कम्बोडिया में ज़िंदगी और मौत का मेरा लंबा सफर
वॉथना मीअस की ज़बानी
वर्ष था १९७४, और मैं कम्बोडिया में कमर रूज़ से लड़ रहा था। मैं कम्बोडिया की सेना में अफसर था। एक लड़ाई में हमने कमर रूज़ के एक सैनिक को पकड़ लिया। उसने मुझे भविष्य के लिए पोल पॉa की योजनाओं के बारे में जो बताया उससे मेरा जीवन बदल गया और मैं शाब्दिक और आध्यात्मिक अर्थ में एक लंबे सफर पर चल पड़ा।
लेकिन मुझे अपने सफर की शुरूआत से बताने की अनुमति दीजिए। मेरा जन्म १९४५ में पनॉम पॆन में हुआ, जो कमर भाषा में कम्पूचिया (कम्बोडिया) कहलाता है। आगे चलकर मेरी माँ गुप्त पुलिस विभाग में बड़े ओहदे पर पहुँच गयीं। वह देश के शासक, राजकुमार नॉराडम सीहानूक की खास एजॆंट थीं। क्योंकि उनके पास मेरा अभिरक्षा अधिकार था और उनकी दिनचर्या बहुत व्यस्त थी तो उन्होंने मुझे शिक्षा लेने के लिए एक बौद्ध मंदिर में छोड़ना सही समझा।
मेरी बौद्ध पृष्ठभूमि
जब मैं प्रमुख बौद्ध भिक्षु के पास रहने गया तब मैं आठ साल का था। उस साल से १९६९ तक, मैं अपना समय मंदिर और घर के बीच गुज़ारता रहा। मैंने चून नैट भिक्षु की सेवा की। वह उस समय कम्बोडिया में सर्वोच्च बौद्ध अधिकारी था। कुछ समय तक मैंने उसके सचिव के रूप में काम किया और एक प्राचीन भारतीय भाषा से कम्बोडियाई भाषा में बौद्ध धर्म पुस्तक “त्रिपिटक” का अनुवाद करने में उसकी मदद की।
मुझे १९६४ में भिक्षु बनाया गया और मैंने १९६९ तक उसी हैसियत से सेवा की। इस समय के दौरान कई प्रश्न मुझे परेशान करते रहे, जैसे कि संसार में इतना दुःख क्यों है और यह शुरू कैसे हुआ? मैंने देखा कि लोग अपने ईश्वरों को प्रसन्न करने के लिए तरह-तरह के तरीके आज़माते हैं, लेकिन वे नहीं जानते कि उनके ईश्वर उनकी समस्याओं को कैसे हल कर पाएँगे। न तो मुझे और न ही दूसरे भिक्षुओं को बौद्ध लेखों में कोई संतोषदायी उत्तर मिला। मैं इतना हताश हो गया कि मैंने मंदिर छोड़ने का फैसला किया और भिक्षु पद त्याग दिया।
अंततः, १९७१ में मैं कम्बोडिया की सेना में भरती हो गया। मुझे १९७१ में वियतनाम भेजा गया और मेरी शैक्षिक पृष्ठभूमि के कारण मेरी पदोन्नति करके मुझे अफसर बना दिया गया और खास (गुरिल्ला) सेना में नियुक्त किया गया। हम साम्यवादी कमर रूज़ और वियतकांग सेना के विरुद्ध लड़ रहे थे।
युद्ध और कम्बोडिया में बदलाव
मैं पत्थर-दिल सेनानी बन गया। मैं मानो हर दिन मौत देखने का आदी हो गया। व्यक्तिगत रूप से मैंने १५७ लड़ाइयों में हिस्सा लिया। एक बार, घने जंगल में कमर रूज़ ने हमें एक महीने से भी ऊपर घेर रखा था। ७०० से अधिक आदमी मारे गये। हमारे करीब १५ आदमी ज़िंदा बचे थे—उनमें से एक मैं था और मैं भी घायल था। लेकिन मैं ज़िंदा बच निकला।
एक और बार की बात है, १९७४ में हमने कमर रूज़ के एक सैनिक को पकड़ लिया। जब मैं उससे प्रश्न कर रहा था तो उसने मुझे बताया कि पोल पॉ ने सभी भूतपूर्व सरकारी अधिकारियों को, उनको भी जो सेना में हैं, खत्म करने की सोची है। उसने मुझे सलाह दी कि सब कुछ छोड़कर भाग जाऊँ। उसने कहा: “अपना नाम बदलते रहना। किसी को पता नहीं लगने देना कि तुम कौन हो। अनाड़ी और अनपढ़ के जैसा व्यवहार करना। किसी को अपनी बीती ज़िंदगी के बारे में मत बताना।” उसे रिहा करके घर भेजने के बाद उसकी बात मेरे मन में बैठ गयी।
हम सैनिकों को बताया गया था कि हम अपने देश के लिए लड़ रहे हैं लेकिन हम तो कम्बोडियाई लोगों को मार रहे थे। कमर रूज़, वह साम्यवादी दल जो सत्ता चाहता था हमारे ही लोगों में से था। असल में, कम्बोडिया के ९० लाख निवासियों में से अधिकतर कमर जाति के हैं, हालाँकि उनमें से अधिकतर कमर रूज़ में नहीं हैं। मुझे तो कुछ समझ नहीं आया। हम निर्दोष किसानों को मार रहे थे जिनके पास कोई बंदूक नहीं थी और जिन्हें युद्ध में कोई दिलचस्पी नहीं थी।
लड़ाई से लौटना हमेशा एक मर्मस्पर्शी अनुभव होता था। पत्नियाँ और बच्चे बेसब्री से अपने पति या पिता के लौटने के इंतज़ार में खड़े होते थे। मुझे उनमें से बहुतों को यह कहना पड़ता कि उनका परिजन मारा गया। इस सब के दौरान बौद्धधर्म के बारे में मेरी समझ ने मुझे कोई सांत्वना नहीं दी।
अब मैं पीछे मुड़कर सोचता हूँ कि कैसे कम्बोडिया में स्थिति बदल गयी। १९७० से पहले वहाँ काफी शांति और सुरक्षा थी। अधिकतर लोगों के पास बंदूक नहीं थी; लाइसॆंस के बिना बंदूक रखना गैरकानूनी था। बहुत कम चोरी या डकैतियाँ होती थीं। लेकिन पोल पॉ और उसकी सेना द्वारा विद्रोह करने पर गृहयुद्ध छिड़ने के बाद सब कुछ बदल गया। हर जगह बंदूकें थीं। १२-१३ साल के बच्चों को भी सेना में सेवा के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा था, गोली चलाना और मारना सिखाया जा रहा था। पोल पॉ के आदमियों ने कुछ बच्चों को राज़ी करा लिया कि अपने ही माता-पिता को मार डालें। सैनिक बच्चों से कहते, “यदि तुम्हें अपने देश से प्रेम है तो तुम्हें अपने शत्रुओं से घृणा करनी होगी। यदि तुम्हारे माता-पिता सरकार के लिए काम करते हैं तो वे हमारे शत्रु हैं और तुम्हें उनको मारना होगा—नहीं तो तुम्हें मार डाला जाएगा।”
पोल पॉ और सफाया
वर्ष १९७५ में पोल पॉ ने युद्ध जीत लिया और कम्बोडिया साम्यवादी राष्ट्र बन गया। पोल पॉ ने सभी छात्रों, शिक्षकों, सरकारी अधिकारियों और सभी पढ़े-लिखे लोगों का सफाया शुरू कर दिया। यदि आपने चश्मा लगाया हो तो आपको यह मानते हुए मौत के घाट उतारा जा सकता था कि आप पढ़े-लिखे हैं! पोल पॉ शासन ने अधिकतर लोगों को शहरों और नगरों से ज़बरदस्ती निकालकर गाँवों में भेज दिया कि खेती करें। सब को एक स्टाइल के कपड़े पहनने थे। हमें दिन में १५ घंटे काम करना था। भर पेट खाना नहीं, कोई दवा नहीं, कोई कपड़े नहीं, और बस २ या ३ घंटे की नींद। इससे पहले कि बहुत देर हो जाए मैंने अपने स्वदेश से निकलने का फैसला किया।
मुझे उस कमर रूज़ सैनिक की सलाह याद थी। मैंने सभी तसवीरें, कागज़ात और ऐसी सभी चीज़ें फेंक दीं जो मुझे पकड़वा सकती थीं। मैंने एक गड्ढा खोदकर अपने कुछ कागज़ात गाड़ दिये। फिर मैं पश्चिम में थाइलैंड की ओर चल पड़ा। बहुत खतरा था। मुझे चौकियों से बचना था और कर्फ्यू के समय बहुत सावधान रहना था क्योंकि केवल कमर रूज़ के सैनिक ही सरकारी अनुमति से सफर कर सकते थे।
मैं कहीं जाकर कुछ समय तक अपने एक दोस्त के साथ रहा। फिर कमर रूज़ ने वहाँ के सभी लोगों को एक नयी जगह भेज दिया। उन्होंने शिक्षकों और डॉक्टरों को मारना शुरू कर दिया। मैं तीन दोस्तों के साथ बच निकला। हम जंगल में छिप गये और पेड़ों पर जो फल मिले वही खाकर गुज़ारा किया। आखिर में, मैं बैटमबैंग ज़िले के एक छोटे-से गाँव में पहुँचा, जहाँ मेरा एक दोस्त रहता था। इत्तफाक से वहाँ मुझे वह भूतपूर्व सैनिक भी मिल गया जिसने मुझे भाग निकलने के बारे में सलाह दी थी! क्योंकि मैंने उसे रिहा किया था, उसने मुझे एक गड्ढे में तीन महीने तक छिपाकर रखा। उसने एक बच्चे को सिखाकर भेजा कि मेरे पास भोजन गिरा दे लेकिन गड्ढे में न झाँके।
कुछ समय बाद, मैं बचकर भाग सका और मुझे अपनी माँ, अपनी मौसी और अपनी बहन मिल गयी। वे भी थाइ सीमा की ओर भाग रही थीं। वह मेरे लिए दुःखद समय था। मेरी माँ बीमार थीं और बाद में वह एक शरणार्थी शिविर में बीमारी और भोजन की कमी के कारण मर गयीं। लेकिन, मेरे जीवन में प्रकाश और आशा की एक किरण चमकी। मेरी मुलाकात सोफी ऊम से हुई और वह मेरी पत्नी बनी। हम और हमारे साथ मेरी मौसी और मेरी बहन बच निकले। हम थाइ सीमा पार करके संयुक्त राष्ट्र के एक शरणार्थी शिविर में पहुँच गये। हमारे परिवार ने कम्बोडिया के गृहयुद्ध में बड़ी कीमत चुकायी। हमने अपने परिवार के १८ सदस्य खो दिये। उनमें मेरा भाई और भाभी भी थी।
अमरीका में एक नया जीवन
शरणार्थी शिविर में हमारी पृष्ठभूमि जाँची गयी और यू.एन. ने हमारे लिए एक संरक्षक ढूँढ़ने की कोशिश की ताकि हम अमरीका जा सकें। सफलता मिल ही गयी! १९८० में हम सेंट पॉल, मिनेसोटा पहुँचे। मैं जानता था कि यदि मुझे अपने नये देश में प्रगति करनी है तो मुझे जल्द-से-जल्द अंग्रेज़ी सीखने की ज़रूरत है। मेरे संरक्षक ने मुझे कुछ ही महीने स्कूल भेजा, जबकि मुझे ज़्यादा समय तक पढ़ाई करनी थी। स्कूल भेजने के बजाय, उसने एक होटल में मुझे द्वारपाल की नौकरी दिलवा दी। लेकिन मेरी टूटी-फूटी अंग्रेज़ी के कारण मैं बहुत गलतियाँ करता था और तमाशा बन जाता था। मालिक मुझसे सीढ़ी लाने को कहता और मैं कूड़ा वापस ले आता!
एक डरावनी मुलाकात
वर्ष १९८४ में मैं रात की ड्यूटी करके दिन में सोया करता था। हम ऐसे इलाके में रहते थे जहाँ एशियाई लोगों और अश्वेतों के बीच बहुत तनाव था। अपराध और नशीले पदार्थ आम बात थी। एक दिन, मेरी पत्नी ने मुझे सुबह दस बजे उठाकर कहा कि दरवाज़े पर एक अश्वेत आदमी आया है। वह डर गयी थी क्योंकि उसने सोचा कि वह हमें लूटने आया है। मैंने दरवाज़े के होल से झाँककर देखा तो क्या देखा कि यह अश्वेत आदमी सूट-बूट पहने हाथ में ब्रीफकेस लिये खड़ा है और उसके साथ एक श्वेत आदमी है। मुझे लगा कि डरने की कोई बात नहीं।
मैंने उससे पूछा कि वह क्या बेच रहा है। उसने मुझे प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! की प्रतियाँ दिखायीं। मुझे कुछ समझ नहीं आया। मैंने मना करने की कोशिश की क्योंकि दो महीने पहले एक प्रोटॆस्टॆंट सेल्समैन मुझे बुद्धू बनाकर पाँच पुस्तकों के सॆट के लिए मुझसे १६५ डॉलर ले गया था। लेकिन, इस अश्वेत आदमी ने मुझे पत्रिकाओं से चित्र दिखाए। चित्र बहुत ही सुखद और सुंदर थे! और उस आदमी के चेहरे पर बड़ी-सी, दोस्ताना मुसकान थी। सो मैंने एक डॉलर देकर पत्रिकाएँ ले लीं।
करीब दो हफ्ते बाद, वह वापस आया और मुझसे पूछा कि क्या मेरे पास कम्बोडियाई बाइबल है। हुआ यह कि मेरे पास एक बाइबल थी जो मैंने नैज़ारीन चर्च से ली थी, हालाँकि वह मुझे समझ नहीं आती थी। लेकिन मैं इस बात से प्रभावित हुआ कि अलग-अलग जातियों के दो आदमी मेरे दरवाज़े पर आये थे। फिर उसने मुझसे पूछा: “क्या आप अंग्रेज़ी सीखना चाहते हैं?” हाँ मैं सीखना चाहता था लेकिन मैंने समझाया कि मेरे पास फीस के लिए पैसे नहीं हैं। उसने मुझसे कहा कि वह बाइबल-आधारित प्रकाशन इस्तेमाल करके बिना पैसे लिये मुझे सिखाएगा। जबकि मुझे नहीं पता था कि वह किस धर्म का है, मैंने मन में सोचा, ‘कम-से-कम मुझे पैसे तो नहीं देने पड़ेंगे और मैं अंग्रेज़ी पढ़ना-लिखना सीख जाऊँगा।’
अंग्रेज़ी और बाइबल सीखना
यह एक धीमी प्रक्रिया थी। वह मुझे बाइबल की पहली पुस्तक, उत्पत्ति दिखाता और फिर मैं उसे कम्बोडियाई में बोलता, “लो का बैट।” वह कहता, “बाइबल,” और मैं कहता, “कॉम्पी।” मैं प्रगति करने लगा और मुझे प्रेरणा मिली। मैं काम पर अपना अंग्रेज़ी-कम्बोडियाई कोश, प्रहरीदुर्ग पत्रिका, न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन ऑफ द बाइबल और अपनी कम्बोडियाई बाइबल लेकर जाता था। अवकाश के दौरान, मैंने एक-एक शब्द करके, प्रकाशनों की तुलना करके अंग्रेज़ी पढ़ी और सीखी। साप्ताहिक अध्ययन के साथ-साथ इस धीमी प्रक्रिया में तीन साल से ऊपर लग गये। लेकिन मुझे अंग्रेज़ी पढ़नी आ ही गयी!
मेरी पत्नी अभी-भी बौद्ध मंदिर जाती थी और वह पूर्वजों के लिए भोजन छोड़ती थी। यह और बात है कि उससे लाभ सिर्फ मक्खियों को होता था! मुझमें कई बहुत पुरानी गंदी आदतें थीं जो तब पड़ी थीं जब मैं सेना में और बौद्धधर्म में था। जब मैं एक भिक्षु था तो लोग चढ़ावा लाते थे, जिसमें सिगरेट भी होती थी। उनका विश्वास था कि यदि भिक्षु सिगरेट पीये तो यह ऐसा होगा मानो उनके पूर्वज पी रहे हों। इस तरह मैं निकोटीन का गुलाम बन गया। फिर जब मैं सेना में था तो बहुत शराब और गाँजा पीता था ताकि लड़ाई पर जाने के लिए साहस मिले। सो जब मैंने बाइबल अध्ययन शुरू किया तो मुझे बहुत-से बदलाव करने पड़े। तभी मैंने पाया कि प्रार्थना से बहुत मदद मिलती है। कुछ ही महीनों के अंदर मैंने अपनी गंदी आदतें छोड़ दीं। इससे मेरे परिवार की खुशी का ठिकाना न रहा!
मैंने १९८९ में मिनेसोटा में एक साक्षी के रूप में बपतिस्मा लिया। उन्हीं दिनों मुझे पता चला कि लाँग बीच, कैलिफॉर्निया में साक्षियों का एक कम्बोडियाई-भाषी समूह है और वहाँ बहुत-से कम्बोडियाई लोग रहते हैं। अपनी पत्नी के साथ चर्चा करने के बाद, हमने लाँग बीच में बसने का फैसला किया। इस बदलाव से बहुत बड़ा फर्क पड़ा! पहले मेरी बहन का, फिर मेरी मौसी का (वह अभी ८५ साल की हैं) और मेरी पत्नी का बपतिस्मा हुआ। पीछे-पीछे मेरे तीनों बच्चे भी आये। बाद में, मेरी बहन ने एक साक्षी से विवाह किया। वह अब कलीसिया में प्राचीन के रूप में सेवा करता है।
यहाँ अमरीका में हम कई परीक्षाओं से गुज़रे हैं। हमने बहुत-सी आर्थिक मुश्किलों और कुछ स्वास्थ्य समस्याओं का सामना किया है, लेकिन बाइबल सिद्धांतों पर चलने के द्वारा हमने यहोवा पर अपना भरोसा बनाए रखा है। आध्यात्मिक क्षेत्र में यहोवा ने मेरे प्रयासों पर आशीष दी है। १९९२ में मुझे कलीसिया में सहायक सेवक के रूप में सेवा करने के लिए नियुक्त किया गया और १९९५ में मैं यहाँ लाँग बीच में प्राचीन बना।
वह लंबा सफर जो तब शुरू हुआ था जब मैं एक बौद्ध भिक्षु था और फिर युद्धग्रस्त कम्बोडिया की रणभूमि में एक अफसर था, अब तक के लिए हमारे नये घर और देश में सुख-शांति के साथ खत्म हो गया है। और हमारे पास यहोवा परमेश्वर और मसीह यीशु में अपना नव-प्राप्त विश्वास है। मुझे यह जानकर दुःख होता है कि कम्बोडिया में अभी-भी लोग एक दूसरे को मार रहे हैं। यह मुझे और मेरे परिवार को और भी ठोस कारण देता है कि प्रतिज्ञात नये संसार की आस देखें और उसकी घोषणा करें, जहाँ कोई युद्ध न होगा और सभी लोग अपने पड़ोसियों से सचमुच अपने समान प्रेम करेंगे!—यशायाह २:२-४; मत्ती २२:३७-३९; प्रकाशितवाक्य २१:१-४.
[फुटनोट]
a पोल पॉ उस समय कमर रूज़ सेना का साम्यवादी नेता था। उसने युद्ध जीतकर कम्बोडिया का तख्ता पलट दिया।
[पेज 26 पर नक्शा/तसवीर]
(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)
वियतनाम
लेऑस
थाइलैंड
कम्बोडिया
बैटमबैंग
पनॉम पॆन
उन दिनों जब मैं बौद्ध भिक्षु था
[चित्र का श्रेय]
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[पेज 26 पर तसवीर]
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