परिवार की देखरेख की ज़िम्मेदारी सँभालना
पिताओ, अपने बच्चों को क्रोध न दिलाओ, वरन् प्रभु की शिक्षा और अनुशासन में उनका पालन-पोषण करो।” (इफिसियों ६:४, NHT) इन ईश्वर-प्रेरित शब्दों से, प्रेरित पौलुस ने साफ-साफ बता दिया कि परिवार की देखरेख की ज़िम्मेदारी किसके कंधों पर है—पिता के कंधों पर।
अधिकतर परिवारों में अपने बच्चों की देखरेख करने में पिता अकेला नहीं होता। उसकी पत्नी, जो उसके बच्चों की माँ है, राज़ी-खुशी से अपने पति के साथ मिलकर इस भार को उठाती है। अतः, राजा सुलैमान ने कहा: “हे मेरे पुत्र, अपने पिता की शिक्षा पर कान लगा, और अपनी माता की शिक्षा को न तज।”—नीतिवचन १:८.
भौतिक व आध्यात्मिक देखरेख
जो माता-पिता अपने बच्चों से प्यार करते हैं वे जानबूझकर उनकी उपेक्षा नहीं करते। सचमुच, यदि मसीही ऐसा करते हैं तो यह अपने विश्वास से मुकर जाने के बराबर होगा। ऐसा निष्कर्ष हम तीमुथियुस को लिखे पौलुस के शब्दों से निकाल सकते हैं: “पर यदि कोई अपनों की और निज करके अपने घराने की चिन्ता [“देखभाल,” NHT] न करे, तो वह विश्वास से मुकर गया है, और अविश्वासी से भी बुरा बन गया है।” (१ तीमुथियुस ५:८) मसीही जानते हैं कि “[यहोवा] की शिक्षा और अनुशासन में उनका पालन-पोषण” करने में उनके लिए भौतिक चीज़ें प्रदान करने से कहीं ज़्यादा शामिल है।
इस्राएल जाति को दी गयी मूसा की सलाह पर गौर फरमाइए जब वे मोआब के मैदानों पर पड़ाव डाले हुए थे। यह तब की बात है जब वे प्रतिज्ञात देश में प्रवेश करने ही वाले थे। वहाँ मूसा ने उन्हें परमेश्वर के नियम फिर से सुनाए और उन्हें यह उपदेश दिया: “तुम मेरे ये वचन अपने अपने मन और प्राण में धारण किए रहना।” (व्यवस्थाविवरण ११:१८) पहले भी उसने उन्हें याद दिलाया था कि उन्हें अपने पूरे मन, जीव, और शक्ति से यहोवा से प्रेम करना चाहिए, और आगे कहा: “ये आज्ञाएं जो मैं आज तुझ को सुनाता हूं वे तेरे मन में बनी रहें।” (व्यवस्थाविवरण ६:५, ६) इस्राएली माता-पिताओं के लिए यह बहुत ही ज़रूरी था कि वे परमेश्वर के नियम की बातों को अपने दिल में उतरने देते। आध्यात्मिक कदरदानी से उमड़ते दिलों की वज़ह से, इस्राएली माता-पिता बहुत ही सार्थक रूप से मूसा के अगले शब्दों को मान सकते थे: “तू उनको [परमेश्वर के नियम के वचनों को] यत्नपूर्वक अपने बालबच्चों को सिखाना, तथा अपने घर में बैठे, मार्ग पर चलते, और लेटते तथा उठते समय उनकी चर्चा किया करना।”—व्यवस्थाविवरण ६:७, NHT; ११:१९. मत्ती १२:३४, ३५ से तुलना कीजिए।
ध्यान दीजिए कि पिताओं को अपने बच्चों को उन बातों को ‘यत्नपूर्वक सिखाना’ था तथा ‘उनकी चर्चा करनी’ थी। इब्रानी पद जिसे ‘यत्नपूर्वक सिखाना’ अनुवादित किया गया है, उसका मतलब है, “बार-बार दोहराना या नसीहत देकर सिखाना व मन में बिठाना।” जब माता-पिता हर रोज़ परमेश्वर के नियम के बारे में बात करते हैं—सुबह, दोपहर, व रात को—तो इससे उनके बच्चों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। जब बच्चे परमेश्वर के नियमों के लिए अपने माता-पिता के प्रेम को भाँप लेते हैं, तो वे बदले में खुद यहोवा के साथ घनिष्ठता विकसित करने के लिए प्रभावित होते हैं। (व्यवस्थाविवरण ६:२४, २५) रुचि की बात है कि मूसा ने खासकर पिताओं को उपदेश दिया कि वे अपने बच्चों को जब वे “घर में बैठे” हों, तब सिखाएँ। ऐसी शिक्षा परिवार की देखरेख का एक हिस्सा थी। लेकिन आज के बारे में क्या?
‘अपने घर में बैठते समय’
“यह आसान नहीं है,” चार बच्चों की मसीही माँ जैनॆट कहती है।a “आपको लगे रहने की ज़रूरत है,” उसका पति पॉल उससे सहमत होते हुए कहता है। अनेक अन्य साक्षी माता-पिताओं की तरह, पॉल व जैनॆट कम-से-कम सप्ताह में एक बार अपने बच्चों के साथ बाइबल का अध्ययन करने की कोशिश करते हैं। “हम कोशिश तो करते हैं कि हम अपनी पारिवारिक बाइबल चर्चा को एक तय समय पर हर सोमवार शाम को रखें,” पॉल कहता है, पर वह कबूल करता है: “लेकिन हम हमेशा ऐसा कर नहीं पाते।” अपनी कलीसिया में एक नियुक्त प्राचीन होने के कारण उसे कभी-कभी ज़रूरी मामलों से निपटने के लिए बुला लिया जाता है। उसके दो सबसे बड़े बच्चे पूर्ण-समय के सेवक के तौर पर कार्य करते हैं। उन्होंने पाया है कि सेवकाई में लोगों से संपर्क करने के लिए शाम का वक्त बहुत फलदायी है। इस वज़ह से, परिवार ने मिलकर अपने पारिवारिक अध्ययन के समय में थोड़ा-बहुत समंजन किया है। “कभी-कभी हम रात को भोजन करने के तुरंत बाद अपना अध्ययन करते हैं,” पॉल कहता है।
हालाँकि माता-पिता बुद्धिमानी से अपने पारिवारिक अध्ययन के समय को थोड़ा-बहुत बदलते हैं, फिर भी वे इसे नियमित रूप से करते रहने की कोशिश भी करते हैं। “यदि अध्ययन करने के हमारे समय में कोई हेरफेर करना पड़ता है,” बेटी क्लैर कहती है, “तो पापा हमेशा उस बदले हुए समय को फ्रिज के दरवाज़े पर टाँग देते हैं, ताकि हम सभी को इसके बारे में मालूम हो जाए।”
नियमित पारिवारिक बाइबल अध्ययन के लिए इकट्ठे होने से परिवार के छोटे सदस्यों को अपनी चिंताओं व समस्याओं के बारे में अपने माता-पिता से कहने का शानदार मौका भी मिलता है। ऐसा अध्ययन काफी कारगर होता है क्योंकि यह उतना सख्त नहीं होता है जिसमें बच्चे पूछे गए सवालों का अपनी बाइबल पाठ्यपुस्तक से जवाब मात्र पढ़कर सुना देते हैं। “हमारा पारिवारिक अध्ययन चर्चा करने का एक खुला मंच है,” मारटिन कहता है जिसके दो बेटे हैं। “जब आप सप्ताह में एक बार मिलकर किसी शास्त्रीय विषय पर चर्चा करने के लिए इकट्ठा होते हैं, तब आपको मालूम हो जाता है कि आपके परिवार की आध्यात्मिक स्थिति कैसी है,” वह कहता है। “चर्चा के ज़रिए हर तरह की बातों का हमें पता चल जाता है। आपको पता चल जाता है कि स्कूल में क्या हो रहा है, और उससे भी रोचक बात, आपको यह पता चल जाता है कि आपके बच्चों में कौन-सी मनोवृत्ति विकसित हो रही है।” उसकी पत्नी, सैन्ड्रा हाँ-में-हाँ मिलाती है और यह महसूस करती है कि उसे भी पारिवारिक अध्ययन से बहुत लाभ मिलता है। “जब मेरे पति अध्ययन चला रहे होते हैं,” वह कहती है, “तो मेरे बच्चों द्वारा उनके सवालों के जवाब देने के तरीके से मैं बहुत कुछ सीखती हूँ।” फिर सैन्ड्रा अपने बेटों की मदद करने के लिए अपनी टिप्पणियों को अनुकूल बनाती है। वह अध्ययन का और भी मज़ा लेती है क्योंकि वह इसमें पूरी तरह से शामिल होती है। जी हाँ, पारिवारिक अध्ययन में बिताए गए समय से माता-पिताओं को अपने बच्चों के सोच-विचार के बारे में जानकारी मिलती है।—नीतिवचन १६:२३; २०:५.
अनुकूल होइए और लगे रहिए
जब आपके पारिवारिक अध्ययन का समय होता है, तो आप शायद देखें कि एक बच्चा ध्यान दे रहा है व दिलचस्पी ले रहा है, जबकि दूसरे का ध्यान केंद्रित करवाने व लाभ उठाने के लिए शायद उकसाना पड़े। एक मसीही माता टिप्पणी करती है: “इसी का नाम तो पारिवारिक जीवन है! आप जानते हैं कि एक जनक के तौर पर आपको क्या करना चाहिए। सो जब आप इसमें लगे रहते हैं तो यहोवा मदद करता है और इससे परिणाम भी मिलते हैं।”
एक बच्चे की ध्यान-अवधि उसकी आयु के मुताबिक अलग-अलग हो सकती है। समझदार माता-पिता इस बात को ध्यान में रखेंगे। एक दंपति के पाँच बच्चे हैं और बच्चों की उम्र ६ से लेकर २० तक की है। पिता, माइकल कहता है: “सवालों के जवाब देने का सबसे पहला मौका सबसे छोटे बच्चे को दीजिए। उसके बाद बड़े बच्चों को तैयार किए गए अपने विवरण व मुद्दे कहने का मौका दीजिए।” जब माता-पिता इस प्रकार समझ-भरे तरीके से अपने बच्चों के साथ व्यवहार करते हैं तो इससे वे बच्चों को दूसरों का लिहाज़ करने का महत्त्व सिखाते हैं। मारटिन कहता है, “हमारे एक बेटे को मुद्दा शायद समझ आ जाए, लेकिन दूसरे बेटे को मुद्दा समझने में ज़्यादा मदद की ज़रूरत हो। मैं समझता हूँ कि मसीही धीरज व आत्मा के अन्य फल प्रदर्शित करने के लिए अध्ययन का सत्र एक प्रशिक्षण-स्थल बन जाता है।”—गलतियों ५:२२, २३; फिलिप्पियों २:४.
अपने बच्चों की भिन्न-भिन्न क्षमताओं व उम्र के हिसाब से अनुकूल होने के लिए तैयार रहिए। साइमन व मार्क ने, जो अब किशोर हैं, पाया कि जब वे छोटे थे, तब उनको अपने माता-पिता के साथ वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा पुस्तक का अध्ययन करने में सच में बड़ा मज़ा आता था। वे बताते हैं, “हमारे पिता एक नाटक की तरह ही भिन्न-भिन्न भूमिकाओं को हमसे अदा करवाते थे।” उनके पिता को याद है कि पड़ोसी-समान सामरी के दृष्टांत में अपना भाग अदा करने के लिए वह घुटनों के बल बैठा था। (लूका १०:३०-३५) “दृष्टांत एकदम सजीव हो उठा और हमें बहुत मज़ा आया।”
कई बच्चे पारिवारिक अध्ययन की आदत का विरोध करते हैं। क्या इसकी वज़ह से माता-पिता को अपना योजित अध्ययन चलाना रोक देना चाहिए? जी नहीं, हरगिज़ नहीं। “लड़के [या, लड़की] के मन में मूढ़ता बन्धी रहती है,” नीतिवचन २२:१५ कहता है। एक एकल माता ने सोचा कि वह पारिवारिक अध्ययन चलाने में विफल हो रही थी क्योंकि कई अवसरों पर, ऐसा लगता था कि विकर्षणों की वज़ह से सत्र भंग हो रहा है। लेकिन वह इसमें लगी रही। अब उसके बच्चों के मन में उसके प्रति बहुत आदर है और वे उस प्रेम व चिंता की कदर करते हैं जो उनकी माँ ने नियमित रूप से पारिवारिक अध्ययन चलाने में लगे रहने के द्वारा दिखायी।
“अनाथों” की मदद करना
मसीही प्राचीनों को ‘परमेश्वर के झुंड की रखवाली करनी’ है। (१ पतरस ५:२, ३) अपनी कलीसियाओं के परिवारों में नियमित रूप से भेंट करने से उन्हें ऐसे माता-पिता की प्रशंसा करने के मौके मिलते हैं जिनके कंधों पर मसीही ज़िम्मेदारियों का भार है। एक-जनक परिवारों के बच्चों को सिखाने की ज़िम्मेदारी का भार किसके कंधे पर आता है? यह कभी मत भूलिए कि बच्चों को उपदेश देने की ज़िम्मेदारी जनक की होती है।
मसीही परख-शक्ति प्राचीनों की मदद करेगी कि वे समझौता करनेवाली स्थितियों से दूर रहें जो उठ सकती हैं, यदि वे अनुपस्थित जनक की भूमिका अदा करने लगते हैं। हालाँकि दो भाई एक मसीही बहन से, जो एक-जनक है, भेंट करने जा सकते हैं लेकिन वे हमेशा इस बात में सावधान रहेंगे कि वे पारिवारिक अध्ययन के प्रबंध में मदद देने के लिए क्या इंतज़ाम करते हैं। कभी-कभार, प्राचीन अपने पारिवारिक अध्ययन में शामिल होने के लिए बच्चों को (साथ ही एक-जनक को भी) आमंत्रित कर सकता है। इससे पारिवारिक अध्ययन प्रोत्साहक व व्यावहारिक साबित हो सकता है। लेकिन, कभी मत भूलिए कि यहोवा हमारा महान स्वर्गीय पिता है। वह उस माँ को मार्गदर्शित करने व उसकी मदद करने के लिए निश्चय ही मौजूद है जब वह अपने बच्चों के साथ अध्ययन करती है, हालाँकि वह शायद अध्ययन अकेले चलाती हो।
ऐसी स्थिति के बारे में क्या जिसमें एक युवा को आध्यात्मिक बातों में दिलचस्पी तो है, लेकिन उसके माता-पिता अपनी आध्यात्मिक ज़िम्मेदारियों के प्रति बहुत कम या बिलकुल भी परवाह नहीं करते? यहोवा के वफादार सेवकों को कभी-भी निराश होने की ज़रूरत नहीं है। “लाचार अपने को [यहोवा परमेश्वर] तेरे हाथ में सौंपता है,” भजनहार ने गीत में कहा। “अनाथों का तू ही सहायक रहा है।” (भजन १०:१४) बदले में, कलीसिया के प्रेममय प्राचीन ऐसे माता-पिता को अपने बच्चों की देखरेख करने के लिए प्रोत्साहित करने की अपनी पूरी-पूरी कोशिश करेंगे। वे पारिवारिक चर्चा का सुझाव दे सकते हैं और फिर साथ मिलकर अध्ययन कैसे करना है, इस पर कुछ व्यावहारिक सुझाव देने के लिए ऐसी चर्चा में उपस्थित हो सकते हैं। वे माता-पिता की ज़िम्मेदारियों को कदापि खुद नहीं ले लेंगे क्योंकि शास्त्रीय तौर पर माता-पिता के कंधों पर ही यह ज़िम्मेदारी डाली गयी है।
ऐसे बच्चों को काफी सहारे की ज़रूरत होती है जिनके माता-पिता सच्चाई को नहीं अपनाते हैं। यदि ऐसे बच्चों के माता-पिता को कोई एतराज न हो तो अपने पारिवारिक अध्ययन में इन्हें शामिल करना लाभप्रद साबित हो सकता है। रॉबर्ट अब बड़ा हो चुका है और उसका अपना एक परिवार है। जब वह केवल तीन बरस का था तब वह अपने माता-पिता के साथ मसीही सभाओं में उपस्थित हुआ करता था। जब उसके माता-पिता ने मसीही कलीसिया से संगति करना छोड़ दिया था, तब भी उसके दिल में उन सभाओं की मीठी यादें थीं। जब वह दस बरस का हुआ, तो साक्षी का कोई लड़का उसे अपने साथ सभाओं में ले जाने लगा। उस साक्षी लड़के के माता-पिता ने खुशी-खुशी रॉबर्ट को एक आध्यात्मिक अनाथ के तौर पर अपनी देखरेख में ले लिया और उसके साथ बाद में अध्ययन करने लगे। इस प्रेमभरी देखरेख की बदौलत, उसने तेज़ी से प्रगति की और अब कलीसिया में एक प्राचीन की हैसियत से सेवा करने का आनंद उठाता है।
जब माता-पिता अपने बच्चों की प्रगति का विरोध भी करते हैं, तौभी बच्चे अकेले नहीं होते हैं। यहोवा तब भी उनका वफादार स्वर्गीय पिता ठहरता है। “परमेश्वर अपने पवित्र धाम में, अनाथों का पिता . . . है,” भजन ६८:५ यों कहता है। आध्यात्मिक रूप से अनाथ लड़के-लड़कियाँ जानते हैं कि वे उससे प्रार्थना कर सकते हैं और वह उन्हें सँभालेगा। (भजन ५५:२२; १४६:९) यहोवा का माँ-समान संगठन स्वादिष्ट आध्यात्मिक भोजन तैयार करने की अपनी ज़िम्मेदारी को जोश-खरोश से पूरा करता है। और यह भोजन इसके प्रकाशनों के ज़रिए व दुनिया भर के ८५,००० से ज़्यादा मसीही कलीसियाओं की सभाओं में परोसा जाता है। इस प्रकार, अपने पिता, यहोवा व उसके माँ-समान संगठन से आध्यात्मिक मदद पाकर, ‘अनाथ’ बच्चे भी कुछ हद तक बाइबल अध्ययन का लुत्फ उठा सकेंगे।
ऐसे मसीही माता-पिता काबिल-ए-तारीफ हैं जो अपने बच्चों के साथ नियमित रूप से पारिवारिक बाइबल अध्ययन चलाते हैं। एकल माता या पिता जो अपने बच्चों को यहोवा के तौर-तरीकों के बारे में प्रशिक्षित करने में लगे रहते हैं, अपने प्रयासों के लिए खास ध्यान व तारीफ के योग्य हैं। (नीतिवचन २२:६) आध्यात्मिक रूप से अनाथ बच्चों की परवाह करनेवाले सभी व्यक्ति जानते हैं कि यह बात हमारे स्वर्गीय पिता, यहोवा के दिल को खुश करती है। परिवार की अध्यात्मिक ज़रूरतों की देखरेख करना एक भारी ज़िम्मेदारी है। लेकिन ‘हियाव न छोड़ें, क्योंकि यदि आप ढीले न हों, तो ठीक समय पर कटनी काटेंगे।’—गलतियों ६:९.
[फुटनोट]
a कुछ नाम बदल दिए गए हैं।
[पेज 23 पर तसवीर]
पारिवारिक अध्ययन परिवार के छोटे सदस्यों के लिए अपनी चिंताओं के बारे में अपने माता-पिता से कहने का शानदार मौका है
[पेज 20 पर चित्र का श्रेय]
Harper’s