सुसमाचार की भेंट—विवेकशीलता के साथ
एक उत्प्रेरित नीतिवचन में कहा गया है: “जो समझ को धरे रहता है उसका कल्याण होता है।” (नीति. १९:८) इन शब्दों की अक्लमन्दी हमारे प्रचार कार्य में अक्सर सच साबित हुई है। उदाहरणार्थ, विवेकशीलता और व्यवहार-कौशल इस्तेमाल करने के द्वारा, अनेक प्रचारकों ने शक्य बातचीत रोकनेवाली बातों को एक ऐसे मौक़े में बदल दिया है जिस से अधिक गवाही दी जा सके। या फिर किसी दूसरे समय पर गवाही देने के लिए उन्होंने कम से कम एक नींव तो डाली ही है। यह कैसे किया जा सकता है?
बातचीत रोकनेवाली बातों से निपटना
२ अक्सर हम ऐसे लोगों से मिलते हैं जो कहते हैं, “मैं व्यस्त हूँ।” क्या गृहस्थ सचमुच ही व्यस्त है, या क्या वह ऐसा सिर्फ़ इसलिए कह रहा है कि किसी लम्बी-चौड़ी बातचीत में उलझ न जाए? विवेकशीलता की ज़रूरत है। अगर वह सचमुच व्यस्त नहीं लगता, तो हम इस बातचीत रोकनेवाली बात को उलट देने की शायद कोशिश कर सकते हैं। हम कह सकते हैं, “तो फिर मैं आपको संक्षिप्त में बता देता हूँ।” इसके बाद, अपनी बातचीत को सीमित रखने के समझौते को ध्यान में रखते हुए, हम उन बातों को संक्षिप्त में बता सकते हैं जो हम बताना चाह रहे थे। हमारे लिहाज़ और दिलचस्पी-जगानेवाली टिप्पणी के परिणामस्वरूप, शायद वह व्यक्ति उसी वक़्त बातचीत जारी रखने की इच्छा भी व्यक्त करेगा।
३ मान लीजिए कि आप जिस व्यक्ति के पास जाते हैं, वह सचमुच ही व्यस्त हो। हालाँकि हम नहीं चाहेंगे कि हमें आसानी से वहाँ से हटा दिया जाए, फिर भी अगर हम आग्रही या अति-उत्साही होंगे, तो शायद हमारे विषय में उन्हें एक प्रतिकूल विचार होगा। अगर गृहणी हाथ में बरतन लिए हुए दरवाज़े के पास आती है और हम खाना पकाए जाने की खुशबू सूँघते है, तो यह बहुत संभव है कि वह सचमुच ही व्यस्त है। इसलिए विवेकशीलता और अच्छी परख ज़रूरी है। उस समय बातचीत को जारी रखना लिहाज़ी नहीं होगा। परिस्थितियों के अनुसार, गृहणी को एक पत्रिका पेश करना या ट्रैक्ट छोड़ जाना, तथा किसी और समय पर फिर आने का सुझाव देना कितना बेहतर होगा। यह एक अधिक अनुकूल विचार उत्पन्न करेगा, और जब किसी और समय कोई दूसरा गवाह वहाँ जाएगा, तो एक उत्तम गवाही दी जा सकेगी।
व्यक्ति के स्वभाव के प्रति प्रतिक्रिया दिखाना
४ समय-समय पर हम ऐसे व्यक्तियों से मिलते हैं जो हम से रूखा बरताव करते हैं जब हम घर-घर की सेवकाई में उनके घर जाते हैं। इस हाल में हमें क्या करना चाहिए? नीतिवचन १७:२७ सलाह देता है: “जिसकी आत्मा शान्त रहती है, सोई समझवाला पुरुष ठहरता है।” क्या ही बढ़िया सलाह! चिन्ता व्यक्त करनेवाली एक मृदु आवाज़ अक्सर ऐसे व्यक्ति को नरम करा देने में काम आती है। इसके अतिरिक्त, अगर हम व्यवहार-कौशल से उसे एक ऐसे विषय पर अपनी राय व्यक्त करने के लिए राज़ी करा सकते हैं, तो वह शायद कम रक्षात्मक होगा। अगर वह बातचीत को बीच में काट भी दे, संभवतः हमारी सौम्य प्रतिक्रिया से अब यहोवा के गवाहों के कार्य के प्रति उसका मनोभाव बेहतर होगा। यह एक बहुत ही बढ़िया उपलब्धि होगी। अवश्य, अगर गृहस्थ अशान्त और नाराज़ हो जाता है, तो वहाँ से चुप-चाप चला जाना और शायद किसी और समय उसे प्रचार करने की काशिश करना सबसे बेहतर होगा।
५ फिर ऐसे भी लोग हैं जो, हालाँकि बहुत बहस करते हैं, शायद निष्कपट हैं। ऐसे हालात में, उनके साथ बातचीत करते रहना शायद हमारी सहनशक्ति की एक वास्तविक परीक्षा होगी। पर अगर हम विवेकशील होंगे, तो हम ज़रूरतन इस निष्कर्ष पर न पहुँचेंगे कि गृहस्थ दिलचस्पी नहीं रखता, सिर्फ़ इसीलिए कि वह ज़ोरदार रूप से एक भिन्न मत व्यक्त करता है। हम शायद उस से कुछ व्यवहार-कुशल सवाल पूछना चाहेंगे, यह जानने की कोशिश में कि वह इस तरह क्यों मानता है और फिर उसे बता सकते हैं कि बाइबल इस विषय पर क्या कहती है। (नीति. २०:५) उसकी प्रतिक्रिया के आधार पर, हम निश्चय कर सकते हैं कि क्या बातचीत जारी रखना फ़ायदेमन्द होगा या नहीं।
६ एक विवेकशील प्रचारक समझता है कि समय और परिस्थितियों से राज्य के संदेश के प्रति गृहस्थ का रवैया अक्सर बदल सकता है। जब हम अगली बार उसके पास जाएँगे, तो उसकी प्रतिक्रिया शायद काफ़ी भिन्न होगी। चूँकि जब हम पिछली बार गृहस्थ के घर गए थे, और उसने एक नकारात्मक प्रतिक्रिया दिखायी थी, इसलिए हमें यह नहीं मान लेने के विषय में सावधानी बरतनी चाहिए कि हम अब भी एक नकारात्मक प्रतिक्रिया पाएँगे।
७ यह निर्णय लेना कि क्या हमें बातचीत को जारी रखना चाहिए या नहीं, आसान बात नहीं है। फिर भी, सिखाने की कला विकसित करने के ज़रिए, हम विवेकशीलता के साथ सुसमाचार पेश करने में अधिक प्रभावकारी बनेंगे और उसी समय हमारी कोशिशों पर आशीष देने के लिए हम यहोवा की ओर आशा से देखेंगे।—१ कुरि. ३:६; तीतुस १:९.