सहायक सेवक अनमोल सेवा करते हैं
“इन्होंने सचमुच खुद को दूसरों की सेवा के लिए दे दिया है और यह उनके कामों से साबित होता है। वे परमेश्वर के राज्य के लिए जोश के साथ सेवा करते हैं और दूसरों के विश्वास को भी मज़बूत करते हैं। इससे उनका विश्वास साफ ज़ाहिर होता है।” किताब अपनी सेवकाई को पूरा करने के लिए संगठित (अंग्रेज़ी) के पेज ५७ पर सहायक सेवकों के बारे में ऐसा कहा गया है। हाँ, यह सच है कि सहायक सेवकों ने हमारे सामने परमेश्वर के काम करने की एक अच्छी मिसाल कायम की है और हमें उस मिसाल पर चलना चाहिए। जब हम उनके और प्राचीनों के काम में हाथ बँटाते हैं तब “देह बढ़ती जाती है, और इस प्रकार प्रेम में स्वयं उसकी उन्नति होती है।”—इफि. ४:१६, NHT.
२ सहायक सेवक कलीसिया में बहुत ही ज़रूरी काम करते हैं। वे अकाउंट्स, लिट्रेचर, मैगजीन, सबस्क्रिप्शन, और टेरिटरी की देखरेख करते हैं। वे अटेंडेंट का काम करते हैं, साउंड सिस्टम सँभालते हैं और राज्यगृह का रखरखाव करते हैं। ईश्वरशासित सेवकाई स्कूल और सेवा सभाओं में भी उनका भाग होता है। उनमें से कुछ, जन-भाषण भी देते हैं या कुछ सभाएँ भी चलाते हैं। जैसे शरीर के अंग अलग-अलग काम करते हैं वैसे ही सहायक सेवक हमारे लिए ज़रूरी काम करते हैं।—१ कुरि. १२:१२-२६.
३ जब सहायक सेवक प्राचीनों के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर काम करते हैं और एकदूसरे की इज़्ज़त करते हैं और एकदूसरे को समझते हैं, तब इसे देखकर दूसरे भी उनकी मिसाल पर चलना चाहेंगे। (कुलु. २:१९) जब वे अपनी ज़िम्मेदारियों को लगातार पूरा करते हैं और दिखाते हैं कि वे हर भाई-बहन की दिल से परवाह करते हैं तो इससे पूरी कलीसिया आध्यात्मिक रूप से फलने-फूलने लगती है।
४ तो फिर हम यह कैसे दिखा सकते हैं कि हम इन मेहनती सहायक सेवकों के एहसानंद हैं? पहले हमें उनकी ज़िम्मेदारियों के बारे में अच्छी जानकारी होनी चाहिए और फिर जब उन्हें हमारी मदद की ज़रूरत हो तब हमें तैयार रहना चाहिए। हम अपनी बातों से या अपने कामों से उन्हें यह दिखा सकते हैं कि हम उनकी सेवा की कितनी कदर करते हैं। (नीति. १५:२३) जो लोग हमारी खातिर कड़ी मेहनत करते हैं वे वाकई हमारे आदर के हकदार हैं।—१ थिस्स. ५:१२, १३.
५ परमेश्वर के वचन में साफ-साफ बताया गया है कि सहायक सेवक क्या काम करते हैं और उनमें क्या-क्या बातें देखी जाती हैं। (१ तीमु. ३:८-१०, १२, १३) उनकी यह पवित्र सेवा कलीसिया के सही तरह काम करते रहने के लिए बेहद ज़रूरी है। तो फिर हमारा यह फर्ज़ बनता है कि ऐसे भाइयों का हरदम हौसला बढ़ाते रहें क्योंकि उन सभी के पास “प्रभु के काम” की भारी ज़िम्मेदारी है।—१ कुरि. १५:५८.