यहोवा मेरी चट्टान रहा है
इमानवील लीओनूदॉकीस की ज़ुबानी
मेरी मम्मी ने मुझसे गुस्से में कहा: “अगर तुमने अपने ही रास्ते से जीने की सोच ली है तो फिर तुम्हारे लिए इस घर में कोई जगह नहीं है।” मगर मैं परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाने का फैसला कर चुका था। इस वज़ह से मुझे बार-बार गिरफ्तार किया जाता था। यह बेइज़्ज़ती मेरे परिवार से सहन नहीं होती थी।
मेरे पापा-मम्मी बहुत नम्र स्वभाव के थे और परमेश्वर के लिए बहुत श्रद्धा रखते थे। वे ग्रीस द्वीप, क्रीट के पश्चिम में, डूलीआनॉ गाँव में रहते थे, और वहीं सन् १९०८ में मेरा जन्म हुआ। बचपन से ही उन्होंने मुझे परमेश्वर से डरना और उसकी इज़्ज़त करना सिखाया था। मुझे परमेश्वर के वचन से गहरा लगाव था, लेकिन मैंने कभी-भी अपने अध्यापकों या ग्रीक ऑर्थोडॉक्स चर्च के पादरियों के हाथों में बाइबल नहीं देखी थी।
हमारा एक पड़ोसी था। उसने स्टडीज़ इन द स्क्रिपचर्स नामक किताब के छ: खंड पढ़े, जो सी. टी. रसल ने लिखे थे, साथ-ही उसने द हार्प ऑफ गॉड नामक किताब भी पढ़ी थी। उन्हें पढ़कर उसमें इतना जोश आया कि उसने इन किताबों से मुझे भी बाइबल की सच्चाइयाँ सिखानी शुरू कीं। मैंने जो कुछ सीखा उससे मेरी आँखें खुल गईं। उन किताबों को बाइबल विद्यार्थियों ने प्रकाशित किया था। पहले यहोवा के साक्षी बाइबल विद्यार्थी ही कहलाते थे। मुझे बहुत खुशी हुई और मैंने एथेंस के वॉच टावर सोसाइटी के ऑफिस से एक बाइबल और कुछ किताबें हासिल कीं। मुझे आज भी याद है कि मैं और मेरा वह पड़ोसी दोनों, मोमबत्ती की रोशनी में देर रात तक उन किताबों को बड़े ध्यान से पढ़ते, और उनमें दी गई बाइबल की बेहतरीन सच्चाइयों को सीखते, और यहोवा से प्रार्थना करते।
उस वक्त मेरी उम्र २० साल थी और मैं पास के एक गाँव में स्कूल टीचर की नौकरी करता था, और बाइबल से मैंने जो नई-नई सच्चाइयाँ सीखी थीं वे मैं दूसरों को भी बताने लगा। थोड़े ही दिनों बाद हमारे साथ दो और लोग डूलीआनॉ में नियमित रूप से बाइबल स्टडी के लिए मीटिंग करने लगे। हम यह चाहते थे कि दूसरे लोग भी समझ पाएँ कि मानवजाति की खुशहाली के लिए सिर्फ एक ही आशा है, और वह है परमेश्वर का राज्य। इसलिए हम उन्हें ट्रैक्ट, बुकलेट, किताबें और बाइबलें पढ़ने के लिए देते थे।
सन् १९३१ में जब दुनिया भर में परमेश्वर के लोगों ने बाइबल के मुताबिक, यहोवा के साक्षी नाम अपनाया, तब उनमें हम भी शामिल थे। (यशायाह ४३:१०) उसके अगले साल, अधिकारियों को अपने इस नए नाम और इसका मतलब समझाने के लिए हमने एक अभियान में हिस्सा लिया। इस अभियान में हमें अपने इलाके के सभी पादरियों, जजों, पुलिस अफसरों, और व्यापारियों को एक खास बुकलेट देनी थी।
जो हम सोच रहे थे वही हुआ, पादरियों के भड़काने से हम पर सताहट शुरू हो गई। मुझे गिरफ्तार कर लिया गया और पहली बार मुझे २० दिन की कैद की सज़ा दी गई। मैं कैद से छूटा ही था कि फिर से मुझे गिरफ्तार कर लिया गया और इस बार मुझे एक महीने तक जेल में रखा गया। एक जज ने हमें धमकी देकर प्रचार बंद करने के लिए कहा तो हमने प्रेरितों ५:२९ के शब्दों में जवाब दिया कि “मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना ही कर्तव्य कर्म है।” इसके बाद सन् १९३२ में वॉच टावर संस्था का प्रतिनिधि डूलीआनॉ में हमारे छोटे-से ग्रुप से मिलने आया और तब हम चारों ने बपतिस्मा ले लिया।
आध्यात्मिक परिवार मिला
मैं ज़्यादा-से-ज़्यादा प्रचार का काम करना चाहता था इसलिए मैंने अपनी टीचर की नौकरी से इस्तीफा दे दिया। ऐसा काम मेरी मम्मी की बरदाश्त से बाहर था। और उन्होंने मुझसे घर छोड़कर चले जाने के लिए कह दिया। एथेंस के वॉच टावर ब्रांच ऑफिस से मंज़ूरी पाकर क्रीट के इराक्लीअन शहर का एक उदार मसीही भाई मुझे अपने घर में ठहराने के लिए खुशी-खुशी राज़ी हो गया। सो, अगस्त १९३३ में मेरे गाँव के मसीही भाई और रुचि रखनेवाले कुछ लोग मुझे रुखसत करने बस डिपो तक आए। जुदाई के उन पलों में हमारा दिल बैठा जा रहा था, हमारी आँखों से आँसू बहते जा रहे थे क्योंकि हम नहीं जानते थे कि कभी हमारी मुलाकात दोबारा होगी भी या नहीं।
इराक्लीअन में प्यारे-से आध्यात्मिक परिवार का मैं भी एक सदस्य बन गया था। उस जगह तीन और मसीही भाई और एक बहन थी। उनके साथ हम नियमित रूप से अध्ययन करने और उपासना करने के लिए मिलते थे। मैं खुद अपनी आँखों से यीशु के इस वादे को पूरा होते देख रहा था: ‘ऐसा कोई नहीं, जिस ने मेरे और सुसमाचार के लिये घर या भाइयों या बहिनों या माता या पिता या लड़के-बालों या खेतों को छोड़ दिया हो। और अब इस समय सौ गुणा न पाए, घर और भाई और बहिनें और माताएं।’ (मरकुस १०:२९, ३०) मुझे शहर के साथ-साथ आस-पास के गाँवों में जाकर प्रचार करने के लिए कहा गया था। शहर में प्रचार खत्म करने के बाद मैं इराक्लीअन और लसीथीऑन के ज़िलों में प्रचार करने लगा।
अकेला पायनियर
एक गाँव से दूसरे गाँव पहुँचने के लिए मुझे घंटों पैदल चलना पड़ता था। इसके अलावा, नियमित रूप से प्रकाशन न पहुँचने के कारण मुझे बहुत-सी किताबें साथ ढोनी पड़ती थीं। मेरे पास सोने के लिए कोई जगह नहीं थी, इसलिए मैं गाँव के कॉफी हाऊस में चला जाता था और आखिरी ग्राहक के जाने तक इंतज़ार करता रहता था। तब तक अकसर आधी रात हो जाती थी, फिर में एक बैंच पर सो जाता था। सुबह बहुत जल्दी उठ जाता था ताकि दुकानदार के ग्राहकों को बैठने की जगह मिल सके। जिन बैंचों पर मैं सोता था उनमें खटमलों की कोई कमी नहीं थी।
जिन्हें मैं प्रचार करता था उनमें से ज़्यादातर लोग बेरूखे थे और बिलकुल भी रुचि नहीं लेते थे, मगर मैं इस बात से खुश था कि मैं अपनी जवानी यहोवा की सेवा में लगा रहा था। फिर मुझे एक ऐसा आदमी मिला जिसे बाइबल-सच्चाई पसंद आई और इससे मुझे बहुत हिम्मत मिली कि जीवन बचाने के काम को मैं करता रहूँ। अपने आध्यात्मिक भाई-बहनों से मुलाकात करने से भी मुझे बहुत ताज़गी मिलती थी। मैं करीब २० से ५० दिनों के बाद ही भाई-बहनों से मिल पाता था। अगर मैं इराक्लीअन शहर से बहुत दूर प्रचार कर रहा होता तो भाई-बहनों से मुलाकात बहुत दिनों बाद हो पाती थी। मगर कहीं नज़दीक होता तो जल्द मिल पाता था।
आज भी मुझे वो दोपहर अच्छी तरह याद है जब मुझे बहुत अकेलापन महसूस हो रहा था। यह सोचकर मैं और भी उदास हो गया कि मैं यहाँ अकेला हूँ और वहाँ इराक्लीअन में आज शाम मेरे मसीही भाई-बहन मीटिंग के लिए जमा होंगे। उनसे मिलने की मेरे अंदर इतनी गहरी इच्छा पैदा हुई कि मैंने करीब २५ किलोमीटर की दूरी पैदल तय करने की ठान ली। इतना तेज़ मैं पहले कभी नहीं चला था। उस शाम मैं भाई-बहनों से मिलकर बहुत खुश हुआ और आध्यात्मिक रूप से भी मानो मैंने दोबारा शक्ति पाई!
प्रचार काम में अपनी कड़ी मेहनत का आखिर मुझे फल मिलने लगा। जैसे प्रेरितों के दिनों में यहोवा ने आशिष दी थी वैसे ही ‘जो उद्धार पाते थे उनको यहोवा हममें मिला देता था।’ (प्रेरितों २:४७) क्रीट में यहोवा के उपासकों की संख्या अब बढ़ने लगी थी। और दूसरे भी मेरे साथ प्रचार में जाने लगे थे जिससे अब मुझे बिल्कुल भी अकेलापन महसूस नहीं होता था। हमने तकलीफों के साथ-साथ भारी विरोध का भी सामना किया। हमारे खाने में हर-रोज़ ब्रॆड के साथ कभी अंडे, जैतून या सब्ज़ियाँ, और फल होते थे, जिन्हें हम रुचि दिखानेवालों से किताबों के बदले में ले लेते थे।
क्रीट के दक्षिण-पूर्वी भाग में, ईरॉपॆटरॉ नगर में, मैंने मीनोस कोकीनाकीस को प्रचार किया, वह एक कपड़ा-व्यापारी था। उसके साथ बाइबल स्टडी शुरू करने में मुझे बहुत मेहनत करनी पड़ी क्योंकि अपने धंधे में वह इतना फँसा हुआ था कि उसे बहुत कम समय मिलता था। आखिरकार जब उसने यह निर्णय लिया कि आगे से वह गंभीरता से बाइबल सीखेगा तब से उसने अपने अंदर बहुत-से बड़े-बड़े परिवर्तन किए। और वह सुसमाचार का एक जोशीला प्रचारक बन गया। कोकीनाकीस के यहाँ एक १८ साल का लड़का, इमानवील पॆटरकीस काम करता था। कोकीनॉकीस में आया बदलाव देखकर वह दंग रह गया और उसने भी पढ़ने के लिए बाइबल-प्रकाशन माँगे। उसकी आध्यात्मिक तरक्की से मुझे बहुत खुशी हुई, और बाद में वह एक मिशनरी बन गया!a
इस दौरान मेरे गाँव की कलीसिया में भी बढ़ौतरी हुई और अब उसमें १४ प्रचारक हो गए थे। वह दिन मैं कभी नहीं भूलूँगा जिस रोज़ मुझे अपनी सगी बहन डॆसपीनॉ का खत मिला था। उसमें लिखा था कि उसने और पापा-मम्मी ने भी सच्चाई को अपना लिया है और अब वे यहोवा के बपतिस्मा प्राप्त उपासक बन गए हैं!
सताहट और देश-निकाला
ग्रीक ऑर्थोडॉक्स चर्च, हमारे प्रचार-कार्य को ऐसी नज़र से देखता था जैसे विनाशकारी टिड्डियाँ कोई विपत्ति ले आई हों, इसलिए वे हमारा नामो-निशान मिटा देना चाहते थे। मार्च १९३८ में मुझे पब्लिक प्रोसीक्यूटर के सामने हाज़िर किया गया जहाँ उसने यह माँग की कि मैं उस इलाके को छोड़कर तुरंत चला जाऊँ। मैंने उसे बताया कि हमारा प्रचार का काम लोगों के लिए फायदेमंद है और हमें यह काम करने का हुक्म हमारे राजा, यीशु मसीह ने दिया है जो उनसे भी बड़ा अधिकार रखता है।—मत्ती २८:१९, २०; प्रेरितों १:८.
अगले दिन पूछताछ के लिए मुझे पुलिस-स्टेशन बुलाया गया। वहाँ मुझसे कहा गया कि तुम लोगों के लिए खतरा बन चुके हो, और तुम्हें एक साल देश-निकाला देकर अमॉरगस के आइजीअन द्वीप भेजा जा रहा है। कुछ दिन बाद मुझे हथकड़ी लगाकर, बोट में बिठाकर उस द्वीप पर ले जाया गया। अमॉरगस में मेरे सिवा कोई दूसरा यहोवा का साक्षी नहीं था। आप मेरी हैरानी का अंदाज़ा लगा सकते हैं कि छ: महीने बीतने पर एक दिन मुझे पता चला कि एक और साक्षी, जिसे देश-निकाले की सज़ा दी गई है इसी द्वीप पर आनेवाला है! वह कौन हो सकता था? मीनोस कोकीनाकीस, जिसने क्रीट में मैंने बाइबल अध्ययन कराया था। मुझे एक आध्यात्मिक साथी मिल जाने की कितनी खुशी हुई थी! कुछ समय बीतने पर मुझे यह अवसर मिला कि उसे अमॉरगस के समुद्रतट पर बपतिस्मा दूँ।b
जब मैं वापस क्रीट पहुँचा तो मुझे दुबारा गिरफ्तार कर लिया गया और इस बार छ: महीने के देश-निकाले के लिए इसी द्वीप पर नीएपलिस के छोटे-से नगर में भेज दिया। छ: महीने की सज़ा खत्म करने के बाद, मुझे फिर से गिरफ्तार कर लिया गया, दस दिन मुझे कैद में रखा गया, फिर देश-निकाला देकर चार महीने तक उस द्वीप पर भेज दिया जहाँ कम्युनिस्टों को भेजा जाता था। मैंने महसूस किया कि प्रेरित पौलुस के वे शब्द कितने सच्चे थे: “जितने मसीह यीशु में भक्ति के साथ जीवन बिताना चाहते हैं वे सब सताए जाएंगे।”—२ तीमुथियुस ३:१२.
विरोध के बावजूद बढ़ोतरी
सन् १९४०-४४ के दौरान ग्रीस पर जर्मनी का कब्ज़ा हो गया जिसकी वजह से हमारा प्रचार-कार्य लगभग बंद हो गया था। मगर जल्द ही ग्रीस में यहोवा के लोगों को फिर से संगठित किया गया और हमने फिर से प्रचार-कार्य करना शुरू कर दिया। बरबाद हुए समय को पूरा करने के लिए हम ज़्यादा जोश से और नियमित रूप से राज्य का प्रचार करने में जुट गए।
हमने जो सोचा था वही हुआ, धर्मों की ओर विरोध फिर से भड़क उठा। ग्रीक आर्थोडाक्स चर्च के पादरी अकसर कानून को अपने हाथों में लेकर अपनी मन-मर्ज़ी करते थे। एक गाँव में पादरी ने भीड़ को हमारे खिलाफ भड़का दिया। और खुद पादरी ने मेरी पिटाई की, साथ ही उसके बेटे ने भी मुझे पीछे से पीटा। बचने के लिए मैं जल्दी से भागकर पास के एक घर में घुस गया, मगर मेरे साथी को लोग घसीटते हुए गाँव के चौराहे तक ले गए। वहाँ उन्होंने उसके प्रकाशनों को फाड़ डाला, और वहाँ बॉलकनी से एक औरत चीख-चीखकर कह रही थी, “मार डालो इसे!” आखिरकार एक डॉक्टर, और पुलिसवाला जो वहाँ से गुज़र रहा था हमारी मदद के लिए आए।
सन् १९५२ में, मुझे फिर से गिरफ्तार किया गया, और चार महीने के लिए देश-निकाले की सज़ा मैंने क्रीट के केसटॆली किसमॉस में काटी। छूटने के एकदम बाद, मुझे कलीसियाओं में जाकर उन्हें आध्यात्मिक रूप से मज़बूत करने की ट्रेनिंग दी गई। दो साल तक इस तरह ट्रॆवलिंग का काम करने के बाद मैंने एक वफादार मसीही बहन से शादी कर ली। उसका नाम भी मेरी सगी बहन की तरह डॆसपीनॉ था। मेरी पत्नी आज भी यहोवा की उपासना वफादारी से कर रही है। शादी के बाद मुझे स्पैशल पायनियर बनाकर क्रीट में हॉनीऑ नगर भेज दिया गया, जहाँ मैं आज तक सेवा कर रहा हूँ।
मैंने लगभग ७० साल तक पूरे समय प्रचार का काम किया है। इस दौरान मैंने क्रीट द्वीप के अधिकतर भाग में प्रचार किया है, जो कि ८,३०० वर्ग किलोमीटर चौड़ा और २५० किलोमीटर लंबा है। मुझे सबसे ज़्यादा खुशी इस बात से होती है कि सन् १९३० में राज्य का प्रचार करनेवाले उन मुठ्ठी-भर साक्षियों की संख्या आज बढ़कर १,१०० से ज़्यादा हो गई है और ये पूरे जोश से परमेश्वर के राज्य का ऐलान कर रहे हैं। मैं यहोवा का धन्यवाद करता हूँ कि उसने मुझे यह मौका दिया कि मैं इनमें से बहुत-से लोगों को बाइबल से सही ज्ञान पाने में और भविष्य के लिए अद्भुत आशा पाने में मदद कर सकूँ।
यहोवा मेरा “छुड़ानेवाला है”
अनुभव से मैंने यही सीखा है कि सच्चे परमेश्वर के बारे में लोगों को सिखाने के लिए धीरज और सहन-शक्ति की ज़रूरत होती है। यहोवा इन ज़रूरी गुणों को पैदा करने में हमारी मदद करता है। मैंने ६७ साल पूरे समय की सेवकाई के दौरान प्रेरित पौलुस के इन शब्दों पर बार-बार गहराई से विचार किया है: “हर बात से परमेश्वर के सेवकों की नाईं अपने सद्गुणों को प्रगट करते हैं, बड़े धैर्य से, क्लेशों से, दरिद्रता से, संकटों से। कोड़े खाने से, कैद होने से, हुल्लड़ों से, परिश्रम से, जागते रहने से, उपवास करने से।” (२ कुरिन्थियों ६:४, ५) खासकर मेरी सेवकाई की शुरूआत के सालों में मुझे पैसों की बहुत तंगी थी। लेकिन यहोवा ने मुझे और मेरे परिवार को कभी नहीं छोड़ा। उसने लगातार यह साबित किया है कि वह बहुत बड़ा मददगार है। (इब्रानियों १३:५, ६) हमने हमेशा अनुभव किया कि अपनी भेड़ों को इकट्ठा करने में साथ ही हमारी ज़रूरतें पूरी करने में हमेशा उसका हाथ रहा है।
जब मैं बीते समय के बारे में सोचता हूँ, तो देखता हूँ कि आध्यात्मिक रूप से जो रेगिस्तान था अब उसमें बहार आ गई है, मुझे पूरा विश्वास है कि मेरी मेहनत बेकार नहीं गई। मैंने अपनी जवानी को सबसे अच्छे तरीके से बिताया है। पूरे समय की सेवकाई में मेरा काम किसी भी और पेशे से ज़्यादा फायदेमंद रहा है। अब मेरी उम्र ढल गई है, और मैं जवान लोगों को पूरे दिल से प्रोत्साहित करता हूँ कि वे ‘अपनी जवानी के दिनों में अपने सृजनहार को स्मरण रखें।’—सभोपदेशक १२:१.
अब ९१ साल का होने के बावजूद मैं हर महीने प्रचार-कार्य में १२० घंटे बिताता हूँ। हर रोज़ मैं ७:३० बजे उठता हूँ, उसके बाद सड़क पर, दुकानों पर या बगीचों में लोगों को प्रचार करता हूँ। हर महीने मैं करीब १५० पत्रिकाएँ लोगों को देता हूँ। आज, कम सुनने और याददाश्त कमज़ोर होने की वज़ह से मुझे थोड़ी मुश्किल ज़रूर होती है, मगर मेरे प्यारे आध्यात्मिक भाई-बहन जो कि मेरा एक बड़ा आध्यात्मिक परिवार है और साथ ही मेरी दो बेटियों के परिवारों से भी मुझे बड़ी मदद मिलती है।
सबसे बड़ी बात, मैंने यही सीखी है कि यहोवा पर भरोसा रखना चाहिए। हमेशा वह “मेरी चट्टान, और मेरा गढ़ और मेरा छुड़ानेवाला” साबित हुआ है।—भजन १८:२.
[फुटनोट]
a इमानवील पॆटरकीस की कहानी के लिए नवंबर १, १९९६ के प्रहरीदुर्ग, पेज २२-७ देखिए।
b मीनोस कोकीनाकीस से संबंधित कानूनी जीत के बारे में पढ़ने के लिए सितंबर १, १९९३ की प्रहरीदुर्ग, (अंग्रेज़ी) पेज २७-३१ देखिए। जनवरी १९९९ में मीनोस कोकीनाकीस की मौत हो गयी।
[पेज 26, 27 पर तसवीरें]
नीचे: अपनी पत्नी के साथ; बाएँ: सन् १९२७ में; सामनेवाले पेज पर: सन् १९३९ में देश-निकाले से लौटने के बाद, एक्रोपोलिस में मीनोस कोकीनाकीस (बाएँ) और एक अन्य साक्षी के साथ