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“धन्यवादी बने रहो”

हम में से अधिकांश लोगों को बचपन में “कृपया” और “धन्यवाद” कहना सिखाया गया था, जब कोई हमारे प्रति शिष्टाचार या कृपा दिखाता। पौलुस हमेशा ‘धन्यवादी बने रहने’ के लिए हमें याद दिलाता है, और हमें ख़ासकर यहोवा के प्रति एहसानमंद होना चाहिए। (कुलु. ३:१५, १६) लेकिन हम अपने महान सृष्टिकर्ता के प्रति धन्यवाद कैसे प्रदर्शित कर सकते हैं? और उसके प्रति धन्यवादी होने के लिए हमारे पास कौन-से ख़ास कारण हैं?

२ प्रेरित पौलुस ने लिखा: “परमेश्‍वर का धन्यवाद हो, जो हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा हमें जयवन्त करता है!” (१ कुरि. १५:५७) हर साल स्मारक के समय, हमें उस असीम प्रेम की याद दिलाई जाती है जिसे दोनों परमेश्‍वर और मसीह ने उस छुड़ौती को उपलब्ध करने में दिखाया, जो हमें अनंत जीवन की आशा देता है। (यूह. ३:१६) चूँकि हम में से लगभग सभी ने प्रिय जनों को मृत्यु में खोया है, हम पुनरुत्थान के यीशु के वायदे के लिए कितने धन्यवादी हैं! हमारे हृदय आभार से उमड़ पड़ते हैं जब हम इस व्यवस्था के अंत से बच निकलने और कभी ना मरने की प्रत्याशा के बारे में विचार करते हैं। (यूह. ११:२५, २६) यहोवा के हाथों आनेवाली उन सभी अद्‌भुत आशीषों का धन्यवाद व्यक्‍त करने के लिए शब्दों को ढूँढ़ना मुश्‍किल है, जिनका हम आनेवाले पार्थिव परादीस में अनुभव करेंगे। (प्रका. २१:४) परमेश्‍वर के प्रति ‘धन्यवादी बनने’ के लिए किसी के पास इनसे बेहतर कारण क्या हो सकते हैं?

३ परमेश्‍वर को धन्यवाद कैसे व्यक्‍त करें: यहोवा को उसकी भलाई के लिए प्रार्थना में अपना धन्यवाद व्यक्‍त करना हमेशा उचित होता है। (भज. १३६:१-३) हम उसके प्रति अपना धन्यवाद, दूसरे सकारात्मक तरीक़ों से प्रदर्शित करने के लिए भी प्रेरित होते हैं। मिसाल के तौर पर, हम रविवार, मार्च २३ को मसीह की मृत्यु के स्मारक में ज़रूर उपस्थित होंगे। स्थानीय कलीसिया और विश्‍वव्यापी कार्य की भौतिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए, हम ख़ुशी-ख़ुशी ‘अपनी संपत्ति के द्वारा यहोवा का आदर करते’ हैं। (नीति. ३:९, NHT) हम प्राचीनों का पूरा समर्थन करते हैं और उन्हें सहयोग देते हैं। इस प्रकार, उनके ज़रिए जो मदद वह प्रदान करता है, उसके लिए हम यहोवा के प्रति अपना धन्यवाद व्यक्‍त करते हैं। (१ थिस्स. ५:१२, १३) प्रतिदिन, हम खरा चालचलन क़ायम रखने का प्रयास करते हैं जो परमेश्‍वर के नाम को महिमा लाता है। (१ पत. २:१२) हमारे धन्यवाद के इन सभी कार्यों से यहोवा प्रसन्‍न होता है।—१ थिस्स. ५:१८.

४ धन्यवाद की हमारी सर्वोत्तम अभिव्यक्‍ति: हमारे सृष्टिकर्ता ने हमारे लिए जो कुछ किया है, उसके लिए हार्दिक धन्यवाद की जो सर्वोत्तम अभिव्यक्‍तियाँ हम दे सकते हैं उनमें से कुछ हैं, राज्य-प्रचार कार्य में पूरे मन से हिस्सा लेना, यहोवा के नाम को सम्मानित करना, प्रार्थना में धन्यवाद व्यक्‍त करना, और वफ़ादारी से सच्चाई की प्रतिरक्षा करना। यहोवा हमें उसकी इच्छा के समर्थन में पवित्र सेवा के कार्य करते देखकर ख़ुश होता है “कि सब मनुष्यों का उद्धार हो।” (१ तीमु. २:३, ४) इसीलिए इतने सारे प्रकाशक जो ऐसा कर सकते हैं, फरवरी की हमारी राज्य सेवकाई में प्रकाशित उस पुकार के प्रति अनुक्रिया दिखा रहे हैं जिसमें मार्च, अप्रैल, और मई में से एक या अधिक महीनों के दौरान सहायक पायनियरों के तौर पर नाम लिखवाने का आह्वान किया गया था। सेवकाई में कुछ अधिक प्रयास करना, परमेश्‍वर के प्रति ‘धन्यवादी बने रहने’ का एक बढ़िया तरीक़ा है। क्या आप अप्रैल, या मई में पायनियर कार्य कर सकेंगे?

५ हमें सर्वदा जीवित रहने की एक निश्‍चित आशा दी गई है। जब हम उसे पूरा होते देखेंगे, तब हमारे पास यहोवा को आनंदित धन्यवाद देते रहने के लिए प्रतिदिन और भी ढेरों कारण होंगे।—भज. ७९:१३.

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