मंगलवार, 29 जुलाई
मैंने तुझे मंज़ूर किया है।—लूका 3:22.
यह जानकर हमें कितना दिलासा मिलता है कि यहोवा अपने सभी सेवकों को मंज़ूर करता है। बाइबल में लिखा है, “यहोवा अपने लोगों से खुश होता है।” (भज. 149:4) लेकिन कभी-कभी शायद हम बहुत निराश हो जाएँ और सोचने लगें, ‘क्या यहोवा मुझसे खुश है?’ बीते ज़माने में यहोवा के कई वफादार सेवकों के मन में भी ऐसे खयाल आए थे। (1 शमू. 1:6-10; अय्यू. 29:2, 4; भज. 51:11) बाइबल से साफ पता चलता है कि अपरिपूर्ण इंसान भी यहोवा की मंज़ूरी पा सकते हैं यानी उसे खुश कर सकते हैं। पर हम यह कैसे कर सकते हैं? हमें यीशु मसीह पर विश्वास करना होगा और बपतिस्मा लेना होगा। (यूह. 3:16) बपतिस्मा लेकर हम ज़ाहिर करते हैं कि हमने अपने पापों का पश्चाताप किया है और परमेश्वर से वादा किया है कि हम उसकी मरज़ी पूरी करेंगे। (प्रेषि. 2:38; 3:19) ऐसा करके हम यहोवा के दोस्त बनने की कोशिश करते हैं और इससे यहोवा को बहुत खुशी होती है। अगर हम अपने समर्पण के वादे को निभाने की पूरी कोशिश करें, तो यहोवा हमसे खुश होगा और हमें अपना दोस्त मानेगा।—भज. 25:14. प्र24.03 पेज 26 पै 1-2
बुधवार, 30 जुलाई
हम उन बातों के बारे में बोलना नहीं छोड़ सकते जो हमने देखी और सुनी हैं।—प्रेषि. 4:20.
अगर सरकारी अधिकारी हमें प्रचार करने से मना करें, तो भी हम पहली सदी के चेलों की तरह प्रचार करते रहेंगे। हम यहोवा से हिम्मत और बुद्धि के लिए प्रार्थना कर सकते हैं और यकीन रख सकते हैं कि अपनी सेवा अच्छी तरह पूरी करने में वह हमारी मदद करेगा। मुसीबतों का सामना करने के लिए भी मदद माँगिए। हममें से कई लोग बीमार हैं या किसी और वजह से निराश हैं। हो सकता है, हमारे किसी अपने की मौत हो गयी हो, हमारे परिवार में कोई समस्या हो, हमारा विरोध किया जा रहा हो या हमें कोई और समस्या हो। ऊपर से महामारी और युद्ध की वजह से इन समस्याओं का सामना करना और मुश्किल हो गया है। तो दिल खोलकर यहोवा से बात कीजिए। ठीक जैसे आप किसी दोस्त को अपने दिल का हाल बताते हैं, यहोवा को बताइए कि आप पर क्या बीत रही है, आपको कैसा लग रहा है। फिर भरोसा रखिए कि वह आपकी “खातिर कदम उठाएगा।” (भज. 37:3, 5) लगातार प्रार्थना करने से हम “मुसीबतों के वक्त में” धीरज धर पाएँगे। (रोमि. 12:12) यहोवा जानता है कि उसके सेवक किन हालात से गुज़र रहे हैं और “वह उनकी मदद की पुकार सुनता है।”—भज. 145:18, 19. प्र23.05 पेज 5-6 पै 12-15
गुरुवार, 31 जुलाई
जाँच करके पक्का करते रहो कि प्रभु किन बातों को स्वीकार करता है।—इफि. 5:10.
जब हमें कोई ज़रूरी फैसला लेना होता है, तो हमें यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि उस मामले में “यहोवा की मरज़ी क्या है” और फिर उस हिसाब से काम करना चाहिए। (इफि. 5:17) ऐसे में जब हम बाइबल सिद्धांतों को जानने की कोशिश करते हैं, तो असल में हम यहोवा की सोच जान पाते हैं। और फिर उन सिद्धांतों के हिसाब से हम सही फैसले कर पाते हैं। शैतान बहुत ही “दुष्ट” है, उसकी यही कोशिश रहती है कि हम दुनिया के कामों में इतने व्यस्त हो जाएँ कि यहोवा की सेवा के लिए हमारे पास वक्त ही ना बचे। (1 यूह. 5:19, फु.) इस वजह से हो सकता है कि एक मसीही पैसा कमाने, पढ़ाई करने और करियर बनाने में इतना डूब जाए कि वह यहोवा की सेवा में पीछे रह जाए। अगर एक मसीही के साथ ऐसा होता है, तो इसका मतलब है कि दुनिया की सोच उस पर हावी हो रही है। वैसे पैसा कमाना, पढ़ाई करना, यह सब अपने आप में गलत नहीं है, लेकिन हमें कभी-भी इन कामों को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह नहीं देनी चाहिए। प्र24.03 पेज 24 पै 16-17