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  • यह तकदीर का खेल है या बस इत्तफाक?

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यह तकदीर का खेल है या बस इत्तफाक?

“तकदीर ने जिनका साथ दिया वे तो बच गए मगर जिनकी तकदीर खोटी थी वे जान से गए।” यह खबर इंटरनैशनल हेरॉल्ड ट्रिब्यून नाम के एक अखबार ने दी। यह पिछले साल की बात है जब केन्या और तंज़ानिया में आतंकवादियों ने अमरीकी दूतावासों पर हमले करके तकरीबन २०० लोगों को मार डाला और सैकड़ों को घायल कर दिया। अखबार ने कहा कि “तकदीर सबसे बड़े राजदूतों पर मेहरबान थी, इसलिए उन्हें कुछ नहीं हुआ।”

ये लोग इसलिए बच गए क्योंकि बम-विस्फोट के वक्‍त वे वहाँ नहीं थे बल्कि वहाँ से दूर एक और बिल्ड़िंग में मीटिंग कर रहे थे। मगर दूतावास का एक उच्च अधिकारी उस दिन मीटिंग में नहीं गया बल्कि उसी इलाके में था जहाँ बम-विस्फोट हुआ इसलिए वह अपनी जान से हाथ धो बैठा।

अखबार ने कहा कि “तकदीर ने आर्लीन कर्क के साथ भी बुरा खेल खेला।” अपनी छुट्टियाँ मनाने के बाद वह हवाई-जहाज़ से केन्या लौटनेवाली थी। लेकिन जब उसने देखा कि हवाई-जहाज़ ओवरबुक हो गया है तो उसने दूसरे यात्रियों को अपनी सीट देनी चाही। मगर उससे पहले ही कुछ और यात्रियों ने भी दूसरों के लिए अपनी सीटें दे दी थीं, इसलिए उसे उसी जहाज़ से केन्या लौटने का मौका मिल गया। इत्तफाक से वह जिस दिन दूतावास में काम पर पहुँची उसी दिन यह विस्फोट हुआ और उसकी जान चली गई।

इंसान की ज़िंदगी हादसों से भरी होती है। फिर भी हादसे क्यों होते हैं यह समझाना उसके लिए मुश्‍किल रहा है। दुनिया के हर कोने में आए दिन दुर्घटनाएँ और बड़े-बड़े हादसे होते रहते हैं लेकिन इनमें कुछ लोग तो मौत के शिकार हो जाते हैं जबकि कुछ लोग मौत के मुँह से बच जाते हैं। लोगों के साथ जब कुछ बुरा होता है तो वे सोचते हैं, ‘आखिर, मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ?’ लेकिन सिर्फ हादसों में ही ऐसा नहीं होता। जब ज़िंदगी में कुछ अच्छा होता है तब भी देखा गया है कई लोग दूसरों से बाज़ी मार ले जाते हैं। कुछ लोगों की ज़िंदगी दूसरों से ज़्यादा खुशहाल होती है और कुछ लोगों की ज़िंदगी में हर कदम पर काँटे-ही-काँटे होते हैं। तब शायद आप यह कहने लगते हैं, ‘क्या यह सब पहले से ही नसीब में लिख दिया जाता है? क्या मेरी ज़िंदगी की डोर तकदीर के हाथों बँधी हुई है?’

जवाब की तलाश

करीब ३,००० साल पहले एक बुद्धिमान राजा हुआ था। उसने भी कुछ ऐसी घटनाएँ देखीं जिनके होने की कोई भी कभी उम्मीद नहीं करता। ऐसा क्यों होता है इसकी वज़ह बताते हुए उसने कहा: “वे सब समय और संयोग के वश में है।” (सभोपदेशक ९:११) कभी-कभी कुछ ऐसी बातें घट जाती हैं जिनके बारे में हम सपने में भी नहीं सोचते। इनके बारे में पहले से कोई नहीं बता सकता। यह तो वक्‍त-वक्‍त की बात है। ज़िंदगी में अच्छा या बुरा कुछ भी, कभी भी घट जाता है।

हो सकता है कि आप इसे समय और संयोग की बात न मानें बल्कि कहें कि हर बात के पीछे एक शक्‍ति यानी तकदीर का हाथ होता है। पुराने ज़माने से लोग तकदीर या भाग्य में विश्‍वास करते आए हैं और ज़्यादातर धर्म भी यही सिखाते हैं।a पॆरिस विश्‍वविद्यालय के सेन्टर फॉर माइथॉलॉजिकल रिसर्च के डायरेक्टर फ्रॉनस्वा ज़ूवाँ कहते हैं, “हर युग और हर सभ्यता के लोगों ने . . . ऐसी घटनाओं के लिए तकदीर या भाग्य को ज़िम्मेदार ठहराया है जिनकी वज़ह वे नहीं समझ पाए हैं।” इसलिए हम अकसर लोगों के मुँह से सुनते हैं, “उसकी मौत अभी नहीं लिखी थी,” या “जो होना था, वही हुआ।” लेकिन दरअसल यह तकदीर है क्या?

तकदीर क्या है

तकदीर या भाग्य का अकसर यह मतलब समझा जाता है, “पहले से लिखा फैसला, एक भविष्यवाणी, एक खुदाई फरमान या विधाता के हाथों लिखा हमारा भविष्य।” कुछ लोगों का मानना है कि एक ताकत यह तय करती है कि हमारे भविष्य में क्या होगा और क्या नहीं। उसकी मरज़ी से जो भी होता है उसे कोई टाल नहीं सकता और यह समझाना भी मुश्‍किल है कि ऐसा क्यों होता है। उसी शक्‍ति को आम-तौर पर लोग एक भगवान या तकदीर का मालिक समझते हैं।

धर्म के इतिहासकार हेलमर रिंगग्रैन कहते हैं, “धार्मिक लोगों का मानना है कि इंसान की ज़िंदगी में कोई भी बात यूँ ही नहीं घट जाती बल्कि एक दिव्य शक्‍ति अपनी इच्छा पूरी करने या किसी काम को अंजाम देने के लिए पहले से सब कुछ तय कर रखती है।” हालाँकि यह माना जाता है कि ज़िंदगी के कुछ हालात को बदलना मुमकिन है, मगर फिर भी कई लोग बस यह मान बैठते हैं कि इंसान एक कठपुतली की तरह है जिसे हमेशा तकदीर के इशारों पर ही नाचना पड़ेगा। इसलिए वे सोच लेते हैं कि उनके साथ वही होगा जो उनकी ‘तकदीर में लिखा है।’

तकदीर का मतलब समझाने के लिए धर्मशास्त्रियों और तत्वज्ञानियों ने बहुत माथा-पच्ची की है। दि एनसाइक्लोपीडिया ऑफ रिलिजियन कहती है: “तकदीर के बारे में कई भाषाओं में, अलग-अलग तरीके और अंदाज़ से समझाने की कोशिश की गई है लेकिन इन सारी कोशिशों के बावजूद यह अब भी एक अनबुझ पहेली है।” लोग तकदीर का मतलब चाहे किसी भी तरह समझाएँ मगर इन तमाम विचारों में एक बात समान है कि इंसान का हर काम एक दिव्य शक्‍ति के नियंत्रण में है। माना जाता है कि यह शक्‍ति पहले से ही लोगों का और यहाँ तक की पूरे राष्ट्र का भविष्य तय कर देती है और उसके फैसले को बदलना किसी भी हाल में मुमकिन नहीं है, माना जाता है कि पुराने ज़माने में भी लोगों के साथ वही हुआ जैसा उनकी तकदीर में लिखा था।

यह किस पर निर्भर है

लेकिन तकदीर में आपके विश्‍वास करने या न करने से क्या कोई फर्क पड़ता है? एक अँग्रेज़ी तत्वज्ञानी, बर्ट्रेन्ड रसल ने लिखा कि “यह सच है कि इंसान के हालात का उसके विचारों पर बहुत असर पड़ता है लेकिन यह भी सच है कि एक इंसान के विचार उसके हालात बदल सकते हैं।”

इसमें कोई शक नहीं कि तकदीर में विश्‍वास करने या न करने से हमारे कामों पर गहरा असर पड़ सकता है। कई लोग मानते हैं कि वही होता है जो मंज़ूरे खुदा होता है, इसलिए वे अपने हालात को बदलने के लिए कोई कदम नहीं उठाते। चाहे उनके साथ सरासर नाइंसाफी हो या फिर उनपर भयानक ज़ुल्म ही क्यों न ढाए जाएँ, वे इसे बस अपनी बदकिस्मती समझकर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं। इस तरह हम देखते हैं कि तकदीर में विश्‍वास करनेवाले खुद को किसी भी बात के लिए ज़िम्मेदार महसूस नहीं करते।

तकदीर में विश्‍वास करने की वज़ह से कुछ लोगों ने बहुत ही गलत कदम भी उठाए हैं। मिसाल के तौर पर, इतिहासकारों का कहना है कि पूँजीवाद और औद्योगिक क्रांति की एक वज़ह यह थी कि लोग तकदीर में विश्‍वास करनेवाले थे। कुछ प्रोटॆस्टेंट धर्मों में सिखाया जाता था कि परमेश्‍वर इंसान की तकदीर में लिख देता है कि उसका उद्धार होगा या नहीं। जर्मन के समाज विज्ञानी माक्स वाबे कहते हैं, “देर सबेर हर भक्‍त के मन में यह सवाल उठा होगा कि, क्या उद्धार के लिए चुने हुओं में मेरा नाम भी है?” इसलिए हर व्यक्‍ति ने यह पता लगाने की कोशिश की कि क्या परमेश्‍वर उससे खुश है और क्या उद्धार के लिए उसे चुना गया है। वाबे का कहना है कि लोगों ने अपने “दुनियादारी के काम-काजों” के ज़रिए इसका पता लगाने की कोशिश की। जब उन्हें बिज़नॆस में कामयाबी मिलती और उनकी धन-दौलत बढ़ती तो वे यह समझते कि ईश्‍वर उनसे खुश है और उन्हें आशीषें दे रहा है।

तकदीर में विश्‍वास करने की वज़ह से कुछ लोग तो बहुत ही खतरनाक कदम उठाने के लिए भी तैयार हो जाते हैं। दूसरे विश्‍व युद्ध के दौरान जापान के वे पायलेट भी देश के लिए अपनी आहुति देने के लिए इसलिए तैयार थे क्योंकि वे कामीकीज़ी या “ईश्‍वरीय तूफान” में विश्‍वास करते थे, जो उनके विश्‍वास के अनुसार दुश्‍मनों का खात्मा कर देती। वे मानते थे कि परमेश्‍वर का एक मकसद होता है और अगर वे एक भयानक मौत मरेंगे तो परमेश्‍वर का मकसद पूरा करने में वे भी अपना भाग अदा कर सकते हैं। तकदीर में विश्‍वास की वज़ह से ही पिछले दशक में मध्य-पूर्वी देशों में अकसर उन लोगों के बारे में खबरें छपती थीं जो खुद अपने ही शरीर में बम लगाकर दूसरों को मारते हुए खुद मर जाते हैं। ऐसी खुदकुशी करने की एक बड़ी वज़ह यह है कि वे तकदीर में विश्‍वास करते हैं, जैसा एक इनसाइक्लोपीडिया बताती है, उन्हें “धर्म सिखाता है कि दुश्‍मन पर हमला करने के लिए जान की कुरबानी भी दे देनी चाहिए।”

लेकिन आम-तौर पर क्यों दुनिया के ज़्यादातर लोग तकदीर में विश्‍वास करते हैं? इसका जवाब पाने के लिए हमें देखना होगा कि तकदीर में विश्‍वास करने की शुरुआत कैसे हुई?

[फुटनोट]

a तकदीर में लोगों का इतना ज़बरदस्त विश्‍वास है कि कुछ भाषाओं में मौत का ज़िक्र करने के लिए ही “तकदीर” या “किस्मत” जैसे शब्द इस्तेमाल किए जाते हैं।

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