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और देखिए
सजग होइए!–1997
g97 8/8 पेज 5-8

इंटरनॆट की सेवाएँ और साधन

इंटरनॆट द्वारा प्रदान किया गया एक सामान्य साधन है इलॆक्ट्रॉनिक मेल, जिसे ई-मेल कहा जाता है। यह संदेश भेजने और प्राप्त करने की विश्‍वव्यापी प्रणाली है। असल में, इंटरनॆट पर अधिकतर आना-जाना ई-मेल के द्वारा होता है और बहुतों के लिए तो यह इंटरनॆट का एकमात्र साधन है जिसका वे इस्तेमाल करते हैं। यह कैसे काम करता है? इस प्रश्‍न का उत्तर देने के लिए, आइए पहले साधारण डाक प्रणाली पर पुनर्विचार करें।

कल्पना कीजिए कि आप कनाडा में रहते हैं और अपनी पुत्री को एक पत्र भेजना चाहते हैं जो मॉस्को में रहती है। लिफ़ाफ़े पर सही पता लिखने के बाद, आप उसे पोस्ट कर देते हैं, और यहाँ से शुरू होती है पत्र की यात्रा। डाकघर से पत्र को अगले स्थान तक पहुँचाया जाता है, जो शायद क्षेत्रीय या राष्ट्रीय वितरण केंद्र है, और फिर आपकी पुत्री के पास के स्थानीय डाकघर पहुँचाया जाता है।

ई-मेल के साथ भी कुछ ऐसी ही प्रक्रिया होती है। अपने कंप्यूटर पर अपना पत्र लिखने के बाद, आपको एक ई-मेल पता लिखना होता है जो आपकी पुत्री की पहचान कराता है। जब आप इस इलॆक्ट्रॉनिक पत्र को भेज देते हैं, तब यह आपके कंप्यूटर से यात्रा करता है, प्रायः एक यंत्र के द्वारा जिसे मोडॆम कहते हैं, जो आपके कंप्यूटर को टॆलिफ़ोन नॆटवर्क के द्वारा इंटरनॆट से जोड़ देता है। हो गयी यात्रा शुरू, यह विभिन्‍न कंप्यूटरों से होता हुआ जाता है जो स्थानीय और राष्ट्रीय डाकघरों के रूप में काम करते हैं। उनके पास इतनी जानकारी होती है कि पत्र को उसके मंज़िल कंप्यूटर तक पहुँचा दें, जहाँ से आपकी पुत्री उसे प्राप्त कर सकती है।

आम डाक से भिन्‍न, ई-मेल अकसर अपनी मंज़िल तक, दूसरे महाद्वीपों तक भी, कुछ मिनटों या उससे भी कम समय में पहुँच जाता है। देरी तभी होती है जब नॆटवर्क का कोई भाग बहुत भरा हुआ होता है या कुछ समय के लिए काम नहीं कर रहा होता। जब आपकी पुत्री अपना इलॆक्ट्रॉनिक मेलबॉक्स खोलती है, तब उसे आपका ई-मेल मिल जाएगा। ई-मेल की फ़ुर्ती और जितनी आसानी से यह संसार-भर में एक या अनेक प्रापकों को भेजा जा सकता है, इसे संचार का एक लोकप्रिय माध्यम बना देती हैं।

समाचार-समूह

एक और लोकप्रिय सेवा को यूज़नॆट कहा जाता है। यूज़नॆट से न्यूज़ग्रुपों (समाचार-समूहों) को विशिष्ट विषयों पर चर्चाएँ करने की सुविधा प्राप्त होती है। कुछ न्यूज़ग्रुप विभिन्‍न उपभोक्‍ता वस्तुएँ ख़रीदने या बेचने के बारे में बात करते हैं। हज़ारों न्यूज़ग्रुप हैं, और जब एक यूज़र को यूज़नॆट इस्तेमाल करने की सुविधा मिल जाती है, तब इनका लाभ उठाने की कोई क़ीमत नहीं लगती।

आइए कल्पना करते हैं कि कोई व्यक्‍ति डाक-टिकट इकट्ठा करनेवाले न्यूज़ग्रुप से जुड़ गया है। जब इस शौक़ के बारे में इस समूह के दूसरे लोग नए संदेश भेजते हैं, तब वे संदेश इस नए व्यक्‍ति को उपलब्ध हो जाते हैं। इस व्यक्‍ति को न सिर्फ़ वह जानकारी मिलती है जो किसी ने न्यूज़ग्रुप को भेजी है बल्कि वह भी जो दूसरों ने जवाब के तौर पर लिखी है। उदाहरण के लिए, यदि कोई एक ख़ास टिकट-श्रंखला के बारे में कुछ जानकारी माँगता है, तो उसके कुछ ही समय बाद शायद संसार-भर से बहुत सारे जवाब मिलें, और ऐसी जानकारी दें जो इस न्यूज़ग्रुप से जुड़े सभी लोगों के लिए तुरंत उपलब्ध होगी।

बुलॆटिन बोर्ड सिस्टम (BBS) इससे थोड़ा-सा फ़र्क़ होता है। BBS यूज़नॆट के समान होते हैं, फ़र्क़ इतना है कि सभी फ़ाइलें एक ही कंप्यूटर पर होती हैं, जिनको सामान्यतः एक व्यक्‍ति या समूह सँभालता है। ये न्यूज़ग्रुप जिन विषयों पर बात करते हैं उससे दिखता है कि इन्हें इस्तेमाल करनेवालों की अलग-अलग तरह की रुचियाँ, विचार, और नैतिक मूल्य होते हैं, अतः सूझबूझ की ज़रूरत है।

फ़ाइल हिस्सेदारी और विषय खोज

इंटरनॆट का एक आरंभिक लक्ष्य था विश्‍वव्यापी जानकारी हिस्सेदारी। पिछले लेख में उल्लिखित शिक्षक को इंटरनॆट पर एक और शिक्षक का पता चला जो पहले से ही बना हुआ पाठ्यक्रम देने के लिए राज़ी था। ३,२०० किलोमीटर की दूरी होने के बावजूद, फ़ाइलें मिनटों में मिल गयीं।

जब व्यक्‍ति को मालूम नहीं होता कि एक विषय इंटरनॆट पर कहाँ मिलेगा तब कौन-सी सुविधा उपलब्ध है? जैसे हम टॆलिफ़ोन डाइरॆक्ट्री का इस्तेमाल करके एक फ़ोन नंबर ढूँढ़ लेते हैं, वैसे ही एक यूज़र इंटरनॆट पर अपनी रुचि के विषय पा सकता है। इसके लिए उसे पहले इंटरनॆट पर सर्च साइटों में पहुँचना होगा। यूज़र एक शब्द या पद टाइप करता है; फिर साइट इंटरनॆट पर उन स्थानों की एक सूची देती है जहाँ उस विषय पर जानकारी मिल सकती है। आम तौर पर, खोज (सर्च) मुफ़्त होती है और बस कुछ सॆकॆंड में हो जाती है!

पहले बताए गए किसान ने सुना था कि एक नयी तकनीक निकली है जिसे सूक्ष्मता खेती (प्रिसिशन फ़ार्मिंग) कहते हैं। यह तकनीक कंप्यूटरों और उपग्रह चित्रों का इस्तेमाल करती है। सर्च साइट में यह पद टाइप करने पर उसे उन किसानों के नाम मिल गए जो इस तकनीक को इस्तेमाल कर रहे थे, और इस पद्धति के बारे में विस्तृत जानकारी भी मिल गयी।

विश्‍वव्यापी जाल

इंटरनॆट का वह भाग जिसे वर्ल्ड वाइड वॆब, अथवा वॆब (विश्‍वव्यापी जाल) कहा जाता है, लेखकों को एक नए ढंग से एक पुराना तरीक़ा इस्तेमाल करने की सुविधा देता है—वह है फ़ुटनोट का इस्तेमाल। जब किसी पत्रिका लेख या पुस्तक का लेखक एक फ़ुटनोट चिन्ह डालता है, तब हम पृष्ठ के निचले भाग को जाँचते हैं और संभवतः हमें किसी और पृष्ठ या पुस्तक को देखने के लिए कहा जाता है। इंटरनॆट कंप्यूटर दस्तावेज़ों के लेखक मूलतः यही काम कर सकते हैं, एक ऐसी तकनीक का इस्तेमाल करके जो उनके दस्तावेज़ में एक शब्द, पद या चित्र को रेखांकित करती है या उस पर विशेष प्रकाश डालती है।

विशेष प्रकाश-युक्‍त शब्द या चित्र पाठक को यह संकेत देता है कि इंटरनॆट पर ही इससे संबंधित जानकारी है जो प्रायः एक और दस्तावेज़ के रूप में होती है। इस इंटरनॆट दस्तावेज़ को ढूँढ़ा जा सकता है और यह पाठक के लिए तुरंत स्क्रीन पर आ जाता है। असल में दस्तावेज़ शायद किसी दूसरे कंप्यूटर पर हो जो किसी दूसरे देश में है। ऐक्सॆस दी इंटरनॆट! का लेखक, डेविड पील कहता है कि यह तकनीक “आपको ऐसे दस्तावेज़ उपलब्ध कराती है, सिर्फ़ उनका हवाला ही नहीं देती।”

वॆब के द्वारा तसवीरों और चित्रों को इलॆक्ट्रॉनिक रूप से जमा किया जा सकता है और बाद में फिर से प्रयोग किया जा सकता है, साथ ही कार्टून, विडियो, और आवाज़ों को भरकर चलाया जा सकता है। पिछले लेख की शुरूआत में उल्लिखित लोमा नाम की गृहिणी ने विश्‍व-मंडल के बारे में सामयिक सिद्धांतों पर एक संक्षिप्त रंगीन फ़िल्म ली और उसे चलाया। उसने अपने कंप्यूटर के ऑडियो सिस्टम के ज़रिए पटकथा सुनी।

नॆट पर सैर करना

वॆब ब्राउज़र का इस्तेमाल करके, एक व्यक्‍ति आसानी से और जल्दी से ऐसी जानकारी और रंगीन चित्र देख सकता है जो अलग-अलग देशों में कंप्यूटरों के अंदर जमा हैं। वॆब ब्राउज़र का इस्तेमाल करना कुछ तरीक़ों से सचमुच की यात्रा के समान हो सकता है, परंतु यह ज़्यादा आसान है। व्यक्‍ति मृत सागर खर्रों या आहुति स्मारक संग्रहालय को वॆब के चित्रों द्वारा देख सकता है। इंटरनॆट वॆब की एक साइट से दूसरी साइट तक आसानी से आने-जाने की इस क्षमता को आम तौर पर सर्फ़िंग द नॆट (नॆट पर सैर करना) कहा जाता है।

व्यापार-संघों और अन्य संगठनों की वॆब में रुचि बढ़ी है क्योंकि वे इसके द्वारा अपने उत्पादनों या सेवाओं का विज्ञापन कर सकते हैं साथ ही दूसरी क़िस्म की जानकारी प्रदान कर सकते हैं। वे एक वॆब पेज बनाते हैं, जो एक क़िस्म की इलॆक्ट्रॉनिक शॉप विन्डो है। संगठन का वॆब पेज एडरॆस मालूम हो जाने के बाद, संभव ख़रीदार ब्राउज़र का इस्तेमाल करके “ख़रीदारी” करने, या जानकारी ढूँढ़ने जा सकते हैं। लेकिन, जैसा कि किसी भी बाज़ार में होता है, इंटरनॆट पर उपलब्ध सभी उत्पादन, सेवाएँ, या जानकारी हितकर नहीं होती।

शोधकर्ता कोशिश कर रहे हैं कि इंटरनॆट को इतना सुरक्षित बना दें कि गोपनीय और निरापद लेन-देन किया जा सके। (सुरक्षा के बारे में हम और चर्चा बाद में करेंगे।) एक और विश्‍वव्यापी इंटरनॆट—कुछ इसे इंटरनॆट II कहते हैं—विकसित किया जा रहा है क्योंकि इस व्यवसायिक कामकाज ने इंटरनॆट पर बहुत भीड़ बढ़ा दी है।

“गपशप” क्या है?

इंटरनॆट की एक और सामान्य सेवा है इंटरनॆट रीले चैट, या चैट (गपशप)। चैट लोगों के एक समूह को यह सुविधा देती है कि उर्फ़ इस्तेमाल करते हुए एक दूसरे को तुरंत संदेश भेज सकें। जबकि इसे अलग-अलग उम्र के लोग इस्तेमाल करते हैं, यह युवाओं के बीच ज़्यादा लोकप्रिय है। इससे जुड़ने के बाद, यूज़र संसार-भर से ढेरों अन्य यूज़रों के संपर्क में आ जाता है।

तथाकथित चैट रूम (गपशप कक्ष), या चैट चैनल (गपशप मार्ग) बनाए जाते हैं जो एक ख़ास विषय को प्रस्तुत करते हैं, जैसे विज्ञान-कथा, फ़िल्में, खेल-कूद, या रोमांस। चैट रूम के अंदर टाइप किए गए सभी संदेश उस चैट रूम के सभी भाग लेनेवालों के कंप्यूटर स्क्रीन पर लगभग एकसाथ आ जाते हैं।

चैट रूम काफ़ी कुछ एक पार्टी के जैसा होता है, जिसमें लोग एक ही समय पर एक दूसरे से मिलते और बात कर रहे होते हैं, फ़र्क़ इतना है कि इसमें लोग बात करने के बजाय छोटे-छोटे संदेश टाइप कर रहे होते हैं। आम तौर पर चैट रूम चौबीसों घंटे खुले रहते हैं। निःसंदेह, मसीही इस बात को समझते हैं कि संगति के बारे में बाइबल सिद्धांत, जैसे कि १ कुरिन्थियों १५:३३ का सिद्धांत, चैट रूम में भाग लेने पर भी वैसे ही लागू होते हैं जैसे वे जीवन के अन्य सभी पहलुओं में लागू होते हैं।a

इंटरनॆट का ख़र्च कौन उठाता है?

आप शायद सोच रहे हों, ‘इंटरनॆट पर लंबी-लंबी दूरी तय करने का ख़र्च कौन उठाता है?’ संघ और व्यक्‍ति, सभी यूज़र मिलकर ख़र्च उठाते हैं। लेकिन, यह ज़रूरी नहीं कि यदि एक इंटरनॆट यूज़र अनेक अंतर्राष्ट्रीय साइटों पर गया है तो उसे लंबी-दूरी का टॆलिफ़ोन बिल भरना पड़ेगा। अधिकतर यूज़रों का एक स्थानीय सेवा-कंपनी में खाता होता है जो इंटरनॆट सेवा प्रदान करती है। कई जगह ऐसा होता है कि यह सेवा-कंपनी यूज़र से एक निश्‍चित मासिक फ़ीस लेती है। ये सेवा-कंपनियाँ आम तौर पर एक स्थानीय नंबर प्रदान करती हैं ताकि फ़ोन का ज़्यादा ख़र्च न आए। सामान्यतः इसकी मासिक फ़ीस लगभग $२० (यू.एस.) होती है।

जैसा आप देख सकते हैं, इंटरनॆट की योग्यता बहुत है। लेकिन क्या आपको इस इंफ़ॉर्मेशन सुपरहाइवे पर जाना चाहिए?

[फुटनोट]

a चैट रूम के बारे में सावधानी की ज़रूरत पर बाद में चर्चा की जाएगी।

[पेज 7 पर बक्स/तसवीर]

इंटरनॆट पता—यह क्या होता है?

ई-मेल पतों के द्वारा इंटरनॆट से जुड़े हुए लोगों की पहचान की जा सकती है। सोचिए कि आप एक मित्र को ई-मेल भेजना चाहते हैं जिसका ई-मेल पता drg@tekwriting.com है।b इस उदाहरण में, व्यक्‍ति की पहचान, या लॉग-इन “drg” है। लोग अपने लॉग-इन के रूप में अकसर अपने नाम के पहले अक्षर या अपना पूरा नाम इस्तेमाल करते हैं। चिन्ह “@” के बाद जो पद आता है वह उनके मालिक का नाम, उनका व्यवसाय स्थल, या उन्हें ई-मेल सेवा प्रदान करनेवाली कंपनी का नाम हो सकता है। इस उदाहरण में, “tekwriting” ई-मेल सेवा प्रदान करनेवाली कंपनी का नाम है। पते का अंतिम भाग यह पहचान कराता है कि आपके मित्र का लॉग-इन किस क़िस्म के संगठन के साथ है। इस उदाहरण में, “com” एक व्यवसायिक संगठन को सूचित करता है। शैक्षिक संस्थाएँ नाम रखने का यही तरीक़ा अपनाती हैं लेकिन अंत में “edu” इस्तेमाल करती हैं, और लाभ-निरपेक्ष संस्थाएँ अंत में “org” लगाती हैं। एक और ई-मेल मानक अंत में व्यक्‍ति के देश का कोड इस्तेमाल करता है। उदाहरण के लिए, lvg@spicyfoods.ar पता सूचित करता है कि जिस व्यक्‍ति का लॉग-इन lvg है अर्जॆंटीना में “spicyfoods” नाम की कंपनी से जुड़ा हुआ है।

एक और क़िस्म का पता इंटरनॆट पर वॆब दस्तावेज़ ढूँढ़ता है। मान लीजिए कि वर्षा-प्रचुर वनों पर शोध के बारे में जानकारी http://www.ecosystems.com/research/forests/rf स्थित वॆब दस्तावेज़ में मिल सकती है। अक्षर “http” (हाइपरटॆक्स्ट ट्रांसफ़र प्रोटोकॉल) एक क़िस्म के वॆब दस्तावेज़ को सँभालने के तरीक़े (प्रोटोकॉल) की पहचान कराते हैं, और “www.ecosystems.com” एक कंप्यूटर, वॆब सर्वर का नाम दर्शाता है—जो इस उदाहरण में एक व्यवसायिक कंपनी है जिसका नाम “ecosystems” है। पते का अंतिम भाग—“/research/forests/rf”—असल वॆब दस्तावेज़ है। वॆब पतों को प्रायः यूनिफ़ॉर्म रिसोर्स लोकेटर्स, या संक्षिप्त में URL कहा जाता है।

[फुटनोट]

b यहाँ दिए गए इंटरनॆट पते काल्पनिक हैं।

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