सुसमाचार की भेंट—परिवार के रूप में
१ एक समर्पित परिवार पूरी तरह से पवित्र सेवा में व्यस्त—जहाँ पिता, माता और बच्चें पूर्ण हृदय से यहोवा की सेवा करते हैं—यहोवा के महान नाम के लिए एक प्रशंसा है। हम आनन्दित हैं कि संसार-भर में यहोवा के लोगोंकीकलीसियाओंमेंकईऐसेपरिवारपायेजातेहैं।
२ ज़ाहिर है, अपने परिवार की आत्मिक आवश्कताओं की चिन्ता करने का प्रथम उत्तरदयित्व पिता का है। (१ कुरि. ११:३) अपनी पत्नी और बच्चों के सहयोग के साथ, उनका परिवार दूसरों के ऊपर प्रबल प्रभाव कर सकता है। (मत्ती ५:१६) ऐसे कौनसे क्षेत्र हैं जहाँ यह सहयोग प्रकट किया जा सकता है?
माता-पिताएं अगुआई करो
३ अनेक अवसरों में, पिता एक प्राचीन या सेवकाई सेवक हो सकता है। इसका अर्थ है कि अपने परिवार के हितों के उपरांत, उनका कुछ समय और ध्यान कलीसिया के कार्यों को दिया जाना चाहिये। पिता का उत्तरदायित्व है कि वे ध्यान दें कि उपलब्ध समय का बटवारा ऐसे किया जाता है जिस से उनके परिवार की उपेक्षा नहीं होती। उनके सीमित समय पर दबावों को देखते हुए यह शायद इतना आसान नहीं होगा। परन्तु क्योंकि उनका परिवार उनका प्रथम उत्तरदायित्व है, उनको नियमित रीति से अपने बहुमूल्य समय में से कुछ समय अपने परिवार के साथ अध्ययन में, क्षेत्र सेवा में, सभाओं के लिए और उचित मनोरंजन में बिताने के लिए निकालना चाहिए। कभी-कभी परिस्थिति और अन्य उत्तरदायित्व पिता के कार्यक्रम को बदल सकता है, परन्तु यह कितना पारितोषिक है जब वे हर महीने अपने परिवार के सदस्यों के साथ क्षेत्र सेवा में समय व्यय कर सकता है!
४ पत्नी से सहयोग अत्यावश्यक है। बच्चों को सेवकाई में प्रशिक्षण देने में सहायता देकर वह अपने पति को एक अति महत्त्वपूर्ण रीति से सहयोग दे सकती है। उसका आदर्शनीय उत्साह और भक्ति, सेवकाई में उनका मूल्यांकन बढ़ाने के लिए बच्चों को प्रभावित करने में बहुत कुछ करेंगे।—२ तीमु. ३:१४, १५.
५ ऐसी परिस्थितियों के अनेक उत्तम उदाहरण हैं जहां एक, माता या पिता, ने उत्तरदायित्व का आत्मिक भोज अकेले उठाया है और सेवकाई में बच्चों को सफलतापूर्वक प्रशिक्षण दिया है। अपनी माता अथवा पिता के अत्युत्तम आदर्श के कारण अनेक युवा लोगों ने सत्य के पक्ष में दृढ़ निश्चय लिया है, यहां तक कि पूर्ण समय की सेवकाई को अपनाया है।
बच्चों का उत्तरदायित्व
६ बच्चों के उत्तरदायित्व के बारे में क्या? परमेश्वर का सिद्धपुत्र, यीशु भी, युवा बालक होते समय, अपने माता-पिता के मार्गदर्शन और प्रशिक्षण के आधीन था। (लूका २:५१) अतः, जब पिता और माता सेवकाई में परिवार के साथ समय व्यय करने की व्यवस्था करते हैं, तो बच्चों का कर्तव्य है कि वे अपने माता-पिता के साथ सहयोग करने के द्वारा अपनी परमेश्वरीय भक्ति को प्रकट करें।—इफि. ६:१-३.
७ परिवार के रूप में एक साथ उपासना करना—अध्ययन करना, क्षेत्र सेवकाई में भाग लेना, और सभाओं में उपस्थित रहना— परिवार के दायरे में प्रेम ओर एकता के बन्धनों को दृढ़ बना देती हैं। इस बात में दोनों माता-पिता और बच्चों के बीच उत्तरदायित्व बटां हुआ है।