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सजग होइए!–1999
g99 5/8 पेज 3-4

बच्चे संकट में हैं

“यदि बच्चों का पूरा खयाल न रखा जाए तो मानवजाति की कोई भी मूलभूत दीर्घकालिक समस्या दूर नहीं होगी।”—संयुक्‍त राष्ट्र बाल निधि।

दुनिया भर के बच्चे संकट में हैं। ‘बच्चों के व्यापार-रूपी लैंगिक शोषण के विरुद्ध विश्‍व महासभा’ में इसका विश्‍वास दिलानेवाला प्रमाण दिया गया कि यह त्रासदी कितनी बड़ी है। यह महासभा स्टॉकहोम, स्वीडन में १९९६ में हुई और इसमें १३० देशों के प्रतिनिधि उपस्थित हुए। उदाहरण के लिए, प्रमाण सहित बताया गया कि संसार के अनेक भागों में करोड़ों कमउम्र लड़कियों से, यहाँ तक कि दस साल की बच्चियों से ज़बरदस्ती वेश्‍या का काम करवाया जाता है।

ऑस्ट्रेलिया के मॆलबर्न यूनिवर्सिटी लॉ रिव्यू ने बताया कि इस तरह ज़बरदस्ती करवायी गयी वेश्‍यावृत्ति को “वर्तमान समय में बहुत ही घिनौनी किस्म की गुलामी” कहा गया है। सालों-साल शारीरिक, मानसिक और भावात्मक मार खाने के बाद इन लड़कियों के ज़ख्म इतने गहरे हो जाते हैं कि ज़िंदगी भर नहीं भरते। अधिकतर किस्सों में ऐसा होता है कि ये लड़कियाँ बस पेट की भूख मिटाकर ज़िंदा रहने के लिए यह क्रूरता सहती हैं। वरना वे भूखों मर जाएँ। दुःख की बात है कि इनमें से बहुत-सी लड़कियों को पैसों के लिए उन्हीं के गरीब माता-पिताओं ने बेच दिया और उन्हें वेश्‍यावृत्ति में ढकेल दिया।

बच्चों के साथ यह ज़ुल्म तो होता ही है साथ ही बाल श्रम के मुद्दे पर अकसर गरमागरम बहस होती रहती है। एशिया, दक्षिण अमरीका और दूसरी जगहों में और अमरीका के कुछ आप्रवासी समाजों में पाँच साल के नन्हे बच्चों से भी ज़बरदस्ती काम करवाया जाता है जिसे “गुलामी” कहा जा सकता है। ये बच्चे ऐसे खराब वातावरण में मशीनों की तरह काम करते हैं जहाँ उनके कोमल तन-मन को बहुत नुकसान पहुँचता है। उनमें से अधिकतर बच्चों को न शिक्षा, न माता-पिता का प्यार, न ऐसा घर जिसमें सुरक्षा महसूस हो, न खिलौने और न ही खेलने के लिए मैदान मिलता है। कई बच्चों का शोषण तो उन्हीं के निर्मोही माता-पिता करते हैं।

बाल सैनिक और अनाथालय

गुरिल्ला सेनाओं में आजकल ज़्यादा बाल सैनिकों को इस्तेमाल किया जा रहा है जिससे यह त्रासदी और भी बढ़ गयी है। बच्चों का अपहरण कर लिया जाता है या उन्हें दास बाज़ारों से खरीद लिया जाता है और फिर धीरे-धीरे पत्थरदिल बनाया जाता है। इसके लिए कभी-कभी उन्हें किसी का कत्ल होते दिखाया जाता है। कुछ बच्चों को तो अपने ही माता-पिता का कत्ल करने के लिए कहा गया है या उन्हें नशीली दवाएँ दी गयी हैं कि उनके सिर पर खून सवार हो जाए।

अफ्रीका में हज़ारों बाल सैनिकों का दिमाग खराब कर दिया गया है और उसके जो प्रभाव हुए हैं उसका एक उदाहरण नीचे दिया गया है। एक समाजसेवी और एक नन्हे सैनिक के बीच यह रोंगटे खड़े करनेवाली बातचीत हुई जिससे बच्चे की रही-सही मासूमियत झलकती है:

“क्या तुमने हत्या की? ‘नहीं।’

क्या तुम्हारे पास बंदूक थी? ‘हाँ।’

क्या तुमने बंदूक से निशाना साधा? ‘हाँ।’

क्या तुमने बंदूक दागी? ‘हाँ।’

फिर क्या हुआ? ‘वे बस गिर पड़े।’ ”

इनमें से कुछ सैनिकों की उम्र छः-सात साल है। उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि ये तो अभी दूध पीते बच्चे हैं। रिपोर्ट किया गया है कि काफी समय पहले, १९८८ में दुनिया भर में करीब २,००,००० बाल सैनिक थे।

कहा जाता है कि १९८८ से १९९२ के बीच एक एशियाई देश के किसी अनाथालय में ५५० बच्चों को भूखा रखकर मारने का फैसला किया गया। उन बच्चों में ज़्यादातर लड़कियाँ थीं। एक डॉक्टर बताती है: “उन अनाथों को दर्द मारने की गोलियाँ तक नहीं दी गयीं। जब वे आखिरी साँसें गिन रहे थे तो उन्हें उनके बिस्तरों से बाँधकर रखा गया था।”

यूरोप में स्थिति कैसी है? वहाँ का एक देश परेशान हो उठा जब एक अंतर्राष्ट्रीय बाल अश्‍लीलता गुट का खुलासा हुआ। यह गुट लैंगिक शोषण के लिए लड़कियों का अपहरण करता था। कुछ बेचारी लड़कियों का कत्ल कर दिया गया या उन्हें भूखों मार डाला गया।

ये रिपोर्टें साफ दिखाती हैं कि अनेक देशों में बाल दुर्व्यवहार और शोषण की समस्या बहुत बड़ी समस्या है। लेकिन क्या इसे विश्‍वव्यापी समस्या कहना बात का बतंगड़ बनाना है? अगला लेख इस प्रश्‍न का उत्तर देगा।

[पेज 4 पर तसवीर]

लाइबीरिया में एक बाल सैनिक

[चित्र का श्रेय]

John Gunston/Sipa Press

[पेज 4 पर तसवीर]

कोलंबिया में ईंटों की एक भट्टी में बच्चे ठेले का काम देते हैं

[चित्र का श्रेय]

UN PHOTO 148000/Jean Pierre Laffont

[पेज 3 पर चित्र का श्रेय]

FAO photo/F. Botts

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