सभाओं में जवाब देकर एक दूसरे को मज़बूत कीजिए
इब्रानियों १०:२४ में हमें ‘एक दूसरे को प्रेम करने, और भले कामों में उस्काने’ की सलाह दी गई है। इसका मतलब है कलीसिया की सभाओं में ऐसे जवाब देना जिनसे सभी कुछ न कुछ सीख सकें और जिनसे उनको मज़बूती मिले। जवाब देना ज़रूरी क्यों है? हम जवाब कैसे दे सकते हैं? और इससे किसे फायदा होगा?
२ याद कीजिए कि दूसरों के सरल और स्पष्ट जवाब से खुद आपको कितनी बार फायदा हुआ है और इससे आपकी समझ बढ़ी है और आप आध्यात्मिक रूप से मज़बूत हुए हैं। आपके पास भी दूसरों की ऐसी मदद करने का एक अच्छा मौका है। जब आप जवाब देते हैं तब आप यह ज़ाहिर करते हैं कि आप सभी सुननेवालों को ‘आत्मिक बरदान देने’ की इच्छा रखते हैं।—रोमि. १:११, १२.
३ अच्छा जवाब कैसे दिया जाए: लंबा-चौड़ा जवाब देकर पूरा अनुच्छेद मत समझाइए। ऐसे लंबे जवाब से ना तो खास मुद्दे स्पष्ट हो पाते हैं और ना ही दूसरों को जवाब देने का मौका मिलता है। पहला जवाब छोटा होना चाहिए और सवाल का सीधा जवाब होना चाहिए। इसके बाद जवाब देनेवाले बता सकते हैं कि विषय को कैसे अमल में लाया जा सकता है या शास्त्रवचन कैसे लागू होते हैं। स्कूल गाइडबुक का पेज ९०-२ देखिए।
४ अगर जवाब देने के नाम से ही आपको डर लगता है तो पहले से छोटा जवाब तैयार कर लीजिए और जिस अनुच्छेद पर जवाब देना चाहते हैं वह संचालक को बता दीजिए। अगर आप सभाओं में कुछ समय तक ऐसा करते रहें तो जवाब देना धीरे-धीरे आपके लिए आसान हो जाएगा। याद रखिए, मूसा और यिर्मयाह को भी लोगों के सामने बात करने से डर लगता था। (निर्ग. ४:१०; यिर्म. १:६) लेकिन यहोवा ने बात करने में उनकी मदद की और वह आपकी भी मदद करेगा।
५ आपके जवाबों से किन लोगों को फायदा होगा? आपके जवाब देने से खुद आपको फायदा होगा क्योंकि सच्चाई आपके दिल और दिमाग में अच्छी तरह समा जाएगी और ये बातें आपको हमेशा याद रहेंगी। और दूसरे भी आपके जवाबों से प्रोत्साहित होंगे। जब कलीसिया में सभी लोग, बुज़ुर्ग, जवान, शर्मीले या नए अपने शब्दों में जवाब देकर अपना विश्वास ज़ाहिर करते हैं तो हमें बड़ी खुशी होती है।
६ जब हम सभाओं में एक दूसरे को मज़बूत करने के लिए जवाब देते हैं तो हम बेशक यह जान पाएँगे कि “अवसर पर कहा हुआ वचन क्या ही भला होता है!”—नीति. १५:२३.