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  • आपकी ज़िंदगी का मकसद क्या है?
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w07 12/1 पेज 3-4

आपकी ज़िंदगी का मकसद क्या है?

केनी एक बहुत बड़ी कंपनी में काम करता था। यह कंपनी ज़मीन-जायदाद, शेयर वगैरह की खरीद-फरोख्त करती है। केनी दामी विलायती गाड़ी में घूमा करता था और एक बड़े शहर के रईस इलाके में उसका अपना एक आलीशान मकान था। इसके अलावा, वह हवाई जहाज़ से गोता लगाने में माहिर था। उसे तब बड़ा मज़ा आता, जब ज़मीन से हज़ारों फुट की ऊँचाई से गोता लगाने में उसके तन-बदन में सिहरन दौड़ जाती। आप शायद सोचें, वाह! क्या ज़िंदगी है। मगर क्या केनी इस ज़िंदगी से खुश था? द वॉल स्ट्रीट जर्नल अखबार के मुताबिक, उसने कहा: “मैं 45 साल का हो चुका हूँ, फिर भी मुझे अपना भविष्य अंधकार-भरा नज़र आता है। . . . मेरी ज़िंदगी की न तो कोई राह है, ना कोई मंज़िल।”

ऐलन, आइस स्केटिंग की दुनिया में अपना नाम रोशन करना चाहती थी। इसके लिए उसने दिन-रात एक कर दिया। आखिरकार उसे अपनी मंज़िल मिल गयी। उसे वह नाम और शोहरत मिली जिसके वह सपने देखा करती थी। मगर फिर भी उसने अपना दुखड़ा रोते हुए कहा: “इस कामयाबी से मुझे जो सारी खुशियाँ मिलनी चाहिए थीं, वे मुझे नहीं मिलीं। तनहाई तो जैसे मुझे काटने को दौड़ती थी। मुझे मालूम है कि बुढ़ापा

एक-न-एक-दिन तो मुझ पर अपना कहर ढाएगा ही। और भले ही मेरे पास पैसों की कोई कमी न हो, लेकिन अगर इसी का नाम ज़िंदगी है, तो लानत है ऐसी ज़िंदगी पर।”

हीडेओ अपनी चित्रकारी में रंगों की छटा बिखेरने के लिए काफी मशहूर था। उसने अपनी पूरी ज़िंदगी चित्रकारी करने में ही लगा दी थी। मगर वह अपने चित्रों को बेचता नहीं था, क्योंकि उसे लगता था कि ऐसा करना उसकी कला का अपमान करना होगा। अपनी ज़िंदगी के आखिरी दौर में, जब वह 98 साल का था, तब उसने अपने ज़्यादातर चित्र एक म्यूज़ियम को दान कर दिए। हीडेओ ने भले ही अपनी पूरी ज़िंदगी चित्रकारी करने में बिता दी, फिर भी वह ज़िंदगी से खुश नहीं था। क्योंकि वह जानता था कि वह अपने जीते-जी कभी इस कला में पूरी तरह से महारत हासिल नहीं कर पाएगा।

कुछ लोग दूसरों की मदद करने में अपना वक्‍त, पैसा, ताकत सबकुछ लगा देते हैं। अमरीका की फिल्म इंडस्ट्री, हॉलीवुड के एक प्रशासक की ही मिसाल लीजिए। वह वहाँ की एक बहुत बड़ी फिल्म कंपनी में वाइस-प्रेसिडेंट था। ऐसे में, बड़े-बड़े सितारों के साथ उसका उठना-बैठना होता था। और-तो-और वह एक आलीशान बँगले में रहता था। एक दफा, वह छुट्टियाँ मनाने के लिए कम्बोडिया गया हुआ था। वहाँ ‘नाम पेन’ शहर के एक रेस्तराँ में खाना खाते वक्‍त एक लड़की उसके पास आयी और भीख माँगने लगी। उसने उसे एक डॉलर (45 रुपए) दिया और एक कोल्ड-ड्रिंक पिलाया। लड़की खुश होकर वहाँ से चली गयी। मगर अगले ही दिन, शाम को वह वहाँ फिर भीख माँगते नज़र आयी। उसे देखकर इस आदमी को एहसास हुआ कि गरीबों को सिर्फ थोड़े-से पैसे दे देना फायदेमंद नहीं, बल्कि उन्हें और भी कुछ मदद देने की ज़रूरत है।

एक साल बाद, इस प्रशासक ने अपना पेशा बदलने का फैसला किया। उसने तय किया कि वह फिल्म इंडस्ट्री छोड़कर कम्बोडिया में गरीबों की मदद करेगा। उसने एक स्कूल शुरू किया जो इन गरीबों के रहने, खाने और पढ़ने-लिखने की ज़रूरतें पूरी करता था। इसके बावजूद वह अपने मन में उठनेवाली अलग-अलग भावनाओं से लगातार जूझता रहा। कभी-कभी उसे खुशी होती थी कि वह गरीबों की मदद कर रहा है, मगर दिन-ब-दिन बढ़ती समस्याओं से जूझते-जूझते कभी-कभी वह नाउम्मीद और निराश हो जाता था।

अभी-अभी हमने जिन चार लोगों की बात की, उन्हें लगा जैसे वे जानते हैं कि उन्हें ज़िंदगी में क्या हासिल करना है। मगर कड़ी मेहनत करने के बाद, जब उन्हें आखिरकार अपना लक्ष्य मिल गया, तब भी वे खुश नहीं थे। आपके बारे में क्या? आपकी ज़िंदगी का मकसद क्या है? आप अपनी ज़िंदगी में किस बात को पहली जगह देते हैं? क्या आपको पूरा यकीन है कि आज आप जैसी ज़िंदगी जी रहे हैं, उसका आगे चलकर आपको कोई गिला नहीं होगा? (w07 11/15)

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