पवित्र सेवा में खास अधिकारों की दिल से कदर करना
पवित्र सेवा में मिलनेवाले कामों को तुच्छ नहीं समझना चाहिए। प्राचीन यहूदा के याजकों ने जब यहोवा के मंदिर में अपने खास अधिकारों की ओर लापरवाही दिखायी तो यहोवा ने उन्हें कड़ाई से डाँटा। (मलाकी १:६-१४) और जब नाज़रियों को उनकी पवित्र सेवा की ज़िम्मेदारियों का तिरस्कार करने के लिए इस्राएल के कुछ लोगों ने उकसाया, तो यहोवा ने उन पापी इस्राएलियों को फटकारा। (आमोस २:११-१६) सच्चे मसीही भी पवित्र सेवा करते हैं और वे इसकी गंभीरता समझते हैं। (रोमियों १२:१) इस पवित्र सेवा के कई पहलू हैं और सभी पहलुओं की अपनी अहमियत है।
जब यीशु अपने चेलों के साथ पृथ्वी पर ही था, तब उसने उन्हें परमेश्वर के राज्य की घोषणा करनेवाले बनने के लिए प्रशिक्षण दिया। कुछ ही समय में उनका संदेश पृथ्वी की छोर तक पहुँचनेवाला था। (मत्ती २८:१९, २०; प्रेरितों १:८) आज की रीति-व्यवस्था के अंतिम दिनों के दौरान प्रचार कार्य की अहमियत और बढ़ गयी है।
सभी यहोवा के साक्षी इस काम में हिस्सा लेते हैं। लाखों लोग पायनियरों के नाते ऐसा करके खुशी पा रहे हैं। पूरी दुनिया में चल रहे इस काम की कुछ खास ज़रूरतें पूरी करने के लिए, हज़ारों लोगों ने बेथेल में, सर्किट या डिस्ट्रिक्ट ओवरसियर के नाते सफरी काम में या मिशनरी सेवा में पूरे समय की खास सेवा के लिए खुद को पेश किया है। जो इस खास सेवा को जारी रखना चाहते हैं उनके लिए इसका क्या मतलब हो सकता है?
जब परिवार में बहुत बड़ी ज़रूरत पैदा होती है
पूरे समय की खास सेवा शुरू करने से पहले एक व्यक्ति को आम तौर पर अपनी परिस्थितियों में कुछ फेर-बदल करने पड़ते हैं। सभी ऐसा नहीं कर पाते। पहले से ही एक व्यक्ति के बाइबल पर आधारित कर्त्तव्य होंगे जो इस फेर-बदल को नामुमकिन कर देते हैं। लेकिन, तब क्या होता है जब परिवार में बहुत बड़ी ज़रूरत, शायद वृद्ध माता-पिता की देखभाल करने की ज़रूरत उन लोगों के सामने आती है जो पहले से ही खास सेवा कर रहे हैं? यहाँ बताए गए बाइबल सिद्धांतों और सलाहों से ज़रूरी निर्देशन मिलता है।
हमारी सारी ज़िंदगी यहोवा के साथ हमारे रिश्ते से जुड़ी होनी चाहिए। (सभोपदेशक १२:१३; मरकुस १२:२८-३०) जो पवित्र अमानत हमें सौंपी गयी है उसकी दिल से कदर की जानी चाहिए। (लूका १:७४, ७५; इब्रानियों १२:१६, NW) एक अवसर पर एक मनुष्य को जिसे अपनी प्राथमिकताएँ बदलने की ज़रूरत थी यीशु ने कहा कि उसे परमेश्वर के राज्य के बारे में बताने में खुद को पूरी तरह लगा देना चाहिए। स्पष्ट है कि वह मनुष्य इस काम को तब तक रोके रखना चाहता था जब तक उसका पिता ज़िंदा था। (लूका ९:५९, ६०) दूसरी ओर, यीशु ने ऐसे हर व्यक्ति के गलत सोच-विचार का परदाफाश किया जो दावा करता है कि उसने सबकुछ परमेश्वर को समर्पित कर दिया और फिर ‘अपने पिता वा अपनी माता की कुछ सेवा’ नहीं करता। (मरकुस ७:९-१३) प्रेरित पौलुस ने भी “अपनों की,” यानी माता-पिता और दादा-दादी/नाना-नानी की देखभाल करने की गंभीर ज़िम्मेदारी दिखायी।—१ तीमुथियुस ५:३-८.
क्या इसका मतलब यह है कि जब बहुत बड़ी ज़रूरत आ पड़ती है, तब जो खास सेवा कर रहे हैं वो अपनी नियुक्तियों को छोड़कर देखभाल करने लगें? इसका जवाब कई बातों पर निर्भर करता है। यह फैसला निजी फैसला है। (गलतियों ६:५) कई लोगों ने यह महसूस किया है कि उनकी नियुक्ति उन्हें बहुत अज़ीज़ है फिर भी अपने माता-पिता को ज़रूरी मदद देने के लिए उनके साथ रहना ही बुद्धिमानी होगी। क्यों? क्योंकि हो सकता है कि हालात बहुत ही नाज़ुक हों, शायद परिवार का कोई और सदस्य नहीं है जो मदद कर सकता हो या वहाँ की कलीसिया शायद ज़रूरत के हिसाब से मदद नहीं कर पाए। ऐसी मदद देते वक्त भी कुछ लोग पायनियर कार्य करने के काबिल हुए हैं। कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने परिवार की ज़रूरत की देखभाल करने के बाद फिर से पूरे समय की खास सेवा शुरू की है। लेकिन, कई मामलों में इन हालात को दूसरे तरीकों से निपटाया जा सका है।
अपनी ज़िम्मेदारी सँभालना
जब बहुत बड़ी ज़रूरत आन पड़ी है, तब पूरे समय की खास सेवा करनेवाले कुछ लोग अपनी नियुक्तियाँ छोड़े बिना इन ज़रूरतों पर ध्यान दे सके हैं। कई उदाहरणों में से केवल कुछ पर गौर कीजिए।
एक दंपति १९७८ से यहोवा के साक्षियों के मुख्यालय में बेथेल सेवा कर रहे हैं, उससे पहले वे सर्किट और डिस्ट्रिक्ट काम में भाग ले चुके थे। भाई की नियुक्ति ऐसी थी जिसमें ईश्वरशासित संगठन की बहुत भारी ज़िम्मेदारी उसके कंधों पर थी। लेकिन उसके माता-पिता को भी मदद की ज़रूरत पड़ी। बेथेल का यह दंपति अपने माता-पिता की देखभाल करने के लिए हर साल तीन या चार बार उनसे मिलने जाता है, और एक बार में लगभग ३,५०० किलोमीटर का कुल सफर तय करता है। माता-पिता की ज़रूरत को पूरा करने के लिए उन्होंने खुद एक घर बनाया। गंभीर बीमारी के वक्त अपने माता-पिता की देखभाल के लिए वे जाते रहे हैं। कुछ २० साल से उन्होंने लगभग अपना सारा छुट्टी का समय इस ज़िम्मेदारी को सँभालने में बिताया है। वे अपने माता-पिता से प्रेम करते हैं और उनका आदर करते हैं, लेकिन वे पवित्र सेवा में अपने खास अधिकारों को भी अनमोल समझते हैं।
एक और भाई ३६ साल से सफरी काम करता रहा था जब उसके सामने ऐसे हालात आए जो उसके अनुसार जीवन के सबसे मुश्किल हालात थे। उसकी सास जिसकी उम्र ८५ साल थी, यहोवा की वफादार सेवक रह चुकी थी और उसे किसी ऐसे व्यक्ति की ज़रूरत थी जो उसके साथ रहकर उसकी मदद कर सके। उस वक्त उस बहन के ज़्यादातर बच्चों को लगा कि उसे अपने पास रखना सुविधाजनक नहीं होगा। इस सफरी ओवरसियर को एक रिश्तेदार ने कहा कि तुम दोनों को यह सेवा छोड़कर परिवार की ओर से माँ की देखभाल करनी चाहिए। लेकिन इस दंपति ने अपनी बहुमूल्य सेवा छोड़ी नहीं, ना ही उन्होंने माँ की ज़रूरतों को अनदेखा किया। अगले नौ साल माँ उन्हीं के साथ-साथ रही। पहले वह चलते-फिरते घर में उनके साथ रही, उसके बाद अलग-अलग सर्किटों द्वारा दिए गए घरों में। भाई बहुत दिनों तक डिस्ट्रिक्ट ओवरसियर के नाते अपनी नियुक्ति को पूरा करने के लिए जाता रहा जबकि उसकी पत्नी पूरे समय माँ की प्रेम भरी देखभाल करने के लिए उसके पास रहती। रविवार को सभाएँ खत्म होने के बाद, हर हफ्ते वह भाई लंबा सफर तय करके उनके पास मदद करने के लिए आता। इस हाल के बारे में जाननेवाले अनेक लोगों ने इस दंपति के काम की बहुत सराहना की। कुछ समय बाद, परिवार के दूसरे सदस्य भी मदद करने के लिए प्रेरित हुए। इस दंपति के पूरे समय की खास सेवा के अपने खास अधिकार को बनाए रखने के कारण आज भी यहोवा के हज़ारों लोग इस आत्म-त्यागी दंपति की सेवा से लाभ पा रहे हैं।
परिवार के सहयोग से
जब परिवार के ज़्यादातर सदस्य पूरे समय की खास सेवा की कदर करते हैं तो आपसी सहयोग से कम-से-कम कुछ सदस्य इसमें हिस्सा ले सकते हैं।
पारिवारिक सहयोग की ऐसी भावना कनाडा के एक दंपति के लिए सहायक रही है जो पश्चिम अफ्रीका में मिशनरियों के नाते सेवा कर रहे हैं। वे किसी गंभीर समस्या के आने तक रुके नहीं रहे, और इस उम्मीद से चुप नहीं बैठे रहे कि कुछ भी नहीं होगा। विदेश में सेवा की तैयारी के लिए गिलियड नामक वॉचटावर बाइबल स्कूल में जाने से पहले, उस भाई ने अपने छोटे भाई से चर्चा की कि अगर माँ बीमार पड़ेगी या चलने-फिरने के काबिल नहीं रहती तो उसकी देखभाल का क्या होगा। अपनी माँ के लिए प्रेम दिखाते हुए इसके अलावा मिशनरी काम के महत्त्व को समझते हुए, छोटे भाई ने कहा: “मैं अब बाल-बच्चेदार आदमी हूँ। मैं बहुत दूर जाकर वह काम नहीं कर सकता जो आप कर सकते हो। सो अगर मम्मी को कुछ हुआ तो उनकी देखभाल करने के लिए मैं हूँ ना।”
दक्षिण अमरीका में सेवा कर रहे एक दंपति को पत्नी की माँ की देखभाल करने के लिए उसके मायके से बहुत सहयोग मिला। उसकी एक बहन और जीजा ने माँ की देखभाल की लेकिन बाद में वही बहन गंभीर रूप से बीमार हो गयी। उसके बाद क्या हुआ? जीजा ने उनकी चिंता दूर करने के लिए लिखा: “जब तक मैं हूँ और मेरे बच्चे हैं, आपको मिशनरी सेवा कभी छोड़नी नहीं पड़ेगी।” परिवार से और भी मदद मिली जब एक और बहन और उसके पति ने अपना घर छोड़ा और वहाँ आकर रहने लगे जहाँ माँ रहती थी और इस तरह उन्होंने जब तक माँ जीवित थी उसकी देखभाल की। सहयोग की कितनी अच्छी भावना! वे सभी मिशनरी सेवा का समर्थन करने के लिए मदद दे रहे थे।
उदारता से यहोवा को देनेवाले माता-पिता
पवित्र सेवा के लिए अकसर माता-पिता निराली कदरदानी दिखाते हैं। अपनी सबसे मूल्यवान संपत्ति जिससे वे यहोवा की प्रतिष्ठा कर सकते हैं उनके अपने बच्चे हैं। (नीतिवचन ३:९) अनेक मसीही माता-पिता अपने बच्चों को पूरे समय की सेवा शुरू करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। और कुछ माता-पिता हन्ना की तरह महसूस करते हैं, जिसने अपने बेटे शमूएल को “सदा” तक यानी “अपने जीवन भर” यहोवा की सेवा करने के लिए दे दिया।—१ शमूएल १:२२, २८.
ऐसी ही एक माँ ने अफ्रीका में अपनी बेटी को लिखा: “तुम्हारे इस शानदार खास अधिकार के लिए हम यहोवा का शुक्रिया अदा करते हैं। तुमने हमारे मन की मुराद पूरी की है।” एक और अवसर पर उसने कहा: “यह सच है कि हमें जुदा रहने के लिए त्याग करना पड़ता है लेकिन यहोवा तुम्हारी देखभाल किस तरह करता है यह देखकर कितनी खुशी होती है!”
अपने बूढ़े माता-पिता की ज़रूरी देखभाल करने के लिए जिन अलग-अलग हालात का सामना करना पड़ा उनके बारे में बताने के बाद इक्वेडोर के एक मिशनरी ने लिखा: “मुझे लगता है कि हम दोनों को मेरे पिता की प्रार्थनाओं से सबसे ज़्यादा मदद मिली थी। उनकी मौत के बाद मेरी माँ ने हमसे कहा: ‘ऐसा कोई दिन नहीं बीता जब तुम्हारे पिता ने यहोवा से तुम्हारे लिए दुआ न माँगी हो कि तुम दोनों को अपनी नियुक्ति में बने रहने में मदद करे।’”
अमरीका के कैलिफोर्निया में एक बुज़ुर्ग दंपति को खुशी थी कि उनका एक बेटा पूरे समय की सेवा कर रहा है। वह बेटा और बहू माँ की मौत के वक्त स्पेन में थे। परिवार के दूसरे सदस्यों को लगा कि पिता की देखभाल के लिए प्रबंध किया जाना ज़रूरी है। वे अपनी नौकरी और बाल-बच्चों की परवरिश में लगे हुए थे, और उन्हें लगा कि वे इस ज़िम्मेदारी को नहीं उठा पाएँगे। इसलिए उन्होंने पूरे समय की खास सेवा करनेवाले दंपति से घर लौटकर पिता की देखभाल करने का अनुरोध किया। लेकिन, उनके पिता ७९ साल के होते हुए भी तंदुरुस्त थे और उनकी आध्यात्मिक दृष्टि भी साफ थी। जब सारा परिवार मिला और सबने अपनी-अपनी राय ज़ाहिर कर ली तब पिता खड़ा हुआ और निश्चय के साथ कहा: “मैं चाहता हूँ कि वे वापस स्पेन जाएँ और अपना काम जारी रखें।” उन्होंने ऐसा ही किया, साथ ही अपनी तरफ से जितना हो सका पिता की मदद भी की। वे फिलहाल स्पेन में सर्किट के काम में नियुक्त हैं। परिवार की उस सभा के बाद से, परिवार के दूसरे सदस्यों ने विदेश में सेवा कर रहे इस दंपति के काम के लिए कदरदानी दिखायी है। कई साल बाद, एक और बेटा पिता को अपने घर ले गया और जब तक वह जीवित रहा उसकी देखभाल की।
अमरीका के पॆन्सिलवेनिया में एक अभिषिक्त भाई ने ४० साल तक पायनियर कार्य किया था और वह ९० पार कर चुका था जब उसकी पत्नी बीमार पड़ी और चल बसी। उसका एक बेटा और तीन बेटियाँ थीं और बहुत से आध्यात्मिक बच्चे भी थे। उसकी एक बेटी ४० से ज़्यादा साल से पूरे समय की सेवा करती रही है और अपने पति के साथ मिशनरी सेवा, सफरी काम और बेथेल में काम कर चुकी है। बेटी ने अपने पिता की अच्छी देखभाल के लिए प्रबंध करने में मदद दी। वहाँ के भाई उसके पिता को सभाओं के लिए किंग्डम हाल ले जाने में भी मदद करते थे। बाद में जब उसका पति चल बसा तो इस बेटी ने अपने पिता से पूछा कि क्या आप चाहते हैं कि मैं आपकी देखभाल के लिए बेथेल छोड़कर आपके साथ रहूँ। वह पवित्र बातों की दिल से कदर करता है और उसने महसूस किया कि उसकी ज़रूरतें दूसरे तरीकों से पूरी की जा सकती हैं। सो उसने जवाब दिया: “यह फैसला तुम्हारी ज़िंदगी का सबसे बुरा फैसला होगा, और यह तो और भी बुरा होगा अगर मैं तुम्हें यह फैसला करने दूँ।”
सहारा देनेवाली कलीसियाएँ
पूरे समय की खास सेवा करनेवालों के बुज़ुर्ग होते माता-पिता की देखभाल करने में कुछ कलीसियाओं ने बहुत मदद दी है। वे खासकर उन लोगों की कदर करते हैं जिन्होंने ऐसी सेवा करते हुए सालों साल बिताए हैं। जबकि वे इन भाई-बहनों को बाइबल पर आधारित उनके कर्त्तव्यों से मुक्त तो नहीं कर सकते, ये कलीसियाएँ उनके बोझ को कम करने के लिए बहुत कुछ करती हैं ताकि बच्चों को अपने माता-पिता के लिए अपनी खास नियुक्तियाँ छोड़ने की ज़रूरत न पड़े।
जर्मनी का एक दंपति लगभग १७ साल से विदेश में अपनी नियुक्ति पर काम कर रहा था। इनमें से ज़्यादातर साल सफरी काम करते हुए बीते थे और इस समय के दौरान भाई की माँ की देखभाल करने की ज़रूरत बढ़ती गयी। हर साल वे अपनी छुट्टी का समय उसकी मदद करने में बिताते थे। पड़ोस में रहनेवाले साक्षियों ने भी प्रेम से सहायता की। फिर जब माँ की हालत बहुत ही नाज़ुक थी और पूरे समय की सेवा करनेवाला यह दंपति उसके साथ था, तब वहाँ के प्राचीन उनसे मिलने आए। यह दंपति अपनी माँ के लिए नियमित रूप से क्या करता रहा है इससे वे भली-भाँति परिचित थे। वे इस दंपति की खास सेवा की भी कदर करते थे। सो प्राचीनों ने उनकी माँ की देखभाल करने का एक कार्यक्रम उन्हें बताया और कहा: “आप इनकी जितनी देखभाल कर रहे हैं उससे ज़्यादा करना आपके बस में नहीं है; हम आपकी मदद करेंगे ताकि आप स्पेन में अपनी नियुक्ति में बने रहें।” पिछले सात साल से इन प्राचीनों ने यही किया है।
उसी तरह, १९६७ से सेनेगल में सेवा कर रहे एक भाई को अपने पिता के यहाँ की कलीसिया से बहुत ही प्रेम भरा सहारा मिला है। जब संकट का समय आया, तब अपनी प्यारी पत्नी के सहयोग से वह अकेला अपनी माता-पिता की मदद के लिए अमरीका गया। उसने पाया कि कई महीनों तक उसका वहीं रहना ज़रूरी है। हालात अच्छे नहीं थे, लेकिन जब वह अपनी पूरी कोशिश कर चुका तो कलीसिया ने पहल की और मदद के लिए आयी ताकि वह भाई अपनी मिशनरी सेवा जारी रख सके। करीब १८ साल तक, कलीसिया ने बेहिसाब तरीकों से मदद दी, पहले पिता के लिए (जो अपने मददगारों में से कई लोगों को अब पहचान भी नहीं पाता था) और बाद में माँ के लिए। क्या इससे बेटे की ज़िम्मेदारी खत्म हो गयी? नहीं; वह अकसर सेनेगल से उनके पास जाता और अपनी छुट्टी के दौरान उनकी जितनी हो सके मदद करता। लेकिन उस कलीसिया में अनेक लोगों को इस बात की खुशी थी कि उन्होंने इस मेहनती दंपति को सेनेगल में पूरे समय की खास सेवा करते रहने में मदद करने में हिस्सा लिया है।
यीशु ने कहा कि जो व्यक्ति सुसमाचार के लिए सबकुछ छोड़ देते हैं उनको सौ गुना भाई, बहन, माताएँ और बच्चे मिलेंगे। (मरकुस १०:२९, ३०) यहोवा के सेवकों के बारे में यह वाकई सच है। इस वक्त पश्चिम अफ्रीका के बेनिन देश में सेवा कर रहे एक दंपति ने इस बात का खास तरीके से अनुभव किया जब उनके माता-पिता की कलीसिया के दो साक्षियों ने उनसे कहा कि मम्मी-डैडी की चिंता न करें। और उन्होंने कहा: “आपके मम्मी-डैडी हमारे मम्मी-डैडी भी हैं।”
जी हाँ, यह दिखाने के कई तरीके हैं कि हम पवित्र सेवा में खास अधिकारों की दिल से कदर करते हैं। आप किन तरीकों से इस कदरदानी को और अच्छी तरह दिखा सकते हैं?
[पेज 26 पर तसवीर]
इन्होंने खुद को पूरे समय की खास सेवा के लिए पेश किया है