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ज़िंदगी सँवार देती है बाइबल

एक आदमी के लिए मोटरसाइकिल चलाना, ड्रग्स लेना और खेल-कूद में हिस्सा लेना ही उसकी ज़िंदगी थी। मगर फिर उसने यह सब छोड़ दिया और पूरे समय परमेश्‍वर की सेवा करने लगा। एक पेशेवर जुआरी ने अपनी लत छोड़ दी और अपने परिवार का पेट पालने के लिए मेहनत का काम करने लगा। एक लड़की को, जिसकी माँ यहोवा की साक्षी थी, बचपन में बाइबल के स्तरों के बारे में सिखाया गया था। मगर उसने उन स्तरों को ठुकरा दिया। कुछ समय बाद वह अपने जीने के तरीके के बारे में दोबारा सोचने लगी। आखिर किस बात ने इन तीनों को अपनी ज़िंदगी में तबदीलियाँ करने के लिए उभारा? आइए इन्हीं की ज़ुबानी सुनें।

परिचय

नाम: टैरन्स जे. ओब्रायन

उम्र: 57

देश: ऑस्ट्रेलिया

उसका अतीत: ड्रग्स लेना और मोटरसाइकिल चलाने की धुन सवार रहना

मेरा बीता कल: मेरा बचपन क्वीन्सलैंड की राजधानी, ब्रिसबेन में बीता। यह एक ऐसा शहर है, जहाँ लोग भाग-दौड़ की ज़िंदगी जीते हैं। मेरा परिवार कैथोलिक धर्म को मानता था। लेकिन जब मैं 8 साल का हुआ, तब हमने चर्च जाना बंद कर दिया। उसके बाद से हमारे घर में धर्म का नाम तक नहीं लिया जाता। जब मैं 10 साल का हुआ तब हमारा परिवार ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट प्रांत में जाकर बस गया। हमारा घर समुद्र के किनारे था, इसलिए जब मैं करीब 13-14 साल का था, तो मैं अकसर समुद्र में तैरने और सर्फिंग (पट्टियों पर सवार होकर लहरों पर बहने का खेल) करने जाता था।

इससे लोगों को लग सकता है कि मेरा बचपन मौज-मस्ती में गुज़रा, मगर ऐसा नहीं था। जब मैं 8 साल का था, तब मेरे पिताजी हमारे परिवार को छोड़कर चले गए। इसके बाद माँ ने दूसरी शादी कर ली और हमारे घर में शराब पीना और झगड़ा होना रोज़ की बात बन गयी। एक रात मेरे माता-पिता के बीच ज़बरदस्त तकरार हुई, जिसके बाद मैंने शपथ खायी कि आगे चलकर अगर मेरी शादी हुई, तो मैं कभी अपनी पत्नी से लड़ाई-झगड़ा नहीं करूँगा। परिवार में समस्याएँ होने के बावजूद छः बच्चों, माँ और सौतेले पिता से बने हमारे परिवार में एकता थी।

जब मैं करीब 17-19 साल का था, तब मेरे बहुत-से दोस्त बागी बन गए। वे तंबाकू, चरस-गाँजा और दूसरे ड्रग्स का नशा करने लगे, साथ ही खूब शराब पीने लगे। मैं भी उनकी तरह मस्त-मौला बन गया। मैं मोटरसाइकिल चलाने का भी बड़ा शौकीन था। हालाँकि मेरी कई बार दुर्घटनाएँ हुईं, फिर भी मैंने मोटरसाइकिल चलाना नहीं छोड़ा। एक दिन मैंने तय किया कि मैं अपनी बाइक पर पूरा ऑस्ट्रेलिया घूमूँगा।

इतनी आज़ादी होते हुए भी मैं अकसर दुनिया के हालात देखकर मायूस हो जाता था। यह सोचकर ही मेरा मन उदास हो जाता था कि लोग कैसे पत्थरदिल हो गए हैं, दुनिया में कितनी समस्याएँ हैं, मगर उन्हें इससे कोई फर्क ही नहीं पड़ता। परमेश्‍वर, धर्म और दुनिया के हालात के बारे में सच्चाई जानने के लिए मैं तरस रहा था। मैंने दो कैथोलिक पादरियों से इन विषयों पर सवाल किए, मगर वे मेरे सवालों के सही-सही जवाब नहीं दे पाए। प्रोटेस्टेंट धर्म के अलग-अलग पादरियों से बात करने पर भी मुझे निराशा ही हाथ लगी। फिर मेरे एक दोस्त ने मेरी मुलाकात यहोवा के एक साक्षी, एड्डी से करवायी। एड्डी से मेरी चार बार चर्चा हुई और हर बार उसने मेरे सवालों के जवाब बाइबल से दिए। पहली चर्चा से ही मैं समझ गया कि मैं जो सीख रहा हूँ, वह बहुत खास है। फिर भी, उस वक्‍त मुझे अपने तौर-तरीके बदलने की कोई खास ज़रूरत महसूस नहीं हुई।

बाइबल ने किस तरह मेरी ज़िंदगी सँवार दी: पूरा ऑस्ट्रेलिया घूमते वक्‍त, मेरी मुलाकात कई यहोवा के साक्षियों से हुई और मैंने उनके साथ चर्चा भी की। लेकिन क्वीन्सलैंड वापस आने के बाद, छः महीने तक मैं साक्षियों से नहीं मिला।

फिर एक दिन जब मैं काम से घर लौट रहा था, तो रास्ते में मुझे दो आदमी सलीकेदार कपड़े पहने और हाथ में ब्रीफकेस लिए हुए नज़र आया। उन्हें देखकर मैं समझ गया कि हो-न-हो वे यहोवा के साक्षी ही हैं। फिर भी, मैं उनके पास गया और पूछा कि क्या वे साक्षी हैं। जब उन्होंने हाँ कहा, तो मैंने उनसे मेरे साथ बाइबल अध्ययन करने के लिए गुज़ारिश की। जल्द ही मैं साक्षियों की सभाओं में जाने लगा। सन्‌ 1973 में, मैं सिडनी शहर में हुए उनके एक बड़े अधिवेशन में भी हाज़िर हुआ। जब मेरे घरवालों को इस बारे में पता चला, तो वे बहुत दुखी हुए, खासकर मेरी माँ। यह और दूसरी कई वजहों से मैंने साक्षियों के साथ मेलजोल रखना बंद कर दिया। करीब एक साल तक मैं अपने दूसरे शौक में डूबा रहा और वह था, क्रिकेट।

मगर आखिर में मुझे एहसास हुआ कि सच्ची खुशी मुझे तभी मिलती थी जब मैं यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल का अध्ययन करता था। इसलिए मैंने दोबारा साक्षियों से संपर्क किया और उनकी सभाओं में जाने लगा। मैंने अपने पुराने दोस्तों से भी नाता तोड़ लिया, जो ड्रग्स लेते थे।

ये सारी तबदीलियाँ करने की प्रेरणा, मुझे परमेश्‍वर के सेवक अय्यूब से मिली जिसके बारे में बाइबल में बताया गया है। बिल नाम का एक बुज़ुर्ग साक्षी नियमित तौर पर मेरे साथ बाइबल से चर्चा करता था। वह बहुत ही भला इंसान था, मगर थोड़ा सख्त भी। अय्यूब की कहानी का अध्ययन करने के बाद बिल ने मुझसे पूछा, शैतान ने और किस पर यह इलज़ाम लगाया है कि वह आधे मन से यहोवा की सेवा करता है। (अय्यूब 2:3-5) मुझे बाइबल के जितने भी किरदारों के नाम याद थे, मैंने एक-एक कर सब गिना दिए। इस पर बिल सब्र से जवाब देता: “हाँ, उन सब पर भी शैतान ने इलज़ाम लगाया है।” आखिर में उसने मेरी आँखों में देखकर कहा: “शैतान ने तुम पर भी उँगली उठायी है।” यह सुनकर मैं अपनी कुर्सी से गिरते-गिरते बचा! उससे पहले तक तो मैं जानता था कि मैं जो कुछ भी सीख रहा हूँ, वह सब सही है। लेकिन उस अध्ययन के बाद मैं समझ गया कि मुझे सीखी बातों के मुताबिक काम करने की भी ज़रूरत है। चार महीने बाद मैं बपतिस्मा लेकर यहोवा का एक साक्षी बन गया।

मुझे क्या फायदा हुआ: मैं आज भी यह सोचकर काँप उठता हूँ कि अगर मैं बाइबल के स्तरों के मुताबिक जीना नहीं सीखता, तो न जाने मेरा क्या होता। मैं शायद आज ज़िंदा नहीं होता। क्योंकि मेरे बहुत-से पुराने साथियों की ड्रग्स लेने या ज़्यादा शराब पीने की वजह से मौत हो चुकी है। यही नहीं, वे अपनी शादीशुदा ज़िंदगी से भी खुश नहीं थे। शायद मेरी ज़िंदगी का भी यही अंजाम होता।

मेरी अब शादी हो चुकी है और मैं अपनी पत्नी, मार्गरेट के साथ ऑस्ट्रेलिया में यहोवा के साक्षियों के शाखा दफ्तर में खुशी-खुशी सेवा कर रहा हूँ। मेरे परिवार में से किसी ने भी यहोवा की उपासना करना स्वीकार नहीं किया। फिर भी, पिछले कई सालों से मुझे और मार्गरेट को बहुत-से लोगों और शादीशुदा जोड़ों को बाइबल से सिखाने का बढ़िया मौका मिला है। जब ये लोग मेरी तरह अपनी ज़िंदगी में बदलाव करते हैं, तो यह देखकर हमें बहुत खुशी होती है। इस दरमियान हमने कई अच्छे दोस्त भी बनाए। इसके अलावा, मार्गरेट की परवरिश एक साक्षी परिवार में हुई थी, इसलिए उसने मुझे अपनी शपथ पर बने रहने में मदद दी जो मैंने करीब 40 साल पहले ली थी। हमारी शादी को 25 से भी ज़्यादा साल हो गए हैं और हम अपनी शादीशुदा ज़िंदगी से बेहद खुश हैं। यह सच है कि कई बार हम एक-दूसरे से सहमत नहीं होते, मगर अब तक हमारे बीच कोई झगड़ा नहीं हुआ है। और इसके पीछे बाइबल का हाथ है, जिसके लिए हम बहुत ही शुक्रगुज़ार हैं।

परिचय

नाम: मासाहीरो ओकाबायाशी

उम्र: 39

देश: जापान

उसका अतीत: जुआरी

मेरा बीता कल: मेरी परवरिश नगोया शहर से दूर एक छोटी-सी जगह, ईवाकूरा में हुई। नगोया से ईवाकूरा पहुँचने के लिए ट्रेन से आधा घंटा लगता है। हमारे परिवार में पाँच सदस्य थे। मुझे आज भी याद है कि बचपन में मैं सोचा करता था कि मेरे माता-पिता, दोनों ही बहुत भले लोग हैं। मगर बाद में मुझे पता चला कि मेरे पिता एक याकूज़ा थे, यानी वे एक गिरोह के सदस्य थे। पिताजी परिवार का गुज़ारा चलाने के लिए धोखाधड़ी करते थे। वे हर दिन खूब शराब पीते थे। जब मैं 20 साल का था, तब लिवर खराब होने की वजह से (सिरोसिस रोग) उनकी मौत हो गयी।

मेरे पिता कोरिया देश से थे, इसलिए लोग अकसर हमारे साथ भेदभाव करते थे। इस और दूसरी कई समस्याओं की वजह से 13-19 साल तक की मेरी ज़िंदगी बड़ी मुश्‍किल से कटी। मैंने हाई स्कूल में दाखिला लिया, लेकिन पढ़ाई के लिए कभी-कभार ही जाता था। एक साल बाद मैंने स्कूल ही छोड़ दिया। मैं कई बार जेल की हवा खा चुका था, ऊपर से मेरे पिता कोरियाई थे, इसलिए काम ढूँढ़ना मेरे लिए बहुत मुश्‍किल था। आखिरकार, मुझे एक नौकरी मिल गयी। मगर फिर मेरे घुटनों पर चोट लगने से मैं मेहनत-मशक्कत का काम करने के काबिल नहीं रहा।

अपने गुज़र-बसर के लिए मैं पाचिंको खेलने लगा। यह एक तरह का जुआ है, जिसमें पिनबॉल मशीन जैसा उपकरण इस्तेमाल किया जाता है। उस वक्‍त मैं एक लड़की के साथ रह रहा था, जो चाहती थी कि मैं कोई ढंग की नौकरी ढूँढ़ लूँ और उससे शादी कर लूँ। लेकिन मैं बदलना नहीं चाहता था, क्योंकि जुए से मैं खूब पैसा कमा रहा था।

बाइबल ने किस तरह मेरी ज़िंदगी सँवार दी: एक दिन, यहोवा का एक साक्षी मेरे घर आया और उसने मुझे जीवन—इसकी शुरूआत कैसे हुई? विकासवाद से या सृष्टि से? (अँग्रेज़ी) किताब दी। मैंने पहले कभी इस सवाल के बारे में नहीं सोचा था। मगर यह किताब पढ़ने के बाद, मैं बाइबल के बारे में और ज़्यादा सीखने के लिए राज़ी हो गया। मेरे मन में हमेशा यह सवाल घूमता रहता था कि मरने पर हमारा क्या होता है। इस और दूसरे कई सवालों के बाइबल से साफ जवाब पाकर मुझे ऐसा लगा मानो मेरी आँखों पर बंधी पट्टी खुल गयी हो।

मुझे एहसास हुआ कि बाइबल से मैं जो सीख रहा हूँ, उस पर मुझे अमल करने की ज़रूरत है। इसलिए मैंने कानूनी तौर पर शादी कर ली, सिगरेट पीना छोड़ दिया, अपने लंबे बाल कटवा लिए जिसे मैंने रंगकर सुनहला किया था और खुद को साफ-सुथरा रखने लगा। मैंने जुआ खेलना भी बंद कर दिया।

मगर ये सारे बदलाव करना मेरे लिए आसान नहीं था। मिसाल के लिए, मैं अपने बलबूते सिगरेट पीने की आदत नहीं छोड़ पाया। लेकिन जब मैंने दिल की गहराई से यहोवा परमेश्‍वर से प्रार्थना की और उस पर भरोसा रखा, तो मैं अपनी यह आदत छोड़ने में कामयाब हो गया। यही नहीं, पाचिंको छोड़ने के बाद मुझे जो पहली नौकरी मिली, उसे करना मेरे लिए एक चुनौती था। क्योंकि यह काफी मेहनतवाला काम था, इसमें मुझे काफी तनाव से गुज़रना पड़ता था और कमाई सिर्फ आधी होती थी। मगर इस मुश्‍किल दौर में बाइबल की एक आयत, फिलिप्पियों 4:6, 7 से मुझे बहुत हौसला मिला। इस आयत में लिखा है: “किसी भी बात को लेकर चिंता मत करो, मगर हर बात में प्रार्थना और मिन्‍नतों और धन्यवाद के साथ अपनी बिनतियाँ परमेश्‍वर को बताते रहो। और परमेश्‍वर की वह शांति जो हमारी समझने की शक्‍ति से कहीं ऊपर है, मसीह यीशु के ज़रिए तुम्हारे दिल के साथ-साथ तुम्हारे दिमाग की सोचने-समझने की ताकत की हिफाज़त करेगी।” मैंने कई बार इस वादे को पूरा होते देखा है।

मुझे क्या फायदा हुआ: जब मैंने यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल का अध्ययन करना शुरू किया, तो मेरी पत्नी खुश नहीं थी। लेकिन जब उसने देखा कि मैं अपनी ज़िंदगी में बड़े-बड़े बदलाव कर रहा हूँ, तो वह भी मेरे साथ बाइबल अध्ययन करने लगी और यहोवा के साक्षियों की सभाओं में हाज़िर होने लगी। आज हम दोनों यहोवा के साक्षी हैं। साथ मिलकर परमेश्‍वर की सेवा करना क्या ही बड़ी आशीष है!

बाइबल का अध्ययन करने से पहले मैं सोचता था कि मैं खुश हूँ। लेकिन सच्ची खुशी क्या होती है, यह मैंने अब जाना है। माना कि बाइबल के स्तरों के मुताबिक जीना आसान नहीं, मगर यही जीने का सबसे बढ़िया तरीका है।

परिचय

नाम: एलीज़बेथ जेन स्कोफील्ड

उम्र: 35

देश: ब्रिटेन

उसका अतीत: शनिवार-रविवार को अपने दोस्तों के संग मौज-मस्ती करना ही उसके जीवन का मकसद था

मेरा बीता कल: मैं एक छोटे-से कसबे, हार्डगेट में पली बढ़ी हूँ। यह कसबा, स्कॉटलैंड के ग्लासगो शहर के ठीक बाहर है। जब मैं 7 साल की थी, मेरी माँ यहोवा की एक साक्षी बन गयी और तभी से वह मुझे बाइबल के बारे में सिखाने लगी। मगर जब मैं 17 की हुई, तो मुझे परमेश्‍वर या बाइबल में कोई दिलचस्पी नहीं रही। मुझे बस अपने स्कूल के दोस्तों के साथ घूमना-फिरना पसंद था। हम नाइटक्लब जाते थे, हेवी मेटल संगीत सुनते थे और शराब पीते थे। शनिवार-रविवार को दोस्तों के संग मौज-मस्ती करना ही मेरे जीवन का मकसद बन गया था। लेकिन जब मैं 21 साल की हुई, तो मेरी ज़िंदगी में एक नया मोड़ आया।

मैं अपने कुछ रिश्‍तेदारों से मिलने नॉर्दन आयरलैंड देश गयी। वहाँ मैंने प्रोटेस्टेंट धर्म माननेवालों का एक जुलूस ‘ऑरेंज वॉक’ देखा। उस दौरान प्रोटेस्टेंट और कैथोलिक लोगों के बीच नफरत और भेदभाव देखकर मैं हक्की-बक्की रह गयी। साथ-ही-साथ मेरे होश भी ठिकाने आ गए। मुझे वे सारी बातें याद आ गयीं जो मेरी माँ ने मुझे बाइबल से सिखायी थीं। मुझे मालूम था कि परमेश्‍वर ऐसे लोगों को कभी मंज़ूरी नहीं देता, जो उसके प्यार-भरे स्तरों को ताक पर रख देते हैं। अचानक मेरे मन में यह बात कौंधी कि मैं कितनी स्वार्थी बन गयी हूँ। परमेश्‍वर जैसा चाहता है वैसी ज़िंदगी जीने के बजाय, मैं खुद की लालसाओं को पूरा करने में डूब गयी हूँ। मैंने उसी पल फैसला किया कि जैसे ही मैं स्कॉटलैंड वापस जाऊँगी, मैं गंभीरता से बाइबल की शिक्षाओं की जाँच करूँगी।

बाइबल ने किस तरह मेरी ज़िंदगी सँवार दी: हार्डगेट लौटने पर जब मैं पहली बार यहोवा के साक्षियों की सभाओं में गयी, तो मुझे थोड़ा अजीब लगा और साथ ही डर भी। लेकिन जब सब ने दिल खोलकर मेरा स्वागत किया, तो मेरी सारी झिझक दूर हो गयी। जब मैं बाइबल से सीखी बातों को अपनी ज़िंदगी में लागू करने लगी, तो मंडली की एक प्यारी बहन मुझ में खास दिलचस्पी लेने लगी। उसने मुझे दोबारा मंडली का हिस्सा बनने में मदद दी। मेरे पुराने दोस्त मुझे बार-बार नाइटक्लब आने का न्यौता देते थे, लेकिन मैंने उनसे साफ शब्दों में कह दिया कि मैंने बाइबल के स्तरों पर चलने की ठान ली है। कुछ समय बाद, उन्होंने मुझसे बात करना बंद कर दिया।

बचपन में मेरा मानना था कि बाइबल, नियमों की किताब है। मगर अब मेरा नज़रिया बदल गया है। मुझे यकीन हो गया है कि बाइबल में बताए लोग असल लोग थे, जिनमें मेरी जैसी भावनाएँ और कमज़ोरियाँ थीं। उन्होंने भी गलतियाँ कीं, मगर जब उन्होंने सच्चा पश्‍चाताप किया तो यहोवा परमेश्‍वर ने उन्हें माफ कर दिया। इससे मेरा विश्‍वास बढ़ा कि भले ही जवानी में मैंने परमेश्‍वर से मुँह फेर लिया, लेकिन अगर मैं अब उसे खुश करने में अपना भरसक करूँ, तो वह ज़रूर मुझे माफ कर देगा और बीते कल में की गयी मेरी सारी गलतियाँ भुला देगा।

मेरी माँ के व्यवहार से भी मुझ पर गहरा असर हुआ। हालाँकि मैंने परमेश्‍वर को छोड़ दिया था, पर उसने कभी यहोवा को नहीं छोड़ा। वह यहोवा की वफादार बनी रही। इससे मुझे एहसास हुआ कि यहोवा की सेवा करना फायदेमंद है। जब मैं छोटी थी और माँ के साथ घर-घर के प्रचार के लिए जाती थी, तो मुझे बिलकुल भी मज़ा नहीं आता था। यहाँ तक कि घंटों लोगों को गवाही देने की बात मैं सपने में भी नहीं सोच सकती थी। मगर अब मैंने मत्ती 6:31-33 में दिए यीशु के वादे को आज़माने का फैसला किया। उसने कहा: “कभी-भी चिंता न करना, न ही यह कहना, ‘हम क्या खाएँगे?’ या, ‘हम क्या पीएँगे?’ या, ‘हम क्या पहनेंगे?’ . . . तुम्हारा स्वर्गीय पिता जानता है कि तुम्हें इन सब चीज़ों की ज़रूरत है। इसलिए, तुम पहले उसके राज और उसके स्तरों के मुताबिक जो सही है उसकी खोज में लगे रहो और ये बाकी सारी चीज़ें भी तुम्हें दे दी जाएँगी।” मैं बपतिस्मा लेकर यहोवा की साक्षी बन गयी। इसके फौरन बाद मैं पूरे समय की नौकरी छोड़कर पार्ट-टाइम नौकरी करने लगी, ताकि मैं परमेश्‍वर की सेवा में ज़्यादा समय बिता सकूँ।

मुझे क्या फायदा हुआ: हालाँकि जवानी के दिनों में, हर शनिवार-रविवार को मैं अपने दोस्तों के संग खूब मज़े उड़ाती थी, फिर भी मैं खुश नहीं थी। मेरी ज़िंदगी खोखली थी। लेकिन अब क्योंकि मैं यहोवा की सेवा करने में पूरी तरह लग गयी हूँ, इसलिए मैं संतुष्ट हूँ। मुझे जीने का एक मकसद मिल गया है। मेरी शादी हो चुकी है और मैं अपने पति के साथ हर हफ्ते यहोवा के साक्षियों की अलग-अलग मंडलियों में जाती हूँ और वहाँ के भाई-बहनों की हौसला-अफज़ाई करती हूँ। यह काम मेरे लिए बड़े सम्मान की बात है! मैं यहोवा की बहुत एहसानमंद हूँ कि उसने मुझे उसकी सेवा करने का दूसरा मौका दिया! (w09-E 11/01)

[पेज 29 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

“पहली चर्चा से ही मैं समझ गया कि मैं जो सीख रहा हूँ, वह बहुत खास है। फिर भी, उस वक्‍त मुझे अपने तौर-तरीके बदलने की ज़रूरत महसूस नहीं हुई”

[पेज 31 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

“मैं अपने बलबूते सिगरेट पीने की आदत नहीं छोड़ पाया। लेकिन जब मैंने दिल की गहराई से यहोवा परमेश्‍वर से प्रार्थना की और उस पर भरोसा रखा, तो मैं अपनी यह आदत छोड़ने में कामयाब हो गया”

[पेज 32 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

“बचपन में मेरा मानना था कि बाइबल, नियमों की किताब है। मगर अब मेरा नज़रिया बदल गया है। मुझे यकीन हो गया है कि बाइबल में बताए लोग असल लोग थे, जिनमें मेरी जैसी भावनाएँ और कमज़ोरियाँ थीं”

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