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साहस से बात कीजिए

हाल के वर्षों में कुछ क्षेत्रों में प्रकाशक लोगों से उनके घर पर बात करना अधिकाधिक मुश्‍किल पा रहे हैं। अनेक व्यक्‍ति रिपोर्ट करते हैं कि उनके क्षेत्र में ५० प्रतिशत से ज़्यादा लोग, जब घर-घर भेंट की जाती है तो घर पर नहीं होते। इसके फलस्वरूप, बिताया गया अधिकांश समय फलदायक नहीं होता।

२ सालों पहले रविवार के दिन, जिसे सामान्यतः विश्राम का दिन माना जाता था, अनेक लोग घर पर मिलते थे। रिवाज़ों में परिवर्तन आया है। लौकिक नौकरी करना, ख़रीदारी जैसी परिवार की ज़रूरतों की देख-रेख करना, या मनोरंजन करना आज लोगों के लिए सामान्य है, और यह बातें भी उन्हें घर से दूर ले जाती हैं। सो रविवार के दिन भी, घर-घर में लोगों से सम्पर्क करना एक समस्या बन गयी है।

३ जब लोग घर पर नहीं होते, तो यह स्पष्ट है कि वे कहीं और हैं। क्योंकि हमारा लक्ष्य है लोगों से बात करना, तो क्यों न हम उनसे बात करें जिनसे हम मिलते हैं—सड़क पर, बाज़ार में, या कार्य-स्थल पर। पौलुस का यह रिवाज़ था कि “जो लोग मिलते थे” उनके पास गवाही देने के लिए जाए। (प्रेरि. १७:१७) यह तब गवाही देने का एक फलदायी तरीक़ा साबित हुआ, और यह हमारे समय में भी गवाही देने का फलदायी तरीक़ा है।

४ जब हम घर-घर जाते हैं, हम सामान्यतः लोगों को यों ही चलते हुए या शायद किसी का इंतज़ार करते हुए देखते हैं। एक अच्छे-से दिन, वे शायद किसी बग़ीचे की बेंच पर बैठे हों या अपनी गाड़ी की मरम्मत कर रहे हों अथवा उसे धो रहे हों। बातचीत शुरू करने के लिए शायद हमें केवल एक दोस्ताना मुस्कुराहट और एक मैत्रीपूर्ण अभिवादन की ज़रूरत हो। अगर वे पास ही रहते हैं, तो हम यह भी कह सकते हैं कि हम शायद उनसे उनके घर पर नहीं मिले और अब ख़ुश हैं कि उनके साथ बात करने का यह मौक़ा हमारे पास है। थोड़ा और साहस दिखाने के लिए पहल करने के द्वारा, अनेकों ने लाभप्रद अनुभवों का आनन्द लिया है।

५ साहस से परिणाम निकलते हैं: एक भाई ने कहा कि वह उन लोगों के पास जाता है जो खड़े हैं, बस का इंतज़ार कर रहे हैं, धीरे-धीरे चल रहे हैं या अपनी कार में बैठे हैं। एक स्नेहिल मुस्कान और प्रसन्‍न आवाज़ से, वह एक मैत्रीपूर्ण पड़ोसी का रुख अपनाता है जो सिर्फ़ मिलना चाहता है। इस तरीक़े से न केवल उसने काफ़ी साहित्य वितरित किया है बल्कि उसने अनेक बाइबल अध्ययन भी आरंभ किए हैं।

६ एक और भाई और उसकी पत्नी दर-दर भेंट कर रहे थे जब उनकी एक स्त्री से मुलाक़ात हुई जो किराने के सामान का एक बड़ा थैला लिए चल रही थी। उन्होंने बातचीत शुरू की, अपने परिवार की ज़रूरतों की देखभाल करने के लिए उसके परिश्रम की तारीफ़ की। “लेकिन,” उन्होंने पूछा, “मानवजाति की ज़रूरतों को कौन पूरा कर सकता है?” उस बात ने स्त्री की दिलचस्पी जगायी। एक संक्षिप्त बातचीत उसके घर में आमंत्रण की ओर ले गयी, जहाँ एक बाइबल अध्ययन आरंभ किया गया।

७ सो अगली बार जब आप दर-दर गवाही दे रहे हों, चाहे रविवार के दिन या सप्ताह के किसी और दिन, और आप पाते हैं कि लोग घर पर नहीं हैं, तो क्यों न थोड़ा और साहस जुटाकर आप जिन लोगों से मिलते हैं—सड़क पर या कहीं और—उनसे बात करें? (१ थिस्स. २:२) आपकी सेवकाई ज़्यादा फलदायी हो सकती है, और आप अपनी सेवा में ज़्यादा आनन्द का अनुभव करेंगे।

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