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व्यवस्थाविवरण का सारांश

      • होरेब पहाड़ के पास से निकलना (1-8)

      • प्रधान और न्यायी ठहराए गए (9-18)

      • कादेश-बरने में इसराएल ने आज्ञा नहीं मानी (19-46)

        • देश में जाने से इनकार किया (26-33)

        • कनान को जीतने में नाकाम (41-46)

व्यवस्थाविवरण 1:2

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    शा., “इसराएल के बेटों।”

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    ज़ाहिर है, लबानोन पर्वतमाला।

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    प्रहरीदुर्ग,

    3/1/1989, पेज 22-23

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    ‘उत्तम देश’, पेज 8-9

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    प्रहरीदुर्ग,

    8/15/2013, पेज 11

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    शा., “पूरी तरह।”

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फुटनोट

  • *

    या शायद, “परमेश्‍वर ने उसकी हिम्मत बँधायी है।”

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व्यव. 1:111रा 3:8
व्यव. 1:11उत 12:1-3; 22:15, 17; 26:3, 4; निर्ग 23:25
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व्यव. 1:34गि 14:28, 35; 32:10-12; व्य 2:14; भज 95:11; इब्र 3:11
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पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद (अध्ययन बाइबल)
व्यवस्थाविवरण 1:1-46

व्यवस्थाविवरण

1 जब इसराएली यरदन के पासवाले वीराने में थे, तब मूसा ने उन सबसे बात की। यह वही वीराना है जो सूफ के सामने और पारान, तोपेल, लाबान, हसेरोत और दीजाहाब के बीच है। 2 (सेईर के पहाड़ी इलाके के रास्ते होरेब से कादेश-बरने+ जाने में 11 दिन लगते हैं।) 3 मिस्र से इसराएलियों के निकलने के 40वें साल+ के 11वें महीने के पहले दिन, मूसा ने इसराएलियों* को वह सारी बातें बतायीं जो यहोवा ने उसे बताने की हिदायत दी थी। 4 यह उन दिनों की बात है जब मूसा ने हेशबोन में रहनेवाले एमोरियों के राजा सीहोन+ को और अश्‍तारोत में रहनेवाले बाशान के राजा ओग+ को एदरेई में हराया था।+ 5 जब वे मोआब देश में यरदन के इलाके में थे, तब मूसा ने उन्हें परमेश्‍वर के कानून के बारे में यह समझाया:+

6 “जब हम होरेब में थे तब हमारे परमेश्‍वर यहोवा ने हमसे कहा था, ‘तुम्हें इस पहाड़ी प्रदेश में रहते बहुत समय बीत चुका है।+ 7 अब तुम यहाँ से आगे बढ़ो और एमोरियों+ के पहाड़ी प्रदेश में जाओ। इसके बाद, तुम उसके पड़ोस में कनानियों के इन सभी इलाकों में जाना: अराबा,+ पहाड़ी प्रदेश, शफेलाह, नेगेब और समुंदर किनारे का इलाका।+ और तुम दूर लबानोन*+ और महानदी फरात+ तक जाओ। 8 देखो, यह सारा देश तुम्हारे सामने है। तुम जाओ और इस देश को अपने अधिकार में कर लो जिसके बारे में यहोवा ने शपथ खाकर तुम्हारे पुरखों से कहा था। हाँ, उसने अब्राहम, इसहाक+ और याकूब+ से कहा था कि वह उन्हें और उनके बाद उनके वंश को यह देश देगा।’+

9 उस समय मैंने तुम लोगों से कहा था, ‘मैं तुम सबको ले जाने का बोझ अकेले नहीं ढो सकता।+ 10 तुम्हारे परमेश्‍वर यहोवा ने तुम्हें गिनती में इतना बढ़ाया है कि आज तुम आसमान के तारों की तरह अनगिनत हो गए हो।+ 11 और मैं दुआ करता हूँ कि तुम्हारे पुरखों का परमेश्‍वर यहोवा तुम्हें और भी हज़ारों गुना बढ़ाए+ और तुम्हें आशीष दे, ठीक जैसे उसने तुमसे वादा किया है।+ 12 लेकिन मैं अकेले इतनी बड़ी भीड़ का बोझ नहीं ढो सकता, सबकी समस्याएँ नहीं सुलझा सकता और तुम्हारे झगड़े नहीं सह सकता।+ 13 इसलिए अपने-अपने गोत्र से ऐसे आदमी चुनो जो बुद्धिमान और सूझ-बूझ से काम लेनेवाले और तजुरबेकार हों। मैं उन्हें तुम्हारा अधिकारी ठहराऊँगा।’+ 14 और तुमने कहा था, ‘हाँ, यह ठीक रहेगा।’ 15 तब मैंने तुम्हारे गोत्रों के उन मुखियाओं को लिया, जो बुद्धिमान और तजुरबेकार थे और उन्हें तुम पर प्रधान ठहराया। मैंने उन्हें हज़ारों, सैकड़ों, पचास-पचास और दस-दस की टोली पर प्रधान ठहराया और तुम्हारे गोत्रों के लिए अधिकारी बनाया।+

16 और उस समय मैंने तुम्हारे न्यायियों को यह हिदायत दी, ‘जब तुम्हारे सामने कोई मुकदमा पेश किया जाता है, तो तुम सच्चाई से न्याय करना,+ फिर चाहे मामला दो इसराएलियों के बीच का हो या एक इसराएली और तुम्हारे यहाँ रहनेवाले परदेसी के बीच का।+ 17 तुम न्याय करते वक्‍त किसी की तरफदारी न करना।+ जैसे तुम एक बड़े आदमी का मामला सुनते हो, उसी तरह तुम एक दीन आदमी का मामला भी सुनना।+ तुम इंसान से मत डरना+ क्योंकि तुम परमेश्‍वर की तरफ से न्याय करते हो।+ अगर कोई मामला तुम्हें बहुत पेचीदा लगे तो उसे मेरे पास लाना, उसकी सुनवाई मैं करूँगा।’+ 18 और तुम्हें जो-जो करना चाहिए वह सब मैंने उसी वक्‍त तुम्हें समझा दिया था।

19 इसके बाद, जैसे यहोवा ने हमें आज्ञा दी, हम होरेब से रवाना हुए और वहाँ से एमोरियों के पहाड़ी प्रदेश में+ जाने के लिए हमने वह बड़ा और भयानक वीराना पार किया+ जिसे तुमने भी देखा था। और हम सफर करते-करते कादेश-बरने पहुँचे।+ 20 वहाँ पहुँचने पर मैंने तुमसे कहा, ‘तुम लोग एमोरियों के पहाड़ी प्रदेश में आ गए हो, जो हमारा परमेश्‍वर यहोवा हमें देने जा रहा है। 21 देखो, तुम्हारे परमेश्‍वर यहोवा ने यह देश तुम्हारे हाथ में कर दिया है। अब तुम जाओ और इसे अपने अधिकार में कर लो, ठीक जैसे तुम्हारे पुरखों के परमेश्‍वर यहोवा ने तुमसे कहा है।+ तुम किसी से मत डरना और न किसी से खौफ खाना।’

22 तब तुम सब मेरे पास आकर कहने लगे, ‘क्यों न हम उस देश में जाने से पहले अपने कुछ आदमियों को वहाँ भेजें ताकि वे उस देश का मुआयना करें और लौटकर हमें बताएँ कि हमें कौन-सा रास्ता लेना चाहिए और किन-किन शहरों से हमारा सामना होगा?’+ 23 मुझे तुम्हारा यह सुझाव अच्छा लगा इसलिए मैंने तुम्हारे बीच से 12 आदमी चुने, हर गोत्र से एक आदमी।+ 24 वे आदमी वहाँ से पहाड़ी प्रदेश की तरफ गए+ और एशकोल घाटी पहुँचकर उन्होंने देश की जासूसी की। 25 उन्होंने उस देश के कुछ फल भी लिए और हमारे पास लौट आए। उस देश के बारे में उन्होंने हमें यह खबर दी, ‘हमारा परमेश्‍वर यहोवा हमें जो देश देनेवाला है वह बहुत बढ़िया है।’+ 26 मगर तुम लोगों ने उस देश में जाने से इनकार कर दिया और तुम अपने परमेश्‍वर यहोवा के आदेश के खिलाफ जाकर बगावत करने लगे।+ 27 तुम अपने-अपने तंबू में कुड़कुड़ाते रहे और कहते रहे, ‘यहोवा हमसे नफरत करता है, इसीलिए वह हमें मिस्र से निकालकर यहाँ ले आया ताकि हमें एमोरियों के हवाले कर दे और वे हमें नाश कर दें। 28 हाय! हम कैसे देश में जा रहे हैं? हमारे भाई जो उस देश को देख आए हैं वे कहते हैं, “उस देश के लोग हमसे कहीं ज़्यादा ताकतवर हैं, बहुत लंबे-चौड़े हैं। उनके शहर बहुत बड़े-बड़े हैं और शहरपनाह इतनी ऊँची हैं कि आसमान से बातें करती हैं।+ हमने वहाँ अनाकी लोगों+ को देखा है।” यह सब सुनकर हमारी हिम्मत टूट गयी है।’+

29 तब मैंने तुमसे कहा, ‘उस देश के लोगों से मत डरो, न ही उनसे खौफ खाओ।+ 30 तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा तुम्हारे आगे-आगे जाएगा और वह तुम्हारी तरफ से लड़ेगा,+ ठीक जैसे वह मिस्र में तुम्हारे देखते तुम्हारी तरफ से लड़ा था।+ 31 और वीराने में भी तुमने देखा कि तुम्हारे परमेश्‍वर यहोवा ने कैसे तुम्हारी देखभाल की। पूरे सफर के दौरान तुम जहाँ-जहाँ गए, परमेश्‍वर तुम्हें ऐसे उठाए रहा जैसे एक पिता अपने बेटे को गोद में उठाए चलता है और तुम्हें यहाँ तक पहुँचाया।’ 32 मगर फिर भी तुमने अपने परमेश्‍वर यहोवा पर विश्‍वास नहीं किया,+ 33 जो तुम्हारे आगे-आगे चलता था और तुम्हारे लिए पड़ाव डालने की जगह ढूँढ़ता था। वह रात को आग से और दिन में बादल से तुम्हें दिखाता था कि तुम्हें किस रास्ते जाना है।+

34 उस दौरान तुम जो-जो बातें कर रहे थे वह सब यहोवा सुन रहा था। उसका क्रोध भड़क उठा और उसने शपथ खाकर कहा,+ 35 ‘इस दुष्ट पीढ़ी का एक भी आदमी उस बढ़िया देश को नहीं देख पाएगा जिसे देने के बारे में मैंने तुम्हारे पुरखों से शपथ खाकर कहा था।+ 36 सिर्फ यपुन्‍ने का बेटा कालेब उस देश में जा पाएगा जिसे वह देख आया है। मैं उसे और उसकी संतान को वहाँ की ज़मीन में से एक हिस्सा दूँगा, क्योंकि वह पूरे दिल से* यहोवा के पीछे चला है।+ 37 (तुम्हारी वजह से यहोवा मुझ पर भी भड़क उठा और उसने मुझसे कहा, “तू भी उस देश में नहीं जाएगा।+ 38 नून का बेटा यहोशू, जो तेरा सेवक है,+ उस देश में कदम रख पाएगा।+ तू उसकी हिम्मत बँधा*+ क्योंकि वही इसराएलियों की अगुवाई करके उस देश को उनके अधिकार में कर देगा।”) 39 इसके अलावा तुम्हारे बच्चे, जिनके बारे में तुमने कहा कि वे बंदी बना लिए जाएँगे+ और तुम्हारे ये बेटे जिन्हें आज सही-गलत की समझ नहीं है, ये सब उस देश में जाएँगे। मैं वह देश इन सबके अधिकार में कर दूँगा।+ 40 अब तुम लोग पीछे मुड़ जाओ और लाल सागर की तरफ जानेवाले रास्ते से वीराने के लिए रवाना हो जाओ।’+

41 तब तुम लोगों ने मुझसे कहा, ‘हमने यहोवा के खिलाफ पाप किया है। अब हम अपने परमेश्‍वर यहोवा की आज्ञा मानेंगे और जाकर दुश्‍मनों से लड़ेंगे!’ फिर तुम सबने युद्ध के लिए अपने-अपने हथियार बाँध लिए। तुमने सोचा कि पहाड़ पर चढ़कर दुश्‍मनों से लड़ना बहुत आसान है।+ 42 मगर यहोवा ने मुझसे कहा, ‘उनसे कहना, “तुम लोग उनसे लड़ने मत जाओ क्योंकि मैं तुम्हारे साथ नहीं रहूँगा।+ अगर तुम जाओगे तो दुश्‍मनों से हार जाओगे।”’ 43 मैंने परमेश्‍वर की यह बात तुम्हें बतायी मगर तुमने मेरी एक न सुनी। तुम यहोवा के आदेश के खिलाफ गए और तुमने पहाड़ पर चढ़ने की गुस्ताखी की। 44 तब उस पहाड़ पर रहनेवाले एमोरी लोगों ने आकर तुम्हारा सामना किया। वे मधुमक्खियों की तरह तुम पर टूट पड़े और उन्होंने तुम्हें सेईर के इलाके में दूर होरमा तक भगाया। 45 तब तुम लौट आए और यहोवा के सामने रोने लगे। मगर यहोवा ने तुम्हारा रोना नहीं सुना और तुम पर कोई ध्यान नहीं दिया। 46 इसलिए तुम बहुत समय तक कादेश में ही रहे।

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