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  • अपनी उन्‍नति प्रगट कीजिए
  • हमारी राज-सेवा—1995
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हमारी राज-सेवा—1995
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अपनी उन्‍नति प्रगट कीजिए

उस समय की याद कीजिए जब आपने पहली बार राज्य संदेश सुना था। साधारण सच्चाइयों ने ज्ञान और समझ के लिए आपकी इच्छा को उत्तेजित किया था। शीघ्र ही आप अपनी जीवन-शैली में समंजन करने की आवश्‍यकता को देखने में समर्थ हुए थे क्योंकि यहोवा के मार्ग आपके मार्गों से कहीं ज़्यादा ऊँचे हैं। (यशा. ५५:८, ९) आपने उन्‍नति की, अपने जीवन को समर्पित किया, और बपतिस्मा प्राप्त किया।

२ कुछ आध्यात्मिक प्रगति करने के बाद भी, कुछ कमज़ोरियाँ थीं जिन पर विजय पानी थी। (रोमि. १२:२) संभवतः आपको मनुष्यों का भय था, जिससे आप क्षेत्र सेवा में भाग लेने में अनिच्छुक बन गए। अथवा संभवतः आपमें परमेश्‍वर की आत्मा के फल प्रदर्शित करने की कमी थी। पीछे हटने के बजाय, अपने लिए ईश्‍वरशासित लक्ष्य रखने के द्वारा आप उन्‍नति करने के लिए दृढ़-संकल्प थे।

३ जब से आपने अपना समर्पण किया है तब से शायद कई वर्ष अब बीत गए हैं। पीछे देखने से, आप स्वयं में कौन-सी उन्‍नति देख सकते हैं? क्या आपने अपने कुछ लक्ष्यों को प्राप्त किया है? क्या आपमें वही उत्साह है जो “प्रथम” में आपके पास था? (इब्रा. ३:१४) तीमुथियुस पहले ही कई वर्षों का अनुभवी एक परिपक्व मसीही था जब पौलुस ने उससे आग्रह किया: “उन बातों को सोचता रह और उन्हीं में अपना ध्यान लगाए रह, ताकि तेरी उन्‍नति सब पर प्रगट हो।”—१ तीमु. ४:१५.

४ व्यक्‍तिगत परीक्षण आवश्‍यक है: जब हम अपने पिछले मार्ग के बारे में सोचते हैं, क्या हम पाते हैं कि कुछ कमज़ोरियाँ जो आरंभ में हममें थीं हममें अब भी मौजूद हैं? जो लक्ष्य हमने रखे थे क्या उन्हें प्राप्त करने में हम असफल रहे हैं? यदि ऐसा है, तो क्यों? हालाँकि हमारे अभिप्राय अच्छे थे हमने शायद विलम्ब किया होगा। कदाचित्‌ हमने जीवन की चिन्ताओं अथवा इस व्यवस्था के दबावों को हमें पीछे हटाने दिया है।—लूका १७:२८-३०.

५ जबकि हम अतीत के बारे में कुछ भी नहीं कर सकते, हम भविष्य के बारे में निश्‍चय ही कुछ कर सकते हैं। हम स्वयं अपना एक सच्चा आत्म-परीक्षण कर सकते हैं, हममें कहाँ कमी है यह पता कर सकते हैं, और तब सुधारने के लिए संकेन्द्रित प्रयत्न कर सकते हैं। हमें शायद परमेश्‍वर की आत्मा के फलों, जैसे संयम, नम्रता, धीरज, को प्रदर्शित करने में बेहतर प्रयास करने की आवश्‍यता हो। (गल. ५:२२, २३) यदि हमें दूसरों के साथ व्यवहार में अथवा प्राचीनों को सहयोग देने में कठिनाई है, तो नम्रता और मन की दीनता को विकसित करना महत्त्वपूर्ण है।—फिलि. २:२, ३.

६ सेवा के विशेषाधिकारों के लिए आगे बढ़ने के द्वारा क्या हम अपनी उन्‍नति प्रगट कर सकते हैं? अतिरिक्‍त प्रयास के साथ भाई सेवकाई सेवक अथवा प्राचीन के तौर पर योग्य होने में समर्थ हो सकते हैं। हममें से कुछ शायद नियमित पायनियरों के तौर पर नाम देने में समर्थ हों। अन्य अनेकों के लिए, सहयोगी पायनियर कार्य शायद एक प्राप्य लक्ष्य हो। अन्य, व्यक्‍तिगत अध्ययन की आदतों को सुधारने, कलीसिया सभाओं में ज़्यादा सक्रिय भाग लेनेवाले बनने, अथवा कलीसिया प्रकाशकों के तौर पर ज़्यादा फलदायी बनने का प्रयास कर सकते हैं।

७ हमें कहाँ उन्‍नति करने की आवश्‍यकता है, इसका फैसला करना निश्‍चय ही हममें से प्रत्येक की ज़िम्मेदारी है। हम निश्‍चित हो सकते हैं कि ‘सिद्धता की ओर आगे बढ़ते जाने’ का हमारा निष्कपट प्रयास हमारे आनंद को अत्यधिक बढ़ाएगा और हमें कलीसिया का अधिक फलदायी सदस्य बनाएगा।—इब्रा. ६:१.

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