क्या आप यहोवा की हुकूमत को बुलंद करते हैं?
“जाति जाति में कहो, यहोवा राजा हुआ है!”—भजन 96:10.
1, 2. (क) सामान्य युग 29 में अक्टूबर के आस-पास कौन-सी अहम घटना घटी? (ख) यीशु के लिए यह घटना क्या मायने रखती थी?
सामान्य युग 29 में अक्टूबर के आस-पास एक ऐसी अहम घटना घटी, जो उससे पहले इस धरती पर कभी नहीं घटी थी। इस घटना के बारे में सुसमाचार के एक लेखक, मत्ती ने कहा: ‘यीशु बपतिस्मा लेकर तुरन्त पानी में से ऊपर आया और देखो, उसके लिये आकाश खुल गया; और यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने परमेश्वर की आत्मा को कबूतर की नाईं उतरते और यीशु के ऊपर आते देखा। और देखो, यह आकाशवाणी हुई कि यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिससे मैं अत्यन्त प्रसन्न हूं।’ यह घटना उन चंद वाकयों में से एक थी, जिन्हें सुसमाचार के चारों लेखकों ने अपनी किताबों में दर्ज़ किया।—मत्ती 3:16, 17; मरकुस 1:9-11; लूका 3:21, 22; यूहन्ना 1:32-34.
2 यीशु पर पवित्र आत्मा के उँडेले जाने से यह साबित हुआ कि वही अभिषिक्त जन, यानी मसीहा या ख्रिस्त है। (यूहन्ना 1:33) जी हाँ, वादा किया हुआ “वंश” आखिरकार आ ही गया! यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के सामने वह शख्स खड़ा था, जिसकी एड़ी को शैतान डसता। यही नहीं, वह शख्स यहोवा और उसकी हुकूमत के सबसे बड़े दुश्मन का सिर कुचल डालता। (उत्पत्ति 3:15) अपने बपतिस्मे के समय से, यीशु को अच्छी तरह पता था कि उसे उस मकसद को पूरा करने की जी-तोड़ मेहनत करनी होगी, जो यहोवा ने अपनी हुकूमत और राज्य के लिए ठहराया है।
3. यहोवा की हुकूमत को बुलंद करने के लिए यीशु को जो भूमिका निभानी थी, उसके लिए उसने खुद को कैसे तैयार किया?
3 यीशु ने इस नए काम को हाथ में लेने से पहले, खुद को तैयार किया। कैसे? वह ‘पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होकर यरदन से लौटा और आत्मा उसे जंगल में इधर-उधर ले जाती रही।’ (लूका 4:1, NHT; मरकुस 1:12) यीशु वहाँ 40 दिन तक, विश्व की हुकूमत के उस मसले पर मनन करता रहा, जो शैतान ने उठाया था। इतना ही नहीं, यहोवा की हुकूमत को बुलंद करने के लिए उसे जो रास्ता इख्तियार करना था, उस पर भी वह गहराई से सोचता रहा। दरअसल, इस अहम मसले में स्वर्ग और धरती पर रहनेवाले सारे बुद्धिमान प्राणी, जी हाँ आप और हम भी शामिल हैं। इसलिए हमारे लिए इस बात पर गौर करना ज़रूरी है कि यीशु कैसे अपनी मौत तक परमेश्वर का वफादार बना रहा। हमें यह भी जानने की ज़रूरत है कि हमें क्या करना चाहिए, जिससे यह ज़ाहिर हो कि हममें भी यहोवा की हुकूमत को बुलंद करने की चाहत है।—अय्यूब 1:6-12; 2:2-6.
शैतान ने यहोवा की हुकूमत को खुलेआम चुनौती दी
4. शैतान ने यहोवा की हुकूमत को कैसे खुलेआम चुनौती दी?
4 बेशक, इन सारी घटनाओं से शैतान अनजान नहीं था। उसने परमेश्वर की “स्त्री” के “वंश” के मुख्य भाग पर हमला करने में ज़रा भी देर नहीं की। (उत्पत्ति 3:15) शैतान ने यीशु की तीन बार परीक्षा ली और हर बार उसने यीशु को यह पट्टी पढ़ाने की कोशिश की कि उसे अपने पिता की मरज़ी पूरी करने के बजाय खुद का फायदा देखना चाहिए। खासकर तीसरी परीक्षा में, शैतान ने यहोवा की हुकूमत को खुलेआम चुनौती दी। उसने यीशु को “सारे जगत के राज्य और उसका विभव” दिखाकर बड़ी हेकड़ी से कहा: “यदि तू गिरकर मुझे प्रणाम करे, तो मैं यह सब कुछ तुझे दे दूंगा।” यीशु को अच्छी तरह मालूम था कि ‘सारे जगत का राज्य’ सचमुच इब्लीस के कब्ज़े में है। इसलिए अपने जवाब से उसने साफ ज़ाहिर किया कि हुकूमत के मसले में वह किसकी तरफ है। उसने कहा: “हे शैतान दूर हो जा, क्योंकि लिखा है, कि तू प्रभु अपने परमेश्वर को प्रणाम कर, और केवल उसी की उपासना कर।”—मत्ती 4:8-10.
5. यीशु को कौन-सा चुनौती-भरा काम पूरा करना था?
5 यीशु ने अपने जीने के तरीके से साफ दिखाया कि यहोवा की हुकूमत को बुलंद करना ही उसकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा मकसद है। वह बखूबी जानता था कि यह साबित करने के लिए कि सिर्फ यहोवा को पूरे जहान पर हुकूमत करने का अधिकार है, उसे शैतान के हाथों मरना होगा। साथ ही, मरते दम तक उसे परमेश्वर का वफादार बने रहना होगा। इस तरह, स्त्री के “वंश” की एड़ी को डसे जाने की भविष्यवाणी पूरी होती। (मत्ती 16:21; 17:12) यीशु को इस बात की भी गवाही देनी थी कि यहोवा अपने राज्य के ज़रिए बागी शैतान को हराएगा, जिसके बाद पूरी दुनिया में शांति और व्यवस्था कायम की जाएगी। (मत्ती 6:9, 10) इस चुनौती-भरे काम को पूरा करने के लिए यीशु ने क्या किया?
“परमेश्वर का राज्य निकट आ गया है”
6. यीशु ने कैसे ज़ाहिर किया कि परमेश्वर अपने राज्य के ज़रिए “शैतान के कामों को नाश” कर डालेगा?
6 सबसे पहले, “यीशु ने गलील में आकर परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार प्रचार किया। और कहा, समय पूरा हुआ है, और परमेश्वर का राज्य निकट आ गया है।” (मरकुस 1:14, 15) उसने यह भी कहा: “[मुझे] परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाना अवश्य है, क्योंकि मैं इसी लिये भेजा गया हूं।” (लूका 4:18-21, 43) यीशु, इस्राएल देश के कोने-कोने तक “प्रचार करता हुआ, और परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाता हुआ, फिरने लगा।” (लूका 8:1) यीशु ने बहुत-से चमत्कार भी किए। जैसे, उसने भीड़ को खाना खिलाया, कुदरती शक्तियों को काबू में किया, बीमारों को चंगा किया और मरे हुओं को जिंदा किया। इन चमत्कारों के ज़रिए, यीशु ने साबित किया कि अदन के बाग में शुरू हुई बगावत की वजह से जो नुकसान हुआ है और जो दुःख-तकलीफें फैली हैं, परमेश्वर उन सब बुरे अंजामों को दूर कर देगा। इस तरह, वह “शैतान के कामों को नाश” कर डालेगा।—1 यूहन्ना 3:8.
7. यीशु ने अपने चेलों को क्या करने की हिदायत दी, और इसका क्या नतीजा निकला?
7 राज्य की खुशखबरी सुनाने के काम को अच्छी तरह से करने के लिए, यीशु ने वफादार चेलों के एक समूह को इकट्ठा किया और उन्हें इस काम की तालीम दी। सबसे पहले उसने 12 चेलों को चुना और “उन्हें परमेश्वर के राज्य का प्रचार करने . . . के लिये भेजा।” (लूका 9:1, 2) फिर उसने 70 और लोगों को यह संदेश सुनाने के लिए भेजा: “परमेश्वर का राज्य तुम्हारे निकट आ पहुंचा है।” (लूका 10:1, 8, 9) जब ये चेले लौटकर यीशु को बताने लगे कि राज्य के प्रचार काम में उन्हें कितने बढ़िया नतीजे मिले हैं, तो इस पर यीशु ने कहा: “मैं शैतान को बिजली की नाईं स्वर्ग से गिरा हुआ देख रहा था।”—लूका 10:17, 18.
8. यीशु ने अपने जीवन से क्या ज़ाहिर किया?
8 यीशु ने राज्य की खातिर खुद को पूरी तरह लगा दिया। उसने राज्य की गवाही देने का एक भी मौका हाथ से नहीं जाने दिया। दूसरों को प्रचार करने के लिए उसने दिन-रात एक कर दिया, यहाँ तक कि उसने वह सारा आराम त्याग दिया जो एक आम आदमी के लिए ज़रूरी है। उसने कहा: “लोमड़ियों के भट और आकाश के पक्षियों के बसेरे होते हैं, पर मनुष्य के पुत्र को सिर धरने की भी जगह नहीं।” (लूका 9:58; मरकुस 6:31; यूहन्ना 4:31-34) अपनी मौत से कुछ ही समय पहले, यीशु ने निडर होकर पिलातुस से कहा: “[मैं] इसलिये जगत में आया हूं कि सत्य पर गवाही दूं।” (यूहन्ना 18:37) यीशु ने अपने पूरे जीवन से यह ज़ाहिर किया कि वह महज़ एक महान शिक्षक, चमत्कार करनेवाला या दूसरों की खातिर कुरबान हो जानेवाला उद्धारकर्ता बनने के लिए नहीं आया था। इसके बजाय, वह इस धरती पर इसलिए आया ताकि वह पूरे जहान के महाराजाधिराज, यहोवा की मरज़ी पूरी कर सके और इस बात की गवाही दे सके कि परमेश्वर अपने राज्य के ज़रिए अपनी इच्छा पूरी करेगा।—यूहन्ना 14:6.
“पूरा हुआ”
9. शैतान आखिर में परमेश्वर की स्त्री के “वंश” की एड़ी को डसने में कैसे कामयाब रहा?
9 यीशु ने राज्य के सिलसिले में जो कुछ किया, उससे परमेश्वर का दुश्मन, शैतान इब्लीस गुस्से से तमक गया। इसलिए उसने अपने “वंश” के उस हिस्से से, जो इस धरती पर मौजूद है, यानी धार्मिक और राजनैतिक संगठनों के ज़रिए, परमेश्वर की स्त्री के “वंश” को मारने की बार-बार कोशिश की। जन्म से लेकर मौत तक यीशु, शैतान और उसके पैरोकारों का खास निशाना बना रहा। आखिरकार सा.यु. 33 के बहार में मनुष्य के पुत्र को इब्लीस के हवाले कर दिया गया, ताकि वह उसकी एड़ी को डसे। (मत्ती 20:18, 19; लूका 18:31-33) सुसमाचार की किताबें साफ दिखाती हैं कि यहूदा इस्करियोती से लेकर महायाजक, शास्त्री, फरीसी और रोमी लोग, सभी शैतान के मोहरे थे और उन्हीं के ज़रिए शैतान ने यीशु को गुनहगार ठहराया और उसे यातना स्तंभ पर दर्दनाक मौत दिलायी।—प्रेरितों 2:22, 23.
10. यीशु ने यातना स्तंभ पर मरने के ज़रिए कौन-सा खास मकसद पूरा किया?
10 कल्पना कीजिए कि यीशु यातना स्तंभ पर लटका, दर्द से तड़प रहा है और धीरे-धीरे उसकी साँस रुक रही है। यह सोचकर आपको कौन-सी बात याद आती है? शायद आपको वह छुड़ौती बलिदान याद आए, जो यीशु ने बिना किसी स्वार्थ के पापी इंसानों की खातिर दिया था। (मत्ती 20:28; यूहन्ना 15:13) यहोवा ने अपने बेटे का छुड़ौती बलिदान देकर अपने महान प्यार का जो सबूत दिया, उस बारे में सोचकर आप शायद हैरान रह जाएँ। (यूहन्ना 3:16) हो सकता है, आप भी उस रोमी सूबेदार जैसा महसूस करें, जो यह कहने से खुद को न रोक पाया: “सचमुच ‘यह परमेश्वर का पुत्र था।’” (मत्ती 27:54) आपके मन में ऐसी भावनाएँ उठना वाजिब है। मगर याद कीजिए कि यीशु ने यातना स्तंभ में अपनी आखिरी साँस लेते वक्त क्या कहा था। उसने कहा था: “पूरा हुआ।” (यूहन्ना 19:30) यीशु के कहने का क्या मतलब था? यह सच है कि यीशु ने अपनी ज़िंदगी और मौत से बहुत-कुछ हासिल किया। लेकिन क्या वह खासकर इस मकसद से धरती पर नहीं आया था कि यहोवा की हुकूमत के मसले को सुलझाए? क्या यह भविष्यवाणी नहीं की गयी थी कि यीशु “वंश” की हैसियत से शैतान के हाथों कड़ी परीक्षाओं से गुज़रेगा, ताकि यहोवा के नाम पर लगा कलंक मिट जाए? (यशायाह 53:3-7) ये सब भारी ज़िम्मेदारियाँ थीं, फिर भी यीशु ने उनमें से हरेक को पूरा किया। उसने क्या ही शानदार काम किया!
11. अदन के बाग में की गयी भविष्यवाणी को पूरा करने के लिए, यीशु क्या करेगा?
11 यीशु ने मरते दम तक जैसी वफादारी दिखायी और वह जिस तरह विश्वासयोग्य साबित हुआ, उसके लिए उसे दोबारा ज़िंदा किया गया। मगर एक इंसान के तौर पर नहीं, बल्कि “जीवनदायक आत्मा” के तौर पर। (1 कुरिन्थियों 15:45; 1 पतरस 3:18) यहोवा ने महिमा से भरपूर अपने बेटे से वादा किया: “तू मेरे दहिने हाथ बैठ, जब तक मैं तेरे शत्रुओं को तेरे चरणों की चौकी न कर दूं।” (भजन 110:1) इन “शत्रुओं” में सबसे बड़ा अपराधी शैतान और वे सब भी शामिल हैं, जो उसके “वंश” का हिस्सा हैं। यीशु मसीह, यहोवा के मसीहाई राज्य का राजा होने के नाते, आत्मिक लोक और पृथ्वी में से सारे बागियों का नामो-निशान मिटा डालेगा। (प्रकाशितवाक्य 12:7-9; 19:11-16; 20:1-3, 10) तब कहीं जाकर उत्पत्ति 3:15 की भविष्यवाणी और यह प्रार्थना पूरी होगी, जो यीशु ने अपने चेलों को सिखायी थी: “तेरा राज्य आए; तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो।”—मत्ती 6:10; फिलिप्पियों 2:8-11.
हमारे लिए एक आदर्श
12, 13. (क) आज राज्य के सुसमाचार के प्रचार किए जाने का क्या नतीजा निकल रहा है? (ख) अगर हम यीशु के पद-चिन्हों पर चलना चाहते हैं, तो हमें खुद से क्या सवाल पूछने चाहिए?
12 आज, राज्य का सुसमाचार बहुत-से देशों में प्रचार किया जा रहा है, ठीक जैसे यीशु ने भविष्यवाणी की थी। (मत्ती 24:14) नतीजा, लाखों-करोड़ों लोग परमेश्वर को अपना जीवन समर्पित कर रहे हैं। वे यह सोचकर फूले नहीं समाते कि परमेश्वर का राज्य क्या-क्या आशीषें लाएगा। वे उस समय का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं, जब यह धरती खूबसूरत फिरदौस में बदल जाएगी, चारों तरफ शांति और सुरक्षा होगी और वे हमेशा-हमेशा के लिए उसमें जीएँगे। इसी आशा के बारे में वे खुशी-खुशी दूसरों को बता रहे हैं। (भजन 37:11; 2 पतरस 3:13) क्या आप भी उन राज्य प्रचारकों में से एक हैं? अगर हाँ, तो हम आपको राज्य का संदेश सुनाने के लिए शाबाशी देना चाहते हैं। मगर एक और बात है जिस पर हम सभी को ध्यान देने की ज़रूरत है। वह बात क्या है?
13 प्रेरित पतरस ने लिखा: “मसीह ने भी तुम्हारे लिए दुख सहा और तुम्हारे लिए एक आदर्श रखा कि तुम भी उसके पद-चिन्हों पर चलो।” (1 पतरस 2:21, NHT) गौर कीजिए कि इस आयत में पतरस ने यीशु के जोश के साथ प्रचार करने या फिर उसके सिखाने की काबिलीयत का ज़िक्र नहीं किया। इसके बजाय, उसने यीशु के दुःख उठाने की बात कही। पतरस ने यह बात अपने तजुरबे से कही, क्योंकि उसने देखा था कि यहोवा की हुकूमत को बुलंद करने और शैतान को झूठा साबित करने के लिए यीशु किस हद तक तकलीफें झेलने को तैयार था। तो फिर, हम यीशु के पद-चिन्हों पर कैसे चल सकते हैं? हमें खुद से ये सवाल पूछने चाहिए: ‘यहोवा की हुकूमत को बुलंद करने और उसकी पैरवी करने के लिए, मैं किस हद तक दुःख सहने को तैयार हूँ? क्या मैं अपने जीने के तरीके से और अपनी सेवा के ज़रिए दिखाता हूँ कि यहोवा की हुकूमत को बुलंद करना ही मेरी ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा मायने रखता है?’—कुलुस्सियों 3:17.
14, 15. (क) जब दूसरों ने यीशु को गलत सुझाव दिया और उसके सामने गलत पेशकश रखी, तो उसने क्या किया, और क्यों? (ख) हमें अपने मन में कौन-सा मसला अच्छी तरह बिठा लेने की ज़रूरत है? (“यहोवा की हुकूमत के पक्ष में खड़े होइए” बक्स से भी जवाब दीजिए।)
14 आए दिन हमें छोटी-बड़ी कई परीक्षाओं का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा, हमें रोज़ कई फैसले भी लेने होते हैं, जिनमें से कुछ मामूली होते हैं, तो कुछ बहुत ज़रूरी। ऐसे में हमें कौन-सा कदम उठाना चाहिए, यह हम कैसे तय कर सकते हैं? मिसाल के लिए, जब हमें ऐसा काम करने के लिए लुभाया जाता है जिससे परमेश्वर के साथ हमारा रिश्ता खतरे में पड़ सकता है, तब हम क्या करते हैं? याद कीजिए कि जब पतरस ने यीशु से कहा कि वह खुद के साथ ज़्यादती न करे, तब यीशु ने क्या जवाब दिया? उसने कहा: “हे शैतान, मेरे साम्हने से दूर हो: . . . तू परमेश्वर की बातें नहीं, पर मनुष्यों की बातों पर मन लगाता है।” (मत्ती 16:20-23) अब एक और हालात को लीजिए। मान लीजिए हमारे सामने ऐसे मौके आते हैं, जिनमें हम ज़्यादा पैसा कमा सकते या एक अच्छा करियर बना सकते हैं, मगर साथ ही इनका हमारी मसीही सेवा और परमेश्वर के साथ हमारे रिश्ते पर बुरा असर हो सकता है। ऐसे वक्त पर क्या हम यीशु के जैसे पेश आएँगे? यीशु ने जब ताड़ लिया कि उसके चमत्कार देखनेवाले लोग उसे “राजा बनाने के लिये आकर पकड़ना चाहते हैं,” तो वह फौरन वहाँ से भाग खड़ा हुआ।—यूहन्ना 6:15.
15 यीशु ने इन और दूसरे हालात में इतने ठोस कदम क्यों उठाए? क्योंकि उसे अच्छी तरह मालूम था कि इनमें उसकी सलामती या फायदे से बढ़कर एक और अहम बात शामिल थी। वह हर हाल में अपने पिता की मरज़ी पूरी करना और यहोवा की हुकूमत को बुलंद करना चाहता था। (मत्ती 26:50-54) यीशु की तरह, हमें भी अपने मन में यहोवा की हुकूमत के मसले को अच्छी तरह बिठा लेने की ज़रूरत है, वरना समझौता करने का खतरा हमेशा बना रहेगा। क्यों? क्योंकि हम बड़ी आसानी से शैतान के झाँसे में आ सकते हैं, जो बुराइयों को बहुत ही लुभावने तरीके से पेश करने में माहिर है, ठीक जैसे उसने हव्वा को फुसलाते वक्त किया था।—2 कुरिन्थियों 11:14; 1 तीमुथियुस 2:14.
16. दूसरों की मदद करने में हमारा खास मकसद क्या होना चाहिए?
16 प्रचार में हम लोगों से उनकी परेशानियों पर बात करने की कोशिश करते हैं और फिर बाइबल से दिखाते हैं कि उनकी परेशानियों का क्या हल है। यह उनमें बाइबल अध्ययन के लिए दिलचस्पी पैदा करने का बहुत ही असरदार तरीका है। लेकिन हमारा खास मकसद सिर्फ लोगों को यह जानने में मदद देना ही नहीं है कि बाइबल क्या कहती है या परमेश्वर का राज्य क्या-क्या आशीषें लाएगा। मगर इससे भी बढ़कर, उन्हें यहोवा की हुकूमत के मसले को अच्छी तरह समझने में मदद देना है। क्या वे सच्चे मसीही बनकर अपना “यातना स्तंभ” उठाने और राज्य की खातिर दुःख सहने के लिए तैयार हैं? (मरकुस 8:34, NW) क्या वे उन लोगों में शामिल होने के लिए तैयार हैं, जो यहोवा की हुकूमत को बुलंद करते हैं और शैतान को एक झूठा और निंदा करनेवाला साबित करते हैं? (नीतिवचन 27:11) यह हमारे लिए बड़े सम्मान की बात है कि यहोवा की हुकूमत का पक्ष लेने में हम खुद की और दूसरों की भी मदद करें।—1 तीमुथियुस 4:16.
जब परमेश्वर ‘सब में सबकुछ होगा’
17, 18. अगर हम यहोवा की हुकूमत का पक्ष ले रहे हैं, तो हम किस शानदार समय की आस लगा सकते हैं?
17 आज जब हम अपने व्यवहार और अपनी सेवा से यह दिखाने में अपना भरसक करते हैं कि हम यहोवा की हुकूमत के पक्ष में हैं, तो हम उस समय की भी आस लगा सकते हैं जब यीशु मसीह “राज्य को परमेश्वर पिता के हाथ में सौंप देगा।” यह कब होगा? प्रेरित पौलुस समझाता है: ‘यह उस समय होगा जब वह सारी प्रधानता, सारा अधिकार और सामर्थ का अन्त कर देगा। क्योंकि जब तक कि परमेश्वर अपने बैरियों को अपने पांवों तले न ले आए, तब तक उसका राज्य करना अवश्य है। और फिर पुत्र आप भी उसके अधीन हो जाएगा जिसने सबकुछ उसके अधीन कर दिया, ताकि सब में परमेश्वर ही सबकुछ हो।’—1 कुरिन्थियों 15:24, 25, 28.
18 जब परमेश्वर ‘सब में सबकुछ होगा,’ तब क्या ही शानदार समय होगा! उस वक्त परमेश्वर का राज्य अपना मकसद पूरा कर चुका होगा। यहोवा की हुकूमत के खिलाफ उँगली उठानेवाले सभी का नामो-निशान मिट चुका होगा। पूरे विश्व में एक बार फिर शांति और व्यवस्था कायम की जाएगी। जैसे भजनहार ने लिखा था, तब सारी सृष्टि गाएगी: “यहोवा के नाम की ऐसी महिमा करो जो उसके योग्य है; . . . जाति जाति में कहो, यहोवा राजा हुआ है!”—भजन 96:8, 10.
क्या आप जवाब दे सकते हैं?
• यीशु ने कैसे परमेश्वर की हुकूमत के मसले को अपनी ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा अहमियत दी?
• यीशु ने अपनी सेवा और मौत से खासकर कौन-सा मकसद पूरा किया?
• हम किन तरीकों से यीशु की मिसाल पर चलकर यह दिखा सकते हैं कि विश्व की हुकूमत के मसले में हम यहोवा की तरफ हैं?
[पेज 11 पर बक्स/तसवीरें]
यहोवा की हुकूमत के पक्ष में खड़े होइए
कोरिया और दूसरी जगहों में रहनेवाले बहुत-से भाई यह मानते हैं कि कड़ी-से-कड़ी परीक्षाओं से गुज़रते वक्त अगर मसीही यह अच्छी तरह समझें कि उन पर ये परीक्षाएँ क्यों आती हैं, तो इससे धीरज धरने में उन्हें काफी मदद मिल सकती है।
यहोवा का एक साक्षी, जिसे भूतपूर्व सोवियत संघ की हुकूमत के दरमियान कैद किया गया था, कहता है: “जिस बात ने हमें धीरज धरने में मदद दी, वह थी अदन के बाग में उठाए गए परमेश्वर की हुकूमत के मसले की अच्छी समझ। . . . हम जानते थे कि हमें यह दिखाने का एक बढ़िया मौका मिला है कि हम यहोवा की हुकूमत की ओर हैं। . . . इसी बात ने हमें मज़बूती दी और हम अपनी खराई बनाए रख पाए।”
एक दूसरा साक्षी बताता है कि जब उसे और दूसरे साक्षियों को कड़ी मज़दूरी करवाने के लिए लेबर कैंप भेजा गया, तो किस बात ने उन्हें मदद दी। वह कहता है: “यहोवा हमारे साथ था। इसलिए मुश्किल हालात के बावजूद, हम आध्यात्मिक मायने में चौकन्ने थे। हम आपस में यह बात कहकर कि विश्व की हुकूमत के मसले में हम यहोवा की तरफ हैं, हमेशा एक-दूसरे का हौसला बुलंद करते थे।”
[पेज 8 पर तसवीर]
जब शैतान ने यीशु को लुभाया, तब यीशु ने कैसे यहोवा की हुकूमत को बुलंद किया?
[पेज 10 पर तसवीर]
यीशु की मौत से क्या पूरा हुआ?