“इंटरनॆट का इस्तेमाल कीजिए, मगर होशियारी से!”
यहोवा के लोग जब एक-दूसरे से मिलते हैं तो उन्हें बेहद खुशी होती है। उन्हें प्रचार काम में मिले अनुभवों के बारे में एक-दूसरे को बताना अच्छा लगता है साथ ही दुनिया के अलग-अलग देशों में रहनेवाले भाई-बहनों की खैरियत जानने और वहाँ चल रहे राज्य के प्रचार के बारे में खबरें सुनना भी उन्हें बहुत पसंद है। वे जानना चाहते हैं कि कहीं उनके भाई-बहन मुसीबत में तो नहीं हैं या उन्हें बाढ़-भूकंप जैसा कोई हादसा तो नहीं सहना पड़ रहा, ताकि वे मुसीबत से गुज़र रहे अपने भाई-बहनों की मदद कर सकें। इस तरह हम देखते हैं कि हम एक-दूसरे से बेहद प्यार करते हैं और एकता के बंधन में बँधे हुए है।—यूहन्ना १३:३४, ३५.
२ आज दुनिया में जो हो रहा है उसकी खबर हमारे कानों तक पहुँचने में पल भर की भी देरी नहीं होती। रेडियो और टीवी, दुनिया में हो रही घटनाओं का आँखों देखा हाल सभी लोगों तक पहुँचा रहे हैं। टेलीफोन के ज़रिए भी दुनिया के किसी भी कोने में रहनेवाले को कोई भी खबर तुरंत पहुँचाना मुमकिन है। और इस दौर में आजकल एक चीज़ जो बहुत मशहूर होती जा रही है वह है इंटरनॆट।—सजग होइए!, अगस्त ८, १९९७ देखिए।
३ आज टेलीफोन के ज़रिए हम जब चाहे तब दुनिया के किसी भी कोने में रहनेवाले से बात कर सकते हैं। टेलीफोन एक बहुत ही काम की चीज़ है, मगर इसके इस्तेमाल में सावधानी बरतना भी ज़रूरी है, क्योंकि यह हमें बुरे लोगों की दोस्ती या बुरे कामों में फँसा सकता है और टेलीफोन का हद से ज़्यादा इस्तेमाल करना महँगा भी पड़ सकता है। टीवी और रेडियो से हमें काफी कुछ जानकारी मिलती है। लेकिन अफसोस की बात है कि आजकल इनके ज़्यादातर कार्यक्रम अश्लील होते हैं इसलिए उन पर ध्यान देना वक्त की बरबादी है। तो अक्लमंदी इसी में है कि हम टीवी और रेडियो के सिर्फ कुछ गिने-चुने कार्यक्रमों पर ही ध्यान दें।
४ इंटरनॆट के ज़रिए देश-विदेश के लाखों लोगों से बात करके ढेर सारी जानकारी हासिल की जा सकती है और यह इतना महँगा भी नहीं है। (अँग्रेज़ी सजग होइए!, जनवरी ८, १९९८ देखिए।) लेकिन, इंटरनॆट का अंघाघुंध इस्तेमाल करना आध्यात्मिक और नैतिक रूप से बहुत ही खतरनाक है। यह कैसे हो सकता है?
५ कई लोग यह देखकर चिंतित हैं कि आजकल इंटरनॆट के ज़रिए खुलेआम बताया जा रहा है कि हथियार और यहाँ तक बम भी कैसे बनाए जा सकते हैं। कुछ फैक्ट्री के मालिक शिकायत कर रहे हैं कि उनके कर्मचारी काम का ज़्यादातर वक्त इंटरनॆट में बरबाद करते हैं। और इंटरनॆट के इस्तेमाल से आध्यात्मिक बातों में भी नुकसान हो सकता है, इसलिए इसके बारे में हमारे साहित्यों में कई बार साफ-साफ बताया गया है। ऐसे कई वॆब साइट्स हैं जिनके ज़रिए बहुत ही हिंसक और गंदी बातें एक-दूसरे तक पहुँचाई जाती हैं जो कि मसीहियों के लिए बिलकुल मना हैं। (भजन ११९:३७) इनके अलावा एक बहुत बड़ा खतरा है जिससे खासकर यहोवा के साक्षियों को सावधान रहने की ज़रूरत है। यह कौन-सा खतरा है?
६ ज़रा सोचिए, क्या आप किसी अजनबी को अपने घर में यूँ ही चले आने देंगे, यह भी जाने बिना कि वह कैसा आदमी है? और अगर उसके बारे में पता करने का कोई रास्ता न हो तो? क्या आप उस अजनबी को अपने बच्चों के साथ घर पर अकेला छोड़ देंगे? बिलकुल यही खतरा इंटरनॆट के इस्तेमाल में हो सकता है।
७ इंटरनॆट के ज़रिए आप अजनबियों को भी इलैक्ट्रोनिक मेल भेज सकते हैं और उनसे पा सकते हैं। उसी तरह फोरम या चैट रूम से भी आप अजनबियों के साथ बात कर सकते हैं। कभी-कभी ये अजनबी शायद यहोवा के साक्षी होने का ढोंग रचें, लेकिन दरअसल वे झूठ बोल रहे होते हैं। कुछ लोग जवान होने का भी दावा कर सकते हैं। और कुछ तो अपनी यह पहचान भी छिपाते हैं कि वे स्त्री हैं या पुरुष।
८ कभी-कभी हमारे विश्वास के बारे में किसी की राय या भाई-बहनों के कुछ अनुभव भी आप तक पहुँचाए जा सकते हैं। यह जानकारी दूसरों को भी दी जाती है। फिर वे भी औरों को यह जानकारी भेजते हैं। इस तरह देखते ही देखते यह जानकारी जगह-जगह फैल जाती है। इस तरह फैलाई जानेवाली जानकारी की असलियत जानना अकसर मुमकिन नहीं होता और यह झूठ भी हो सकती है। ये सब, झूठी शिक्षाएँ फैलाने की एक चाल भी हो सकती है।—२ थिस्स. २:१-३.
९ अगर आप इंटरनॆट का इस्तेमाल करते हैं तो इस खतरे को ध्यान में रखते हुए अपने आप से पूछिए, ‘इसे मैं किस लिए इस्तेमाल कर रहा हूँ? क्या इसके ज़रिए मुझे आध्यात्मिक तौर से नुकसान हो सकता है? क्या मैं इससे दूसरों को भी आध्यात्मिक बातों में नुकसान तो नहीं पहुँचा रहा?’
१० “यहोवा के साक्षियों” के वॆब साइट्स: मिसाल के तौर पर, कुछ इंटरनॆट साइट्स को ऐसे लोगों ने तैयार किया है जो यहोवा के साक्षी होने का दावा करते हैं। वे आपको उनके साइट देखने का न्योता दे सकते हैं ताकि आप कुछ अनुभव पढ़ सकें जिन्हें यहोवा के साक्षी होने का दावा करनेवाले दूसरों ने लिखा है। वे आपसे सोसाइटी की किताबों के बारे में अपनी राय बताने के लिए कह सकते हैं। कुछ लोग प्रचार काम में बताने के लिए कुछ सुझाव भेजते हैं। ऐसे साइट्स में चैट रूम भी होते हैं जिन्हें दूसरे लोगों के साथ भी जोड़ा जाता है ताकि वे एक-दूसरे से बात कर सकें, ठीक उसी तरह जैसे टेलिफोन पर एक-दूसरे से बात की जाती है। अकसर ऐसे साइट्स आपको दूसरे साइट्स की जानकारी भी देते हैं जहाँ से आप दुनिया के किसी भी कोने में बसे यहोवा के साक्षियों के साथ ऑन-लाइन संपर्क कर सकते हैं। लेकिन क्या आप दावे के साथ कह सकते हैं कि ऐसे वॆब साइट्स के पीछे धर्म-त्यागियों का हाथ नहीं है?
११ अगर हम इंटरनॆट के ज़रिए ऐसे लोगों से संगति करते हैं, तो हम इफिसियों ५:१५-१७ के खिलाफ चल रहे होंगे। वहाँ प्रेरित पौलुस कहता है: “ध्यान से देखो, कि कैसी चाल चलते हो; निर्बुद्धियों की नाईं नहीं पर बुद्धिमानों की नाईं चलो और अवसर को बहुमोल समझो, क्योंकि दिन बुरे हैं। इस कारण निर्बुद्धि न हो, पर ध्यान से समझो, कि प्रभु की इच्छा क्या है?”
१२ “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के ज़रिए आध्यात्मिक भोजन देने के लिए यहोवा ने मसीही कलीसिया का इंतज़ाम किया है। (मत्ती २४:४५-४७) यहोवा का संगठन हमें सिखाता है कि दुनिया के तौर-तरीकों से किस तरह अलग रहें ताकि हम पर दुनिया का बुरा असर न पड़े। साथ ही हमें प्रभु के काम में हमेशा लगे रहने की प्रेरणा भी मिलती है। (१ कुरि. १५:५८) भजनहार ने कहा कि उसे परमेश्वर के लोगों की कलीसिया में खुशी मिली और उनके बीच रहकर उसने बहुत ही सुरक्षित महसूस किया। (भज. २७:४, ५; ५५:१४; १२२:१) कलीसिया हमें आध्यात्मिक बातों में मज़बूत रहने में मदद करती है। कलीसिया के भाई-बहन एक-दूसरे के सच्चे दोस्त होते हैं, वे एक-दूसरे की दिल से परवाह करते हैं और मुसीबत के समय मदद और सहारा देने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। (२ कुरि. ७:५-७) और जब कलीसिया का कोई सदस्य पाप करता रहता है और पश्चाताप नहीं करता तो उसे कलीसिया से बाहर किया जाता है, ताकि कलीसिया के बाकी सदस्यों पर कोई बुरा असर न पड़े। (१ कुरि. ५:९-१३; तीतु. ३:१०, ११) क्या यही प्यार और सुरक्षा हमें इंटरनॆट के ज़रिए दूसरों से दोस्ती करने से मिलेगी?
१३ यह बिलकुल साबित हो चुका है कि इंटरनॆट में ऐसे इंतज़ाम नहीं हैं। और यह भी साफ ज़ाहिर है कि कुछ वॆब साइट्स को झूठी बाइबल शिक्षाएँ फैलाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। शायद ऐसे वॆब साइट्स सच्चे होने का दावा करें और इन वॆब साइट्स को चलानेवाले शायद अपनी पहचान को साबित करने के लिए ढेर सारी जानकारी दें, ताकि आपको यकीन हो कि वे सचमुच यहोवा के साक्षी हैं। वे शायद आपसे भी सबूत माँगे कि क्या आप सचमुच यहोवा के साक्षी हैं।
१४ यहोवा चाहता है कि आप समझदारी से काम लें। क्यों? क्योंकि वह जानता है कि अगर आप समझदारी से काम लेंगे तो आप कई खतरों से बच सकेंगे। नीतिवचन २:१०-१९ कहता है: “क्योंकि बुद्धि तो तेरे हृदय में प्रवेश करेगी, और ज्ञान तुझे मनभाऊ लगेगा; विवेक तुझे सुरक्षित रखेगा; और समझ तेरी रक्षक होगी।” समझ किस चीज़ से हमारी रक्षा करेगी? “बुराई के मार्ग से,” और ऐसे लोगों से जिन्होंने सच्चाई का रास्ता छोड़ दिया है और बुरे कामों में फँस गए हैं और दूसरों को भी गुमराह कर रहे हैं।
१५ जब हम किंगडम हॉल जाते हैं तो इसमें कोई शक नहीं कि हम अपने ही भाइयों के साथ होते हैं। हम उन्हें अच्छी तरह जानते हैं। और इस बारे में किसी को सबूत की ज़रूरत नहीं है क्योंकि हमारे आपस के प्यार से यह साफ ज़ाहिर होता है। हमें यहोवा के साक्षी होने का कोई सर्टिफिकेट दिखाने की ज़रूरत नहीं होती। किंगडम हॉल में हमें भाई-बहनों से वो सच्चा प्यार और हौसला मिलता है जिसके बारे में पौलुस ने इब्रानियों १०:२४, २५ में ज़िक्र किया था। लेकिन यह प्यार और हौसला हमें वॆब साइट्स के ज़रिए एक-दूसरे से बातचीत करने पर नहीं मिलेगा। इसलिए भजन २६:४, ५ की बातों को ध्यान में रखना अच्छा होगा, तब हम इंटरनॆट पर वॆब साइट्स का इस्तेमाल करते वक्त आनेवाले खतरों से सावधान रहेंगे।
१६ इंटरनॆट के ज़रिए इतने अलग-अलग विषयों पर जानकारी मिलती है कि उसका कोई हिसाब नहीं। अकसर बच्चे और किशोर इसके ज़रिए बड़ी आसानी से ज़ुल्म और लूट-मार के शिकार हो जाते हैं। बच्चे बहुत ही मासूम होते हैं, इसलिए वे हर बात को सच मान लेते हैं। उनमें नई-नई बातें सीखने की जिज्ञासा होती है इसलिए वे साइबरस्पेस की नई दुनिया से जानकारी पाने के लिए बेसब्र रहते हैं। इसलिए माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों पर कड़ी नज़र रखें और इंटरनॆट का इस्तेमाल करने के बारे में बाइबल से अच्छी सलाह दें, ठीक उसी तरह जैसे वे संगीत या फिल्मों के बारे में उन्हें होशियार करते हैं।—१ कुरि. १५:३३.
१७ लेकिन बड़े अफसोस की बात है कि इंटरनॆट पर चैट रूम के ज़रिए हमारे कुछ भाई-बहनों ने दुनियावी लोगों से दोस्ती की और इस कदर उनकी दोस्ती बढ़ी कि वे नाजायज़ लैंगिक काम भी कर बैठे, जिसकी वज़ह से उन्हें कलीसिया से बाहर करना पड़ा। और प्राचीनों से मिली यह रिपोर्ट तो हमारे रोंगटे खड़ी कर देती है कि कुछ भाई-बहनों ने अपने जीवन-साथी को छोड़ दिया ताकि इंटरनॆट पर जिस पुरुष या स्त्री के साथ उनकी दोस्ती हुई है उसके साथ नाजायज़ संबंध रख सकें। (२ तीमु. ३:६) कुछ भाई-बहनों ने इंटरनॆट पर धर्मत्यागियों द्वारा सिखाई गई बातों पर विश्वास करके सच्चाई को ठुकरा दिया है। (१ तीमु. ४:१, २) जब हम देखते हैं कि इंटरनॆट के ज़रिए दोस्ती करना इतना खतरनाक है तो क्या यह ज़रूरी नहीं लगता कि हमें इस बारे में होशियार हो जाना चाहिए? बेशक, नीतिवचन २:१०-१९ में जैसे बताया गया है अगर हम बुद्धि, ज्ञान, विवेक और समझ का इस्तेमाल करेंगे तो हम इस खतरे से बच सकते हैं।
१८ गौरतलब बात है कि कई लोगों ने वॆब साइट इस मकसद से तैयार किया है ताकि वे सुसमाचार का प्रचार कर सकें। और इनमें से ज़्यादातर साइट ऐसे भाइयों ने तैयार किए हैं जो समझदारी से काम नहीं लेते। कुछ और साइट धर्मत्यागियों ने तैयार किए हैं ताकि वे नादान लोगों को अपने जाल में फँसा सकें। (२ यूहन्ना ९-११) क्या हमारे भाइयों का ऐसे वॆब साइट तैयार करना ज़रूरी है, यह समझाते हुए नवंबर १९९७ की हमारी राज्य सेवकाई का पेज ३ कहता है: “किसी भी व्यक्ति को यहोवा के साक्षियों, हमारी गतिविधियों, या हमारे विश्वासों के बारे में इंटरनॆट पेज बनाने की कोई ज़रूरत नहीं है। हमारा ऑफिशियल साइट [www.watchtower.org] जो कोई जानना चाहे उसे सही-सही जानकारी देता है।”
१९ इंटरनॆट के ज़रिए स्टडी करने में मदद? कुछ भाई-बहन आध्यात्मिक बातों पर रिसर्च करके जो जानकारी पाते हैं उसे इंटरनॆट के ज़रिए दूसरे भाइयों को भेजते हैं और वे सोचते हैं कि ऐसा करके वे अपने भाइयों की मदद कर रहे हैं। मिसाल के तौर पर, एक भाई किसी पब्लिक टॉक के आउटलाइन पर शायद रिसर्च करके वह जानकारी उन भाइयों को भेज सकता है जिन्हें वही पब्लिक टॉक तैयार करना है। कुछ लोग होनेवाले वॉचटावर स्टडी की सभी आयतों को या थियोक्रेटिक मिनिस्ट्री स्कूल या बुक स्टडी की किताबों में लिखी जानकारी भेजते हैं। कुछ लोग शायद दूसरों को साक्षी देने के लिए कुछ सुझाव भी भेज सकते हैं। लेकिन क्या इनसे सचमुच मदद मिलती है?
२० यहोवा का संगठन हमें जो साहित्य देता है उन्हें पढ़ने से हमारे अंदर अच्छे विचार पैदा होते हैं और हम “भले बुरे में भेद” करना सीखते हैं। (इब्रा. ५:१४) क्या इसी तरह का फायदा हमें तब मिल सकता है जब कोई दूसरा हमारे लिए रिसर्च करे?
२१ बिरीया के लोगों के बारे में कहा गया है कि वे “थिस्सलुनीके के यहूदियों से भले थे।” क्यों? क्योंकि “उन्हों ने बड़ी लालसा से वचन ग्रहण किया, और प्रति दिन पवित्र शास्त्रों में ढूंढ़ते रहे कि ये बातें योंहीं हैं, कि नहीं।” (प्रेरितों १७:११) हालाँकि पौलुस और सीलास ने उनको प्रचार किया था मगर जब तक वे खुद सच्चाई के बारे में जाँच-परख नहीं करते तब तक वे इसके मुताबिक नहीं चल पाते।
२२ अगर आपके टॉक या मीटिंग के लिए कोई और व्यक्ति तैयारी करे तो आपको वह फायदा नहीं मिलेगा जो खुद स्टडी करने पर मिलता है। क्या आप नहीं चाहते कि परमेश्वर के वचन पर आप खुद विश्वास बढ़ाएँ? अगर आप खुद स्टडी करेंगे तो परमेश्वर के वचन पर आपका विश्वास मज़बूत होगा और आप अपने भाषणों के ज़रिए, मीटिंग में जवाब देकर और दूसरों को साक्षी देने के ज़रिए अपने विश्वास को खुलेआम ज़ाहिर कर सकते हैं। (रोमि. १०:१०) जब कोई दूसरा आपके लिए रिसर्च करता है तो आप नीतिवचन २:४, ५ के मुताबिक काम नहीं कर रहे होते हैं, जहाँ बताया गया है कि ‘परमेश्वर का ज्ञान पाने के लिए आपको खुद इस तरह खोज करनी है मानो आप गुप्त धन की खोज कर रहे हों।’
२३ मिसाल के तौर पर, जब आप अपनी बाइबल से कोई आयत पढ़ते हैं उसे समझने के लिए उसके आगे-पीछे के आयत भी पढ़ सकते हैं। आप ‘सब बातों का ठीक ठीक जांच’ कर सकते हैं, ठीक उसी तरह जैसे लूका ने अपनी सुसमाचार की किताब लिखते वक्त किया था। (लूका १:३) इस तरह जब आप काफी मेहनत लगाकर स्टडी करेंगे तो प्रचार काम में और भाषण देते वक्त आयतें खोलकर पढ़ना आपके लिए और आसान हो सकता है। कई लोगों ने हमारी तारीफ करते हुए कहा है कि यहोवा के साक्षी बाइबल का इस्तेमाल करने में बहुत माहिर हैं। यह हम में से हरेक के बारे में तभी सच हो सकता है जब हम खुद अपनी बाइबल से आयत पढ़ने की आदत डालेंगे।
२४ वक्त का अक्लमंदी से इस्तेमाल करना: इस बारे में एक और बात पर हमें गौर करना है, और वह यह है कि हम इंटरनॆट पर जानकारी भेजने, दूसरों के संदेश पढ़ने और उनको जवाब भेजने में कितना वक्त लगाते हैं। भजन ९०:१२ में हमें यह दुआ करने को बताया गया है: “हम को अपने दिन गिनने की समझ दे कि हम बुद्धिमान हो जाएं।” पौलुस ने कहा: “समय कम किया गया है।” (१ कुरि. ७:२९) साथ ही उसने कहा: “इसलिये जहां तक अवसर मिले हम सब के साथ भलाई करें; विशेष करके विश्वासी भाइयों के साथ।”—गल. ६:१०.
२५ ऐसी सलाह हमें याद दिलाती है कि अपने समय का समझदारी से इस्तेमाल करना कितना ज़रूरी है। ज़रा सोचकर देखिए, अपना समय परमेश्वर के वचन को पढ़ने में लगाना कितना फायदेमंद होगा! (भज. १:१, २) परमेश्वर के वचन की दोस्ती से बढ़कर कोई और दोस्ती हो ही नहीं सकती। (२ तीमु. ३:१६, १७) माता-पिताओ, क्या आप अपने बच्चों को सिखा रहे हैं कि परमेश्वर की सेवा में अपना वक्त बिताना ही अक्लमंदी की बात है? (सभो. १२:१) इंटरनॆट से कुछ सीखने की उम्मीद से उस पर अपना वक्त बिताने से लाख बेहतर होगा कि आप खुद बाइबल पढ़ें, फैमिली स्टडी करें, मीटिंगों में हाज़िर हों और प्रचार काम में हिस्सा लें।
२६ इस मामले में अक्लमंदी की बात यही होगी कि हम अपना दिलो-दिमाग आध्यात्मिक बातों पर और अपने मसीही जीवन से ताल्लुक रखनेवाली ज़रूरी बातों पर ही लगाया करें। इसके लिए अच्छी तरह जाँच-परख कर देखना ज़रूरी है कि कैसी बातों पर अपना वक्त और ध्यान लगाना सही होगा। यीशु मसीह ने चंद शब्दों में बताया कि हम मसीहियों को ज़िंदगी में किन बातों को अहमियत देनी चाहिए: “इसलिये पहिले तुम उसके राज्य और धर्म की खोज करो तो ये सब वस्तुएं भी तुम्हें मिल जाएंगी।” (मत्ती ६:३३) क्या यह सच नहीं कि आपको ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा खुशी तभी मिलती है जब आप किस और काम के बजाय राज्य के काम में मशरूफ होते हैं?
२७ इंटरनॆट ई-मेल: आपसे काफी दूर रहनेवाले रिश्तेदारों और दोस्तों को अपने कुछ अनुभव या विचार बाँटने में कोई गलती तो नहीं है, लेकिन क्या यह ठीक रहेगा कि आप वही जानकारी ऐसे लोगों तक पहुँचाएँ जो शायद आपके रिश्तेदारों या दोस्तों को जानते तक नहीं? या क्या यह सही होगा कि आप इन्हें वॆब पेज पर लगा दें ताकि इसे कोई भी पढ़ सके? ऐसे पर्सनल मेसेज को कॉपी करके अंधाधुंध ऐसे किसी को भी भेजना क्या सही होगा, चाहे वे आपके जान-पहचान के हों या नहीं? उसी तरह, जब आपको इंटरनॆट पर किसी और के लिए भेजा गया संदेश मिलता है तो क्या यह ठीक रहेगा कि आप वह संदेश पढ़कर दूसरों को भी भेज दें?
२८ अगर आप जो जानकारी भेजते हैं वह सही नहीं है तो क्या? क्या इसका यह मतलब नहीं होगा कि आप एक झूठ को फैलाने में साझीदार हैं? (नीति. १२:१९; २१:२८; ३०:८; कुलु. ३:९) बेशक, अगर हम ध्यान से देखते हैं कि हम ‘निर्बुद्धियों की नाईं नहीं पर बुद्धिमानों की नाई चाल चलें’ तो हम इन बातों पर ज़रूर विचार करेंगे। (इफि. ५:१५) यह कितनी खुशी की बात है कि इयरबुक, प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! पत्रिकाओं में सही जानकारी के भँडार हैं ताकि हमेशा परमेश्वर के “मार्ग” पर चलने की इच्छा हमारे अंदर पैदा हो!—यशा. ३०:२०, २१
२९ एक और खतरे पर ध्यान देना ज़रूरी है। प्रेरित पौलुस ने कुछ लोगों के बारे में कहा: “वे घर घर फिरकर आलसी होना सीखती हैं, और केवल आलसी नहीं, पर बकबक करती रहती और औरों के काम में हाथ भी डालती हैं और अनुचित बातें बोलती हैं।” (१ तीमु. ५:१३) इस आयत से हम कह सकते हैं कि अपने भाइयों को फिज़ूल की जानकारी देने में समय और मेहनत लगाना बिलकुल गलत है।
३० इस बात पर भी ज़रा सोचिए कि ढेर सारे ई-मेल को पढ़ने-भेजने में कितना सारा वक्त लगता है। डेटा स्मॉग किताब ने एक दिलचस्प बात कही: “जब एक व्यक्ति ई-मेल पढ़ने-भेजने में ज़्यादा-से-ज़्यादा समय बिताने लगता है तो यह उसके लिए बस नई बातें सीखने का ज़रिया ही नहीं बल्कि एक बोझ बन जाता है क्योंकि हर दिन उसके साथ काम करनेवाले, दोस्त और रिश्तेदार ढेरों संदेश भेजते रहते हैं . . . और एडवर्टाइज़िंग एजंसियाँ भी संदेश भेजती रहती हैं जिन्हें पढ़ने में उसका सारा वक्त बेकार जाता है।” इस किताब ने यह भी कहा: “इलैक्ट्रोनिक मेल के कुछ दीवानों ने एक बहुत ही बुरी आदत बना ली है। उन्हें इंटरनॆट पर जो भी मिलता है, चाहे वह चुटकुला हो, झूठ-मूठ की कोई कहानी हो, इलैक्ट्रोनिक चेन लेटर्स हों या जो भी संदेश हो उसे पढ़कर अपने इलैक्ट्रोनिक एड्रस पर जितने भी लोग हैं उन सब तक पहुँचाए बिना उन्हें चैन नहीं मिलता।”
३१ और यह हमारे कुछ भाइयों के बारे में भी सच है, वे भी ई-मेल के ज़रिए बहुत सारी जानकारी भेजते हैं, जैसे प्रचार काम के बारे में चुटकुले और मज़ेदार कहानियाँ, हमारे विश्वास को लेकर बनाई गई कविताएँ; किसी एसंबली, अधिवेशन या मीटिंग के भाषणों में बताए गए उदाहरण, प्रचार काम में मिले अनुभव या ऐसी कई बातें जो सुनने में शायद इतनी बुरी न लगें। कई भाई-बहन तो कभी यह भी नहीं देखते कि दरअसल उन्हें ई-मेल किसने भेजा है इसलिए यह जानना बहुत ही मुश्किल हो जाता है कि उन्हें मिली जानकारी के पीछे असल में कौन है और क्या वह जानकारी सचमुच भरोसेमंद है।—नीति. २२:२०, २१.
३२ ऐसी फिज़ूल की बातें उन खरी बातों से बिलकुल अलग हैं जिनके बारे में पौलुस ने तीमुथियुस को लिखा: “जो खरी बातें तू ने मुझसे सुनी है उन को उस विश्वास और प्रेम के साथ जो मसीह यीशु में है, अपना आदर्श बनाकर रख।” (तिरछे टाइप हमारे।) (२ तीमु. १:१३) उन ‘खरी बातों’ का मतलब बाइबल की सच्चाई की “शुद्ध भाषा” है जो कि बाइबल के मुख्य विषय पर आधारित है। (सप. ३:९) और बाइबल का मुख्य विषय है, यहोवा के राज्य के ज़रिए उसके शासन करने के हक पर लगाए गए दोष का मिटाया जाना। हमें यहोवा के शासन करने के हक की पैरवी करने में अपना सारा वक्त और अपनी सारी मेहनत लगाने की पूरी-पूरी कोशिश करनी चाहिए।
३३ हम अब इस दुनिया के अंत के बिलकुल करीब आ पहुँचे हैं, इसलिए यह आँख मूँदकर चलने का वक्त नहीं है। बाइबल हमें खबरदार करती है: “सचेत हो, और जागते रहो, क्योंकि तुम्हारा विरोधी शैतान गर्जनेवाले सिंह की नाईं इस खोज में रहता है, कि किस को फाड़ खाए।” (१ पत. ५:८) बाइबल यह भी कहती है: “परमेश्वर के सारे हथियार बान्ध लो; कि तुम शैतान की युक्तियों के साम्हने खड़े रह सको।”—इफि. ६:११.
३४ जो इंटरनॆट का गलत इस्तेमाल करते हैं उनके लिए यह शैतान की एक चाल बन सकती है जिसके ज़रिए वह उन्हें आसानी से बहका सकता है। माना कि इंटरनॆट कुछ हद तक फायदेमंद है लेकिन इसे इस्तेमाल करने में अगर हम होशियार न रहें तो यह हमारे लिए एक फँदा बन सकता है। खासकर माता-पिताओं को देखना चाहिए कि उनके बच्चे इंटरनॆट का किस तरीके से इस्तेमाल करते हैं।
३५ इंटरनॆट के बारे में सही नज़रिया बनाए रखना एक सुरक्षा है। हम कितने एहसानमंद है कि पौलुस ने यह सलाह दी जो हमारे लिए बहुत ज़रूरी है: “इस संसार के बरतनेवाले ऐसे हों, कि संसार ही के न हो लें; क्योंकि इस संसार की रीति और व्यवहार बदलते जाते हैं।” (१ कुरि. ७:२९-३१) जब हम इस बात को मन में रखेंगे तो इंटरनॆट पर मिलनेवाली जानकारी और बाकी दुनियावी बातों की ओर हमारा और हमारे परिवार का ध्यान नहीं भटकेगा।
३६ बाइबल के कहे अनुसार यह बिलकुल सही होगा कि हम कलीसिया के ज़रिए अपने भाई-बहनों के करीब रहें और अपने कीमती वक्त का सही इस्तेमाल करें ताकि हम राज्य के काम को आगे बढ़ाने के लिए हमेशा तैयार रह सकें। इस दुनिया के मिट जाने का वक्त अब आ गया है इसलिए आइए हम ‘अन्यजातीय लोगों की तरह अपने मन की अनर्थ रीति पर न चलते हुए ध्यान से समझने की कोशिश करते रहें कि यहोवा की इच्छा क्या है।’—इफि. ४:१७; ५:१७.