहोवा ने उनसे पूछताछ की और उन्हें यह फ़ैसला सुनाया। परिणामस्वरूप, उन्होंने अपने लिये और अपने सभी अपरिपूर्ण बच्चों के लिये परादीस में जीवन का अधिकार खो दिया।—उत्पत्ति ३:१-१९; रोमियों ५:१२.
५. किस कारण परमेश्वर के कुछ स्वर्गदूतीय पुत्रों का पतन हुआ, और उनके लिये क्या परिणाम हुआ?
५ हमारे पास परमेश्वर के कुछ स्वर्गदूतीय पुत्रों के भी चेतावनी देनेवाले उदाहरण हैं। (उत्पत्ति ६:१-४) उन आशीषों का आनन्द लेने में सन्तुष्ट रहने के बजाय, जो वे यहोवा की स्वर्गीय उपस्थिति में लेते थे, उन्होंने पृथ्वी पर स्त्रियों के बारे में अतिकल्पना की और कि उनके साथ लैंगिक सम्बन्ध कितना सुखदायक होगा। इन अतिकल्पनाओं पर चलने के कारण अवज्ञाकारी स्वर्गदूत अब तारतरस के आध्यात्मिक अंधेरे में कैद, यीशु मसीह के हज़ार साल के राज्य के अन्त में अपने विनाश का इन्तज़ार कर रहे हैं।—२ पतरस २:४; यहूदा ६; प्रकाशितवाक्य २०:१०.
सांसारिक अतिकल्पनाओं को ठुकराइये
६, ७. भौतिक धन के बारे में सांसारिक अतिकल्पनाएँ हानिकर और बहकाने वाली क्यों हैं?
६ आइये अब, शैतान द्वारा आगे बढ़ाई गयी एक सबसे आम और हानिकर अतिकल्पना पर विचार करें। हर तरीक़े के जन-सम्पर्क माध्यम से हम सांसारिक अतिकल्पनाओं में मग्न होने के लिये प्रलोभित होते हैं। ये अकसर धन की लालसा से उत्पन्न होती हैं। वैसे स्वयं, धन-दौलत का मालिक होने में कोई ख़राबी नहीं है। धर्मपरायण इब्राहीम, अय्यूब, और राजा दाऊद बहुत अमीर थे, लेकिन उन में भौतिक धन की लालसा नहीं थी। भौतिकवादी अतिकल्पनाएँ लोगों को धन-दौलत प्राप्त करने के लिये सालों-साल कठिन परिश्रम करने के लिये प्रेरित करती हैं। ऐसी अतिकल्पनाएँ उन्हें हर क़िस्म के जुए में भी मग्न होने के लिये उकसाती हैं, जैसे घोड़ों पर शर्त लगाना और लाटरी की टिकटें ख़रीदना। हम धन-दौलत के बारे में कोई भ्रम न रखें। यदि हम सोचते हैं कि भौतिक धन सुरक्षा प्रदान करेगा, तो इस यथार्थवादी नीतिवचन पर विचार कीजिये: “कोप के दिन धन से तो कुछ लाभ नहीं होता, परन्तु धर्म मृत्यु से भी बचाता है।” (नीतिवचन ११:४) सचमुच, “बड़े क्लेश” से बचने में भौतिक धन का कोई लाभ नहीं।—मत्ती २४:२१; प्रकाशितवाक्य ७:९, १४.
७ भौतिक धन हमें आसानी से बहका सकता है। इसलिये हमें कहा गया है: “धनी का धन उसकी दृष्टि में गढ़वाला नगर, और ऊँचे पर बनी हुई शहरपनाह है।” (नीतिवचन १८:११) जी हाँ, केवल “उसकी दृष्टि में,” क्योंकि बेकाबू मुद्रा-स्फीति, आर्थिक विध्वंस, राजनीतिक उथल-पुथल, या मरणान्तक रोग के समय भौतिक धन-दौलत थोड़ी सुरक्षा देता है। यीशु मसीह ने भौतिक धन पर अपना विश्वास रखने के ख़िलाफ़ चेतावनी दी। (लूका १२:१३-२१) हमारे पास प्रेरित पौलुस के भी चेतावनी देने वाले शब्द हैं: “रुपये का लोभ सब प्रकार की बुराइयों की जड़ है, जिसे प्राप्त करने का प्रयत्न करते हुए कितनों ने विश्वास से भटककर अपने आप को नाना प्रकार के दुखों से छलनी बना लिया है।”—१ तीमुथियुस ६:१०.
८. लैंगिक क़िस्म की सांसारिक अतिकल्पनाएँ कितनी प्रचलित हैं, और यह क्या ख़तरा खड़ा करती हैं?
८ दूसरी अतिकल्पनाएँ अनुचित कामवासना से सम्बन्धित हैं। दूरभाष पर कुछेक नम्बर मिलाने से वहाँ उपलब्ध मौखिक अश्लीलता और अश्लील बातों को सुनने की लोकप्रियता से यह देखा जा सकता है कि किस हद तक पापमय मानवी स्वभाव यौन-सम्बन्धी अतिकल्पनाओं पर विचार करते रहना चाहता है। अमेरिका में, दूरभाष पर उपलब्ध अश्लील सेवाएँ करोड़ों डॉलर का व्यापार है। यदि हम अपने मन को अनुचित कामवासना पर विचार करते रहने दें, तो क्या हम कपटी नहीं होंगे, जो केवल दिखाई देने में ही साफ मसीही होंगे? और क्या यह ख़तरा नहीं कि ऐसी अतिकल्पनाएँ हमें अनैतिक यौन सम्बन्धों की ओर ले जाएँ? ऐसा हुआ है और इसके परिणामस्वरूप व्यभिचार या परगमन करने के कारण कुछ मसीही कलीसिया से बहिष्कृत किये गये हैं। मत्ती ५:२७, २८ में यीशु के शब्दों को ध्यान में रखते हुए, क्या वे सभी अपने हृदय में परगमन करने के दोषी नहीं हैं जो लगातार ऐसी अतिकल्पनाओं में मग्न रहते हैं?
९. सांसारिक अतिकल्पनाओं के ख़िलाफ़ हमें चेतावनी देने के लिये शास्त्रवचन में क्या उत्तम सलाह हैं?
९ ऐसी अतिकल्पनाओं में मग्न होने की हमारे पापमय हृदय की प्रवृति का प्रतिकार करने के लिये, हमें पौलुस की चेतावनी को ध्यान में रखने की ज़रूरत है: “सृष्टि की कोई वस्तु [परमेश्वर] से छिपी नहीं है बरन जिस से हमें काम है, उस की आंखों के साम्हने सब वस्तुएं खुली और बेपरद हैं।” (इब्रानियों ४:१३) हम में हर समय मूसा की तरह बनने की चाह होनी चाहिये, जो “अनदेखे को मानो देखता हुआ दृढ़ रहा।” (इब्रानियों ११:२७) जी हाँ, हमें अपने आपको यह बताते रहना है कि सांसारिक अतिकल्पनाएँ यहोवा को अस्वीकार्य हैं और इनका परिणाम हमारे लिये केवल हानि ही हो सकता है। हमें परमेश्वर की आत्मा के सभी फल उत्पन्न करने की चिन्ता होनी चाहिये, ख़ासकर संयम की, क्योंकि हम इस सच्चाई से नहीं बच सकते कि यदि हम शरीर के लिये बोते हैं, तो शरीर के द्वारा विनाश की कटनी काटेंगे।—गलतियों ५:२२, २३; ६:७, ८.
राज्य की वास्तविकताएँ
१०, ११. (क) सृष्टिकर्ता की वास्तविकता के पक्ष में क्या सच्चाइयाँ तर्क करती हैं? (ख) इसका क्या प्रमाण है कि बाइबल वास्तव में परमेश्वर का वचन है? (ग) परमेश्वर के राज्य के राजा की वास्तविकता का क्या प्रमाण है?
१० सांसारिक अतिकल्पनाओं को ठुकराने का सबसे बढ़िया तरीक़ा राज्य की वास्तविकताओं के पीछे लगे रहना है। राज्य की वास्तविकताएँ जो परमेश्वर द्वारा उत्पन्न हैं, सांसारिक अतिकल्पनाओं की तुलना में असाधारण असमानता रखती हैं। क्या परमेश्वर एक वास्तविकता है? उसके अस्तित्व के विषय में कोई संदेह नहीं है। उस सच्चाई के विषय में दृष्य सृष्टि प्रमाण देती है। (रोमियों १:२०) हमें सौ साल से भी पहले वॉचटावर सोसाइटी द्वारा प्रकाशित पुस्तक द डिवाइन प्लैन ऑफ दि एजिस् (The Divine Plan of the Ages) में कही बातें याद आती हैं। उसमें कहा गया था: “वह जो आसमान को एक दूरबीन से, या फिर सिर्फ़ अपनी प्राकृतिक आँख से देखने के द्वारा वहाँ सृष्टि की विशालता, उसकी सम्मिति, खूबसूरती, व्यवस्था, सामन्वय और विविधता को देख सकता है, और फिर भी इस बात पर संदेह कर सकता है कि इनका सृष्टिकर्ता बुद्धि और शक्ति, दोनों में, उससे बहुत श्रेष्ठ है, या जो एक क्षण के लिये यह कल्पना कर सकता है कि ऐसी व्यवस्था संयोग से, बिना किसी सृष्टिकर्ता के हो गयी, उसने इस हद तक विवेक क्षमता को खो दिया है या नज़रअंदाज़ किया है कि उसे उचित रूप से, जैसा बाइबल कहती है, मूर्ख (वह जिसमें विवेक की कमी है या जो उसे नज़रअंदाज़ करता है) समझा जाना चाहिये।”—भजन १४:१.
११ हम राज्य के विषय में सब कुछ पवित्र बाइबल से सीखते हैं। क्या बाइबल वास्तव में परमेश्वर का लिखित वचन है? यह बेशक है, जैसा इसके सामन्वय, इसकी वैज्ञानिक यथार्थता, और लोगों के जीवन को बदल देने की इसकी शक्ति और ख़ासकर इसकी भविष्यवाणियों के पूरा होने से देखा जा सकता है।a परमेश्वर के राज्य के राजा, यीशु मसीह के विषय में क्या? क्या वह वास्तव में अस्तित्व में था? सुसमाचार वृत्तांत और ईश्वरीय प्रेरित मसीही यूनानी शास्त्रवचन की पत्रियाँ साफ़-साफ़ और भावपूर्ण रूप से यीशु मसीह की ऐतिहासिकता को प्रमाणित करती हैं। यीशु की ऐतिहासिकता के विषय में यहूदी तालमूद का प्रमाण भी है, जिसमें उसे एक व्यक्ति के रूप में सूचित किया गया है। इसी रूप से पहली शताब्दी सा.यु. के यहूदी और रोमी इतिहासकार भी करते हैं।
१२, १३. कौनसी सच्चाइयाँ परमेश्वर के राज्य की वास्तविकता को प्रमाणित करती हैं?
१२ स्वयं राज्य की वास्तविकता के विषय में क्या? यह मसीहीजगत द्वारा अधिकांशतः नज़रअंदाज़ की गयी है, जैसा कि प्रेसबिटेरियन गिरजे के सुप्रकट सदस्य की इस शिकायत से दिखता है: “निश्चित रूप से मुझे तीस साल से ज़्यादा हो गये जब मैं ने किसी सेवक द्वारा उसके लोगों को उनके लिये राज्य की वास्तविकता समझाने की कोशिश करते देखा है।” फिर भी, राज्य के द्वारा यहोवा के नाम को पवित्र करना उसके वचन का मूल विषय है। परमेश्वर ने स्वयं राज्य की पहली प्रतिज्ञा यह कहते हुए की: “मैं तेरे और इस स्त्री के बीच में, और तेरे वंश और इसके वंश के बीच में बैर उत्पन्न करूंगा, वह तेरे सिर को कुचल डालेगा, और तू उसकी एड़ी को डसेगा।” (उत्पत्ति ३:१५) इस्राएल के राष्ट्र ने, ख़ासकर राजा सुलैमान के राज्य के दौरान, राज्य का पूर्वसंकेत किया। (भजन ७२) इसके अलावा, राज्य यीशु के प्रचार का मूल विषय था। (मत्ती ४:१७) उसने इसे अपने बहुत से दृष्टान्तों में पेश किया, जैसे कि जो मत्ती अध्याय १३ में हैं। यीशु ने हमें राज्य के लिये प्रार्थना करने और उसे पहले खोजते रहने के लिये कहा। (मत्ती ६:९, १०, ३३) वास्तव में, मसीही यूनानी शास्त्रवचन में क़रीब-क़रीब १५० बार परमेश्वर के राज्य का ज़िक्र है।
१३ राज्य एक वास्तविक सरकार है, जिसके पास शक्ति और अधिकार है, और यह सारी उचित प्रत्याशाओं को पूरा करेगी। इसके पास एक विधि-समूह है, जो बाइबल में पाया जाता है। राज्य अभी तक बहुत सी चीज़ों को वास्तविक बना चुका है। इसके पास वफ़ादार प्रजा है—४०,००,००० से अधिक यहोवा के गवाह। मत्ती २४:१४ की पूर्ति में, वे २११ देशों में परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार प्रचार कर रहे हैं। १९९१ सेवा वर्ष के दौरान, उन्होंने राज्य संदेश के प्रचार में ९५,१८,७०,०२१ घंटे व्यतीत किए। यह कार्य वास्तविक, टिकाऊ परिणाम उत्पन्न कर रहा है क्योंकि ढेर सारे लोग बाइबल सत्य की “शुद्ध भाषा” सीख रहे हैं।—सपन्याह ३:९.
राज्य वास्तविकताओं के पीछे लगे रहना
१४. राज्य की वास्तविकता के लिये हम अपने मूल्यांकन को कैसे मज़बूत कर सकते हैं?
१४ इसलिये, हम राज्य वास्तविकताओं के पीछे किस प्रकार लगे रह सकते हैं? हमारी आशा मज़बूती से दृढ़ विश्वास पर आधारित होनी चाहिये। परमेश्वर का प्रतिज्ञात नया संसार हमारे लिये वास्तविक होना चाहिये। (२ पतरस ३:१३) और हमें इस प्रतिज्ञा पर विश्वास होना चाहिये कि परमेश्वर [हमारी] “आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी।” (प्रकाशितवाक्य २१:४) हमें इस बात का पक्का विश्वास कैसे हो सकता है कि यह कोई अतिकल्पना नहीं? यह निश्चित ही परमेश्वर के उचित समय पर साकार होगी, क्योंकि परमेश्वर के लिये झूठ बोलना असंभव है। (तीतुस १:१, २; इब्रानियों ६:१८) हमें उन प्रतिज्ञाओं पर मनन करने की ज़रूरत है। अपने आप को परमेश्वर के नये संसार में उसकी आशीषों का आनन्द लेते हुए कल्पना करना एक अवास्तविक अतिकल्पना नहीं है बल्कि विश्वास का प्रमाण देता है। जैसा पौलुस ने इसे परिभाषित किया, “विश्वास आशा की हुई वस्तुओं की सुनिश्चित प्रत्याशा और अनदेखी वास्तविकताओं का प्रकट प्रमाण है।” (इब्रानियों ११:१, NW) आइये नियमित रूप से परमेश्वर के वचन और मसीही प्रकाशनों को, जो हमें इसे समझने और अमल में लाने में मदद करते हैं, ग्रहण करने के द्वारा अपने विश्वास को मज़बूत बनाएं। और जितना ज़्यादा समय हम औपचारिक और अनौपचारिक रूप से राज्य के विषय में दूसरों को बताने में लगाते हैं, उतना ही हम अपने विश्वास को ज़्यादा मज़बूत बनाते हैं और इसमें अपनी आशा को सुस्पष्ट करते हैं।
१५. मसीही सेवकाई से सम्बद्ध हमारी क्या बाध्यता है?
१५ अपनी सेवकाई के दरजे में सुधार करने के द्वारा हमें राज्य की वास्तविकताओं के सामन्जस्य में काम करने की भी ज़रूरत है। क्योंकि अभी बहुत कुछ करना बाकी है, हम इसे कैसे कर सकते हैं? (मत्ती ९:३७, ३८) यह कहावत सच्ची है कि हर उम्र में सीखा जा सकता है। चाहे हम कितने ही सालों से गवाही के काम में भाग ले रहे हों, हम सुधार कर सकते हैं। परमेश्वर के वचन को संभालने में ज़्यादा निपुण होने के द्वारा हम दूसरों को राजा, यीशु मसीह की आवाज़ सुनने के लिये और अच्छी तरह से मदद देते हैं। (यूहन्ना १०:१६ से तुलना कीजिये.) जब हम इस बात पर विचार करते हैं कि लोगों का अनन्तकालीन भाग शामिल है, तो हम में अपने क्षेत्र को पूर्ण रूप से पूरा करने की चाह होनी चाहिये जिससे कि उन्हें “भेड़” या फिर “बकरी” के रूप में अपनी स्थिति दर्शाने का दोहरा अवसर मिल जाये। (मत्ती २५:३१-४६) बेशक, इसका अर्थ है, जो घर पर नहीं हैं और ख़ासकर जो राज्य संदेश में दिलचस्पी रखते हैं, उनका ध्यानपूर्वक रिकार्ड रखना।
राज्य के पीछे लगे रहिये
१६. राज्य वास्तविकताओं के पीछे लगे रहने में किन्होंने एक उत्तम उदाहरण पेश किया है, और वे राज्य को कैसे “छीन” रहे हैं?
१६ राज्य वास्तविकताओं के पीछे लगे रहने के लिये मन लगाकर प्रयास करने की ज़रूरत है। क्या हम शेष अभिषिक्त मसीहियों के उत्साही उदाहरण से प्रोत्साहित नहीं होते? वे दशकों से राज्य वास्तविकताओं के पीछे लगे हुए हैं। इस प्रयास का उल्लेख यीशु के शब्दों में किया गया था: “यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के दिनों से अब तक स्वर्ग के राज्य पर ज़ोर होता रहा है, और बलवान उसे छीन लेते हैं।” (मत्ती ११:१२) यहाँ यह विचार नहीं है कि दुश्मन राज्य को छीन लेते हैं। इसके विपरीत, यह उन लोगों के कार्यों से सम्बद्ध है जो राज्य को विरासत में पायेंगे। एक बाइबल विद्वान ने कहा: “इसका वर्णन इस ढंग से किया गया है कि यह आनेवाले मसीहाई राज्य के पीछे उत्सुक, अप्रतिरोध्य प्रयास और संघर्ष है।” अभिषिक्त जनों ने राज्य को अपना बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। परमेश्वर के स्वर्गीय राज्य की पार्थिव प्रजा बनने के योग्य होने के लिये “अन्य भेड़” को भी इसी प्रकार ज़बरदस्त प्रयास करने की ज़रूरत है।—यूहन्ना १०:१६.
१७. उनके हिस्से में क्या होगा जो सांसारिक अतिकल्पनाओं के पीछे लगे हैं?
१७ सचमुच, हम अवसर के ख़ास समय में जी रहे हैं। वे जो सांसारिक अतिकल्पनाओं के पीछे लगे हैं एक दिन कटु वास्तविकता के प्रति जागेंगे। उनके हिस्से का वर्णन इन शब्दों में अच्छी तरह किया गया है: “जैसा कोई भूखा स्वप्न में तो देखता है कि वह खा रहा है, परन्तु जागकर देखता है कि उसका पेट भूखा ही है, वा कोई प्यासा स्वप्न में देखे कि वह पी रहा है, परन्तु जागकर देखता है कि उसका गला सूखा जाता है और वह प्यासा मर रहा है।” (यशायाह २९:८) निश्चित रूप से, संसार की अतिकल्पनाएँ किसी को भी संतुष्ट और ख़ुश नहीं कर सकतीं।
१८. राज्य की वास्तविकता को मद्दे नज़र रखते हुए, हमें किस मार्ग के पीछे लगे रहना है, और आगे क्या प्रत्याशा है?
१८ यहोवा का राज्य एक वास्तविकता है। यह सक्रियता से शासन कर रहा है, जबकि यह दुष्ट रीति-व्यवस्था एक सन्निकट, स्थायी विनाश का सामना कर रही है। इसलिये, पौलुस की सलाह को बहुत गहराई से ग्रहण कीजिये: “हम औरों की नाईं सोते न रहें, पर जागते और सावधान रहें।” (१ थिस्सलुनीकियों ५:६) आइये हम अपना दिल और दिमाग़ राज्य वास्तविकताओं पर केंद्रित रखें और इस प्रकार अनन्तकालीन आशीषों का आनन्द लें। और हमारे हिस्से में यह हो कि उस राज्य का राजा हम से कहे: “हे मेरे पिता के धन्य लोगो, आओ, उस राज्य के अधिकारी हो जाओ, जो जगत के आदि से तुम्हारे लिये तैयार किया हुआ है।”—मत्ती २५:३४.
[फुटनोट]
a वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित पुस्तक द बाइबल—गॉडस् वर्ड ऑर मॅन्ज़? (The Bible—God’s Word or Man’s?) देखिए।
आप कैसे उत्तर देंगे?
▫ सांसारिक अतिकल्पनाएँ क्या हैं, और हमें इन्हें क्यों ठुकराना चाहिये?
▫ कौनसे उदाहरण सांसारिक अतिकल्पनाओं में मग्न होने की मूर्खता को दिखाते हैं?
▫ कौनसी सच्चाइयाँ सृष्टिकर्ता, उसके लिखित वचन, यीशु मसीह, और राज्य की वास्तविकता को प्रमाणित करती हैं?
▫ हम राज्य वास्तविकताओं में अपना विश्वास कैसे मज़बूत बना सकते हैं?
[पेज 27 पर तसवीरें]
सांसारिक अतिकल्पनाएँ अक़सर भौतिक धन-दौलत की लालसा के कारण उत्पन्न होती हैं
[पेज 28 पर तसवीरें]
सुसमाचार प्रचार करना राज्य वास्तविकताओं के पीछे लगे रहने का एक ढंग है
[पेज 29 पर तसवीरें]
क्या आप अध्यवसायी रूप से परमेश्वर के वचन का अध्ययन करने के द्वारा राज्य वास्तविकताओं के पीछे लगे हुए हैं?