खलबली के दौरान—कार्यों में दिखती मसीहियत
वह सब अप्रैल १९९४ के एक दिन एकाएक शुरू हुआ। एक विमान दुर्घटना में बुरूण्डी व रुवाण्डा के राष्ट्रपति मारे गए। चंद घंटों के भीतर पूरे रुवाण्डा में हिंसा ने हाहाकार मचा दिया। तीन साढ़े-तीन महीनों में, ५,००,००० से ज़्यादा रुवाण्डावासी—पुरुष, स्त्री व बच्चे—मौत की नींद सो चुके थे। कुछ लोग उस हादसे को “जनसंहार” कहते हैं।
रुवाण्डा के ७५ लाख रहवासियों में से आधी जनता को भागना पड़ा। इसमें २४ लाख ऐसे रहवासी शामिल हैं जिन्होंने आस-पास के देशों में शरण ली। यह आधुनिक इतिहास में शरणार्थियों का सबसे बड़ा और तेज़ पलायन था। ज़ाएर (अब कांगो का लोकतांत्रिक गणराज्य), तंज़ानिया और बुरूण्डी में तेज़ी से शरणार्थी शिविर बनाए गए। इनमें से कुछ शिविरों में—जो दुनिया में सबसे बड़े हैं—२,००,००० लोगों को पनाह मिली।
शरणार्थियों में अनेक जन यहोवा के साक्षी थे, ऐसे शांति-प्रिय लोग जो अपने जीवन में बाइबल सिद्धांतों को लागू करते हैं। चाहे वे किसी भी देश में रहें, वे सख़्त तटस्थता बनाए रखते हैं और यशायाह २:४ में व्यक्त इस सिद्धांत को अमल में लाते हैं: “वे अपनी तलवारें पीटकर हल के फाल और अपने भालों को हंसिया बनाएंगे; तब एक जाति दूसरी जाति के विरुद्ध फिर तलवार न चलाएगी, न लोग भविष्य में युद्ध की विद्या सीखेंगे।” यहोवा के साक्षी व्यापक रूप से ऐसे धार्मिक समूह के तौर पर पहचाने जाते हैं जिन्होंने रुवाण्डा में हुए जनसंहार में हिस्सा नहीं लिया।
यीशु मसीह ने कहा कि उसके अनुयायी “संसार का कोई भाग नहीं हैं।” लेकिन चूँकि वे ‘संसार में’ हैं, इसलिए वे राष्ट्रों की खलबली से हमेशा बचे नहीं रह सकते। (यूहन्ना १७:११, १४, NW) रुवाण्डा में हुए जनसंहार के दौरान, कुछ ४०० साक्षियों ने अपनी जानें गँवायीं। तक़रीबन २,००० साक्षी तथा राज्य संदेश में रुचि लेनेवाले लोग शरणार्थी बन गए।
संसार का कोई भाग नहीं होने का क्या यह अर्थ है कि विपत्ति आन पड़ने पर यहोवा के साक्षी कुछ भी नहीं करते? जी नहीं। परमेश्वर का वचन कहता है: “यदि कोई भाई या बहिन नङ्गे उघाड़े हों, और उन्हें प्रति दिन भोजन की घटी हो। और तुम में से कोई उन से कहे, कुशल से जाओ, तुम गरम रहो और तृप्त रहो; पर जो वस्तुएं देह के लिये आवश्यक हैं वह उन्हें न दे, तो क्या लाभ? वैसे ही विश्वास भी, यदि कर्म सहित न हो तो अपने स्वभाव में मरा हुआ है।” (याकूब २:१५-१७) पड़ोसियों के लिए प्रेम भी साक्षियों को प्रेरित करता है कि वे ऐसों की मदद करें जिनका विश्वास उनसे भिन्न है।—मत्ती २२:३७-४०.
हालाँकि दुनिया भर के यहोवा के साक्षी रुवाण्डा में विपत्तिग्रस्त स्थिति को झेल रहे अपने संगी विश्वासियों की मदद करने के लिए तरस रहे थे, राहत कार्य के समन्वयन के लिए पश्चिम यूरोप को नियुक्त किया गया। सन् १९९४ की गर्मियों में, यूरोप से स्वयंसेवी साक्षियों का एक दल अफ्रीका के अपने मसीही भाई-बहनों की मदद करने के लिए भागा-भागा गया। रुवाण्डा के शरणार्थियों के लिए सुव्यवस्थित शिविर व अस्थायी अस्पताल स्थापित किए गए। काफ़ी मात्रा में कपड़े-लत्ते, चादर, भोजन, तथा बाइबल साहित्य विमानों से या फिर दूसरे माध्यमों से उन तक पहुँचाए गए। ७,००० से भी ज़्यादा पीड़ित लोगों को—उस समय रुवाण्डा में मौजूद यहोवा के साक्षियों की संख्या से लगभग तीन गुना ज़्यादा—राहत कार्य से फ़ायदा हुआ। उस साल के दिसंबर तक, हज़ारों शरणार्थी, जिनमें यहोवा के साक्षी के अधिकांश जन शामिल थे, फिर से अपना घर-बार बसाने के लिए रुवाण्डा लौटे।
कांगो में जंग
सन् १९९६ में, कांगो के लोकतांत्रिक गणराज्य के पूर्वी क्षेत्र में जंग छिड़ गयी। इस क्षेत्र की सीमा पर रुवाण्डा और बुरूण्डी है। एक बार फिर बलात्कार व हत्याएँ होने लगीं। गोलियों की धाँय-धाँय और ख़ाक होते गाँवों के बीच, लोग अपनी जान बचाकर भाग रहे थे। यहोवा के साक्षी इस खलबली में फँस गए और कुछ ५० साक्षी जान से हाथ धो बैठे। कुछ जन गोलियों के रास्ते में आने के कारण मारे गए। दूसरों का क़त्ल किया गया क्योंकि वे अमुक नृजाति समूह के थे या उन्हें ग़लती से दुश्मन समझा गया। एक गाँव को आग लगा दी गयी जहाँ १५० साक्षी रहते थे। दूसरे गाँवों में दर्जनों घरों और कुछ राज्यगृहों को आग में फूँक दिया गया। घर और संपत्ति से वंचित होने के कारण, साक्षी दूसरे इलाक़ों में भाग गए और वहाँ उन्हें संगी उपासकों से मदद मिली।
जंग के बाद खाने के लाले पड़ जाते हैं क्योंकि फ़सल बरबाद हो जाती है, आरक्षित भोजन लूट लिया जाता है, और सामग्री को उसकी मंज़िल तक पहुँचने नहीं दिया जाता है। जो भोजन मिलता है, वह बहुत महँगा होता है। किसनगानि में, मई १९९७ की शुरूआत में, एक किलो आलू का भाव लगभग सौ रुपए था, जो कि अधिकांश लोगों की आर्थिक पहुँच से बिलकुल बाहर था। ज़्यादातर लोग दिन में बस एक बार खाना खा पाते थे। बेशक, भोजन की कमी की वज़ह से बीमारियाँ पैदा होती हैं। कुपोषण की वज़ह से मलेरिया, दस्त से जुड़ी हुई बीमारियों, और आमाशयी समस्याओं को रोकने की शरीर की क्षमता कमज़ोर हो जाती है। इससे ख़ासकर बच्चे पीड़ित होते हैं और उनकी मौत हो जाती है।
ज़रूरत का अंदाज़ा लगाना
एक बार फिर यूरोप के यहोवा के साक्षी ज़रूरत के समय फ़ौरन हाज़िर हुए। अप्रैल १९९७ तक साक्षियों का एक राहत दल जिसमें दो डॉक्टर थे, दवा-दारू तथा पैसों के साथ विमान से पहुँच गए। गोमा में स्थानीय साक्षी पहले ही राहत समितियाँ संगठित कर चुके थे जो वस्तुस्थिति का जायज़ा लेते, ताकि जल्द-से-जल्द मदद दी जा सके। उस दल ने शहर व उसके आस-पास के इलाक़ों को छान मारा। ज़्यादा दूर के स्थानों की रिपोर्ट प्राप्त करने के लिए दूत भेजे गए। किसनगानि से भी जानकारी हासिल की गयी, जो गोमा से पश्चिम की ओर १,००० किलोमीटर से भी ज़्यादा दूर स्थित है। स्थानीय भाइयों ने गोमा में, जहाँ कुछ ७०० साक्षी रहते हैं, राहत कार्यों का समन्वय करने में मदद की।
गोमा के एक मसीही प्राचीन ने कहा: “इतनी दूर हमारी मदद करने के लिए आए अपने इन भाइयों को देखकर हम बहुत प्रभावित हुए। उनके आने से पहले, हमने एक दूसरे की मदद की। भाइयों को गाँव से भागकर गोमा जाना पड़ा। कुछ ने अपना घर खोया था, और वे अपने खेत छोड़कर आए थे। हमने उन्हें अपने घरों में ठहराया और अपने कपड़े-लत्ते दिए और जो थोड़ा-बहुत खाना हमारे पास था, उसे हमने मिल-बाँटकर खाया। हम स्थानीय तौर पर जो कुछ कर सकते थे, वह कुछ ख़ास नहीं था। हम में से कुछ जन कुपोषण से पीड़ित थे।
“लेकिन, यूरोप से आए भाई पैसे लाए थे जिससे हम भोजन ख़रीद पाए। भोजन एकदम कम और बहुत महँगा था। भोजन ऐन वक़्त पर पहुँचा, क्योंकि कई लोग दाने-दाने के लिए मोहताज थे। हमने साक्षियों व ग़ैर-साक्षियों, दोनों को भोजन वितरित किया। यदि उस वक़्त मदद नहीं पहुँचती, तो कई और लोग, ख़ासकर बच्चे अपना दम तोड़ देते। यहोवा ने अपने लोगों को बचाया। ग़ैर-साक्षी जन बहुत प्रभावित हुए। अनेक लोगों ने हमारी एकता व प्रेम पर टिप्पणी की। कुछ ने स्वीकार किया कि हमारा धर्म ही सच्चा धर्म है।”
हालाँकि भोजन वहीं से ख़रीदा गया और दवा-दारू का प्रबंध किया गया, फिर भी और चीज़ों की ज़रूरत थी। कपड़े-लत्तों व चादरों, साथ ही और ज़्यादा भोजन व दवा-दारू की ज़रूरत थी। नष्ट हुए मकानों को फिर से बनाने के लिए भी मदद की ज़रूरत थी।
लोग दिल खोल कर देते हैं
यूरोप के भाई फिर से मदद करने को उत्सुक थे। लूविए, फ्रांस में स्थित यहोवा के साक्षियों के दफ़्तर ने रोन वैली, नॉरमॆन्डी और पैरिस की कुछ कलीसियाओं से मदद माँगी। यहाँ एक और शास्त्रीय सिद्धांत लागू होता है: “जो थोड़ा बोता है वह थोड़ा काटेगा भी; और जो बहुत बोता है, वह बहुत काटेगा। हर एक जन जैसा मन में ठाने वैसा ही दान करे; न कुढ़ कुढ़ के, और न दबाव से, क्योंकि परमेश्वर हर्ष से देनेवाले से प्रेम रखता है।”—२ कुरिन्थियों ९:६, ७.
हज़ारों साक्षियों ने देने के मौक़े का ख़ुशी-ख़ुशी फ़ायदा उठाया। राज्यगृहों में कपड़ों, जूतों और अन्य वस्तुओं से भरे बक्सों व थैलियों का अंबार लग गया और फिर इन्हें फ्रांस के यहोवा के साक्षियों के शाखा दफ़्तर को भेजा गया। वहाँ ४०० स्वयंसेवी “ज़ाएर की मदद करो” परियोजना के अगले चरण में हाथ बँटाने के लिए तैयार थे। जैसे-जैसे दान की गयी ढेरों वस्तुएँ आती रहीं, ये स्वयंसेवी इन कपड़ों को छाँटते, तह करते, और बक्सों में पैक कर देते। ऐसे ३० बक्से एक सुवाह्य मंच पर रखा जा रहा था। बच्चों ने अफ्रीका के अपने छोटे-छोटे भाई-बहनों को मद्देनज़र रखा था और उन्हें खिलौने भेजे थे—खिलौने की प्यारी-प्यारी कार, लट्टू, गुड्डे-गुड़िया, व टॆडी बेर। इन खिलौनों को जीवन की मूलभूत वस्तुओं के साथ पैक किया गया था। कुल मिलाकर, १२ मीटर के बड़े-बड़े नौ ट्रकों को भरकर कांगो भेजा गया।
बॆलजियम, फ्रांस, व स्विट्ज़रलैंड के हज़ारों साक्षियों की बदौलत केंद्रीय अफ्रीका को कितनी मदद भेजी गयी है? जून १९९७ तक कुल मात्रा थी ५०० किलो दवाइयाँ, १० टन हाई-प्रोटीन बिस्कुट, २० टन अन्य खाद्य सामग्री, ९० टन कपड़े, १८,५०० जोड़ी जूते, और १,००० चादरें। बाइबल साहित्य भी विमान से पहुँचाया गया। इन सब की बहुत क़दर की गयी, और इससे शरणार्थियों को सांत्वना व अपनी परीक्षाओं को सहने में मदद मिली। इस सप्लाई की कुल क़ीमत लगभग साढ़े तीन करोड़ रुपए हुई। ऐसे योगदान उस भाईचारे व प्रेम का सबूत थे जो यहोवा की उपासना करनेवालों में होता है।
कांगो में वितरण
जैसे-जैसे माल कांगो पहुँचने लगा, फ्रांस से दो भाई और एक बहन स्थानीय राहत समितियों के साथ कार्य करने आए। कांगो के साक्षियों द्वारा दिखायी गयी क़दरदानी के बारे में, जासलॆन ने कहा: “हमें क़दरदानी के कई ख़त मिले। एक ग़रीब बहन ने मुझे मैलाकाइट से बना आभूषण दिया। दूसरों ने हमें अपनी तसवीरें दीं। जब हम लौट रहे थे, तो बहनों ने मुझे चूमा, मुझसे गले मिलीं, और रोईं। मैं भी रोई। अनेक लोगों ने ऐसी टिप्पणियाँ कीं, ‘यहोवा अच्छा है। यहोवा हमारे बारे में सोचता है।’ सो उन्होंने जान लिया कि इस दान का श्रेय परमेश्वर को जाता है। जब हम भोजन वितरित कर रहे थे, तब भाइयों और बहनों ने राज्य गीतों से यहोवा की स्तुति की। वह दिल को छू गया।”
लोइक नाम का डॉक्टर उस दल का एक सदस्य था। अनेक लोग राज्यगृह में जमा हो गए और उन्होंने उसकी मदद पाने के लिए सब्र से अपनी पारी का इंतज़ार किया। खुद भी हिस्सा लेने की इच्छा से, कांगो की एक बहन ने डॉक्टर से परामर्श लेने का इंतज़ार कर रहे लोगों के लिए कुछ ४० डोनट बनाकर बाँट दिया। चूँकि लगभग ८० लोग इंतज़ार कर रहे थे, हरेक को आधा-आधा डोनट मिला।
ग़ैर-साक्षियों को मदद
यह लोकोपकारी मदद मात्र यहोवा के साक्षियों को नहीं दी गयी थी। दूसरों को भी इससे फ़ायदा पहुँचा, ठीक उतने लोगों को जितनों को १९९४ में पहुँचा था। यह गलतियों ६:१० के सामंजस्य में है, जो कहता है: “इसलिये जहां तक अवसर मिले हम सब के साथ भलाई करें; विशेष करके विश्वासी भाइयों के साथ।” (तिरछे टाइप हमारे।)
साक्षियों ने गोमा के पास कई प्राइमरी स्कूलों में और एक अनाथालय में दवा व कपड़े बाँटे। यह अनाथालय ८५ बच्चों का घर है। वस्तुस्थिति का जायज़ा लेने के लिए पहले किए गए एक दौरे में, राहत दल अनाथालय गया था और उन्हें हाई-प्रोटीन बिस्कुट के ५० बक्से, कपड़ों के बक्से, १०० चादरें, दवा-दारू व खिलौने देने का वादा किया। आँगन में बच्चों ने कतार में खड़े होकर मुलाक़ातियों के लिए गीत गाए। इसके बाद उन्होंने एक विशेष निवेदन किया—क्या उन्हें खेलने के लिए एक फुटबॉल मिल सकता है?
कई सप्ताह बाद राहत दल ने उन्हें सप्लाई देने का अपना वादा निभाया। अनाथालय के निर्देशक ने उनकी उदारता से, और उसे दिए गए बाइबल साहित्य में जो उसने पढ़ा था उससे प्रभावित होकर कहा कि वह यहोवा का एक साक्षी बननेवाला है। और क्या बच्चों को एक फुटबॉल दिया गया? “जी नहीं,” फ्रांस से आए राहत दल के एक समन्वयक क्लॉड ने जवाब दिया। “हमने उन्हें दो फुटबॉल दिए।”
शरणार्थी शिविर
मदद सिर्फ़ कांगो को नहीं दी गयी। हज़ारों शरणार्थी जंग के इलाक़े से भागकर पास के एक देश में गए जहाँ तीन शरणार्थी शिविरें हड़बड़ी में बनाए गए थे। यह पता लगाने के लिए कि क्या किया जा सकता है, साक्षी वहाँ भी गए। जब यह रिपोर्ट तैयार की गयी थी, तब उन शिविरों में २,११,००० शरणार्थी शरण लिए हुए थे, जिनमें से अधिकांशतः कांगो के थे। लगभग ८०० लोग, साक्षी व उनके बच्चे तथा ऐसे व्यक्ति थे जो राज्य के सुसमाचार में रुचि रखते थे। शिविरों में सबसे पहली समस्या थी भोजन की कमी। एक शिविर में, केवल तीन दिन के लिए पर्याप्त भोजन था, और इसमें तीन साल पुराने बीन्स शामिल थे।
इसके बावजूद, साक्षियों का हौसला बुलंद ही था। हालाँकि उनके पास कम बाइबल साहित्य था, उन्होंने आध्यात्मिक रूप से अपने आपको मज़बूत करने के लिए खुली हवा में नियमित रूप से सभाएँ संचालित कीं। वे शिविरों में दूसरों को परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार प्रचार करने में भी व्यस्त थे।—मत्ती २४:१४; इब्रानियों १०:२४, २५.
साक्षियों के जाँच-दल में एक डॉक्टर शामिल था। हालाँकि अधिकारियों ने उन्हें हर शिविर में बस कुछ ही दिन बिताने की अनुमति दी थी, उन्होंने डॉक्टरी परामर्श देने का आयोजन किया। वे मसीही प्राचीनों के पास दवा व पैसे छोड़ गए। फलतः, भाई बच सके। उन्होंने यह आशा भी की कि शिविरों के साक्षी जल्द-से-जल्द अपने-अपने घरों को लौट सकें।
भविष्य के बारे में क्या? यीशु मसीह ने पूर्वबताया कि हमारा समय बड़ी खलबली का समय होगा, ऐसा समय जिसके दौरान युद्ध व खाने-पीने की कमी होगी। (मत्ती २४:७) यहोवा के साक्षी जानते हैं कि केवल परमेश्वर का राज्य पृथ्वी पर मौजूदा दुःख-तकलीफ़ का अंत करेगा। उसके शासन में, हमारा पार्थिव घर आज्ञाकारी मानवजाति के लिए शांति, प्रचुरता, और अनंत ख़ुशी का परादीस बनेगा। (भजन ७२:१, ३, १६) इस दरमियान, साक्षी उस स्वर्गीय राज्य के सुसमाचार की घोषणा करेंगे और ज़रूरत के समय संगी उपासकों तथा दूसरों की मदद करना भी जारी रखेंगे।
[पेज 4 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
सन् १९९४ से, मात्र यूरोप के यहोवा के साक्षियों ने अफ्रीका के ग्रेट लेक्स् क्षेत्र को १९० टन से ज़्यादा खाना, कपड़ा, दवा-दारू व अन्य राहत सामग्री भेजी है
[पेज 6 पर बक्स]
मसीही प्रेम कार्य में
उन लोगों में से एक रूत डाने थी, जिन्होंने फ्रांस में “ज़ाएर की मदद करो” परियोजना में उत्सुकता से भाग लिया था। जब वह बच्ची थी, तब उसे अपने मसीही विश्वास के कारण नात्सी नज़रबंदी शिवरों में क़ैद किया गया। उसने टिप्पणी की: “हम अफ्रीका के अपने भाई-बहनों के लिए कुछ कर पाने के लिए बहुत ख़ुश थे! लेकिन कुछ और बात थी जिससे मैं बहुत ही ख़ुश थी। सन् १९४५ में, जब हम जर्मनी से घर लौट आए थे, तो हमारे पास कुछ भी नहीं था। यहाँ तक कि जो कपड़े हमने पहन रखे थे, वे भी उधार के थे। लेकिन जल्द ही, हमें अमरीका के अपने आध्यात्मिक भाइयों से भौतिक मदद मिली। सो इस राहत कार्य से मुझे मौक़ा मिला कि मैं उस कृपा के बदले में कुछ कर सकूँ जो हमें अरसों पहले दिखायी गयी थी। ऐसे भाइयों के एक बड़े परिवार का अंग होना क्या ही विशेषाधिकार है जो मसीही प्रेम को कार्यों में दिखाते हैं!”—यूहन्ना १३:३४, ३५.
[पेज 7 पर तसवीर]
जल्द ही—एक पार्थिव परादीस जिसमें सब कुछ बहुतायत में होगा