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रोज़ाना बाइबल वचनों पर ध्यान दीजिए—2025
es25 पेज 83-96

जुलाई

मंगलवार, 1 जुलाई

‘वह पूरे देश में भलाई करता रहा और लोगों को ठीक करता रहा।’—प्रेषि. 10:38.

यीशु हू-ब-हू अपने पिता की तरह है इसलिए उसने जो कहा या किया और जो चमत्कार किए, उनसे हम जान सकते हैं कि यहोवा किस तरह सोचता है या कैसा महसूस करता है। (यूह. 14:9) हम यीशु के चमत्कारों से क्या सीख सकते हैं? यीशु और उसका पिता हमसे बहुत प्यार करते हैं। जब यीशु धरती पर था, तो उसके कामों से पता चला कि वह लोगों से कितना प्यार करता है। प्यार होने की वजह से ही उसने चमत्कार करके लोगों की तकलीफें दूर कीं। एक बार दो अंधे आदमी मदद के लिए ज़ोर-ज़ोर से यीशु को पुकारने लगे। (मत्ती 20:30-34) उन्हें देखकर यीशु “तड़प उठा” और उसने उन्हें ठीक कर दिया। यहाँ जिस यूनानी क्रिया का अनुवाद “तड़प उठा” किया गया है, उसका मतलब है, किसी के लिए करुणा से भर जाना। यीशु के दिल में लोगों के लिए इतनी करुणा इसलिए थी क्योंकि वह उनसे प्यार करता था। इसी करुणा की वजह से उसने लोगों को खाना खिलाया और एक बार एक कोढ़ी को ठीक किया। (मत्ती 15:32; मर. 1:41) इससे हम यकीन रख सकते हैं कि “कोमल करुणा” करनेवाला परमेश्‍वर यहोवा और उसका बेटा यीशु हमसे बहुत प्यार करते हैं और हमें तकलीफ में देखकर उन्हें भी तकलीफ होती है। (लूका 1:78; 1 पत. 5:7) यहोवा और यीशु बेसब्री से उस दिन का इंतज़ार कर रहे होंगे जब वे इंसानों की सभी तकलीफें हमेशा के लिए दूर कर देंगे। प्र23.04 पेज 3 पै 4-5

बुधवार, 2 जुलाई

यहोवा से प्यार करनेवालो, बुराई से नफरत करो। वह अपने वफादार लोगों की जान की हिफाज़त करता है, उन्हें दुष्टों के हाथ से छुड़ाता है।—भज. 97:10.

हमें पूरी कोशिश करनी चाहिए कि हम ऐसा मनोरंजन ना करें जिससे हमारा मन बुरी बातों से भर जाए, ऐसी बातों से जिन्हें शैतान की दुनिया गलत नहीं मानती। हम और क्या कर सकते हैं? हम बाइबल पढ़कर और उसका अध्ययन करके अपने मन में अच्छी बातें भर सकते हैं। सभाओं में जाने से और प्रचार करने से भी हमारा मन अच्छी बातों पर लगा रहेगा। यहोवा हमसे वादा करता है कि अगर हम ऐसा करें, तो वह हमें ऐसी किसी भी परीक्षा में नहीं पड़ने देगा जो हमारी बरदाश्‍त के बाहर हो। (1 कुरिं. 10:12, 13) मुश्‍किलों से भरे इन आखिरी दिनों में हममें से हरेक को और भी ज़्यादा प्रार्थना करने की ज़रूरत है, तभी हम यहोवा के वफादार रह पाएँगे। यहोवा भी चाहता है कि हम ‘उसके आगे अपना दिल खोलकर रख दें।’ (भज. 62:8) यहोवा की तारीफ कीजिए और उसने आपके लिए जो कुछ किया है, उसके लिए उसका धन्यवाद कीजिए। प्रचार करने के लिए हिम्मत माँगिए। यहोवा से बिनती कीजिए कि वह मुश्‍किलों का सामना करने और बुरी इच्छाओं पर काबू पाने में आपकी मदद करे। ठान लीजिए कि कोई भी बात या कोई भी इंसान आपको यहोवा से प्रार्थना करने से रोक ना पाए। प्र23.05 पेज 7 पै 17-18

गुरुवार, 3 जुलाई

आओ हम एक-दूसरे पर ध्यान दें . . . एक-दूसरे की हिम्मत बँधाएँ।—इब्रा. 10:24, 25, फु.

हम मंडली की सभाओं में क्यों जाते हैं? खासकर इसलिए कि यहोवा की तारीफ कर सकें। (भज. 26:12; 111:1) हम इसलिए भी सभाओं में जाते हैं ताकि हम इस मुश्‍किल वक्‍त में एक-दूसरे का हौसला बढ़ा सकें। (1 थिस्स. 5:11) जब हम सभाओं में हाथ उठाकर जवाब देते हैं, तो ये दोनों काम कर रहे होते हैं। लेकिन जब जवाब देने की बात आती है, तो हमारे सामने शायद कुछ मुश्‍किलें आएँ। शायद हमें जवाब देने से डर लगे या हम बहुत-से जवाब देना चाहते हों, पर हो सकता है कई बार हमसे पूछा ना जाए। हम इन मुश्‍किलों का सामना कैसे कर सकते हैं? पौलुस ने कहा कि हमें ‘एक-दूसरे की हिम्मत बँधाने’ पर ध्यान देना चाहिए। हमारे छोटे-से जवाब से भी भाई-बहनों का बहुत हौसला बढ़ सकता है। अगर हम यह बात याद रखें, तो हम जवाब देने के लिए हाथ उठाने से हिचकिचाएँगे नहीं। और अगर अकसर ऐसा हो कि हमसे पूछा ना जाए, तो हम इस बात से खुश हो सकते हैं कि दूसरे भाई-बहनों को जवाब देने का मौका मिल रहा है।—1 पत. 3:8. प्र23.04 पेज 20 पै 1-3

शुक्रवार, 4 जुलाई

यरूशलेम जाकर . . . यहोवा का भवन दोबारा खड़ा करे।—एज्रा 1:3.

बैबिलोन में एक फरमान जारी किया गया था: यहूदी अपने वतन इसराएल वापस जा सकते हैं! वे 70 साल से बैबिलोन की बँधुआई में थे, पर अब वे आज़ाद हुए। (एज्रा 1:2-4) यह यहोवा की वजह से ही हो पाया। बैबिलोन आम तौर पर अपने बंदियों को रिहा नहीं करता था। (यशा. 14:4, 17) लेकिन अब बैबिलोन का तख्ता पलट गया था। अब वहाँ जो राजा बना, उसने यहूदियों से कहा कि वे जा सकते हैं। अब हरेक यहूदी को, खासकर परिवार के मुखियाओं को एक अहम फैसला लेना था: क्या उनका परिवार बैबिलोन छोड़कर इसराएल जाएगा या वहीं रहेगा? लेकिन यह फैसला लेना शायद इतना आसान नहीं रहा होगा। कई यहूदियों की उम्र ढल चुकी थी। इस वजह से उनके लिए इतना लंबा सफर करना बहुत मुश्‍किल होता। इसके अलावा, ज़्यादातर यहूदी बैबिलोन में ही पैदा हुए थे। उन्हें लगता था कि उनका सबकुछ वहीं है, इसराएल तो उनके पुरखाओं का देश है। और ऐसा मालूम होता है कि कुछ यहूदी वहाँ बहुत अमीर हो गए थे और चैन से जी रहे थे। इसलिए शायद उनके मन में चल रहा होगा कि वहाँ की अच्छी-खासी ज़िंदगी और फलता-फूलता कारोबार छोड़कर एक अनजान देश में जाकर बसना क्या समझदारी होगी। प्र23.05 पेज 14 पै 1-2

शनिवार, 5 जुलाई

तैयार रहो।—मत्ती 24:44.

परमेश्‍वर के वचन में हमें बढ़ावा दिया गया है कि हम धीरज रखें और अपने दिल में दूसरों के लिए करुणा और प्यार बढ़ाते रहें। जैसे लूका 21:19 में लिखा है, “तुम धीरज धरने की वजह से अपनी जान बचा पाओगे।” कुलुस्सियों 3:12 में लिखा है, “करुणा . . . का पहनावा पहन लो।” और 1 थिस्सलुनीकियों 4:9, 10 में लिखा है, “तुम्हें खुद परमेश्‍वर ने एक-दूसरे से प्यार करना सिखाया है। . . . मगर भाइयो, हम तुम्हें बढ़ावा देते हैं कि तुम और भी ज़्यादा ऐसा करते रहो।” इन आयतों में लिखी बातें उन मसीहियों से कही गयी थीं जो पहले से ही धीरज धर रहे थे और जिनके दिल में दूसरों के लिए करुणा और प्यार था। लेकिन उन्हें ये गुण अपने अंदर बढ़ाते रहने थे। हमें भी ऐसा ही करना है। गौर कीजिए कि पहली सदी के मसीहियों ने ये तीनों गुण कैसे ज़ाहिर किए। फिर आप जानेंगे कि आप उनकी तरह कैसे बन सकते हैं। इस तरह आप महा-संकट के लिए तैयार हो पाएँगे। जब आप आज धीरज धरना सीखेंगे, तो आप महा-संकट के दौरान मुश्‍किलों का डटकर सामना करने के लिए तैयार हो पाएँगे। प्र23.07 पेज 3 पै 4, 8

रविवार, 6 जुलाई

एक राजमार्ग तैयार किया जाएगा, . . . जो पवित्र मार्ग कहलाएगा।—यशा. 35:8.

चाहे हम अभिषिक्‍त मसीही हों या ‘दूसरी भेड़ों’ के लोग, हम सबको इस “पवित्र मार्ग” पर चलते रहना है। इस पर चलने से आज हम यहोवा की उपासना कर पाते हैं और भविष्य में जब परमेश्‍वर का राज धरती पर शुरू होगा, तो हम सबको और भी आशीषें मिलेंगी। (यूह. 10:16) सन्‌ 1919 से लाखों आदमी, औरत और बच्चे महानगरी बैबिलोन, यानी पूरी दुनिया में साम्राज्य की तरह फैले झूठे धर्मों को छोड़कर इस मार्ग पर चलने लगे हैं। जब यहूदी बैबिलोन छोड़ रहे थे, तो यहोवा ने इस बात का ध्यान रखा कि उनके रास्ते से हर रुकावट दूर कर दी जाए। (यशा. 57:14) आज यहोवा ने “पवित्र मार्ग” से कैसे हर रुकावट दूर की है? सन्‌ 1919 से सदियों पहले कई ऐसे आदमी रहे जो परमेश्‍वर का बहुत आदर करते थे और उससे प्यार करते थे। यहोवा ने उनके ज़रिए महानगरी बैबिलोन से निकलने का रास्ता तैयार किया। (यशायाह 40:3 से तुलना करें।) उन्होंने यह मार्ग तैयार करने के लिए जो कड़ी मेहनत की, उसी वजह से आगे चलकर नेकदिल लोग महानगरी बैबिलोन को छोड़ पाए और यहोवा के लोगों के साथ मिलकर शुद्ध उपासना कर पाए। प्र23.05 पेज 15-16 पै 8-9

सोमवार, 7 जुलाई

खुशी-खुशी यहोवा की सेवा करो। खुशी से जयजयकार करते हुए उसके सामने आओ।—भज. 100:2.

यहोवा चाहता है कि हम खुशी-खुशी और अपनी इच्छा से उसकी सेवा करें। (2 कुरिं. 9:7) तो जब अपना लक्ष्य हासिल करने की हममें इच्छा ही ना हो, क्या तब भी हमें इसके लिए मेहनत करते रहनी चाहिए? ज़रा प्रेषित पौलुस के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। उसने कहा, “मैं अपने शरीर के साथ सख्ती बरतता हूँ और उसे एक दास बनाकर काबू में रखता हूँ।” (1 कुरिं. 9:25-27, फु.) पौलुस खुद के साथ सख्ती बरतता था और सही काम करता था, तब भी जब ऐसा करने का उसका मन नहीं करता था। क्या यहोवा पौलुस की सेवा से खुश था? बिलकुल। यहोवा ने उसकी मेहनत के लिए उसे इनाम भी दिया। (2 तीमु. 4:7, 8) उसी तरह अगर हम भी अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए मेहनत करते रहें, फिर चाहे हमारा मन ना कर रहा हो, तो यहोवा हमसे भी खुश होगा। वह इसलिए कि यहोवा को पता है कि कभी-कभी शायद किसी काम से हमें लगाव ना हो, फिर भी हम वह कर रहे हैं, क्योंकि हमें उससे लगाव है। जैसे यहोवा ने पौलुस को आशीष दी, वैसे ही वह हमारी मेहनत पर भी आशीष देगा। (भज. 126:5) और जब हम देखेंगे कि यहोवा हमारी मेहनत पर आशीष दे रहा है, तब शायद अपना लक्ष्य हासिल करने का हमारा मन करने लगे। प्र23.05 पेज 29 पै 9-10

मंगलवार, 8 जुलाई

यहोवा का दिन . . . आ रहा है।—1 थिस्स. 5:2.

यहोवा के दिन जो लोग नहीं बच पाएँगे, उनकी तुलना प्रेषित पौलुस ने उन लोगों से की जो सो हो रहे हैं। उन्हें वक्‍त का पता ही नहीं चलता और ना ही यह पता चलता है कि उनके आस-पास क्या हो रहा है। इसलिए जब कोई अहम घटना घटती है, तो उन्हें इसका एहसास ही नहीं होता और वे इस बारे में कुछ नहीं कर पाते। आज ज़्यादातर लोग एक तरह से सो रहे हैं। (रोमि. 11:8) दुनिया में जो कुछ हो रहा है, उसे देखकर भी उन्हें एहसास नहीं होता कि हम “आखिरी दिनों” में जी रहे हैं और महा-संकट बहुत जल्द आनेवाला है। (2 पत. 3:3, 4) लेकिन हम जानते हैं कि जैसे-जैसे दिन गुज़र रहे हैं, हमारे लिए यह और भी ज़रूरी होता जा रहा है कि हम बाइबल में दी सलाह मानें और जागते रहें। (1 थिस्स. 5:6) इसलिए हमें शांत रहना चाहिए और थोड़ा रुककर सोचना चाहिए। क्यों? ताकि हम किसी भी तरह के राजनैतिक या सामाजिक मामलों में ना पड़ें। जैसे-जैसे यहोवा का दिन करीब आ रहा है, इन मामलों में किसी-न-किसी का पक्ष लेने का दबाव और भी बढ़ता जाएगा। पर उस वक्‍त हम क्या करेंगे, यह सोचकर हमें घबराने की ज़रूरत नहीं है। परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति की मदद से हमारा मन शांत रह पाएगा और हम ठीक से सोच पाएँगे और सही फैसले कर पाएँगे।—लूका 12:11, 12. प्र23.06 पेज 10 पै 6-7

बुधवार, 9 जुलाई

हे सारे जहान के मालिक यहोवा, मेरी तरफ ध्यान दे। . . . मुझे ताकत से भर दे।—न्यायि. 16:28.

जब आप शिमशोन के बारे में सुनते हैं, तो आपके मन में क्या आता है? शायद एक हट्टा-कट्टा आदमी, जिसमें गज़ब की ताकत थी। शिमशोन सच में बहुत ताकतवर था। लेकिन उसने एक गलती की जिसके उसे बुरे अंजाम भुगतने पड़े। फिर भी यहोवा ने इस बात पर ध्यान दिया कि शिमशोन ने अपनी पूरी ज़िंदगी उसके लिए कितना कुछ किया और उसे उस पर कितना विश्‍वास था। इस वजह से उसने शिमशोन के बारे में बाइबल में लिखवाया, ताकि हम उससे सीख सकें। यहोवा ने अपने चुने हुए लोगों, इसराएलियों की मदद करने के लिए शिमशोन के ज़रिए बहुत बड़े-बड़े काम करवाए। फिर शिमशोन की मौत के सदियों बाद जब यहोवा ने प्रेषित पौलुस से ऐसे लोगों के बारे में लिखवाया जिनमें कमाल का विश्‍वास था, तो उसने शिमशोन का नाम भी दर्ज़ करवाया। (इब्रा. 11:32-34) शिमशोन के उदाहरण से आज हमें भी हौसला मिल सकता है। उसने मुश्‍किल-से-मुश्‍किल हालात में भी यहोवा पर भरोसा रखा। हम शिमशोन से हौसला पाने के साथ-साथ कई बातें भी सीख सकते हैं। प्र23.09 पेज 2 पै 1-2

गुरुवार, 10 जुलाई

परमेश्‍वर से बिनतियाँ करो।—फिलि. 4:6.

धीरज धरने के लिए ज़रूरी है कि हम लगातार यहोवा से प्रार्थना करें और उसे अपनी हर चिंता-परेशानी बताएँ। (1 थिस्स. 5:17) हो सकता है, फिलहाल आप किसी बड़ी मुश्‍किल का सामना ना कर रहे हों। लेकिन जब आप परेशान होते हैं या आपको समझ में नहीं आता कि क्या करें, क्या तब भी आप यहोवा से कहते हैं कि वह आपको राह दिखाए? अगर आज आप हर दिन की छोटी-छोटी बातों के लिए यहोवा से मदद माँगें, तो आगे चलकर जब आपके सामने बड़ी-बड़ी मुश्‍किलें आएँगी, तब आप यहोवा से मदद माँगने से झिझकेंगे नहीं। और आपको इस बात का यकीन होगा कि वह जानता है कि ठीक कब और कैसे आपकी मदद करनी है। (भज. 27:1, 3) आज अगर हम मुश्‍किलों के दौरान धीरज रखें, तो मुमकिन है कि भविष्य में हम महा-संकट के दौरान भी धीरज रख पाएँगे। (रोमि. 5:3) यह हम क्यों कह सकते हैं? कई भाई-बहनों ने देखा है कि जब किसी मुश्‍किल में उन्होंने धीरज रखा और वे यहोवा के वफादार रहे, तो इससे उन्हें आगे आनेवाली मुश्‍किलों का सामना करने में मदद मिली। इस तरह धीरज रखने से उनका यह विश्‍वास और भी बढ़ गया कि यहोवा उनकी मदद करने के लिए तैयार है। और यह विश्‍वास होने से वे अगली परीक्षा के दौरान धीरज रख पाए।—याकू. 1:2-4. प्र23.07 पेज 3 पै 7-8

शुक्रवार, 11 जुलाई

मैं इस बात में भी तेरा लिहाज़ करता हूँ।—उत्प. 19:21.

यहोवा इसलिए लिहाज़ करता है और फेरबदल करने को तैयार रहता है, क्योंकि वह नम्र है और उसके दिल में लोगों के लिए करुणा है। ज़रा एक उदाहरण पर ध्यान दीजिए जिससे पता चलता है कि यहोवा कितना नम्र है। उसने फैसला कर लिया था कि वह सदोम के दुष्ट लोगों का नाश कर देगा। उसने अपने स्वर्गदूतों को भेजकर अपने नेक सेवक लूत को हिदायत दी कि वह पहाड़ी प्रदेश में भाग जाए। पर लूत वहाँ जाने से डर रहा था, इसलिए उसने परमेश्‍वर से गुज़ारिश की कि क्या वह और उसका परिवार पास के छोटे-से नगर सोआर में जा सकते हैं। यहोवा सोआर का भी नाश करनेवाला था, इसलिए वह लूत से कह सकता था कि उससे जो कहा गया है, वह वैसा ही करे। लेकिन उसने लूत का लिहाज़ किया और उसकी गुज़ारिश मान ली। इस वजह से उसने सोआर को बख्श दिया। (उत्प. 19:18-22) सदियों बाद यहोवा ने नीनवे के लोगों पर करुणा की। कैसे? उसने भविष्यवक्‍ता योना को वहाँ यह ऐलान करने के लिए भेजा था कि वह जल्द ही उस शहर और वहाँ के सभी दुष्ट लोगों का नाश करनेवाला है। लेकिन फिर नीनवे के लोगों ने पश्‍चाताप किया। इसलिए यहोवा को उन पर तरस आया और उसने उनका और उनके शहर का नाश नहीं किया।—योना 3:1, 10; 4:10, 11. प्र23.07 पेज 21 पै 5

शनिवार, 12 जुलाई

‘उन्होंने यहोआश को मार डाला, मगर राजाओं की कब्र में नहीं दफनाया।’—2 इति. 24:25.

हम यहोआश के उदाहरण से क्या सीख सकते हैं? यहोआश एक ऐसे पेड़ की तरह था जिसकी जड़ें कमज़ोर हैं और जिसे सहारे की ज़रूरत है। यहोयादा राजा यहोआश के लिए सहारे की तरह था। जब उसका सहारा ना रहा यानी यहोयादा की मौत हो गयी और जब आँधियाँ चलीं यानी हाकिमों ने उसे फुसलाने की कोशिश की, तो वह मानो गिर गया। वह झूठी उपासना करने लगा और यहोवा का वफादार ना रहा। इससे हमें एक सीख मिलती है। हमें सिर्फ इसलिए परमेश्‍वर का डर नहीं मानना चाहिए कि हमारे परिवारवाले या मंडली के दूसरे भाई-बहन ऐसा कर रहे हैं, बल्कि हमें खुद परमेश्‍वर के साथ अपना रिश्‍ता मज़बूत करना चाहिए और उसका डर मानना चाहिए। ऐसा हम तभी कर पाएँगे जब हम लगातार परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करेंगे, उस पर मनन करेंगे और प्रार्थना करेंगे। (यिर्म. 17:7, 8; कुलु. 2:6, 7) यहोवा हमसे बहुत ज़्यादा की उम्मीद नहीं करता। वह हमसे जो चाहता है, उसका निचोड़ सभोपदेशक 12:13 में दिया गया है। वहाँ लिखा है, “सच्चे परमेश्‍वर का डर मान और उसकी आज्ञाओं पर चल, यही इंसान का फर्ज़ है।” अगर हम परमेश्‍वर का डर मानें, तो आगे चलकर चाहे कोई भी मुश्‍किल क्यों ना आए, हम यहोवा के वफादार रह पाएँगे और किसी भी बात को यहोवा और हमारी दोस्ती के बीच नहीं आने देंगे। प्र23.06 पेज 19 पै 17-19

रविवार, 13 जुलाई

देख! मैं सबकुछ नया बना रहा हूँ।—प्रका. 21:5.

परमेश्‍वर ने जो गारंटी दी है, उसकी शुरूआत इन शब्दों से होती है, “परमेश्‍वर ने, जो राजगद्दी पर बैठा था, कहा।” (प्रका. 21:5क) प्रकाशितवाक्य की किताब में ऐसे तीन किस्से बताए गए हैं जहाँ दर्शन में यहोवा बात कर रहा है और यह उन्हीं में से एक है। जी हाँ, यह गारंटी किसी ताकतवर स्वर्गदूत ने नहीं, ना ही स्वर्ग जाने के बाद यीशु ने दी, बल्कि खुद यहोवा ने दी है। इससे हमें आगे कही गयी बात पर यकीन करने की और भी ठोस वजह मिलती है। वह क्यों? क्योंकि यहोवा “झूठ नहीं बोल सकता।” (तीतु. 1:2) सच में, प्रकाशितवाक्य 21:5, 6 में लिखी बात पूरी तरह भरोसे के लायक है। आइए शब्द “देख!” पर ध्यान दें। जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “देख!” किया गया है, वह प्रकाशितवाक्य की किताब में कई बार आया है। “देख!” कहने के बाद परमेश्‍वर ने क्या कहा? उसने कहा, “मैं सबकुछ नया बना रहा हूँ।” वैसे तो यह वादा भविष्य में पूरा होगा, लेकिन परमेश्‍वर जानता है कि वह इसे हर हाल में पूरा करेगा। इसलिए उसने ने यह नहीं कहा, “मैं सबकुछ नया बनाऊँगा,” बल्कि उसने कहा “मैं सबकुछ नया बना रहा हूँ,” मानो यह वादा अभी से पूरा होने लगा हो।—यशा. 46:10. प्र23.11 पेज 3 पै 7-8

सोमवार, 14 जुलाई

वह बाहर जाकर फूट-फूटकर रोने लगा।—मत्ती 26:75.

प्रेषित पतरस से कई गलतियाँ हुईं। ज़रा उनमें से कुछ पर ध्यान दीजिए। जब यीशु यह समझा रहा था कि बाइबल की भविष्यवाणी के मुताबिक उसे कितनी तकलीफें सहनी पड़ेंगी और उसे मार डाला जाएगा, तो पतरस उसे झिड़कने लगा। (मर. 8:31-33) और बाकी प्रेषितों के साथ-साथ पतरस ने भी कई बार यह बहस की कि उनमें बड़ा कौन है। (मर. 9:33, 34) यीशु की मौत से एक रात पहले पतरस ने एक आदमी पर हमला कर दिया और उसका कान काट दिया। (यूह. 18:10) और उसी रात पतरस ने डर के मारे अपने दोस्त यीशु को जानने से तीन बार इनकार कर दिया। (मर. 14:66-72) इसकी वजह से बाद में पतरस फूट-फूटकर रोया। वह बहुत दुखी था, लेकिन यीशु ने उसे उसके हाल पर नहीं छोड़ दिया। ज़िंदा होने के बाद वह पतरस से मिला और उसे यह साबित करने का मौका दिया कि वह उससे प्यार करता है। यीशु ने पतरस से कहा कि वह नम्र होकर एक चरवाहे की तरह उसकी भेड़ों की देखभाल करे। (यूह. 21:15-17) पतरस ने यह ज़िम्मेदारी कबूल की। वह पिन्तेकुस्त के दिन यरूशलेम में था और जिन लोगों का पहली बार पवित्र शक्‍ति से अभिषेक किया गया, उनमें पतरस भी था। प्र23.09 पेज 22 पै 6-7

मंगलवार, 15 जुलाई

मेरी छोटी भेड़ों की देखभाल कर।—यूह. 21:16.

प्रेषित पतरस भी एक प्राचीन था और उसने दूसरे प्राचीनों से गुज़ारिश की, “चरवाहों की तरह परमेश्‍वर के झुंड की देखभाल करो।” (1 पत. 5:1-4) अगर आप एक प्राचीन हैं, तो हम जानते हैं कि आप अपने भाई-बहनों से प्यार करते हैं और चरवाहे की तरह उनकी देखभाल करना चाहते हैं। लेकिन कई बार शायद आपको लगे कि आपके पास इतने सारे काम हैं या आप इतने थक गए हैं कि आप यह ज़िम्मेदारी नहीं निभा पाएँगे। ऐसे में आप क्या कर सकते हैं? आपके मन में जो भी चिंता-परेशानियाँ हैं, वे यहोवा को बताइए। पतरस ने लिखा, “अगर कोई सेवा करता है तो उस शक्‍ति पर निर्भर होकर करे जो परमेश्‍वर देता है।” (1 पत. 4:11) हो सकता है, आपके भाई-बहन ऐसी समस्याओं से जूझ रहे हों जो इस दुनिया में पूरी तरह सुलझायी नहीं जा सकतीं। लेकिन याद रखिए, आप जितना भाई-बहनों के लिए कर सकते हैं, उससे कहीं ज़्यादा ‘प्रधान चरवाहा’ यीशु मसीह उनके लिए कर सकता है। वह आज भी उनकी मदद कर सकता है और नयी दुनिया में भी करेगा। यह भी याद रखिए कि परमेश्‍वर प्राचीनों से बस यह चाहता है कि वे भाई-बहनों से प्यार करें, चरवाहों की तरह उनकी देखभाल करें और “झुंड के लिए एक मिसाल” बनें। प्र23.09 पेज 29-30 पै 13-14

बुधवार, 16 जुलाई

यहोवा जानता है कि बुद्धिमानों के तर्क बेकार हैं।—1 कुरिं. 3:20.

हमें दुनिया के लोगों की सोच नहीं अपनानी चाहिए। अगर हम दुनिया के लोगों की तरह सोचें, तो हम यहोवा से दूर जा सकते हैं और उसके स्तरों को नज़रअंदाज़ करने लग सकते हैं। (1 कुरिं. 3:19) “दुनिया की बुद्धि” यानी दुनिया के लोगों की सोच है कि हम अपनी इच्छाएँ पूरी करें और परमेश्‍वर की ना सुनें। बीते ज़माने में पिरगमुन और थुआतीरा के लोगों की भी ऐसी ही सोच थी। वहाँ जिधर देखो उधर मूर्तिपूजा और अनैतिक काम हो रहे थे। और कुछ मसीहियों पर भी वहाँ के लोगों की सोच का असर होने लगा था और वे अनैतिक कामों को बरदाश्‍त करने लगे थे। इसलिए वहाँ की मंडलियों को यीशु ने सख्ती से सलाह दी। (प्रका. 2:14, 20) आज हम पर भी दुनिया की सोच अपनाने का दबाव आता है। शायद हमारे परिवारवाले या जान-पहचानवाले हमसे कहें कि हम कुछ ज़्यादा ही सख्ती बरत रहे हैं, थोड़ा-बहुत तो चलता है। जैसे, वे शायद कहें, ‘अपनी इच्छाएँ पूरी करने में क्या बुराई है? आज दुनिया कहाँ-से-कहाँ पहुँच गयी है और तुम अब भी बाइबल पकड़े बैठे हो!’ कभी-कभी हमें शायद लगे कि यहोवा की तरफ से जो हिदायतें दी जाती हैं, उनसे समझ में नहीं आता कि क्या करना है और क्या नहीं। ऐसे में हम शायद ‘जो लिखा है उससे आगे जाने’ की या कुछ और नियम बनाने की सोचने लगें।—1 कुरिं. 4:6. प्र23.07 पेज 16 पै 10-11

गुरुवार, 17 जुलाई

सच्चा दोस्त हर समय प्यार करता है और मुसीबत की घड़ी में भाई बन जाता है।—नीति. 17:17.

यीशु की माँ मरियम को हिम्मत चाहिए थी। उसकी अब तक शादी नहीं हुई थी, लेकिन वह गर्भवती होनेवाली थी। उसे बच्चों को पालने-पोसने का कोई तजुरबा नहीं था, पर उसे एक ऐसे बच्चे की परवरिश करनी थी जो आगे चलकर मसीहा बनता। उसने अब तक किसी आदमी के साथ संबंध नहीं रखे थे, पर वह माँ बननेवाली थी। वह अपने मंगेतर यूसुफ को यह सब कैसे समझाती? (लूका 1:26-33) मरियम को हिम्मत कैसे मिली? उसने दूसरों से मदद ली। जैसे उसने जिब्राईल से कहा कि वह इस बारे में उसे और जानकारी दे। (लूका 1:34) फिर कुछ ही समय बाद वह एक लंबा सफर तय करके यहूदा के “पहाड़ी इलाके” में अपनी रिश्‍तेदार इलीशिबा से मिलने गयी। इलीशिबा ने मरियम की तारीफ की और यहोवा की प्रेरणा से मरियम के होनेवाले बच्चे के बारे में एक भविष्यवाणी की। (लूका 1:39-45) तब मरियम ने कहा कि यहोवा ने “अपने बाज़ुओं की ताकत दिखायी है।” (लूका 1:46-51) जिब्राईल स्वर्गदूत और इलीशिबा के ज़रिए यहोवा ने मरियम को हिम्मत दी। प्र23.10 पेज 14-15 पै 10-12

शुक्रवार, 18 जुलाई

हमें अपने परमेश्‍वर और पिता के लिए राजा और याजक बनाया।—प्रका. 1:6.

मसीह के कुछ चेलों का पवित्र शक्‍ति से अभिषेक किया गया है और उनका यहोवा के साथ एक खास रिश्‍ता है। ये 1,44,000 जन स्वर्ग में यीशु के साथ याजकों के तौर पर सेवा करेंगे। (प्रका. 14:1) जब वे धरती पर ही होते हैं, तभी परमेश्‍वर पवित्र शक्‍ति से उनका अभिषेक करके उन्हें अपने बेटों के नाते गोद लेता है। डेरे का पवित्र भाग परमेश्‍वर के साथ उनके इसी खास रिश्‍ते को दर्शाता है। (रोमि. 8:15-17) डेरे का परम-पवित्र भाग स्वर्ग को दर्शाता है जहाँ यहोवा निवास करता है। पवित्र और परम पवित्र भाग के बीच जो ‘परदा’ था, वह यीशु के इंसानी शरीर की निशानी है जिसके साथ वह स्वर्ग नहीं जा सकता था और यहोवा के महान मंदिर में महान महायाजक के तौर पर सेवा नहीं कर सकता था। जब यीशु ने अपना शरीर इंसानों के लिए बलिदान किया, तो उसने सभी अभिषिक्‍त मसीहियों के लिए स्वर्ग में जाने का रास्ता खोल दिया। उन्हें भी स्वर्ग में अपना इनाम पाने के लिए अपना इंसानी शरीर त्यागना होगा।—इब्रा. 10:19, 20; 1 कुरिं. 15:50. प्र23.10 पेज 28 पै 13

शनिवार, 19 जुलाई

अगर मैं गिदोन . . . के बारे में बताऊँ तो समय कम पड़ जाएगा।—इब्रा. 11:32.

जब एप्रैम के आदमी गिदोन से झगड़ने लगे और उसमें नुक्स निकालने लगे तो वह उन पर भड़क नहीं उठा, बल्कि शांत रहा। (न्यायि. 8:1-3) उसने ध्यान से उनकी सुनी और उन्हें प्यार से जवाब दिया। इस तरह उनका गुस्सा शांत हो गया। गिदोन के व्यवहार से पता चलता है कि वह कितना नम्र था। प्राचीन भी गिदोन की तरह बन सकते हैं। जब कोई उन्हें उनकी कमियाँ बताता है, तो वे ध्यान से सुन सकते हैं और नरमी से जवाब दे सकते हैं। (याकू. 3:13) इससे मंडली में शांति बनी रहेगी। जब इसराएली गिदोन की तारीफ करने लगे कि उसने उन्हें मिद्यानियों पर जीत दिलायी है, तो उसने इसका सारा श्रेय यहोवा को दिया। (न्यायि. 8:22, 23) आज प्राचीन गिदोन की तरह कैसे बन सकते हैं? वे जो कुछ भी करते हैं, उसका सारा श्रेय यहोवा को दे सकते हैं। (1 कुरिं. 4:6, 7) जैसे, अगर एक प्राचीन अच्छी तरह सिखाता है और इसके लिए उसकी तारीफ की जाती है, तो वह कह सकता है कि उसने जो भी सिखाया है, वह परमेश्‍वर के वचन से था या हम सब यहोवा के संगठन से ही सीखते हैं। समय-समय पर प्राचीनों को सोचना चाहिए कि वे जिस तरह सिखाते हैं, उससे कहीं लोगों का पूरा ध्यान उन पर तो नहीं चला जाता। प्र23.06 पेज 4 पै 7-8

रविवार, 20 जुलाई

मेरी सोच तुम्हारी सोच जैसी नहीं [है]।—यशा. 55:8.

हो सकता है, हमने किसी बात के लिए यहोवा से प्रार्थना की हो, लेकिन अब तक वैसा ना हुआ हो। ऐसे में हम खुद से पूछ सकते हैं: ‘क्या मैं सही बात के लिए प्रार्थना कर रहा हूँ?’ कई बार हमें लगता है कि हम जानते हैं कि हमारे लिए सबसे अच्छा क्या है। लेकिन हो सकता है, आगे चलकर उससे फायदा ना हो। शायद हम यहोवा से प्रार्थना करें कि वह हमारी कोई समस्या फलाँ तरीके से हल कर दे। लेकिन हो सकता है, यहोवा ने उससे भी अच्छा कुछ सोचा हो। यह भी हो सकता है कि हम जिस बात के लिए यहोवा से प्रार्थना कर रहे हैं, वह उसकी मरज़ी के मुताबिक ना हो। (1 यूह. 5:14) आइए एक ऐसे माता-पिता के बारे में बात करें, जिन्होंने प्रार्थना की थी कि उनका बच्चा यहोवा की सेवा करता रहे। वैसे इस तरह की प्रार्थना करना गलत नहीं है, पर देखा जाए तो यहोवा किसी से भी ज़बरदस्ती अपनी सेवा नहीं करवाता। वह चाहता है कि हम और हमारे बच्चे भी अपनी मरज़ी से उसकी सेवा करें। (व्यव. 10:12, 13; 30:19, 20) तो शायद वे माता-पिता यह प्रार्थना कर सकते हैं कि वे अपने बच्चे के दिल में सच्चाई बिठा सकें, ताकि वह खुद ही यहोवा से प्यार करने लगे और उसका दोस्त बन जाए।—नीति. 22:6; इफि. 6:4. प्र23.11 पेज 21 पै 5; पेज 23 पै 12

सोमवार, 21 जुलाई

एक-दूसरे को दिलासा देते रहो।—1 थिस्स. 4:18.

दिलासा देना प्यार ज़ाहिर करने का एक अहम तरीका है। हम ऐसा क्यों कह सकते हैं? एक किताब में बाइबल की इस आयत के बारे में कुछ इस तरह कहा गया है: जिस शब्द का अनुवाद ‘दिलासा देना’ किया गया है, उसका मतलब है, “एक ऐसे व्यक्‍ति के पास खड़े होकर उसका हौसला बढ़ाना जो किसी मुश्‍किल दौर से गुज़र रहा है।” तो जब हम किसी भाई या बहन को दिलासा देते हैं जो बहुत निराश है, तो मानो हम उसकी तरफ मदद का हाथ बढ़ा रहे होते हैं, ताकि वह फिर से उठ जाए और जीवन की राह पर चलता रहे। हर बार जब हम किसी ऐसे भाई या बहन का दुख बाँटते हैं जो अंदर से पूरी तरह टूट चुका है, तो हम उसके लिए प्यार ज़ाहिर कर रहे होते हैं। (2 कुरिं. 7:6, 7, 13) किसी को दिलासा देने के लिए सबसे पहले हमारे दिल में उसके लिए करुणा होनी चाहिए। वह क्यों? क्योंकि जो व्यक्‍ति किसी को तकलीफ में देखकर तड़प उठता है या उसका दिल करुणा से भर जाता है, वही उसकी मदद करने या उसे दिलासा देने के लिए आगे आता है। तो इसका मतलब, जब हम महसूस करेंगे कि हमारे भाई-बहनों पर क्या बीत रही है, या यूँ कहें कि हमारे दिल में करुणा होगी, तभी हम उन्हें दिलासा दे पाएँगे। पौलुस ने यहोवा के बारे में कुछ ऐसा ही कहा। उसने लिखा कि यहोवा “कोमल दया का पिता है और हर तरह का दिलासा देनेवाला परमेश्‍वर है।”—2 कुरिं. 1:3. प्र23.11 पेज 9-10 पै 8-10

मंगलवार, 22 जुलाई

‘दुख-तकलीफें झेलते हुए भी खुशी मनाओ।’—रोमि. 5:3.

सभी मसीहियों को कोई-न-कोई दुख-तकलीफ झेलनी पड़ेगी। प्रेषित पौलुस भी यह बात जानता था, तभी उसने थिस्सलुनीके के भाई-बहनों को लिखा, “जब हम तुम्हारे साथ थे, तो हम तुमसे कहा करते थे कि हमें दुख-तकलीफें झेलनी पड़ेंगी। और ऐसा ही हुआ।” (1 थिस्स. 3:4) उसने कुरिंथ के भाई-बहनों को भी लिखा, ‘भाइयो, हम नहीं चाहते कि तुम इस बात से अनजान रहो कि हमने कैसी मुसीबत झेली थी। हमें तो लगा कि हम शायद ज़िंदा ही नहीं बचेंगे।’ (2 कुरिं. 1:8; 11:23-27) आज भी सभी मसीहियों को यह मानकर चलना है कि उन्हें किसी-न-किसी तरह की तकलीफें सहनी पड़ सकती हैं। (2 तीमु. 3:12) यीशु पर विश्‍वास करने और उसकी शिक्षाएँ मानने की वजह से हो सकता है, आपके दोस्तों या रिश्‍तेदारों ने आपके साथ बहुत बुरा व्यवहार किया हो। या हो सकता है कि आप हमेशा ईमानदार रहना चाहते हैं, इस वजह से आपके काम की जगह पर लोगों ने आपके लिए समस्याएँ खड़ी कर दी हों। (इब्रा. 13:18) या शायद दूसरों को अपनी आशा के बारे में बताने की वजह से सरकारी अधिकारियों ने आपका विरोध किया हो। हम पर चाहे जैसी भी दुख-तकलीफें आएँ, हमें खुश होना चाहिए। पौलुस ने यही कहा था। प्र23.12 पेज 10-11 पै 9-10

बुधवार, 23 जुलाई

तुमने मुझे कितनी बड़ी मुसीबत में डाल दिया!—उत्प. 34:30.

याकूब को कई मुश्‍किलों का सामना करना पड़ा। उसके दो बेटों, शिमोन और लेवी ने अपने परिवार की इज़्ज़त मिट्टी में मिला दी और यहोवा के नाम पर भी कलंक लगाया। इसके अलावा याकूब की प्यारी पत्नी राहेल ने उनके दूसरे बच्चे को जन्म देते वक्‍त दम तोड़ दिया। और एक भयानक अकाल की वजह से याकूब को अपने बुढ़ापे में मजबूरन मिस्र जाकर बसना पड़ा। (उत्प. 35:16-19; 37:28; 45:9-11, 28) इन सब मुश्‍किलों के बावजूद यहोवा और उसके वादों पर याकूब का विश्‍वास डगमगाया नहीं। और यहोवा ने भी हर कदम पर उसका साथ दिया। जैसे, वह उसकी संपत्ति बढ़ाता रहा। और सोचिए उस वक्‍त याकूब को कितनी खुशी हुई होगी जब वह काफी लंबे समय बाद यूसुफ से दोबारा मिला! उसने यहोवा का कितना शुक्रिया अदा किया होगा कि उसका बेटा उसे वापस मिल गया। याकूब का यहोवा के साथ बहुत अच्छा रिश्‍ता था, इसलिए वह इतनी सारी मुश्‍किलों का डटकर सामना कर पाया। (उत्प. 30:43; 32:9, 10; 46:28-30) अगर हमारा भी यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्‍ता होगा, तो हम भी उन मुश्‍किलों का डटकर सामना कर पाएँगे जो अचानक हम पर आ पड़ती हैं। प्र23.04 पेज 15 पै 6-7

गुरुवार, 24 जुलाई

यहोवा मेरा चरवाहा है। मुझे कोई कमी नहीं होगी।—भज. 23:1.

भजन 23 में दाविद ने बताया कि उसे पूरा यकीन है कि यहोवा उससे प्यार करता है और उसकी परवाह करता है। यहोवा को चरवाहा कहकर उसने ज़ाहिर किया कि उसका और यहोवा का रिश्‍ता कितना गहरा है। यहोवा की बतायी राह पर चलकर दाविद सुरक्षित महसूस करता था। और वह पूरी तरह यहोवा पर निर्भर रहता था। दाविद जानता था कि यहोवा ज़िंदगी-भर उससे अटल प्यार करता रहेगा। दाविद को क्यों इतना यकीन था? दाविद ने महसूस किया कि यहोवा उसका खयाल रख रहा है, क्योंकि यहोवा ने हमेशा उसकी ज़रूरतें पूरी की थीं। वह यह भी जानता था कि यहोवा उसका दोस्त है और उससे खुश है। इसलिए उसे पूरा यकीन था कि कल को चाहे कुछ भी हो जाए, यहोवा उसे सँभालेगा। दाविद जानता था कि यहोवा उससे इतना प्यार करता है कि हमेशा उसका खयाल रखेगा, इसलिए चिंताओं के बावजूद वह खुश रह पाया।—भज. 16:11. प्र24.01 पेज 28-29 पै 12-13

शुक्रवार, 25 जुलाई

मैं दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्‍त तक हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगा।—मत्ती 28:20.

दूसरे विश्‍व युद्ध के बाद से यहोवा के लोग कई देशों में शांति से और बिना किसी रोक-टोक के प्रचार कर पा रहे हैं। परमेश्‍वर के सेवक दुनिया-भर में लोगों को खुशखबरी सुना रहे हैं और बहुत-से लोग यहोवा को जान रहे हैं। शासी निकाय के भाई हमेशा यह जानने की कोशिश करते हैं कि यीशु मसीह उनसे क्या चाहता है। वह इसलिए कि वे भाई-बहनों को ऐसी हिदायतें देना चाहते हैं जिनसे यहोवा की और मसीह की सोच ज़ाहिर हो। वे ये हिदायतें सर्किट निगरानों और प्राचीनों के ज़रिए मंडलियों तक पहुँचाते हैं। अभिषिक्‍त प्राचीन और मंडली के बाकी सभी प्राचीन, मसीह के “दाएँ हाथ” में हैं। (प्रका. 2:1) लेकिन सभी प्राचीन अपरिपूर्ण हैं और उनसे गलतियाँ हो जाती हैं, ठीक जैसे मूसा, यहोशू और प्रेषितों से भी कभी-कभी गलतियाँ हुई थीं। (गिन. 20:12; यहो. 9:14, 15; रोमि. 3:23) फिर भी इस बात के साफ सबूत देखने को मिलते हैं कि मसीह बड़ी सूझ-बूझ से विश्‍वासयोग्य दास और प्राचीनों का मार्गदर्शन कर रहा है। और आगे भी ऐसा करता रहेगा। (मत्ती 28:20) इसलिए प्राचीनों से मिलनेवाली हिदायतों पर हम पूरा भरोसा रख सकते हैं जिनके ज़रिए आज मसीह अपने लोगों की अगुवाई कर रहा है। प्र24.02 पेज 23 पै 13-14

शनिवार, 26 जुलाई

परमेश्‍वर के प्यारे बच्चों की तरह उसकी मिसाल पर चलो।—इफि. 5:1.

आज हम कैसे यहोवा का दिल खुश कर सकते हैं? हम उसके बारे में इस तरह लोगों से बात कर सकते हैं जिससे यह ज़ाहिर हो कि हम उससे बहुत प्यार करते हैं और दिल से उसका एहसान मानते हैं। प्रचार करते वक्‍त हमारी यही कोशिश रहती है कि लोग यहोवा को जानें, उससे प्यार करें और उसकी तरफ खिंचे चले आएँ। (याकू. 4:8) हमें बाइबल से यहोवा के गुणों के बारे में भी बताना बहुत अच्छा लगता है, जैसे उसके प्यार, न्याय, बुद्धि, ताकत और ऐसे ही दूसरे बढ़िया गुणों के बारे में। इस तरह हम यहोवा के नाम की तारीफ करते हैं। इसके अलावा, जब हम यहोवा की तरह बनने की कोशिश करते हैं, तब भी हम उसके नाम की तारीफ करते हैं और उसका दिल खुश करते हैं। और जब हम ऐसा करते हैं, तो शायद कुछ लोग इस बात पर ध्यान दें कि हम दुनिया के लोगों से कितने अलग हैं। (मत्ती 5:14-16) रोज़मर्रा के काम करते वक्‍त जब हम इस तरह के लोगों से मिलते हैं, तो शायद हमें उन्हें यह बताने का मौका मिले कि हम क्यों दुनिया के लोगों की तरह नहीं हैं। इस वजह से अच्छा मन रखनेवाले लोग उसकी तरफ खिंचे चले आते हैं। इन सभी तरीकों से जब हम यहोवा की तारीफ करते हैं, तो उसका दिल बहुत खुश होता है।—1 तीमु. 2:3, 4. प्र24.02 पेज 10 पै 7

रविवार, 27 जुलाई

‘ताकि वह न सिर्फ हौसला बढ़ाए बल्कि सुधारे भी।’—तीतु. 1:9.

प्रौढ़ बनने के लिए आपको कुछ हुनर सीखने होंगे जो आपके काम आएँ। इससे आप मंडली में ज़िम्मेदारियाँ सँभाल पाएँगे, आपको नौकरी मिल पाएगी जिससे आप अपनी और अपने परिवार की ज़रूरतें पूरी कर पाएँगे और दूसरों के साथ आपके रिश्‍ते अच्छे रहेंगे। एक हुनर है, अच्छी तरह पढ़ना-लिखना सीखिए। बाइबल में बताया गया है कि जो आदमी हर दिन परमेश्‍वर का वचन पढ़ता है और उस पर मनन करता है, वह खुश रहता है और अपने हर काम में कामयाब होता है। (भज. 1:1-3) तो हर दिन बाइबल पढ़िए। इससे आप यहोवा की सोच जान पाएँगे। और यहोवा की सोच जानने से आप समझ पाएँगे कि बाइबल के सिद्धांतों को कैसे मानें और कैसे अच्छे फैसले करें। (नीति. 1:3, 4) मंडली में ऐसे भाइयों की ज़रूरत होती है जो सबको बाइबल से सिखा सकें और बढ़िया सलाह दे सकें। अगर आप अच्छी तरह पढ़ना-लिखना सीखें, तो आप ऐसे भाषण तैयार कर पाएँगे और ऐसे जवाब दे पाएँगे जिनसे भाई-बहन कुछ सीख सकें और उनका विश्‍वास बढ़े। इसके अलावा, आप नोट्‌स ले पाएँगे जिनसे ना सिर्फ आपका विश्‍वास मज़बूत होगा, बल्कि आप दूसरों का भी हौसला बढ़ा पाएँगे। प्र23.12 पेज 26-27 पै 9-11

सोमवार, 28 जुलाई

परमेश्‍वर जो तुम्हारे साथ एकता में है, वह शैतान से बड़ा है जो दुनिया के साथ एकता में है।—1 यूह. 4:4.

जब आपको डर लगे तो सोचिए कि आगे चलकर यहोवा क्या-क्या करेगा, जब शैतान का नामो-निशान मिट जाएगा। 2014 के क्षेत्रीय अधिवेशन में एक प्रदर्शन में दिखाया गया था। उस प्रदर्शन में एक पिता ने अपने परिवार के साथ चर्चा की कि अगर 2 तीमुथियुस 3:1-5 में फिरदौस के बारे में बताया गया होता, तो शायद उसमें यूँ लिखा होता, “नयी दुनिया में खुशियों से भरा वक्‍त होगा। इसलिए कि लोग दूसरों से प्यार करनेवाले, सच्चाई से प्यार करनेवाले, खुद के बारे में डींगें न मारनेवाले, नम्र, परमेश्‍वर की महिमा करनेवाले, माता-पिता की आज्ञा माननेवाले, एहसान माननेवाले, वफादार, अपने परिवार से बहुत लगाव रखनेवाले, हर बात पर राज़ी होनेवाले, दूसरों के बारे में हमेशा अच्छा बोलनेवाले, संयम रखनेवाले, कोमल, भलाई से प्यार करनेवाले, भरोसेमंद, लिहाज़ करनेवाले, मन के दीन, मौज-मस्ती के बजाय परमेश्‍वर से प्यार करनेवाले होंगे, वे भक्‍ति का दिखावा नहीं करेंगे, बल्कि उसके मुताबिक जीएँगे। ऐसों के करीब बने रहना।” क्या आप अपने परिवारवालों या भाई-बहनों के साथ इस बारे में चर्चा करते हैं कि नयी दुनिया में ज़िंदगी कैसी होगी? प्र24.01 पेज 6 पै 13-14

मंगलवार, 29 जुलाई

मैंने तुझे मंज़ूर किया है।—लूका 3:22.

यह जानकर हमें कितना दिलासा मिलता है कि यहोवा अपने सभी सेवकों को मंज़ूर करता है। बाइबल में लिखा है, “यहोवा अपने लोगों से खुश होता है।” (भज. 149:4) लेकिन कभी-कभी शायद हम बहुत निराश हो जाएँ और सोचने लगें, ‘क्या यहोवा मुझसे खुश है?’ बीते ज़माने में यहोवा के कई वफादार सेवकों के मन में भी ऐसे खयाल आए थे। (1 शमू. 1:6-10; अय्यू. 29:2, 4; भज. 51:11) बाइबल से साफ पता चलता है कि अपरिपूर्ण इंसान भी यहोवा की मंज़ूरी पा सकते हैं यानी उसे खुश कर सकते हैं। पर हम यह कैसे कर सकते हैं? हमें यीशु मसीह पर विश्‍वास करना होगा और बपतिस्मा लेना होगा। (यूह. 3:16) बपतिस्मा लेकर हम ज़ाहिर करते हैं कि हमने अपने पापों का पश्‍चाताप किया है और परमेश्‍वर से वादा किया है कि हम उसकी मरज़ी पूरी करेंगे। (प्रेषि. 2:38; 3:19) ऐसा करके हम यहोवा के दोस्त बनने की कोशिश करते हैं और इससे यहोवा को बहुत खुशी होती है। अगर हम अपने समर्पण के वादे को निभाने की पूरी कोशिश करें, तो यहोवा हमसे खुश होगा और हमें अपना दोस्त मानेगा।—भज. 25:14. प्र24.03 पेज 26 पै 1-2

बुधवार, 30 जुलाई

हम उन बातों के बारे में बोलना नहीं छोड़ सकते जो हमने देखी और सुनी हैं।—प्रेषि. 4:20.

अगर सरकारी अधिकारी हमें प्रचार करने से मना करें, तो भी हम पहली सदी के चेलों की तरह प्रचार करते रहेंगे। हम यहोवा से हिम्मत और बुद्धि के लिए प्रार्थना कर सकते हैं और यकीन रख सकते हैं कि अपनी सेवा अच्छी तरह पूरी करने में वह हमारी मदद करेगा। मुसीबतों का सामना करने के लिए भी मदद माँगिए। हममें से कई लोग बीमार हैं या किसी और वजह से निराश हैं। हो सकता है, हमारे किसी अपने की मौत हो गयी हो, हमारे परिवार में कोई समस्या हो, हमारा विरोध किया जा रहा हो या हमें कोई और समस्या हो। ऊपर से महामारी और युद्ध की वजह से इन समस्याओं का सामना करना और मुश्‍किल हो गया है। तो दिल खोलकर यहोवा से बात कीजिए। ठीक जैसे आप किसी दोस्त को अपने दिल का हाल बताते हैं, यहोवा को बताइए कि आप पर क्या बीत रही है, आपको कैसा लग रहा है। फिर भरोसा रखिए कि वह आपकी “खातिर कदम उठाएगा।” (भज. 37:3, 5) लगातार प्रार्थना करने से हम “मुसीबतों के वक्‍त में” धीरज धर पाएँगे। (रोमि. 12:12) यहोवा जानता है कि उसके सेवक किन हालात से गुज़र रहे हैं और “वह उनकी मदद की पुकार सुनता है।”—भज. 145:18, 19. प्र23.05 पेज 5-6 पै 12-15

गुरुवार, 31 जुलाई

जाँच करके पक्का करते रहो कि प्रभु किन बातों को स्वीकार करता है।—इफि. 5:10.

जब हमें कोई ज़रूरी फैसला लेना होता है, तो हमें यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि उस मामले में “यहोवा की मरज़ी क्या है” और फिर उस हिसाब से काम करना चाहिए। (इफि. 5:17) ऐसे में जब हम बाइबल सिद्धांतों को जानने की कोशिश करते हैं, तो असल में हम यहोवा की सोच जान पाते हैं। और फिर उन सिद्धांतों के हिसाब से हम सही फैसले कर पाते हैं। शैतान बहुत ही “दुष्ट” है, उसकी यही कोशिश रहती है कि हम दुनिया के कामों में इतने व्यस्त हो जाएँ कि यहोवा की सेवा के लिए हमारे पास वक्‍त ही ना बचे। (1 यूह. 5:19, फु.) इस वजह से हो सकता है कि एक मसीही पैसा कमाने, पढ़ाई करने और करियर बनाने में इतना डूब जाए कि वह यहोवा की सेवा में पीछे रह जाए। अगर एक मसीही के साथ ऐसा होता है, तो इसका मतलब है कि दुनिया की सोच उस पर हावी हो रही है। वैसे पैसा कमाना, पढ़ाई करना, यह सब अपने आप में गलत नहीं है, लेकिन हमें कभी-भी इन कामों को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह नहीं देनी चाहिए। प्र24.03 पेज 24 पै 16-17

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