ध्यान से अनुकरण करने के लिए एक आदर्श
निःसंदेह यीशु वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य था जो कभी जीवित रहा। उसने अपने शिष्यों के लिए एक पूर्ण उदाहरण रखा। हालाँकि हम सिद्धता के उसके स्तर पर पूरी तरह नहीं बैठ सकते हैं, हमसे ‘उसके पदचिह्नों पर ध्यान से चलने’ के लिए आग्रह किया जाता है। (१ पत. २:२१, NW) दूसरों के साथ सच्चाई को उत्साह से बाँटते हुए हमें जितना संभव हो सके उतना यीशु की तरह बनने की इच्छा होनी चाहिए।
२ यीशु एक प्रचारक से बढ़कर था; वह सर्वोत्तम शिक्षक था। “भीड़ उसके सिखाने के तरीक़े से चकित हो गयी।” (मत्ती ७:२८, NW) वह इतना प्रभावकारी क्यों था? आइए हम उसके “सिखाने के तरीक़े” को पास से देखें।
३ हम यीशु का अनुकरण कैसे कर सकते हैं: यीशु अपने पिता द्वारा सिखाया गया था। (यूह. ८:२८) यहोवा का आदर करना और उसके नाम की महिमा करना उसका उद्देश्य था। (यूह. १७:४, २६) हमारे प्रचार करने और सिखाने में, हमारा उद्देश्य भी अपने आप पर ध्यान आकर्षित करने का नहीं बल्कि यहोवा का आदर करने का होना चाहिए।
४ जो भी यीशु ने सिखाया वह परमेश्वर के वचन पर आधारित था। उसने उत्प्रेरित शास्त्र में जो लिखा था उसका निरंतर उल्लेख किया। (मत्ती ४:४, ७; १९:४; २२:३१) हम अपने सुननेवालों को बाइबल की ओर निर्दिष्ट करना चाहते हैं; इस प्रकार हम दिखाते हैं कि हम जो प्रचार करते और सिखाते हैं वह सर्वोच्च अधिकार पर आधारित है।
५ यीशु ने संक्षिप्त, व्यावहारिक, सरल अभिव्यक्तियों का इस्तेमाल किया। उदाहरण के लिए, यह समझाने में कि हम परमेश्वर की क्षमा कैसे प्राप्त कर सकते हैं, उसने हमें दूसरों को क्षमा करने का प्रोत्साहन दिया। (मत्ती ६:१४, १५) हमें राज्य संदेश को सरल, साधारण शब्दों में समझाने की कोशिश करनी चाहिए।
६ दूसरों के विचार को प्रेरित करने के लिए यीशु ने कुशलता से दृष्टान्तों और सवालों का इस्तेमाल किया। (मत्ती १३:३४, ३५; २२:२०-२२) साधारण, आम विषयों के बारे में दृष्टान्त लोगों को बाइबल के जटिल सिद्धान्तों को समझने में सहायता कर सकते हैं। हमें ऐसे सवाल पूछने चाहिए जो हमारे सुननेवालों को प्रोत्साहित करेंगे कि जो वे सुनते हैं, उस पर विचार करें। संकेतक सवाल उन्हें सही निष्कर्ष पर पहुँचने में सहायता कर सकते हैं।
७ यीशु ने उन लोगों को कठिन विषय समझाने के लिए समय निकाला जिन्होंने अधिक जानकारी माँगी। सचमुच दिलचस्पी रखनेवाले लोग, जैसे यीशु के शिष्य, उसकी शिक्षाओं का अर्थ समझने में समर्थ थे। (मत्ती १३:३६) जब निष्कपटता से सवाल पूछे जाते हैं तो हमें भी समान रीति से सहायक होना चाहिए। यदि हम जवाब नहीं जानते हैं, तो हम विषय पर खोजबीन करके जानकारी के साथ बाद में लौट सकते हैं।
८ यीशु ने सिखाने के लिए व्यावहारिक उदाहरणों का इस्तेमाल किया। उनका स्वामी होने पर भी उसके अपने शिष्यों के पाँव धोना इसका एक उदाहरण था। (यूह. १३:२-१६) यदि हम एक दीन आत्मा दिखाते हैं, तो सिखाए जानेवाले जो सीख रहे हैं उसे लागू करने के लिए प्रेरित होंगे।
९ यीशु ने लोगों के हृदय और धार्मिकता के लिए उनके प्रेम को आकर्षित किया। हम भी हृदयों तक पहुँचना चाहते हैं। हम एक अलौकिक व्यक्ति की उपासना करने और दूसरों के साथ शान्ति और ख़ुशी में जीने की सारी मानवजाति की जन्मजात इच्छा को आकर्षित करने की कोशिश करते हैं।
१० यीशु के बारे में जो बातें हमने सीखी हैं उसे हम दिसम्बर के दौरान दूसरों के साथ वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा पुस्तक पेश करने के द्वारा बाँट सकते हैं। यीशु के सिखाने के गुणों का हमारा नकल करना शायद निष्कपट लोगों को सुनने के लिए प्रेरित करे जब हम उन्हें वे बातें समझाते हैं जो यीशु ने सिखायीं।—मत्ती १०:४०.