‘हे सब नम्र लोगों यहोवा को ढूंढते रहो’
“हे पृथ्वी के सब नम्र लोगो, हे यहोवा के नियम के माननेवालो, उसको ढूंढ़ते रहो; धर्म को ढूंढ़ो, नम्रता को ढूंढ़ो; सम्भव है तुम यहोवा के क्रोध के दिन में शरण पाओ।”—सपन्याह २:३.
भविष्यवक्ता सपन्याह ने ये शब्द “पृथ्वी के सब नम्र लोगो” को सम्बोधित किए, और उसने उनसे ‘नम्रता ढूंढने’ का आग्रह किया ताकि “यहोवा के क्रोध के दिन” में सुरक्षा पा सकें। तब इसमें कोई संदेह नहीं कि नम्रता उत्तरजीविता के लिए अनिवार्य है। लेकिन क्यों?
नम्रता क्यों ढूंढें?
नम्रता अभिमान या दंभ से मुक्त, मृदुल स्वभाव का होने का गुण है। यह दीनता और मृदुलता जैसे अन्य सद्गुणों से निकट रूप से सम्बन्धित है। ऐसा होने के कारण, नम्र लोग सिखाने योग्य होते हैं और जबकि उस समय वह शोक की बात प्रतीत हो सकती है, वे परमेश्वर के हाथों ताड़ना स्वीकार करने के लिए तैयार रहते हैं।—भजन २५:९; इब्रानियों १२:४-११.
स्वयं में नम्रता का एक व्यक्ति की शिक्षा या जीवन में प्रतिष्ठा से शायद थोड़ा ही सम्बन्ध हो। लेकिन, जो लोग सांसारिक रूप से ज़्यादा पढ़े-लिखे या सफल होते हैं यह महसूस करने के लिए प्रवृत्त होते हैं कि हर चीज़ में, यहाँ तक कि उपासना के मामलों में भी, वे अपने लिए फ़ैसले करने के योग्य हैं। यह दूसरे व्यक्ति को उन्हें कुछ सिखाने देने या उससे सलाह स्वीकार करने और अपने जीवन में ज़रूरी परिवर्तन करने में उनके लिए बाधक हो सकता है। दूसरे लोग जो भौतिक रूप से धनी हैं इस ग़लत विचार में पड़ सकते हैं कि उनकी सुरक्षा उनकी भौतिक सम्पत्ति में है। इसलिए, वे परमेश्वर के वचन, बाइबल से आध्यात्मिक धन की कोई ज़रूरत नहीं महसूस करते हैं।—मत्ती ४:४; ५:३; १ तीमुथियुस ६:१७.
यीशु के दिनों के शास्त्रियों, फरीसियों, और महा याजकों पर विचार कीजिए। एक अवसर पर जब उन्होंने जिन सिपाहियों को यीशु को पकड़ने के लिए भेजा था वे उसे पकड़े बिना लौट आए, तो फरीसियों ने कहा: “क्या तुम भी भरमाए गए हो? क्या सरदारों या फरीसियों में से किसी ने भी उस पर विश्वास किया है? परन्तु ये लोग जो व्यवस्था नहीं जानते, स्रापित हैं।” (यूहन्ना ७:४५-४९) दूसरे शब्दों में, फरीसियों के अनुसार केवल अज्ञानी और अशिक्षित लोग ही इतने भोले होंगे कि यीशु पर विश्वास कर लें।
फिर भी, कुछ फरीसी सच्चाई की ओर आकर्षित हुए, और उन्होंने यीशु और मसीहियों का पक्ष भी लिया। इनमें नीकुदेमुस और गमलीएल भी थे। (यूहन्ना ७:५०-५२; प्रेरितों ५:३४-४०) यीशु की मृत्यु के बाद, “याजकों का एक बड़ा समाज इस मत के आधीन हो गया।” (प्रेरितों ६:७) निःसंदेह, सबसे उल्लेखनीय उदाहरण प्रेरित पौलुस था। उसने गमलीएल के पांवों के पास बैठकर शिक्षा प्राप्त की थी और वह यहूदी मत का एक अति कुशल और सम्मानित समर्थक बना। लेकिन, बाद में उसने मसीह यीशु की बुलाहट पर नम्रतापूर्वक प्रतिक्रिया दिखाई और उसका उत्साही अनुयायी बन गया।—प्रेरितों २२:३; २६:४, ५; गलतियों १:१४-२४; १ तीमुथियुस १:१२-१६.
यह सब इस बात को दिखाता है कि एक व्यक्ति की पृष्ठभूमि चाहे कुछ भी क्यों न हो या एक व्यक्ति अभी बाइबल से संदेश के बारे में चाहे कैसा भी महसूस करता हो, सपन्याह के शब्द तब भी लागू होते हैं। यदि एक व्यक्ति परमेश्वर द्वारा अनुमोदित और उसके वचन द्वारा निर्देशित होना चाहता है, तो नम्रता अनिवार्य है।
वे जो आज ‘नम्रता ढूंढते’ हैं
संसार भर में लाखों लोग राज्य सुसमाचार के प्रति प्रतिक्रिया दिखा रहे हैं। यहोवा के गवाह हर सप्ताह ऐसे लोगों के घरों में चालीस लाख से ज़्यादा गृह बाइबल अध्ययन संचालित कर रहे हैं। ये लोग अनेक और विविध पृष्ठभूमियों और भिन्न आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों से आते हैं। फिर भी, उनमें एक समानता यह है कि बाइबल संदेश स्वीकार करने के लिए उनके पास पर्याप्त दीनता है जो किसी ने उनके ही घर पर या कहीं और उन्हें प्रस्तुत किया। उनमें से अनेक अच्छी प्रगति कर रहे हैं क्योंकि वे अपने रास्ते की बाधाओं को पार करने के लिए प्रयास करने को तैयार हैं। जी हाँ, वे आज ‘पृथ्वी के नम्र लोगों’ में से हैं।
उदाहरण के लिए, मैक्सिको में मरीया को लीजिए। उसने विश्वविद्यालय में कानून पढ़ा और एक विरासत के कारण वह आर्थिक रूप से सुरक्षित थी। इस कारण, उसने कुछ बहुत ही मुक्त धारणाएँ विकसित कर लीं जिन्होंने, जैसे उसने कहा, उसे “एक विद्रोही, अशिष्ट, घमंडी, और नास्तिक” इन्सान में बदल दिया। “मैं सोचने लगी कि हर चीज़ का समाधान पैसे से हो सकता है और कि परमेश्वर महत्त्वपूर्ण नहीं है। असल में, मुझे लगा कि वह अस्तित्व में भी नहीं है,” मरीया याद करती है। “मेरे लिए गिरजा बेकार की बात और सिर्फ़ एक सामाजिक माँग थी,” उसने आगे कहा।
बाद में, मरीया ने अपने चचेरे भाई में बदलाव देखे जब वह एक यहोवा का गवाह बन गया। “वह इतना बुरा हुआ करता था, और अब वह एक शान्तिपूर्ण और खरा व्यक्ति था,” मरीया ने कहा। “रिश्तेदारों ने कहा कि वह एक प्रचारक था और बाइबल पढ़ता था, और इस कारण अब उसने पीना और औरतों के पीछे भागना छोड़ दिया था। इसलिए मैं चाहती थी कि वह मेरे पास आकर मेरे लिए बाइबल पढ़े क्योंकि मैंने सोचा कि इस तरह मुझे वह शान्ति और प्रशान्ति मिलेगी जिसे मैं इतना चाहती थी।” परिणाम यह था कि मरीया ने एक गवाह दम्पति के साथ बाइबल अध्ययन स्वीकार किया।
उसे अनेक बाधाओं को पार करना था, और उसके लिए मुखियापन का बाइबल सिद्धान्त स्वीकार करना भी बहुत मुश्किल था जिससे कि वह अपने पति की अधीनता में रहे। लेकिन उसने अपने जीवन और मनोवृत्ति में आमूल परिवर्तन किए। उसने स्वीकार किया: “मैं सोचती हूँ कि जब से भाई मेरे घर आए और अपने साथ यहोवा की मदद लाए, तब से मेरे घर में ख़ुशी, प्रशान्ति, और परमेश्वर की आशिष का वास है।” आज, मरीया यहोवा की एक समर्पित, बपतिस्मा-प्राप्त गवाह है।
सच्ची उपासना की खोज में, एक और क्षेत्र है जिसमें नम्रता, या इसकी कमी, एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अकसर, परिवार में पत्नी सच्चाई स्वीकार कर लेती है और परमेश्वर की सेवा करना चाहती है, लेकिन पति अनिच्छुक होता है। शायद कुछ पतियों के लिए यह विचार स्वीकार करना मुश्किल होता है कि कोई और है—यहोवा परमेश्वर—जिसके अधीन अब उसकी पत्नी को होना है। (१ कुरिन्थियों ११:३) चिहुआहुआ, मैक्सिको में एक स्त्री ने बाइबल अध्ययन माँगा, और कुछ समय बाद वह और उसके सात बच्चे सच्चाई में आ गए। शुरू-शुरू में उसका पति विरुद्ध था। क्यों? क्योंकि वह नहीं चाहता था कि उसका परिवार घर-घर बाइबल साहित्य प्रस्तुत करते हुए, प्रचार करने जाए। प्रत्यक्षतः उसे लगा कि यह उसकी आन के खिलाफ़ है। लेकिन उसका परिवार परमेश्वर की सेवा करने के अपने फैसले पर दृढ़ रहा। कुछ समय बाद पति ने परमेश्वर के प्रबन्ध को स्वीकार करने के मूल्य को देखना शुरू किया। लेकिन इससे पहले कि उसने अपने आपको यहोवा को समर्पित किया १५ साल बीत गए।
पूरे मैक्सिको में, अभी भी अनेक पृथक सम्प्रदाय हैं जहाँ स्थानीय निवासियों की अपनी आदिवासी भाषाएँ और रिवाज हैं। बाइबल का संदेश इन लोगों तक पहुँच रहा है और उन्हें अपना सांस्कृतिक स्तर सुधारने में मदद कर रहा है, जैसे कुछ लोग सच्चाई सीखते समय पढ़ना और लिखना सीखते हैं। फिर भी, यह ज़रूरी नहीं कि क्योंकि लोगों के पास थोड़ी शिक्षा है या कम भौतिक साधन हैं वे ज़्यादा ग्रहणशील होंगे। प्रजातीय घमंड और पूर्वजों की परम्पराओं से अत्यन्त लगाव कभी-कभी कुछ लोगों के लिए सच्चाई को स्वीकार करना मुश्किल बना देता है। यह इस बात को भी समझाता है कि क्यों कुछ आदिवासी गाँवों में, वे लोग जो सच्चाई को स्वीकार करते हैं अकसर दूसरे गाँववालों द्वारा सताए जाते हैं। अतः नम्रता अनेक रूप लेती है।
नम्रता के साथ प्रतिक्रिया दिखाइए
व्यक्तिगत रूप से आपके बारे में क्या? क्या आप परमेश्वर के वचन की सच्चाई के प्रति प्रतिक्रिया दिखा रहे हैं? या क्या कुछ बाइबल सच्चाइयों को स्वीकार करना आपके लिए मुश्किल है? शायद आप यह देखने के लिए कि क्या बात आपको रोक रही है अपनी जाँच करना चाहें। क्या आप इस बात से परेशान हैं कि सच्चाई की ओर आकर्षित हुए अधिकांश लोग साधारण वर्ग के हैं? क्या हो सकता है कि आपकी विचारधारा में घमंड सम्मिलित हो? प्रेरित पौलुस के इन शब्दों पर विचार करना अच्छा है: “परमेश्वर ने जगत के मूर्खों को चुन लिया है, कि ज्ञानवानों को लज्जित करे; और परमेश्वर ने जगत के निर्बलों को चुन लिया है, कि बलवानों को लज्जित करे। और परमेश्वर ने जगत के नीचों और तुच्छों को, बरन जो हैं भी नहीं उन को भी चुन लिया, कि उन्हें जो हैं, व्यर्थ ठहराए। ताकि कोई प्राणी परमेश्वर के साम्हने घमण्ड न करने पाए।”—१ कुरिन्थियों १:२७-२९.
क्या आप एक ख़ज़ाने को ठुकराएँगे सिर्फ़ इसलिए कि वह आपको एक साधारण मिट्टी के बर्तन में मिला? निश्चय ही नहीं! लेकिन, परमेश्वर सच्चाई के अपने जीवन रक्षक वचन को हमें इसी तरह प्रस्तुत करने का चुनाव करता है, जैसे प्रेरित पौलुस समझाता है: “हमारे पास यह धन मिट्टी के बरतनों में रखा है, कि यह असीम सामर्थ हमारी ओर से नहीं, बरन परमेश्वर ही की ओर से ठहरे।” (२ कुरिन्थियों ४:७) नम्रता और दीनता हमें ख़ज़ाने के सच्चे मूल्य को देखने में समर्थ करेंगे न सिर्फ़ “मिट्टी के बरतनों,” या मानव अभिकर्ताओं को, जो इसे हम तक पहुँचाते हैं। ऐसा करने से, हम ‘यहोवा के क्रोध के दिन में शरण पाने’ और उन नम्र लोगों में होने की अपनी सम्भावना को भी बढ़ाएँगे जो “पृथ्वी के अधिकारी होंगे।”—सपन्याह २:३; मत्ती ५:५.