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प्रोत्साहक बनिए

चूँकि हम “कठिन समय” में जीते हैं, हम सब को प्रोत्साहन की ज़रूरत है। (२ तीमु. ३:१) अपने समय में भी इस ज़रूरत के बारे में अच्छी तरह अवगत, पौलुस अपने भाइयों के साथ संगति को “आपस में . . . प्रोत्साहित” करने के अवसरों के रूप में प्रयोग करने के लिए उत्सुक था। उसने अपने भाइयों से आग्रह किया कि “उन बातों का प्रयत्न करें जिनसे . . . एक दूसरे का सुधार [“प्रोत्साहन”, NW] हो।” (रोमि. १:११, १२, NHT; १४:१९) ये प्रयास ‘चेलों के मनों को स्थिर करने और विश्‍वास में स्थिर बने रहने के लिए [उन्हें] प्रोत्साहित करने’ में सफल हुए। (प्रेरि. १४:२२, NHT) आज हमें इस क़िस्म के प्रोत्साहन की अत्यधिक ज़रूरत है।

२ हम जो कहते हैं उसके द्वारा हम दूसरों के लिए प्रोत्साहक हो सकते हैं। सही तरह से प्रयोग किए जाने पर हमारे शब्द ऐसे हो सकते हैं “जैसे चान्दी की टोकरियों में सोनहले सेब हों।” (नीति. २५:११) सभाओं में भाग लेने के द्वारा हम “एक दूसरे को प्रोत्साहित” करते हैं। (इब्रा. १०:२५, NHT) हमारी जीभ का सकारात्मक रीति से प्रयोग किया जा सकता है जब हम अनुभव बाँटते हैं, सराहना करते हैं, या आध्यात्मिक बातों पर चर्चा करते हैं। जीभ का ऐसा हितकर प्रयोग ‘उन्‍नति के लिये उत्तम है, उस से सुननेवालों पर अनुग्रह होता है।’—इफि. ४:२९.

३ प्रोत्साहक बातों के बारे में बात कीजिए: फिलिप्पियों ४:८ में पौलुस ने हमारी बोली के लिए सहायक सलाह दी। उसने कहा कि जो जो बातें सत्य, आदरणीय, उचित, पवित्र, सुहावनी, सुख्यात, सद्‌गुण और प्रशंसा की हैं उन पर हमें ध्यान लगाना चाहिए। हम हमेशा निश्‍चित हो सकते हैं कि यदि हमारी बात परमेश्‍वर के वचन पर आधारित है तो वह सत्य और लाभकारी होगी। (यूह. १७:१७) हमारा मसीही समर्पण, कलीसिया सभाओं में जो हम सीखते हैं, जिस रीति से हम अपनी सेवकाई को पूरी तरह निष्पन्‍न करते हैं, और ऐसी अन्य बातें आदरणीय हैं। परमेश्‍वर के वचन के स्तरों और सिद्धान्तों के बारे में सकारात्मक बातचीत निश्‍चित ही हमें “उद्धार प्राप्त करने के लिये बुद्धिमान” बनने में मदद दे सकती है। (२ तीमु. ३:१५) हम यहोवा के स्वच्छ संगठन में लोगों के पवित्र आचरण के प्रति अपना मूल्यांकन व्यक्‍त कर सकते हैं। हम अपने भाइयों के कृपा के सुहावने कार्यों का गुणगान कर सकते हैं। (यूह. १३:३४, ३५) सुख्यात बातों में विश्‍वास, आनन्द, मेल, और धीरज जैसे हितकर मसीही गुण सम्मिलित हैं जो हम अपने भाइयों में देखते हैं। ऐसी सद्‌गुणी और प्रशंसनीय बातों के बारे में बातचीत दूसरों के ‘प्रोत्साहन के लिए भली है।’—रोमि. १५:२, NW.

४ हर दिन हमें संसार की निरुत्साहक चिन्ताओं का सामना करना पड़ता है। इन बातों को एक किनारे रखकर अपने भाइयों के साथ प्रेममय संगति करना कितना स्फूर्तिदायक है! वह अनमोल समय जो हम एकसाथ बिताने में समर्थ होते हैं संजोने योग्य ख़ज़ाना है। यदि हम हमेशा प्रोत्साहन देते हैं और उत्साह बढ़ाते हैं, तो दूसरे हमारे बारे में सच सच कहेंगे: “उन्हों ने मेरी . . . आत्मा को चैन दिया है।”—१ कुरि. १६:१८.

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