पहले परमेश्वर के राज्य की खोज करो —सर्वदा स्तुतिरूपी बलिदान चढ़ाने के द्वारा
जो पहले राज्य की खोज करते हैं हमेशा यहोवा के बारे में बोलने और उसके राज्य के बारे में बातचीत करने के प्रति सचेत रहते हैं। (भज. १४५:११-१३) हर दिन उसके नाम को महिमा देने और सुसमाचार के बारे में बोलने के अवसर होते हैं। (भज. ९६:२) यहोवा की स्तुति करना भजनहार के लिए हर्ष की बात थी, उसने घोषित किया: “हम परमेश्वर की बड़ाई दिन भर करते रहते हैं।” (भज. ४४:८) यदि हम ऐसे ही महसूस करते हैं, तो हम राज्य सेवकाई में नियमित रूप से भाग लेने के लिए उत्सुक होंगे।
२ यहोवा ने विशिष्ट माँगें निर्धारित नहीं की हैं कि हमें सेवकाई में कितना समय बिताना चाहिए, लेकिन वह हमें प्रोत्साहित करता है कि हम उसकी स्तुति “सर्वदा” करते रहें। (इब्रा. १३:१५) यदि हमारी व्यक्तिगत परिस्थितियाँ अनुमति देती हैं, तो हमें हर सप्ताह यहोवा की स्तुति करने में कुछ समय बिताने का अपना लक्ष्य रखना चाहिए। जो पहले ही ऐसा कर रहे हैं वे शायद समय-समय पर या नियमित तौर पर भी सहयोगी पायनियर के रूप में सेवा करने के लिए अपने कार्यों को व्यवस्थित करने में समर्थ हो सकते हैं। कुछ लोग जो सहयोगी पायनियर सेवा का आनन्द उठाते रहे हैं शायद नियमित पायनियर के तौर पर शामिल होने में समर्थ हों।
३ हमारी व्यक्तिगत परिस्थितियाँ चाहे जो भी हों, क्या हमारे लिए अपने स्तुतिरूपी बलिदान में वृद्धि करना संभव है? जोश मूल्यांकन द्वारा प्रेरित होता है। परमेश्वर के वचन का व्यक्तिगत अध्ययन मूल्यांकन विकसित करता है। कलीसिया सभाएँ उस मूल्यांकन को व्यावहारिक तरीक़ों से व्यक्त करने के लिए हमें प्रेरित करती हैं। अन्य जोशीले स्तुति करनेवालों के साथ निकट संगति हमें ‘भले कामों के लिये उकसा’ सकती है। (इब्रा. १०:२४) कलीसिया द्वारा किए गए प्रबन्धों का पूरा फ़ायदा उठाने के द्वारा, हम शायद अपने स्तुतिरूपी बलिदान में वृद्धि करने में समर्थ हों।
४ भविष्यद्वक्तिन हन्नाह ने यहोवा की सेवा में एक उत्तम उदाहरण रखा। हालाँकि वह ८४ साल की थी, वह “मन्दिर को नहीं छोड़ती थी . . . रात-दिन उपासना किया करती थी।” (लूका २:३७) कलीसिया गतिविधियों में पूरे मन से उसका सम्मिलित होना उसे अत्यधिक व्यक्तिगत संतुष्टि लाता था। उसकी वफ़ादार सेवा का बाइबल वृत्तांत आज हमारे लिए प्रोत्साहन प्रदान करता है।
५ पौलुस ने सलाह दी कि “बलवानों को चाहिए कि निर्बलों की निर्बलताओं को सहें।” (रोमि. १५:१) संभव है कि आपकी कलीसिया में कुछ लोग हैं जो आपकी कृपापूर्ण सहायता और प्रोत्साहन से लाभ उठा सकेंगे। शायद क्षेत्र सेवकाई में आपके साथ आने के निमंत्रण भर की ज़रूरत है। एक प्रकाशक को शायद परिवहन की या उसके साथ कार्य करने के लिए किसी की ज़रूरत हो। किसी और को शायद निराशा की समस्या हो, और आप शायद वह व्यक्ति हों जो राज्य सेवा के लिए उस व्यक्ति के जोश को फिर से जगाने के लिए आवश्यक प्रोत्साहक सहारा प्रदान कर सकें। (१ थिस्स. ५:१४) ‘पवित्र लोगों को जो कुछ अवश्य हो, उस में उन की सहायता करने’ की आपकी तत्परता यहोवा के नाम की स्तुति बढ़ाने की आपकी हार्दिक इच्छा को प्रदर्शित करती है।—रोमि. १२:१३.
६ यहोवा हमारे लिए जो कुछ कर चुका है और जो करनेवाला है उन सब को गिनना असंभव है। इन आशिषों के लिए हम उसका बदला किसी भी तरह से नहीं चुका सकते। ‘सब प्राणियों को यहोवा की स्तुति करने’ के लिए कितने अति बाध्यकर कारण हैं!—भज. १५०:६.