प्रचार के वक्त एक-दूसरे का हौसला बढ़ाइए
हम सभी “ठीक समय पर कहा हुआ वचन,” यानी हौसला बढ़ानेवाली बातें सुनना पसंद करते हैं। (नीति. 25:11) तो फिर दूसरों के साथ प्रचार में काम करते वक्त, हम इस बात का ध्यान कैसे रख सकते हैं कि हमारी बातों से उनका हौसला बढ़े?
2 हौसला बढ़ानेवाली बातचीत: अगर हम प्रचार के दौरान अपने साथी से आध्यात्मिक विषयों पर बात करें, तो यह हम दोनों के लिए बहुत ही फायदेमंद साबित होगा। (भज. 37:30) हम उसे अपनी पेशकश या हाल ही में प्रचार में मिले बढ़िया अनुभव बता सकते हैं। (प्रेरि. 15:3) अगर हमें निजी बाइबल अध्ययन करते वक्त, हाल की कोई पत्रिका पढ़ते वक्त या फिर कलीसिया की सभा में कोई दिलचस्प मुद्दा मिला है, तो हम उस पर चर्चा कर सकते हैं। इसके अलावा, हम हाल ही में पेश किए गए जन भाषण के कुछ मुद्दों पर बातचीत कर सकते हैं।
3 जब कोई घर-मालिक हमारी बात पर एतराज़ करता है या कोई सवाल खड़ा करता है और हम उसका जवाब देने में नाकाम हो जाते हैं, तब शायद हम निराश हो जाएँ। ऐसे में बेहतर होगा, अगर हम उस घर से जाने के बाद, कुछ मिनट अपने साथी के साथ चर्चा करें कि अगली दफा ऐसे हालात उठने पर हम क्या कर सकते हैं। इस चर्चा के लिए हम रीज़निंग किताब इस्तेमाल कर सकते हैं। और जब हमें अपने साथी की पेशकश में कोई बात अच्छी लगती है, तो हम दिल से उसकी तारीफ करके उसका हौसला बढ़ा सकते हैं।
4 पहल कीजिए: क्या हमारे पुस्तक अध्ययन समूह में ऐसा कोई प्रचारक है, जिसके साथ हमने काफी समय से प्रचार काम नहीं किया है? अगर हाँ, तो हम उसे अपने साथ प्रचार में आने के लिए कह सकते हैं। इसका नतीजा यह होगा कि हम ‘एक-दूसरे से प्रोत्साहित किए जाएँगे।’ (रोमि. 1:12, NHT) अगर हम रेग्युलर और सहयोगी पायनियरों के साथ, खासकर सुबह-सुबह या फिर देर दोपहर के वक्त प्रचार में जाएँ, तो उन्हें बेहद खुशी होगी। क्योंकि अकसर ऐसे समय पर बहुत कम प्रचारक उनका साथ देते हैं। इसके अलावा, क्या हमारी कलीसिया में कोई ऐसा प्रचारक है, जो सेहत ठीक न होने की वजह से प्रचार में ज़्यादा नहीं जा पाता? अगर हम ऐसे भाई या बहन को अपने साथ प्रचार में या बाइबल अध्ययन पर ले जाएँ, तो इससे हम दोनों को फायदा हो सकता है।—नीति. 27:17.
5 छोटे-से-छोटे मामले में भी दूसरों को शाबाशी देने या उन्हें तारीफ के दो शब्द कहने से उनकी काफी हौसला-अफज़ाई होती है। यह बात हमें दूसरों के साथ प्रचार करते वक्त याद रखनी चाहिए, क्योंकि हम ‘एक-दूसरे की उन्नति के कारण बनना’ चाहते हैं।—1 थिस्स. 5:11.