राज्य सेवा के अपने ख़ज़ाने को विस्तृत कीजिए
यीशु ने राज्य आशा की बराबरी एक अनमोल ख़ज़ाने से की। (मत्ती १३:४४-४६) क्या हम यीशु के दृष्टान्तों के उन मनुष्यों के समान हैं जिन्होंने ज़्यादा मूल्य की चीज़ ख़रीदने के लिए अपनी सारी संपत्ति बेच दी? यदि ऐसा है, तो हम परमेश्वर के राज्य को पहली प्राथमिकता देंगे, यद्यपि इसमें शायद असुविधा और आत्म-त्याग शामिल हो।—मत्ती ६:१९-२२.
२ चूँकि हमारी राज्य सेवा एक ख़ज़ाना है, उसे विस्तृत करने की हमारी इच्छा होनी चाहिए। हमारी व्यक्तिगत जीवन-शैली क्या दिखाती है? क्या हम अपनी राज्य गतिविधि को विस्तृत कर रहे हैं? सेवकाई के विभिन्न पहलुओं में हिस्सा लेने के द्वारा हम ऐसा कर सकते हैं, जिसमें घर-घर का कार्य, पुनःभेंट करना, बाइबल अध्ययन संचालित करना, और अनौपचारिक गवाही देना शामिल है।
३ ‘मैं अपना हिस्सा कैसे विस्तृत कर सकता हूँ?’ एक नए सेवा वर्ष के आरम्भ के साथ, प्रत्येक जन का अपनी व्यक्तिगत गतिविधि पर पुनर्विचार करना अच्छा है, यह देखने के लिए कि क्षेत्र सेवकाई में बिताए गए समय को बढ़ाने के लिए वह क्या कर सकता है। वह पूछ सकता है: ‘क्या मैं अपने कार्यों में समंजन कर सकता हूँ ताकि समय-समय पर या निरंतर रूप से भी सहयोगी पायनियरों की सूची में शामिल हो सकूँ? थोड़े समंजन के साथ, क्या मैं नियमित पायनियर सेवा में प्रवेश कर सकूँगा?’ सितम्बर १ तक नाम लिखानेवाले नए पायनियर अगले पायनियर सेवा स्कूल में उपस्थित होने के योग्य हो सकते हैं।
४ कुछ प्रकाशकों ने ज़्यादा अनौपचारिक गवाही करने के लिए एक व्यक्तिगत लक्ष्य रखा है। अकसर यह गतिविधि अत्युत्तम फल उत्पन्न करती है। अन्य लोग प्रभावकारी पुनःभेंट करने या नए बाइबल अध्ययन शुरू करने में उन्नति करने की ज़रूरत महसूस कर सकते हैं।
५ यदि हम निर्णय करते हैं कि हमारी सेवकाई कुछ तरीक़ों से सीमित है, तो उसे विस्तृत करने के लिए हम क्या कर सकते हैं? जिन्होंने सफलतापूर्वक ऊँचे लक्ष्यों को पाया है सलाह देते हैं कि हम सबसे पहले किसी भी हालत में राज्य हितों को पहला स्थान देने का दृढ़ संकल्प करें। (मत्ती ६:३३) यहोवा पर विश्वास और संपूर्ण भरोसा आवश्यक है। (२ कुरि. ४:७) निष्कपट और आग्रही प्रार्थना के ज़रिये उसकी सहायता माँगिए। (लूका ११:८, ९) हम आश्वस्त हो सकते हैं कि उसकी सेवा में अपना हिस्सा बढ़ाने के हमारे सच्चे प्रयासों को यहोवा आशिष देगा।—१ यूह. ५:१४.
६ अन्य भाइयों और बहनों से बात कीजिए जिन्होंने सफलतापूर्वक अपनी सेवकाई विस्तृत की है। उनसे पूछिए कि निरुत्साहित हुए बिना वे बाधाओं को पार करने में कैसे समर्थ हुए थे। उनके व्यक्तिगत अनुभव ठीक वही हो सकते हैं जिनकी ज़रूरत आपको यह विश्वास दिलाने के लिए चाहिए कि एक विस्तृत सेवकाई अप्राप्य नहीं है।
७ जब आप प्रहरीदु या हमारी राज्य वकाई में क्षेत्र सेवा से सम्बन्धित लेख पढ़ते हैं, तो प्रार्थनापूर्वक विचार कीजिए कि अपनी सेवकाई में आप सुझावों को कैसे लागू कर सकते हैं। कलीसिया सभाओं या सम्मेलनों में उपस्थित होते वक़्त वैसा ही कीजिए। इस लेख में प्रस्तुत किए गए सुझाव एक चर्चा पर आधारित हैं जो पिछले वर्ष के सर्किट सम्मेलन कार्यक्रम का एक भाग था। यह लेख उन लेखों की श्रंखला में से पहला है जो उस कार्यक्रम द्वारा प्रदान किए गए प्रोत्साहन में जुटे रहने और उसे लागू करने में हमारी सहायता करने के लिए तैयार किए गए हैं।
८ यीशु ने अपनी सेवकाई को बहुत गंभीरता से लिया और उसे एक प्रमुख कार्य बनाया। उसने घोषणा की: “मेरा भोजन यह है, कि अपने भेजनेवाले की इच्छा के अनुसार चलूं।” (यूह. ४:३४) क्या हम भी वैसा ही महसूस करते हैं? यदि हम वैसा ही महसूस करते हैं, तो निश्चय ही हम अपनी गतिविधि को विस्तृत करने और अपने ख़ज़ाने के भण्डार से दूसरों के साथ “भली बातें” बाँटने के तरीक़े ढूँढ़ पाएँगे।—मत्ती १२:३५; लूका ६:४५.