वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी
वॉचटावर
ऑनलाइन लाइब्रेरी
हिंदी
  • बाइबल
  • प्रकाशन
  • सभाएँ
  • w98 9/15 पेज 28-31
  • बाइबल अनुवाद जिसने दुनिया बदल दी

इस भाग के लिए कोई वीडियो नहीं है।

माफ कीजिए, वीडियो डाउनलोड नहीं हो पा रहा है।

  • बाइबल अनुवाद जिसने दुनिया बदल दी
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1998
  • उपशीर्षक
  • मिलते-जुलते लेख
  • ईश्‍वर-प्रेरित अनुवाद?
  • येपेत शेम के तम्बुओं में?
  • यहूदी धर्म अपनानेवाले और ‘परमेश्‍वर का भय माननेवाले’
  • सेप्टुआजॆंट ने रास्ता तैयार करने में मदद दी
  • सेप्टुआजॆंट—अभी ‘ईश्‍वर-प्रेरित’ नहीं?
  • “सेप्टुआजेंट” के फायदे—कल भी और आज भी
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2002
  • बाइबल—अलग-अलग तरह की क्यों हैं?
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (जनता के लिए)—2017
  • यहोवा—ऐसा परमेश्‍वर जो हमसे बातचीत करता है
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2015
  • बाइबल हम तक कैसे पहुँची—भाग एक
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1997
और देखिए
प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1998
w98 9/15 पेज 28-31

बाइबल अनुवाद जिसने दुनिया बदल दी

जब परमेश्‍वर के भविष्यवक्‍ता मूसा ने, कुछ ३,५०० साल से भी पहले बाइबल लिखनी शुरू की, तब बस एक छोटी-सी जाति ही उसे पढ़ सकती थी। (व्यवस्थाविवरण ७:७) ऐसा इसलिए था क्योंकि उस समय शास्त्र बस उस जाति की मूल इब्रानी भाषा में उपलब्ध था। लेकिन, समय के साथ यह भी बदलनेवाला था।

सदियों के दौरान, बाइबल संदेश के फैलने और इसके द्वारा लोगों पर होनेवाले असर का मुख्य कारण था इसका पहला अनुवाद—सेप्टुआजॆंट। इसका अनुवाद क्यों किया गया? और क्या यह उचित रूप से कहा जा सकता है कि यह ऐसी बाइबल थी जिसने दुनिया बदल दी?

ईश्‍वर-प्रेरित अनुवाद?

सा.यु.पू. सातवीं व छठी सदियों के दौरान यहूदी लोग बाबुल में बंदी बनाकर ले जाए गए थे। इसके बाद अनेक यहूदी प्राचीन इस्राएल व यहूदा के देश के बाहर रह गए। बंदी स्थिति के दौरान पैदा होनेवाले यहूदियों के लिए इब्रानी दूसरी भाषा बन गयी। सा.यु.पू. तीसरी सदी तक, मिस्र के सिकंदरिया में एक यहूदी समाज था। सिकंदरिया यूनानी साम्राज्य का एक बड़ा सांस्कृतिक केंद्र था। उन यहूदियों ने पवित्र शास्त्र को यूनानी भाषा में अनुवाद करने के महत्त्व को समझा, क्योंकि उस समय यूनानी भाषा उनकी मातृभाषा थी।

उस समय तक, बाइबल का ईश्‍वर-प्रेरित संदेश इब्रानी भाषा में लिखा गया था और इसका कुछ भाग आरामी भाषा में लिखा गया था, जो इब्रानी भाषा से काफी मिलती-जुलती थी। परमेश्‍वर के वचन को दूसरी भाषा में अनुवाद करने से क्या इसका ईश्‍वर-प्रेरित शक्‍तिशाली असर घट जाएगा, जिसकी वज़ह से गलत अनुवाद भी हो जाता? क्या यहूदी जन, जिन्हें ईश्‍वर-प्रेरित वचन सौंपा गया था, अनुवाद करने के ज़रिए संदेश का अर्थ बदल देने के खतरे में खुद को डाल सकते थे?—भजन १४७:१९, २०; रोमियों ३:१, २.

ऐसी नाज़ुक बातों से दिल में डर पैदा होने लगा। लेकिन इन सब नाज़ुक बातों के बावजूद, इस चिंता की वज़ह से कि यहूदी जन परमेश्‍वर के वचन को अब और नहीं समझ पाएँगे यह फैसला किया गया कि तोराह—मूसा द्वारा लिखी गयी, बाइबल की पहली पाँच पुस्तकों—का यूनानी भाषा में अनुवाद किया जाएगा। असल में जिस तरीके से अनुवाद किया गया था, यह बात हम आज तक ठीक से नहीं जान पाएँ हैं। लॆट्टर ऑफ आरीस्टॆस के मुताबिक, मिस्री शासक टॉल्मी II (सा.यु.पू. २८५-२४६), अपने शाही पुस्तकालय के लिए यूनानी में अनुवादित पॆंटाटूक (या, तोराह) की एक प्रति चाहता था। उसने ७२ यहूदी विद्वानों को नियुक्‍त किया, जो इस्राएल से मिस्र आए और उन्होंने ७२ दिनों में अनुवाद पूरा कर दिया। इसके बाद इस अनुवाद को यहूदी समाज को पढ़कर सुनाया गया जिन्होंने कहा कि यह न केवल अच्छा है बल्कि सही-सही भी है। बाद में इस कहानी में और भी मिर्च-मसाला डालकर यह दावा किया गया कि हर अनुवादक को अलग-अलग कमरे में रखा गया था, फिर भी उनके अनुवाद एक जैसे थे। एक-एक अक्षर को भी देखा जाए तो भी उनके अनुवाद में कोई भिन्‍नता नहीं थी। उनका मानना था कि इसे ७२ अनुवादकों ने अनुवाद किया, इस वज़ह से इस यूनानी बाइबल अनुवाद का नाम पड़ा सेप्टुआजॆंट, जिसका लातिन भाषा में अर्थ है “सत्तर।”

आज के अधिकतर विद्वान सहमत हैं कि लॆट्टर ऑफ आरीस्टॆस प्रामाणिक लेखन नहीं है। वे यह भी मानते हैं कि अनुवाद करने की पहल टॉल्मी II से नहीं, बल्कि सिकंदरिया के यहूदी समाज के अगुवों से हुई। लेकिन, सिकंदरिया के फाइलो नामक यहूदी फिलॉसफर और जोसीफस नामक यहूदी इतिहासकार, साथ ही तालमुद, इन सब से यह पता चलता है कि पहली-सदी के यहूदियों में एक आम विश्‍वास था कि मूल शास्त्र की तरह ही सेप्टुआजॆंट भी ईश्‍वर-प्रेरित था। ऐसे विश्‍वास निःसंदेह सेप्टुआजॆंट को दुनिया भर के यहूदी समाज के लिए स्वीकारयोग्य बनाने के प्रयास में किए गए।

हालाँकि शुरूआत में केवल मूसा की पाँच पुस्तकों का ही अनुवाद किया गया था, नाम सेप्टुआजॆंट यूनानी भाषा में अनुवादित पूरे इब्रानी शास्त्र के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा। बाकी की पुस्तकों का अनुवाद अगले सौ या उससे ज़्यादा सालों में किया गया। मिलजुल कर किए गए प्रयास का परिणाम होने के बजाय, पूरे सेप्टुआजॆंट को कई सालों के दौरान कई भागों में पूरा किया गया। अनुवादकों की क्षमता व इब्रानी भाषा का ज्ञान भिन्‍न-भिन्‍न था। अधिकतर पुस्तकों के अनुवाद शाब्दिक थे, कभी-कभी तो हद से ज़्यादा, जबकि दूसरी पुस्तकों के अनुवाद ऐसे नहीं थे। कुछ-कुछ पुस्तकों के दो अनुवाद हैं—एक लंबी, दूसरी छोटी। सा.यु.पू. दूसरी सदी के अंत तक, इब्रानी शास्त्र की सभी पुस्तकें यूनानी भाषा में मिलने लगी। अनुवाद में ऐसी भिन्‍नता के बावजूद इब्रानी शास्त्र का यूनानी भाषा में अनुवाद किए जाने का असर अनुवादकों की उम्मीद से लाख गुना ज़्यादा था।

येपेत शेम के तम्बुओं में?

सेप्टुआजॆंट की चर्चा करते वक्‍त, तालमुद उत्पत्ति ९:२७ को उद्धृत करता है: “येपेत . . . शेम के तम्बुओं में बसे।” (मेगिल्लाह ९ख, बैबिलोनियन तालमुद) तालमुद लाक्षणिक रूप से सूचित करता है कि सेप्टुआजॆंट की यूनानी भाषा की खूबसूरती के ज़रिए, येपेत (यावान का पिता; यावान से यूनानियों का वंश उत्पन्‍न हुआ) शेम (इस्राएल जाति का पूर्वज) के तंबुओं में बसा। लेकिन, यह भी कहा जा सकता है कि सेप्टुआजॆंट के प्रभाव की वज़ह से, शेम येपेत के तंबुओं में बसा। वह कैसे?

सिकंदर महान ने कई देशों पर विजय पाई। इसके बाद, सा.यु.पू. चौथी सदी के आखिरी भाग में, कब्ज़ा किए हुए सारे देशों में यूनानी भाषा व संस्कृति फैलाने के लिए काफी प्रयास किया गया। इस पॉलिसी को हॆलॆन्‍नाईज़ेशन कहा गया। यहूदियों को ऐसा लगता था कि वे हमेशा यूनानी सांस्कृतिक दबाव में हैं। यदि यूनानी संस्कृति व फिलॉसॉफी प्रबल रहती, तब यहूदियों के धर्म का महत्त्व ही कम हो गया होता। कौन-सी बात इस दबाव को फैलने से रोक सकती थी?

सेप्टुआजॆंट का अनुवाद करने में यहूदियों की एक संभव नीयत के बारे में, यहूदी बाइबल अनुवादक मैक्स मार्गोलॆस टिप्पणी करता है: “यदि हम यह समझ लेते हैं कि यहूदी समाज ने इस अनुवाद के विचार को शुरू किया, तो एक और मंसूबा इसमें शामिल हो जाएगा। वह यह कि यहूदी व्यवस्था को अन्यजाति के लोगों तक पहुँचाना और दुनिया को इस बात से कायल कराना कि यहूदियों के पास ऐसी संस्कृति है जो हैलस [यूनान] की बुद्धि से कहीं बढ़कर है।” इसलिए यूनानी भाषा बोलनेवाले लोगों को इब्रानी शास्त्र उपलब्ध कराना, शायद आत्म-रक्षा व जवाबी हमले का एक रूप रहा होगा।

सिकंदर की हॆलॆन्‍नाईज़ेशन पॉलिसी ने यूनानी भाषा को दुनिया की अंतर्राष्ट्रीय भाषा बना दिया। जब रोमियों ने उसके राज्य पर कब्ज़ा कर लिया, तब भी आम (या, कीनी) यूनानी भाषा, जातियों के बीच धंधे व संचार की भाषा बनी रही। चाहे यह जानबूझकर किए गए प्रयास का परिणाम रहा हो या फिर स्वाभाविक रूप से विकसित हुआ हो, इब्रानी शास्त्र का सेप्टुआजॆंट वर्शन जल्द ही अनेक गैर-यहूदियों के घरों व दिलों तक जा पहुँचा। ये ऐसे गैर-यहूदी थे जो परमेश्‍वर से और यहूदियों की व्यवस्था से पहले वाकिफ न थे। नतीजे चौंका देनेवाले थे।

यहूदी धर्म अपनानेवाले और ‘परमेश्‍वर का भय माननेवाले’

सा.यु. पहली सदी तक, फाइलो लिख सका कि “मूसा के कानून की खूबसूरती व गरिमा का सम्मान न केवल यहूदी, बल्कि दूसरी सभी जातियाँ भी करती थीं।” पहली सदी में पलिश्‍तीन देश के बाहर रहनेवाले यहूदियों के बारे में, यहूदी इतिहासकार योसॆफ क्लाउस्नर कहता है: “यह विश्‍वास करना मुश्‍किल लगता है कि लाखों की तादाद में यहाँ आकर बसनेवाले ये सारे यहूदी केवल छोटे-से पलिश्‍तीन देश से ही आए थे। यह मानना ही पड़ेगा कि यहूदियों की इस बड़ी तादाद में काफी स्त्री-पुरुष ऐसे भी थे जो पूरी तरह से यहूदी धर्म को अपना चुके थे।”

लेकिन, ये प्रभावशाली मुद्दे पूरी कहानी नहीं बताते। यहूदी इतिहास का प्रॉफॆसर, लेखक शे जे. डी. कोहॆन कहता है: “सा.यु.पू. की अंतिम सदियों व सा.यु. की पहली दो सदियों के दौरान अनेक अन्यजाति स्त्री-पुरुषों ने यहूदी धर्म को अपना लिया। लेकिन, इससे भी बड़ी संख्या उन अन्यजाति लोगों की थी जिन्होंने यहूदी धर्म के कुछ-कुछ पहलुओं को तो अपना लिया लेकिन पूरी तरह से इस धर्म को नहीं अपनाया।” क्लाउस्नर व कोहॆन ने यहूदी धर्म को पूरी तरह से नहीं अपनानेवाले इन लोगों को ‘परमेश्‍वर का भय माननेवाले’ लोग कहा। यह अभिव्यक्‍ति उस समय के यूनानी साहित्य में अकसर इस्तेमाल की जाती थी।

धर्मांतरित व ‘परमेश्‍वर का भय माननेवाले’ के बीच क्या फरक है? धर्मांतरित लोग पूरी तरह से यहूदी धर्म को अपनानेवाले लोग थे जिन्हें हर मायने में यहूदी समझा जाता था क्योंकि उन्होंने (दूसरे सभी देवताओं को त्यागकर) इस्राएल के परमेश्‍वर को स्वीकार किया था, खतना करवा लिया था, और इस्राएल जाति के संग हो लिए थे। इसके उलट, ‘परमेश्‍वर का भय माननेवालों’ के बारे में कोहॆन कहता है: “हालाँकि अन्यजाति के ये लोग अनेक यहूदी रस्मों-रिवाज़ों का पालन करते थे और किसी-न-किसी रूप में यहूदियों के परमेश्‍वर को मानते थे, लेकिन वे अपने आपको यहूदी नहीं समझते थे ना ही दूसरे लोग उन्हें यहूदी समझते थे।” क्लाउस्नर उनका वर्णन करते हुए कहता है कि वे “मँझधार में खड़े” हैं क्योंकि उन्होंने कुछ हद तक यहूदी धर्म को तो अपनाया और “इसके कुछ दस्तूरों को तो माना, लेकिन . . . वे पूरी तरह से यहूदी नहीं बने।”

शायद कुछ लोगों की परमेश्‍वर में दिलचस्पी तब जगी होगी जब उनकी बातचीत मिशनरी कार्य में लगे हुए यहूदियों से हुई या फिर उन्होंने यह ध्यान से देखा होगा कि इन मिशनरियों का चालचलन, इनके रस्म व व्यवहार कितने अलग हैं। फिर भी, ‘परमेश्‍वर का भय माननेवाले’ इन लोगों को यहोवा परमेश्‍वर के बारे में सीखने में मदद करनेवाला मुख्य ज़रिया था सेप्टुआजॆंट। पहली सदी में इन ‘परमेश्‍वर के भय माननेवाले’ लोगों की सही संख्या जानने का कोई तरीका नहीं है। लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि सेप्टुआजॆंट ने पूरे रोमी साम्राज्य में परमेश्‍वर के बारे में थोड़ा-बहुत ज्ञान फैलाया। सेप्टुआजॆंट के ज़रिए महत्त्वपूर्ण नींव भी डाली जा रही थी।

सेप्टुआजॆंट ने रास्ता तैयार करने में मदद दी

मसीही संदेश फैलाने में सेप्टुआजॆंट मुख्य रूप से शामिल था। यूनानी भाषा बोलनेवाले अनेक यहूदी लोग सा.यु. ३३ के पिन्तेकुस्त की मसीही कलीसिया की स्थापना होते वक्‍त दूसरों के साथ मौजूद थे। उन लोगों में यहूदी धर्म अपनानेवाले लोग भी थे जो उस शुरूआती समय पर मसीह के शिष्य बने। (प्रेरितों २:५-११; ६:१-६; ८:२६-३८) चूँकि यीशु के प्रेरितों व दूसरे प्रारंभिक शिष्यों के ईश्‍वर-प्रेरित लेखनों को ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों तक पहुँचाने का इरादा था, सो इन्हें यूनानी भाषा में लिखा गया।a इसीलिए, मसीही यूनानी शास्त्र में पाए जानेवाले इब्रानी शास्त्र के अनेक उद्धरण, सेप्टुआजॆंट पर आधारित थे।

जन्मजात यहूदियों व यहूदी धर्म अपनानेवाले लोगों के अलावा दूसरे लोग भी राज्य संदेश स्वीकारने के लिए तैयार थे। अन्यजाति का कुरनेलियुस “भक्‍त था, और अपने सारे घराने समेत परमेश्‍वर से डरता था, और यहूदी लोगों को बहुत दान देता, और बराबर परमेश्‍वर से प्रार्थना करता था।” सा.यु. ३६ में, कुरनेलियुस, उसका परिवार व उसके घर में एकत्रित दूसरे लोग मसीह के अनुयायियों के तौर पर बपतिस्मा पानेवाले पहले अन्यजातीय लोग थे। (प्रेरितों १०:१, २, २४, ४४-४८. लूका ७:२-१० से तुलना कीजिए।) जब प्रेरित पौलुस पूरे एशिया माइनर व यूनान में सफर कर रहा था, तब उसने अन्यजाति के ऐसे अनेक लोगों को प्रचार किया, जो पहले ही परमेश्‍वर का भय मानते थे, साथ ही ऐसे ‘यूनानियों में से जो [परमेश्‍वर के] भक्‍त’ थे। (प्रेरितों १३:१६, २६, NHT; १७:४) कुरनेलियुस व दूसरे अन्यजाति के लोग सुसमाचार स्वीकारने के लिए तैयार क्यों थे? सेप्टुआजॆंट ने रास्ता तैयार करने में मदद की थी। एक विद्वान अनुमान लगाता है कि सेप्टुआजॆंट ने “इतनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी कि इसके बिना मसीहीजगत व पाश्‍चात्य संस्कृति, दोनों ही अस्तित्व में नहीं होते।”

सेप्टुआजॆंट—अभी ‘ईश्‍वर-प्रेरित’ नहीं?

सेप्टुआजॆंट का काफी इस्तेमाल हुआ, जिसकी वज़ह से अंततः यहूदियों में इसका उलट परिणाम हुआ। मसलन, मसीहियों के साथ चर्चा करते वक्‍त, यहूदियों ने दावा किया कि सेप्टुआजॆंट का अनुवाद सही-सही नहीं हुआ है। सा.यु. दूसरी सदी तक, यहूदी समाज ने उसी अनुवाद से पूरी तरह मुँह फेर लिया जिसे इन्होंने कभी ईश्‍वर-प्रेरित समझा था। रब्बियों ने ७२ अनुवादकों की कल्पकथा को ठुकराया और यह कहा: “ऐसा एक दफे हुआ कि पाँच प्राचीनों ने राजा टॉल्मी के लिए यूनानी भाषा में तोराह का अनुवाद किया, और वह दिन इस्राएल के लिए उसी तरह काला दिन साबित हुआ, जिस तरह सोने का बछड़ा बनानेवाला दिन था, क्योंकि तोराह का सही-सही अनुवाद नहीं किया जा सका था।” इस बात को निश्‍चित करने के लिए कि रब्बियों के नज़रिए का सख्त रूप से पालन हो, उन्होंने यूनानी भाषा में एक नया अनुवाद निकाला। इसका अनुवाद दूसरी सदी में एक्विला नाम के यहूदी धर्म अपनानेवाले व्यक्‍ति ने किया। वह रब्बी आकीवा का शिष्य था।

यहूदियों ने सेप्टुआजॆंट को इस्तेमाल करना बंद कर दिया, लेकिन जब तक कि जेरोम के लैटिन वलगेट ने आकर इसे हटा न दिया, तब तक यह उभर रहे कैथोलिक चर्च का मानक “पुराना नियम” बाइबल बन गया। हालाँकि कोई भी अनुवाद मूल पुस्तक की जगह कभी-भी नहीं ले सकता, फिर भी, यहोवा परमेश्‍वर व यीशु मसीह के ज़रिए उसके राज्य के बारे में ज्ञान फैलाने में सेप्टुआजॆंट ने एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। वाकई, सेप्टुआजॆंट ऐसा बाइबल अनुवाद है जिसने दुनिया बदल दी!

[फुटनोट]

a मत्ती की सुसमाचार-पुस्तक को शायद पहले इब्रानी में लिखा गया था, और बाद में यूनानी भाषा में इसका अनुवाद किया गया।

[पेज 31 पर तसवीर]

पौलुस ने जिन लोगों को प्रचार किया, वे लोग “सेप्टुआजॆंट” को समझ सके

[पेज 29 पर तसवीर]

Courtesy of Israel Antiquities Authority

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
    लॉग-आउट
    लॉग-इन
    • हिंदी
    • दूसरों को भेजें
    • पसंदीदा सेटिंग्स
    • Copyright © 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
    • इस्तेमाल की शर्तें
    • गोपनीयता नीति
    • गोपनीयता सेटिंग्स
    • JW.ORG
    • लॉग-इन
    दूसरों को भेजें