क्या आप बहुत व्यस्त हैं?
पौलुस ने सलाह दी कि हमारे पास ‘प्रभु के काम में हमेशा अत्यधिक रूप से व्यस्त रहने’ के लिए काफ़ी कुछ है। (१ कुरि. १५:५८, NW) हमसे व्यक्तिगत अध्ययन के लिए दैनिक नित्यक्रम बनाए रखने, सेवकाई में नियमित रूप से हिस्सा लेने, नियमित रूप से सभाओं में उपस्थित होने, और कलीसिया नियुक्तियों को परिश्रमी रूप से पूरा करने के लिए आग्रह किया जाता है। इसके अतिरिक्त, हमें ऐसे अन्य लोगों की भी सहायता करनी है जिन्हें हमारी मदद की ज़रूरत है। क्योंकि हमें करने को इतना कुछ है, समय-समय पर हम शायद अभिभूत महसूस करें, यह सोचते हुए कि हमें अपने कार्य-भार को कम करने के लिए तरीक़े ढूँढने हैं।
२ ऐसी परिस्थितियाँ हैं जो कुछ गतिविधियों को रोकने या उनकी मात्रा को कम करने को दोनों, बुद्धिमत्तापूर्ण और तर्कसंगत बना सकती हैं। कुछ व्यक्ति महसूस करते हैं कि दूसरे उनसे जो भी निवेदन करें, उसे करने की उनसे अपेक्षा की जाती है। इस सम्बन्ध में संतुलन की कमी दबाव और तनाव उत्पन्न कर सकती है जो अंततः सर्वनाशी बन सकते हैं।
३ संतुलित रहिए: संतुलन की कुंजी ‘उत्तम से उत्तम बातों को प्रिय जानने’ की पौलुस की सलाह को लागू करने में है। (फिलि. १:१०) इसका महज़ यह अर्थ है कि हमें ऐसी बातों पर ध्यान केन्द्रित करना है जो वास्तव में महत्त्वपूर्ण हैं और, यदि समय और परिस्थितियाँ अनुमति दें, तो हमें कम महत्त्व की कुछ बातों की देखरेख करनी है। पारिवारिक बाध्यताएँ निश्चय ही अत्यावश्यक बातों में अव्वल हैं। कुछ लौकिक ज़िम्मेदारियों को सँभाला जाना है। लेकिन, यीशु ने सिखाया कि हमारी प्राथमिकताओं को इस सिद्धान्त पर आधारित होना चाहिए कि हम पहले राज्य की खोज करें। हमें पहले ऐसे काम करने हैं जो हमें यहोवा के प्रति अपने समर्पण को पूरा करने की अनुमति देंगे।—मत्ती ५:३; ६:३३.
४ इसे ध्यान में रखते हुए, हम निश्चित करेंगे कि हम अपनी व्यस्त सारणी से किसी भी अनावश्यक व्यक्तिगत लक्ष्यों, अत्यधिक मनोरंजनात्मक गतिविधियों, और दूसरों के प्रति अमहत्त्वपूर्ण वचनबद्धताओं को काट दें। हर सप्ताह के लिए अपनी गतिविधि की योजना बनाते वक़्त, हम पर्याप्त व्यक्तिगत अध्ययन के लिए, सेवा में उचित हिस्सा लेने के लिए, सभाओं में उपस्थिति के लिए, और हमारी उपासना से नज़दीकी से जुड़ी हुई कोई भी अन्य बातों के लिए समय अलग रखेंगे। शेष समय को अन्य लक्ष्यों में विभाजित किया जा सकता है, जो इस पर निर्भर करते हुए विभाजित किया जाएगा कि वे ऐसे संतुलित मसीही, जो राज्य को पहले रखते हैं, होने के हमारे मुख्य लक्ष्य को प्राप्त करने के प्रति कितना योग देते हैं।
५ तिस पर भी, हम शायद ऐसा महसूस करें कि हमारा भार कष्टकर है। यदि हाँ, तो हमें यीशु के निमंत्रण के प्रति अनुक्रिया दिखाने की ज़रूरत है: “हे सब परिश्रम करनेवालो और बोझ से दबे हुए लोगो, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा।” (मत्ती ११:२८) साथ ही, यहोवा की ओर देखिए, “जो प्रति दिन हमारा बोझ उठाता है” और थके हुए जन को बल देता है। वह वादा करता है कि वह धर्मी को कभी टलने नहीं देगा। (भज. ५५:२२; ६८:१९; यशा. ४०:२९) हम आश्वस्त हो सकते हैं कि हमारी प्रार्थनाओं के जवाब दिए जाएँगे और ईश्वरशासित गतिविधि के सक्रिय जीवन में हमारा लगे रहना संभव होगा।
६ जबकि योग्य राज्य हितों में लगे रहने में हमें निश्चय ही व्यस्त रखा जाएगा, हम यह जानकर आनन्दित हो सकते हैं कि प्रभु के सम्बन्ध में हमारा परिश्रम व्यर्थ नहीं है।—१ कुरि. १५:५८.