क्या बाइबल भाग्य में विश्वास सिखाती है?
अपमान! निन्दा! जब समुदाय का एक आदरणीय सदस्य मानता है कि उसका नाम या उसकी प्रतिष्ठा एक झूठी रिपोर्ट के कारण कलंकित हुई है, तब वह मामले को ठीक करने के लिए विवश महसूस करता है। वह शायद उनके विरुद्ध कानूनी कार्यवाही भी करे जो उस अपमान के लिए ज़िम्मेदार हैं।
भाग्यवाद सर्वशक्तिमान परमेश्वर के विरुद्ध निन्दा से कुछ कम नहीं है। इस सिद्धान्त के अनुसार परमेश्वर व्यक्तिगत रूप से उन सभी त्रासदियों और विपत्तियों के लिए ज़िम्मेदार है जो मानवजाति पर आती हैं। यदि आप भाग्य में विश्वास रखते हैं, तो आप शायद कल्पना करें कि विश्व सर्वसत्ताधारी ने एक सूची बनायी है जो कुछ-कुछ इस प्रकार है: ‘आज, जॉन कार दुर्घटना में घायल होगा, फ़ातू मलेरिया से पीड़ित होगी, मामाडू का घर एक तूफ़ान में नष्ट हो जाएगा’! क्या आप एक ऐसे परमेश्वर की सेवा करने के लिए वास्तव में प्रेरित हो सकते हैं?
‘लेकिन यदि परमेश्वर हमारे संकटों के लिए ज़िम्मेदार नहीं है, तो कौन है?’ भाग्य में विश्वास रखनेवाले पूछते हैं। पिछले लेख में उल्लिखित युवक, ऊसमान ने भी इसके बारे में सोचा। लेकिन सच्चाई जानने के लिए उसे अंदाज़ या अटकलें लगाने की ज़रूरत नहीं पड़ी। उसने सीखा कि परमेश्वर ने अपने उत्प्रेरित वचन, बाइबल में दी गयी शिक्षाओं के माध्यम से अपने आपको इस निन्दा से मुक्त किया है। (२ तीमुथियुस ३:१६) तो फिर, आइए देखें कि इस विषय पर बाइबल क्या कहती है।
दोषी कौन है?
बाढ़, तूफ़ान, भूकम्प—ऐसी महाविपत्तियों को प्रायः दैवी कार्य कहा जाता है। परन्तु बाइबल यह संकेत नहीं देती कि परमेश्वर ऐसी मुसीबतों का कारण है। उस त्रासदी पर विचार कीजिए जो सदियों पहले मध्य पूर्व में हुई। बाइबल हमें बताती है कि इस महाविपत्ति के एकमात्र उत्तरजीवी ने रिपोर्ट किया: “परमेश्वर की आग [इब्रानी अभिव्यक्ति जिसका प्रायः अर्थ होता है बिजली] आकाश से गिरी और उस से भेड़-बकरियां और सेवक जलकर भस्म हो गए।”—अय्यूब १:१६.
जबकि शायद इस भयभीत पुरुष ने सोचा हो कि उस आग का ज़िम्मेदार परमेश्वर था, बाइबल दिखाती है कि वह दोषी नहीं था। अय्यूब १:७-१२ पढ़िए, और आप सीखेंगे कि वह बिजली परमेश्वर ने नहीं, बल्कि उसके बैरी—शैतान अर्थात् इब्लीस—ने गिरायी थी! ऐसा नहीं कि सभी विपत्तियाँ सीधे शैतान का काम हैं। लेकिन स्पष्टतया, परमेश्वर पर दोष लगाने का कोई कारण नहीं है।
असल में, जब काम ग़लत हो जाते हैं तो प्रायः दोष लोगों का होता है। स्कूल में, कार्यस्थल पर, या सामाजिक सम्बन्धों में असफलता शायद प्रयास और अच्छे प्रशिक्षण की कमी या संभवतः दूसरों के लिए विचारशीलता की कमी का परिणाम हो। उसी प्रकार, बीमारियाँ, दुर्घटनाएँ, और मौतें लापरवाही का परिणाम हो सकती हैं। कार चलाते समय आसन-पेटी बाँधने भर से व्यक्ति की कार दुर्घटना में मरने की संभावना काफ़ी हद तक कम हो जाती है। आसन-पेटी से कोई फ़र्क नहीं पड़ता यदि अपरिवर्तनीय “भाग्य” का बस चलता। उपयुक्त चिकित्सा-सेवा और स्वच्छता-प्रबन्ध भी असामयिक मृत्यु की संख्या को उल्लेखनीय रूप से घटा देते हैं। कुछ विपत्तियाँ भी जिन पर सामान्यतः “दैवी कार्य” का ठप्पा लगा दिया जाता है, असल में, मनुष्य के कार्य हैं—मनुष्य द्वारा पृथ्वी के कुप्रबन्ध की दुःखद विरासत।—प्रकाशितवाक्य ११:१८ से तुलना कीजिए।
“समय और अप्रत्याशित घटना”
यह सच है कि ऐसी अनेक दुःखद घटनाएँ हैं जिनके कारण स्पष्ट रूप से नहीं दिखायी पड़ते। लेकिन, नोट कीजिए कि सभोपदेशक ९:११ (NW) में बाइबल क्या कहती है: “लौटकर मैं ने देखा कि सूरज के नीचे न फ़ुरतीले दौड़ जीतते, न सामर्थी जन युद्ध जीतते, न ही बुद्धिमान भोजन भी पाते, न ही समझदार जन धन भी पाते, न ही वे भी जिनके पास ज्ञान है अनुग्रह पाते हैं; क्योंकि समय और अप्रत्याशित घटना उन सब पर आ पड़ती है।” इसलिए यह विश्वास करने का कोई कारण नहीं कि दुर्घटनाओं के पीछे सृष्टिकर्ता है या दुर्घटनाओं के शिकारों को किसी तरह से दण्ड मिल रहा है।
स्वयं यीशु मसीह ने भाग्यवादी तर्क के विरुद्ध दलील दी। उस त्रासदी का उल्लेख करते हुए जिससे उसके श्रोता अच्छी तरह परिचित थे, यीशु ने पूछा: “क्या तुम समझते हो, कि वे अठारह जन जिन पर शीलोह का गुम्मट गिरा, और वे दब कर मर गए: यरूशलेम के और सब रहनेवालों से अधिक अपराधी थे? मैं तुम से कहता हूं, कि नहीं।” (लूका १३:४, ५) प्रत्यक्षतः यीशु ने विपत्ति का दोष, परमेश्वर के हस्तक्षेप को नहीं, बल्कि “समय और अप्रत्याशित घटना” को दिया।
अपरिपूर्णता के विनाशक प्रभाव
लेकिन, उन मौतों और बीमारियों के बारे में क्या जिनका कारण स्पष्ट नहीं? बाइबल मानव स्थिति का यह सीधा-सा वर्णन देती है: “आदम में सब मरते हैं।” (१ कुरिन्थियों १५:२२) मृत्यु ने तब से मानवजाति को पीड़ित किया है जब से हमारा पूर्वज आदम अवज्ञा के मार्ग पर चला। जैसा परमेश्वर ने चिताया था, ठीक वैसे ही आदम ने अपनी संतान के लिए मृत्यु की विरासत छोड़ी। (उत्पत्ति २:१७; रोमियों ५:१२) तो फिर, अंततः सभी बीमारियों का सम्बन्ध हमारे सामान्य पूर्वज आदम से मिलाया जा सकता है। हमारी वंशागत कमज़ोरियों का काफ़ी सम्बन्ध उन निराशाओं और असफलताओं से भी है जिनका जीवन में हम अनुभव करते हैं।—भजन ५१:५.
ग़रीबी की समस्या पर विचार कीजिए। भाग्य में विश्वास ने बहुधा पीड़ितों को प्रोत्साहित किया है कि अपनी कठिन परिस्थितियों को स्वीकार कर लें। ‘यही हमारी नियति है,’ वे मानते हैं। लेकिन, बाइबल दिखाती है कि भाग्य का नहीं, मानव अपरिपूर्णता का दोष है। कुछ लोग तब ग़रीब हो जाते हैं, जब वे आलस या साधनों के कुप्रबन्ध के द्वारा ‘उन्होंने जो बोया है वही काटते हैं।’ (गलतियों ६:७; नीतिवचन ६:१०, ११) अनगिनत करोड़ों लोग ग़रीबी में इसलिए रहते हैं क्योंकि अधिकार वाले लोभी लोग उनका दमन करते हैं। (याकूब २:६ से तुलना कीजिए।) “मनुष्य ने दूसरे पर अधिकार जमा कर अपनी ही हानि की है,” बाइबल कहती है। (सभोपदेशक ८:९, NHT) सारी ग़रीबी का दोष परमेश्वर को या भाग्य को देने के लिए कोई सबूत नहीं है।
भाग्य में विश्वास—इसके हानिकर प्रभाव
इसमें विश्वास रखनेवालों पर भाग्यवाद का जो प्रभाव हो सकता है वह भाग्य में विश्वास के विरुद्ध एक और विश्वासोत्पादक तर्क है। यीशु मसीह ने कहा: “हर एक अच्छा पेड़ अच्छा फल लाता है और निकम्मा पेड़ बुरा फल लाता है।” (मत्ती ७:१७) आइए भाग्यवाद के एक “फल” पर विचार करें—जिस प्रकार से वह लोगों के ज़िम्मेदारी के बोध को प्रभावित करता है।
व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी का सही बोध महत्त्वपूर्ण है। यह उन बातों में से एक है जो माता-पिताओं को अपने परिवारों का भरण-पोषण करने, कर्मियों को ईमानदारी से अपना कार्य करने, और निर्माताओं को बढ़िया उत्पादन प्रदान करने के लिए प्रेरित करती हैं। भाग्य में विश्वास इस बोध को सुन्न कर सकता है। उदाहरण के लिए, कल्पना कीजिए कि एक व्यक्ति की कार की चालन-रचना में कोई ख़राबी है। यदि उसे ज़िम्मेदारी का तीव्र बोध है, तो वह अपने जीवन और अपनी सवारियों के जीवन की चिन्ता के कारण उसकी मरम्मत कराता है। दूसरी ओर, भाग्य में विश्वास रखनेवाला यह तर्क करते हुए शायद जोख़िम को नज़रअंदाज़ कर दे, कि गाड़ी तभी बिगड़ेगी यदि वह ‘परमेश्वर की इच्छा है’!
जी हाँ, भाग्य में विश्वास लापरवाही, आलस, अपने कार्यों की ज़िम्मेदारी स्वीकार करने से चूकना, और अनेक अन्य नकारात्मक बातों को सरलता से बढ़ावा दे सकता है।
परमेश्वर के साथ हमारे सम्बन्ध में एक बाधा?
सबसे अधिक हानिकर बात, भाग्य में विश्वास परमेश्वर के प्रति व्यक्ति के ज़िम्मेदारी, या बाध्यता के बोध को दबा सकता है। (सभोपदेशक १२:१३) भजनहार पूरी मानवजाति से आग्रह करता है कि “परखकर देखो कि यहोवा कैसा भला है।” (भजन ३४:८) परमेश्वर उनके लिए कुछ माँगें रखता है जो उसकी भलाई का आनन्द लेते।—भजन १५:१-५.
ऐसी एक माँग है पश्चाताप। (प्रेरितों ३:१९; १७:३०) इसमें अपनी ग़लतियों को स्वीकार करना और ज़रूरी परिवर्तन करना सम्मिलित है। अपरिपूर्ण मनुष्य होने के कारण, हम सभी के पास काफ़ी कुछ है जिसके बारे में हमें पश्चाताप करने की ज़रूरत है। लेकिन यदि एक व्यक्ति विश्वास करता है कि वह भाग्य का असहाय शिकार है, तो पश्चाताप करने या अपने अपराधों की ज़िम्मेदारी उठाने की ज़रूरत महसूस करना कठिन है।
भजनहार ने परमेश्वर के बारे में कहा: “तेरी करुणा जीवन से भी उत्तम है।” (भजन ६३:३) फिर भी, भाग्य में विश्वास ने करोड़ों को विश्वस्त कर दिया है कि उनकी मुसीबत का कारण परमेश्वर है। स्वाभाविक है कि इसने अनेक लोगों को उसके प्रति कटु बना दिया है, और सृष्टिकर्ता के साथ उनका एक सचमुच घनिष्ठ सम्बन्ध रखने का द्वार बन्द कर दिया है। आख़िरकार, आपको उसके प्रति प्रेम भाव कैसे होता जो आपकी दृष्टि से आपकी सभी समस्याओं और कष्टों का कारण है? इस प्रकार भाग्यवाद परमेश्वर और मनुष्य के बीच एक बाधा खड़ी करता है।
भाग्य की क्रूरता से मुक्त
आरंभ में उल्लिखित, युवा ऊसमान कभी भाग्य में विश्वास के दासत्व में था। लेकिन, जब यहोवा के साक्षियों ने उसे बाइबल के प्रकाश में अपने सोच-विचार को आँकने में मदद दी, तब ऊसमान भाग्य में अपने विश्वास को त्यागने के लिए प्रेरित हुआ। परिणाम थे चैन का तीव्र बोध और जीवन के प्रति एक नया, सकारात्मक दृष्टिकोण। उससे भी महत्त्वपूर्ण, वह यहोवा को एक ऐसे परमेश्वर के रूप में जान गया है जो “दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीरजवन्त, और अति करुणामय और सत्य” है।—निर्गमन ३४:६.
ऊसमान यह भी समझ गया है कि जबकि परमेश्वर हमारे जीवन की हर बारीक़ी की योजना नहीं बनाता, फिर भी उसका भविष्य के लिए एक उद्देश्य है।a दूसरा पतरस ३:१३ कहता है: “उस की प्रतिज्ञा के अनुसार हम एक नए आकाश और नई पृथ्वी की आस देखते हैं जिन में धार्मिकता बास करेगी।” यहोवा के साक्षियों ने लाखों लोगों को इस प्रतिज्ञात “नई पृथ्वी” के एक भाग के रूप में सर्वदा जीवित रहने की आशा विकसित करने में मदद दी है। वे आपकी भी मदद करना चाहेंगे।
जैसे-जैसे आप बाइबल के यथार्थ ज्ञान में बढ़ते हैं, वैसे-वैसे आप यह समझेंगे कि आपका भविष्य किसी पूर्वनिर्धारित भाग्य पर निर्भर नहीं करता जिस पर आपका कोई बस नहीं। प्राचीन इस्राएलियों को कहे मूसा के शब्द भली-भाँति लागू होते हैं: “मैं ने जीवन और मरण, आशीष और शाप को तुम्हारे आगे रखा है; इसलिये तू जीवन ही को अपना ले, कि तू और तेरा वंश दोनों जीवित रहें; इसलिये अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम करो, और उसकी बात मानो, और उस से लिपटे रहो।” (व्यवस्थाविवरण ३०:१९, २०) जी हाँ, आप अपने भविष्य के बारे में चुनाव कर सकते हैं। वह भाग्य के हाथ में नहीं है।
[फुटनोट]
a परमेश्वर के पूर्वज्ञान पर गहरी चर्चा के लिए, प्रहरीदुर्ग, मई १, १९८५, पृष्ठ ३-६ देखिए।
[पेज 7 पर तसवीरें]
ये विपत्तियाँ ‘दैवी कार्य’ नहीं थीं
[चित्रों का श्रेय]
U.S. Coast Guard photo
WHO
UN PHOTO 186208/M. Grafman