प्रेम हमें प्रचार करने के लिए उकसाता है
दुनिया जानती है कि हम यहोवा के साक्षी परमेश्वर के राज्य के जोशीले प्रचारक हैं। (मत्ती 24:14) संसार भर में साठ लाख से भी ज़्यादा लोग प्रचार का काम कर रहे हैं और जब नए लोग भी हमारे साथ प्रचार काम करने लगते हैं तो यह संख्या और भी बढ़ जाती है। जितने लोग प्रचार काम में हिस्सा लेते हैं, उसी के मुताबिक संख्या गिनी जाती है।
2 यह चुनौती-भरा काम करने के लिए हम स्वयंसेवकों को कौन-सी बात उकसाती है? हमसे ना तो कोई ज़बरदस्ती की जाती है, ना ही हमें धन-दौलत का लालच दिया जाता है, और ना ही इसकी वजह से हमें कोई खास आदर ही मिलता है। शुरू-शुरू में, हममें से कई लोग तो प्रचार काम से घबरा गए थे, क्योंकि हमें लगता था कि हममें यह काम करने की योग्यता ही नहीं। इसके अलावा हमारे प्रचार काम के प्रति अकसर लोगों की प्रतिक्रिया काफी निराशाजनक थी। (मत्ती 24:9) इसी वजह से कई लोगों को यह सोचकर हैरानी होती है कि आखिर कौन-सी बात हमें यह काम करने को प्रेरित करती है। इसमें कोई शक नहीं कि हमारे इस काम में लगे रहने के पीछे कोई-न-कोई कारण ज़रूर है।
3 प्रेम की ताकत: यीशु ने सबसे बड़ी आज्ञा पर ज़ोर देते हुए कहा कि हमें “[यहोवा] से अपने सारे मन से और अपने सारे प्राण से, और अपनी सारी बुद्धि से, और अपनी सारी शक्ति से प्रेम रखना” चाहिए। (मर. 12:30) यहोवा पूरे विश्व का एकमात्र शासक और सारी चीज़ों का सृष्टिकर्ता है और वही “महिमा, और आदर, और सामर्थ के योग्य है।” (प्रका. 4:11) इस वजह से हम यहोवा से गहरा प्यार करते हैं और दिल से उसके गुणों के लिए कदर दिखाते हैं। वाकई उसके बेहतरीन गुणों की बराबरी कोई नहीं कर सकता!—निर्ग. 34:6, 7.
4 जी हाँ, क्योंकि हम यहोवा को जानते और उससे प्यार करते हैं, इसीलिए हम मनुष्यों के सामने अपना उजियाला चमकाने को प्रेरित होते हैं। (मत्ती 5:16) जब हम लोगों के सामने उसकी स्तुति करते, उसके आश्चर्यकर्मों का बखान करते, साथ ही उसके राज्य के बारे में बताते हैं, तो हमारी ज्योति चमकती है। आकाश के बीच में उड़ते हुए उस स्वर्गदूत की तरह ही, हमारे पास “हर एक जाति, और कुल, और भाषा, और लोगों को सुनाने के लिये सनातन सुसमाचार” है। (प्रका. 14:6) दरअसल, हमारा प्यार ही वह ताकत है जो हमें दुनिया भर में प्रचार करने के लिए उकसाता है।
5 हालाँकि दुनिया की नज़रों में हमारा प्रचार काम “मूर्खता” का काम लगे, मगर हमें उनके नज़रिए पर बिलकुल ध्यान नहीं देना चाहिए। (1 कुरि. 1:18) हमारे काम को रोक देने के लिए हर कहीं जी-तोड़ कोशिश की गई है। लेकिन परमेश्वर के लिए हमारा सच्चा प्यार हमें ऐसी ताकत देता है कि हम ऐसा कह पाते हैं, ठीक जैसे प्रेरितों ने कहा था: “हम से हो नहीं सकता, कि जो हम ने देखा और सुना है, वह न कहें। . . . मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना ही कर्तव्य कर्म है।” (प्रेरि. 4:20; 5:29) हर विरोध के बावजूद प्रचार का काम दुनिया के कोने-कोने में फैलता ही जा रहा है।
6 यहोवा के लिए हमारा प्रेम धधकती हुई आग के समान है जो हमें उसके बढ़िया गुणों का प्रचार करने के लिए विवश कर देता है। (यिर्म. 20:9; 1 पत. 2:9) सो, हम ‘सब जातियों में उसके बड़े कामों का प्रचार करते रहेंगे क्योंकि उस ने तो प्रतापमय काम किए हैं’!—यशा. 12:4, 5.