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  • महान उपदेशक से सीखते रहे अनमोल बातें

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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (अध्ययन)—2025
w25 जून पेज 26-31
फ्रांको डागोस्टीनी।

जीवन कहानी

महान उपदेशक से सीखते रहे अनमोल बातें

फ्रांको डागोस्टीनी की ज़ुबानी

जगह-जगह नाकाबंदी, हथियारों से लैस सैनिक, जलते हुए बैरिकेड, तूफान, गृह-युद्ध और घर छोड़कर भागना। मैंने और मेरी पत्नी ने पायनियर सेवा और मिशनरी सेवा करते वक्‍त, ऐसे ही कुछ खतरनाक हालात का सामना किया। फिर भी हमने जो ज़िंदगी जी, उस पर हमें कोई अफसोस नहीं। इस सब के दौरान यहोवा ने हमें सँभाला और हमें ढेरों आशीषें दीं। वह हमारा महान उपदेशक है, इसलिए उसने हमें कई बढ़िया बातें भी सिखायीं।—अय्यू. 36:22; यशा. 30:20.

मम्मी-पापा की बढ़िया मिसाल

1957 में मम्मी-पापा इटली से कनाडा चले गए और वहाँ सस्केचेवान प्रांत के किंडर्ज़ली शहर में जाकर बस गए। कुछ ही समय बाद उन्होंने बाइबल से सच्चाई सीखी और वे इसे अपनी ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा अहमियत देने लगे। मुझे याद है कि मैं बचपन में अपने परिवार के साथ पूरे-पूरे दिन प्रचार करता था। इसलिए कई बार मैं मज़ाक में कहता था, मैं तो 8 साल की उम्र में ही “सहयोगी पायनियर” सेवा करने लगा!

फ्रांको के बचपन की तसवीर, अपने मम्मी-पापा और भाई-बहनों के साथ।

करीब 1966 में अपने परिवार के साथ

मम्मी-पापा के पास ज़्यादा पैसे नहीं थे, फिर भी उन्होंने यहोवा के लिए कई त्याग किए और हमारे लिए एक अच्छी मिसाल रखी। जैसे 1963 में उन्होंने अपनी ज़्यादातर चीज़ें बेच दीं, ताकि अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन जाने के लिए पैसे जोड़ सकें। यह अधिवेशन अमरीका में कैलिफोर्निया राज्य के पासाडीना शहर में रखा गया था। सन्‌ 1972 में हम करीब 1,000 किलोमीटर (लगभग 620 मील) दूर ट्रेल शहर चले गए, ताकि वहाँ इतालवी बोलनेवाले लोगों को खुशखबरी सुना सकें। यह शहर कनाडा के एक दूसरे प्रांत ब्रिटिश कोलंबिया में है। पापा एक बड़ी दुकान में साफ-सफाई और रख-रखाव का काम करते थे। जब उनके पास और पैसे कमाने का मौका आया तो उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया, ताकि वे यहोवा की सेवा करने पर पूरा ध्यान लगा सकें।

मम्मी-पापा ने मेरे और मेरे तीन भाई-बहनों के लिए बहुत अच्छी मिसाल रखी। मैं इसके लिए उनका बहुत एहसान मानता हूँ। यहोवा की सेवा करने के बारे में मैंने सबसे पहले उन्हीं से सीखा। मैंने उनसे एक बहुत ज़रूरी बात भी सीखी जो मैं आज तक नहीं भूला: अगर मैं परमेश्‍वर के राज को ज़िंदगी में पहली जगह दूँ, तो यहोवा मुझे सँभालेगा।—मत्ती 6:33.

पूरे समय की सेवा में रखा पहला कदम

1980 में मैंने एक खूबसूरत बहन डेबी से शादी कर ली, जो पूरे दिल से यहोवा की सेवा में लगी हुई थी। हम दोनों पूरे समय की सेवा करना चाहते थे। इसलिए शादी के तीन महीने बाद डेबी ने पायनियर सेवा शुरू कर दी। शादी के एक साल बाद हम एक छोटी-सी मंडली में जाकर सेवा करने लगे जहाँ ज़्यादा ज़रूरत थी और मैंने भी पायनियर सेवा शुरू कर दी।

फ्रांको और डेबी अपनी शादी के दिन।

1980 में हमारी शादी के दिन

मगर कुछ समय बाद हम बहुत निराश हो गए और वापस जाने की सोचने लगे। लेकिन कोई फैसला करने से पहले हमने अपने सर्किट निगरान से बात की। उन्होंने सीधे-सीधे, मगर प्यार से हमें समझाया, “तुम सिर्फ अपनी मुश्‍किलों पर ध्यान दे रहे हो और खुद अपनी परेशानियाँ बढ़ा रहे हो। अगर तुम थोड़ा रुककर सोचो, तो तुम्हें बहुत-सी अच्छी बातें मिलेंगी।” उस समय हमें इसी सलाह की ज़रूरत थी। (भज. 141:5) हमने फौरन यह सलाह मानी और देखा कि ऐसी बहुत-सी बातें हैं जिनकी वजह से हम खुश हो सकते हैं। जैसे, उस छोटी-सी मंडली में कई नौजवान थे और ऐसी कुछ बहनें थीं जो बढ़-चढ़कर यहोवा की सेवा करना चाहती थीं, जबकि उनके पति यहोवा की सेवा नहीं कर रहे थे। सर्किट निगरान की उस सलाह से हमने एक ज़बरदस्त बात सीखी: हमें अच्छी बातों पर ध्यान देना चाहिए और यहोवा पर भरोसा रखना चाहिए कि वह सही समय पर सबकुछ ठीक करेगा। (मीका 7:7) इसके बाद हम फिर से खुशी-खुशी यहोवा की सेवा करने लगे।

हमारे पहले पायनियर स्कूल के शिक्षकों ने दूसरे देशों में जाकर सेवा की थी। उन्होंने हमें वहाँ की तसवीरें दिखायीं और बताया कि अपनी सेवा के दौरान उन्होंने किन मुश्‍किलों का सामना किया और उन्हें क्या-क्या आशीषें मिलीं। यह सब सुनकर हमारा भी मिशनरी सेवा करने का मन करने लगा। इसलिए हमने सोच लिया कि हम मिशनरी सेवा करेंगे।

खूब बर्फ गिरने के बाद राज-घर में गाड़ी पार्किंग की जगह जहाँ से बर्फ हटा दी गयी है।

1983 में ब्रिटिश कोलंबिया में एक राज-घर के बाहर

अपना यह लक्ष्य पाने के लिए हमने 1984 में पहला कदम बढ़ाया। हम ब्रिटिश कोलंबिया से करीब 4,000 किलोमीटर (2,485 मील) दूर क्युबेक चले गए जहाँ फ्रेंच भाषा बोली जाती है। वहाँ की भाषा सीखना और वहाँ के रहन-सहन में खुद को ढालना हमारे लिए आसान नहीं था। ऊपर से हमारे पास ज़्यादा पैसे भी नहीं होते थे। एक बार तो ऐसा हुआ कि हमें एक किसान के खेत में बचे हुए आलू बीनकर काम चलाना पड़ा। डेबी ने तरह-तरह की आलू की चीज़ें बनाना सीख लिया था। इन मुश्‍किलों के बावजूद हम खुशी-खुशी यहोवा की सेवा करते रहे और हमने देखा कि वह हमारा पूरा-पूरा खयाल रख रहा है।—भज. 64:10.

एक दिन हमें एक फोन आया और हमें कनाडा बेथेल में सेवा करने के लिए बुलाया गया। इसकी हमें बिलकुल उम्मीद नहीं थी, क्योंकि हमने तो गिलियड स्कूल की अर्ज़ी भरी थी। इसलिए हमें बेथेल जाने की खुशी तो थी, पर गिलियड ना जा पाने का दुख भी था। जब हम वहाँ पहुँचे, तो हम भाई केनेथ लिटिल से मिले जो शाखा समिति के सदस्य थे। हमने उनसे पूछा, “भाई, अब हमारी गिलियड की अर्ज़ी का क्या होगा?” उन्होंने कहा, “जब वक्‍त आएगा तो देख लेंगे।”

वह वक्‍त एक ही हफ्ते बाद आ गया! मुझे और डेबी को गिलियड के लिए बुलाया गया। अब हमें फैसला लेना था कि हम क्या करेंगे। भाई लिटिल ने हमसे कहा, “तुम चाहे कोई भी रास्ता चुनो, कभी-ना-कभी शायद तुम्हें लगेगा कि काश, हमने दूसरा रास्ता चुना होता। कोई भी रास्ता दूसरे से बेहतर नहीं है। यहोवा किसी पर भी आशीष दे सकता है।” हमने गिलियड जाने का फैसला किया। सालों के दौरान हमने महसूस किया कि भाई लिटिल ने कितना सही कहा था। हमने भाई की यह सलाह उन लोगों को भी बतायी, जिन्हें हमारी तरह ही यह चुनना था कि वे यहोवा की सेवा में क्या करेंगे।

मिशनरी सेवा करना

(बायीं तरफ) युलिसीज़ ग्लास

(दायीं तरफ) जैक रेडफर्ड

अप्रैल 1987 में हमें गिलियड की 83वीं क्लास में हाज़िर होने का मौका मिला। हम बहुत खुश थे। हम कुल मिलाकर 24 विद्यार्थी थे। यह स्कूल न्यू यॉर्क के ब्रुकलिन शहर में था। हमारी ज़्यादातर क्लास भाई युलिसीज़ ग्लास और भाई जैक रेडफर्ड ने लीं। पाँच महीने कैसे गुज़र गए हमें पता ही नहीं चला। और 6 सितंबर, 1987 को हम ग्रैजुएट हुए। हमें जॉन और मैरी गुड के साथ हैती में सेवा करने के लिए भेजा गया।

फ्रांको और डेबी हैती में समुंदर किनारे हाथों में प्रचार का बैग लिए हुए

1988 में हैती में

हैती में सेवा करनेवाले मिशनरियों को 1962 में देश से निकाल दिया गया था। उसके बाद से हम ही वहाँ मिशनरी के तौर पर जा रहे थे। ग्रैजुएट होने के तीन हफ्ते बाद हम वहाँ पहुँच गए और एक छोटी मंडली में सेवा करने लगे। यह मंडली एक दूर-दराज़ इलाके में पहाड़ों के बीच थी और इसमें 35 प्रचारक थे। हम जवान थे और हमें इस तरह सेवा करने का कोई अनुभव नहीं था। और मिशनरी घर में भी हम दोनों के अलावा और कोई नहीं था। वहाँ के लोग बहुत गरीब थे और ज़्यादातर लोगों को पढ़ना नहीं आता था। उन्हीं दिनों हम जहाँ रहते थे, वहाँ राजनैतिक उथल-पुथल की वजह से दंगे-फसाद होने लगे, लोग सरकार के खिलाफ आंदोलन करने लगे, आग लगाने लगे, बैरिकेड वगैरह जलाने लगे। ऊपर से तूफान भी आ रहे थे।

हमने हैती के भाई-बहनों से बहुत कुछ सीखा। वे इन मुश्‍किलों में भी डटे हुए थे और खुश रहते थे। कई भाई-बहनों की ज़िंदगी में बहुत-सी मुश्‍किलें थीं, पर वे यहोवा से बहुत प्यार करते थे और जोश से प्रचार कर रहे थे। जैसे, एक बुज़ुर्ग बहन थीं जिन्हें बिलकुल पढ़ना नहीं आता था, लेकिन उन्हें करीब 150 आयतें मुँह-ज़बानी याद थीं। हम हर दिन जिन मुश्‍किलों का सामना कर रहे थे, उनकी वजह से हमारा यह इरादा और पक्का हो गया था कि हमें राज का संदेश सुनाते रहना है, क्योंकि सिर्फ यही इंसान की समस्याओं का हल है। हमें यह देखकर बहुत खुशी होती है कि हमने शुरू में जिन लोगों के साथ बाइबल अध्ययन किया था, उनमें से कुछ पायनियर सेवा करने लगे, कुछ खास पायनियर बने और कुछ प्राचीन के तौर पर सेवा करने लगे।

जब हम हैती में थे, तो मैं ट्रेवर नाम के एक लड़के से मिला। वह एक चर्च की तरफ से मिशनरी सेवा करता था। उसके साथ हमने कई बार बाइबल से चर्चा की। कई सालों बाद हमें उससे एक खत मिला और हम बड़े हैरान रह गए। खत में उसने लिखा था, “आनेवाले सम्मेलन में मैं बपतिस्मा लेनेवाला हूँ। और मैं चाहता हूँ कि मैं हैती जाकर उसी इलाके में खास पायनियर के तौर पर सेवा करूँ, जहाँ मैं चर्च की तरफ से मिशनरी सेवा करता था।” उसने और उसकी पत्नी ने कई सालों तक ऐसा ही किया!

यूरोप से अफ्रीका तक का सफर

फ्रांको ऑफिस में काम करते हुए।

1994 में स्लोवीनिया में काम करते हुए

हमें यूरोप के एक ऐसे इलाके में सेवा करने के लिए भेजा गया जहाँ पहले हमारे काम पर कुछ पाबंदियाँ थीं, पर धीरे-धीरे हालात सुधरने लगे थे। सन्‌ 1992 में हम स्लोवीनिया के लुबियाना शहर पहुँचे। असल में मेरे मम्मी-पापा का बचपन इसी शहर के पास बीता था। जब हम लुबियाना पहुँचे, तो यूगोस्लाविया के कुछ इलाकों में युद्ध चल रहा था। और उस पूरे इलाके में हो रहे प्रचार काम की निगरानी वीएना शाखा दफ्तर कर रहा था जो ऑस्ट्रिया में है। साथ ही क्रोएशिया के ज़ाग्रेब में और सर्बिया के बेलग्रेड में जो ऑफिस थे, वे भी प्रचार काम की देखरेख करने में मदद कर रहे थे। अब क्योंकि यह पूरा इलाका अलग-अलग देशों में बँट गया था, इसलिए हरेक देश में बेथेल का इंतज़ाम होना ज़रूरी था।

अब हमें एक बार फिर से नयी भाषा सीखनी थी और नए माहौल में खुद को ढालना था। वहाँ के लोग कहा करते थे, “येजेक ये तेजेक” जिसका मतलब है, “यह भाषा बड़ी मुश्‍किल है।” और सच में वह भाषा सीखना मुश्‍किल था! हमें यह देखकर बहुत अच्छा लगा कि उस दौर में संगठन ने जो भी फेरबदल किए, भाई-बहनों ने उनका पूरा साथ दिया और इसके लिए यहोवा ने उन्हें आशीषें दीं। हम एक बार फिर देख पाए कि यहोवा हमेशा प्यार से और सही वक्‍त पर सुधार लाता है। हमने पहले जो बातें सीखी थीं, उससे स्लोवीनिया में सेवा करते वक्‍त हमें मुश्‍किलों का सामना करने में काफी मदद मिली। और यहाँ सेवा करते वक्‍त भी हमने बहुत-सी नयी बातें सीखीं।

हमारी ज़िंदगी में और भी कई बदलाव हुए। सन्‌ 2000 में हमें पश्‍चिम अफ्रीका के कोटे डी आइवरी देश भेजा गया। लेकिन गृह-युद्ध शुरू होने की वजह से नवंबर 2002 में हमें वहाँ से भागना पड़ा। हम सिएरा लियोन गए, जहाँ 11 साल से गृह-युद्ध चल रहा था जो बस अभी-अभी खत्म हुआ था। यूँ अचानक सबकुछ छोड़कर भागना हमारे लिए आसान नहीं था। लेकिन हमने जो बातें सीखी थीं उनकी वजह से हम अपनी खुशी बनाए रख पाए।

सिएरा लियोन में बहुत-से लोग सच्चाई सीखना चाहते थे। हमने उन पर ध्यान दिया और अपने उन भाई-बहनों पर भी जिन्होंने सालों तक युद्ध की मार सही थी। उनके पास ज़्यादा कुछ नहीं था, पर जो भी था, उसे वे खुशी-खुशी दूसरों के साथ बाँटने के लिए तैयार रहते थे। एक बार एक बहन ने डेबी को कुछ कपड़े दिए। डेबी वे कपड़े लेने से झिझकने लगी, तब बहन ने कहा, “युद्ध के दौरान दूसरे देशों के भाई-बहनों ने हमारी बहुत मदद की थी। अब हमारी बारी है।” हमने सोचा कि हम भी इन भाई-बहनों की तरह बनेंगे और दूसरों की मदद करेंगे।

कुछ समय बाद हम कोटे डी आइवरी लौट गए। लेकिन राजनैतिक उथल-पुथल की वजह से वहाँ फिर से दंगे-फसाद होने लगे। इसलिए नवंबर 2004 में हमें वहाँ से बचाकर निकाला गया। हमें एक हेलिकॉप्टर से फ्रांस की सेना के बेस ले जाया गया। हम अपने साथ सिर्फ 10 किलो (22 पाउंड) का एक बैग ले जा सकते थे। हम वहाँ रात में फर्श पर सोए। अगले दिन हमें हवाई-जहाज़ से स्विट्‌ज़रलैंड ले जाया गया। करीब आधी रात को हम शाखा दफ्तर पहुँचे। वहाँ शाखा समिति के भाइयों और मंडली सेवक प्रशिक्षण स्कूल (MTS) के शिक्षकों ने और उनकी पत्नियों ने बहुत प्यार से हमारा स्वागत किया। उन्होंने कई बार हमें गले लगाया, गर्म-गर्म खाना खिलाया और वहाँ की खूब सारी चॉकलेट दी। उनका यह प्यार हमारे दिल को छू गया।

फ्रांको कोटे डी आइवरी में राज-घर में भाषण देते हुए।

2005 में कोटे डी आइवरी में शरणार्थियों को एक भाषण देते हुए

हमें कुछ समय के लिए घाना में सेवा करने के लिए कहा गया। लेकिन फिर जब कोटे डी आइवरी के हालात थोड़े ठीक हो गए, तो हमें वापस वहाँ भेजा गया। अचानक अपना घर छोड़ना और कभी एक जगह, तो कभी दूसरी जगह सेवा करना हमारे लिए आसान नहीं था। लेकिन भाई-बहनों ने जिस तरह प्यार से हमारी मदद की, उससे हम अपनी खुशी बनाए रख पाए। मैं और डेबी अकसर बात करते थे कि यहोवा के संगठन में भाई-बहनों के बीच प्यार तो होता ही है, लेकिन हमें कभी-भी इस प्यार के लिए अपनी कदर कम नहीं होने देनी चाहिए। भले ही यह बहुत मुश्‍किल दौर था, पर इस दौरान हमने बहुत-सी अनमोल बातें सीखीं।

मध्य-पूर्वी देशों में सेवा

फ्रांको और डेबी एक मध्य-पूर्वी देश में प्राचीन समय के खंडहर देखने गए हैं

2007 में एक मध्य-पूर्वी देश में

2006 में हमें विश्‍व मुख्यालय से एक खत मिला और हमें एक मध्य-पूर्वी देश में सेवा करने के लिए कहा गया। एक बार फिर हमारी ज़िंदगी बदलनेवाली थी। हमारे सामने नयी मुश्‍किलें थीं, नयी संस्कृति और नयी भाषा सीखनी थी। हमें यहाँ बहुत कुछ सीखना था, क्योंकि यहाँ लोगों पर धर्म और राजनीति को लेकर एक अलग ही जुनून सवार था। लेकिन जब हम देखते थे कि मंडलियों में अलग-अलग भाषा बोलनेवाले भाई-बहन हैं, फिर भी संगठन से मिलनेवाली हिदायतें मानने की वजह से उनमें कमाल की एकता है, तो हमें बहुत अच्छा लगता था। वहाँ के ज़्यादातर भाई-बहन ऐसे थे जिनका उनके परिवारवालों ने, साथ पढ़नेवालों ने, साथ काम करनेवालों ने और पड़ोसियों ने विरोध किया था। पर उन्होंने हिम्मत से इस सबका सामना किया। इसलिए हम उनकी बहुत इज़्ज़त करते थे।

2012 में इसराएल के टेल अवीव शहर में एक खास अधिवेशन रखा गया और हमें उसमें हाज़िर होने का मौका मिला। ईसवी सन्‌ 33 के पिन्तेकुस्त के दिन के बाद पहली बार ऐसा हो रहा था जब उस इलाके में यहोवा के लोग इतनी बड़ी तादाद में इकट्ठा हुए थे। यह वाकई बहुत यादगार था!

उन्हीं सालों के दौरान हमें एक ऐसे देश का दौरा करने के लिए भेजा गया जहाँ हमारे काम पर पाबंदियाँ लगी थीं। हम वहाँ अपने साथ कुछ किताबें-पत्रिकाएँ लेकर गए। हमने वहाँ प्रचार किया और छोटे-छोटे सम्मेलनों में भी हाज़िर हुए। हम बहुत सावधानी से छोटे समूहों में दूसरे प्रचारकों के साथ कहीं आते-जाते थे। हर जगह हथियारों से लैस सैनिक घूमते रहते थे और जगह-जगह नाकाबंदी थी, पर हमें डर नहीं लगा।

वापस अफ्रीका में

फ्रांको लैपटॉप पर टाइप करते हुए।

2014 में कांगो में एक भाषण की तैयारी करते वक्‍त

2013 में हमें एक नयी ज़िम्मेदारी दी गयी। यह एकदम अलग थी। हमसे कहा गया कि हम कांगो के किन्शासा शाखा दफ्तर में सेवा करें। यह बहुत बड़ा और खूबसूरत देश है। लेकिन यहाँ के लोगों ने घोर गरीबी और कई युद्धों की मार सही है। शुरू-शुरू में हमें लगा, “अफ्रीका में तो हम रह चुके हैं, जो भी होगा सँभाल लेंगे।” लेकिन हमें अभी-भी बहुत कुछ सीखना था, खासकर उन इलाकों में सफर करने के बारे में जहाँ ना तो सड़कें थीं, ना पुल वगैरह। लेकिन बहुत-सी अच्छी बातें भी थीं। हमने उन पर ध्यान दिया। जैसे पैसों की तंगी होने के बाद भी भाई-बहन खुशी से यहोवा की सेवा में लगे रहते थे। वे जोश से प्रचार करते थे और सभाओं और सम्मेलनों में हाज़िर होने के लिए बहुत मेहनत करते थे। हमने अपनी आँखों से देखा कि यहोवा की आशीष से राज का काम तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। कांगो में सेवा करते वक्‍त हमने बहुत-सी अच्छी बातें सीखीं और हमें बहुत-से अच्छे दोस्त मिले जो हमारा परिवार बन गए।

फ्रांको प्रचार करने के लिए कुछ भाई-बहनों के साथ गाँव की तरफ जा रहे हैं।

2023 में दक्षिण अफ्रीका में प्रचार के लिए जाते हुए

2017 के आखिर में, हमें दक्षिण अफ्रीका शाखा दफ्तर में सेवा करने के लिए भेजा गया। अब तक हमने जहाँ भी सेवा की है, उनमें से यह सबसे बड़ा शाखा दफ्तर है। बेथेल में हमें जो काम दिया गया, वह हमारे लिए एकदम नया था। हमें फिर से बहुत कुछ सीखना था। लेकिन अब तक हमने जो बातें सीखी थीं, उनसे हमें काफी मदद मिली। यहाँ बहुत सारे भाई-बहन सालों से यहोवा की वफादारी से सेवा कर रहे हैं। हम उनसे बहुत प्यार करते हैं। यह सच में कमाल की बात है कि बेथेल परिवार में अलग-अलग जाति, रंग और संस्कृति के भाई-बहन हैं, लेकिन वे सब एक होकर यहोवा की सेवा कर रहे हैं। यहोवा के लोग नयी शख्सियत पहनने और बाइबल सिद्धांतों के हिसाब से चलने की पूरी कोशिश कर रहे हैं और यहोवा उनकी मेहनत पर आशीष दे रहा है, इसलिए उनके बीच शांति है और उनका आपस में एक अच्छा रिश्‍ता है।

बीते सालों के दौरान मैंने और डेबी ने कई अलग-अलग जगह सेवा की। हमने अलग-अलग माहौल में खुद को ढाला और नयी-नयी भाषाएँ सीखीं। यह सब करना हमेशा आसान नहीं था। लेकिन हमने कभी-भी खुद को अकेला महसूस नहीं किया। यहोवा ने हमेशा अपने संगठन और भाई-बहनों के ज़रिए हमें सँभाला और अपने प्यार का एहसास दिलाया। (भज. 144:2) पूरे समय की सेवा करते वक्‍त हमें जो ट्रेनिंग मिली और हमने जो बातें सीखीं, उससे हम यहोवा के और भी अच्छे सेवक बन पाए हैं।

मैं बहुत शुक्रगुज़ार हूँ कि मम्मी-पापा ने मेरी इतनी अच्छी परवरिश की, मेरी पत्नी डेबी ने हमेशा मेरा साथ दिया और अलग-अलग जगह के भाई-बहनों ने हमारे लिए एक बढ़िया मिसाल रखी। मैंने और डेबी ने ठान लिया है कि आगे चाहे जो भी हो, हम अपने महान उपदेशक यहोवा से सीखते रहेंगे।

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