अध्याय 49
ठोस दलीलें देना
जब आप कोई बात कहते हैं, तो सुननेवालों को यह पूछने का हक है: “मैं कैसे मान लूँ कि यह सच है? क्या सबूत है कि वक्ता जो कह रहा है, उसे मान लेना चाहिए?” एक सिखानेवाले के तौर पर आपका यह फर्ज़ बनता है कि उन्हें या तो इन सवालों के जवाब दें या इनका जवाब ढूँढ़ने में उनकी मदद करें। अगर आप अपनी दलील का सबसे अहम मुद्दा बता रहे हैं, तो उस पर यकीन दिलाने के लिए ठोस कारण ज़रूर बताइए। तब आप सुननेवालों को कायल कर सकेंगे।
प्रेरित पौलुस ने लोगों को कायल किया था। उसने ठोस दलीलें देकर, तर्क के हिसाब से समझाकर और सच्चे दिल से गुज़ारिश करके, अपने सुननेवालों के सोचने का तरीका बदलना चाहा। उसने हमारे लिए एक अच्छी मिसाल कायम की। (प्रेरि. 18:4; 19:8) बेशक, कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो दूसरों के सामने बोलने में उस्ताद हैं और वे अपनी बातों से दूसरों को गलत कामों के लिए लुभाते हैं। (मत्ती 27:20; प्रेरि. 14:19; कुलु. 2:4) वे शायद किसी गलत धारणा को लेकर अपनी बात शुरू करें, ऐसी किताबों वगैरह से सबूत पेश करें जिनमें एक-तरफा जानकारी दी जाती है और बेबुनियाद दलीलें पेश करें, उन सच्चाइयों को अनदेखा करें जो उनकी धारणाओं पर ठीक नहीं बैठतीं, या फिर लोगों के सामने सही तर्क पेश करने के बजाय उन्हें जज़्बाती बनाएँ। हमें इन सभी तरीकों से दूर रहना चाहिए।
परमेश्वर के वचन की पक्की बुनियाद। हम दूसरों को कभी-भी अपने विचार नहीं सिखाते, बल्कि हम उन्हें वही सिखाना चाहते हैं जो हमने बाइबल से सीखा है। इस काम के लिए विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास वर्ग के साहित्य से काफी मदद मिली है। ये साहित्य हमें ध्यान से बाइबल की जाँच करने का बढ़ावा देते हैं। हम ऐसा ही करते हैं और फिर दूसरों को भी बाइबल की जाँच करने का बढ़ावा देते हैं। ऐसा करने में हमारा मकसद, यह साबित करना नहीं है कि हम जो कहते हैं, वही सही है, बल्कि हमारी यह नम्र इच्छा है कि लोग खुद देख सकें कि बाइबल क्या कहती है। हम भी वही मानते हैं जो यीशु मसीह ने अपने पिता से प्रार्थना में कहा था: “तेरा वचन सत्य है।” (यूह. 17:17) आकाश और धरती के सिरजनहार, यहोवा परमेश्वर के अधिकार से ऊँचा और किसी का अधिकार नहीं। इसलिए हम जो दलीलें देते हैं, वे तभी सही हो सकती हैं, जब उनकी बुनियाद परमेश्वर के वचन पर हो।
कभी-कभी आप शायद ऐसे लोगों से बात करें जो बाइबल के बारे में ज़्यादा कुछ नहीं जानते या जो उसे परमेश्वर का वचन नहीं मानते। उनसे बात करते वक्त, आपको इस बात में समझ से काम लेना होगा कि आप कब और कैसे उन्हें बाइबल की आयतें दिखाएँ। लेकिन आपकी कोशिश यही होनी चाहिए कि आप जल्द-से-जल्द उनका ध्यान बाइबल की तरफ दिलाएँ जो आपके संदेश का असली आधार है।
क्या यह मानना सही होगा कि अगर आप अपने विषय के मुताबिक कोई आयत पढ़कर सुनाते हैं, तो वही एक ठोस दलील देने के बराबर है? नहीं, ऐसा ज़रूरी नहीं। आयत का हवाला देने के अलावा, आपको शायद यह बताने की ज़रूरत पड़े कि उस आयत की आस-पास की आयतें क्या कहती हैं। इससे आप दिखा सकेंगे कि आप जो कह रहे हैं वह सचमुच बाइबल से लिया गया है। अगर आप किसी आयत में बताए एक सिद्धांत पर ज़ोर देना चाहते हैं और अगर आस-पास की आयतें आपके विषय के बारे में नहीं हैं, तो हो सकता है कि आपको कुछ और सबूत देने पड़ें। आपको शायद अपने विषय से ताल्लुक रखनेवाली दूसरी आयतें दिखाने की ज़रूरत होगी ताकि आप अपने सुननेवालों को यकीन दिला सकें कि आप जो कह रहे हैं, वह सचमुच बाइबल से है।
एक आयत जो बात कहती है, उसे बढ़ा-चढ़ाकर मत बोलिए। उसे ध्यान से पढ़िए। हो सकता है कि जिस विषय पर आप चर्चा कर रहे हैं, एक आयत में उसके बारे में आम जानकारी दी गयी हो। लेकिन आपकी दलील से सुननेवाला तभी कायल होगा, जब वह यह समझ पाएगा कि आप जो कह रहे हैं, उसका सबूत आयत में दिया गया है।
बाहरी सबूतों से बात पक्की करना। बाइबल जो कहती है, वह भरोसे के लायक क्यों है, लोगों को यह समझाने के लिए कभी-कभी दूसरे भरोसेमंद ज़रियों से सबूत पेश करना मददगार हो सकता है।
मिसाल के लिए, सिरजनहार के अस्तित्त्व के बारे में साबित करने के लिए, आप विश्वमंडल का ज़िक्र कर सकते हैं। आप चाहें तो गुरुत्वाकर्षण जैसे प्रकृति के नियमों के बारे में बताकर तर्क कर सकते हैं कि ऐसे नियमों का होना यह दिखाता है कि उन नियमों का बनानेवाला भी ज़रूर कोई है। आपका तर्क तभी सही होगा, जब वह परमेश्वर के वचन में बतायी बातों से मेल खाए। (अय्यू. 38:31-33; भज. 19:1; 104:24; रोमि. 1:20) इस तरह के सबूत दिखाना अच्छा है, क्योंकि इससे सुननेवाले समझ सकते हैं कि बाइबल जो कहती है, वह उन सच्चाइयों के मुताबिक सही है जो हम खुद अपनी नज़रों से देख सकते हैं।
क्या आप किसी को यह समझाना चाहते हैं कि बाइबल वाकई परमेश्वर का वचन है? आप शायद कुछ ऐसे विद्वानों का हवाला दें जो कहते हैं कि यह परमेश्वर का वचन है। लेकिन क्या इससे यह बात सच साबित हो जाती है? ऐसे हवाले सुनकर सिर्फ उन्हीं लोगों को यकीन होगा जो इन विद्वानों का आदर करते हैं। क्या आप विज्ञान के सहारे साबित कर सकते हैं कि बाइबल सच्ची है? अगर आप ऐसे वैज्ञानिकों की राय बताकर अपनी बात का सबूत देना चाहेंगे जो गलती कर सकते हैं, तो आपकी बातचीत की नींव बहुत कमज़ोर होगी। इसके बजाय, अगर आप पहले परमेश्वर के वचन में से विज्ञान से जुड़ी सच्चाइयाँ बताएँ और फिर यह दिखाएँ कि विज्ञान की खोज से कैसे बाइबल के सच होने का सबूत मिलता है, तो आपकी दलीलों की बुनियाद ठोस होगी।
आप जो भी साबित करने की कोशिश कर रहे हों, उसके लिए काफी सबूत पेश कीजिए। आपको कितने सबूत पेश करने हैं, यह आपके सुननेवालों पर निर्भर करता है। मिसाल के लिए, अगर आप 2 तीमुथियुस 3:1-5 में बताए अंतिम दिनों की चर्चा कर रहे हैं, तो आप सुननेवालों को एक जानी-मानी खबर के बारे में बता सकते हैं जिससे ज़ाहिर होता है कि इंसान “स्नेहरहित” (NHT) हो गए हैं। यह दिखाने के लिए कि अंतिम दिनों के चिन्ह का यह पहलू पूरा हो रहा है, बस यही एक मिसाल काफी हो सकती है।
कभी-कभी ठोस दलील देने के लिए दो ऐसी चीज़ों के बीच तुलना करना अच्छा होता है, जिनके खास पहलू एक-दूसरे से मिलते-जुलते हैं। हालाँकि इस तरह तुलना करने से, अपने आप कोई बात सच साबित नहीं हो जाती; आपकी बात सच है या नहीं, इसके लिए उसे बाइबल की कसौटी पर कसकर परखना होगा। लेकिन तुलना करने से एक शख्स यह समझ पाएगा कि बात भरोसे के लायक क्यों है। मसलन, यह बताने के लिए कि परमेश्वर का राज्य सचमुच की एक सरकार है, आप इसकी तुलना इंसानी सरकारों से कर सकते हैं। आप बता सकते हैं कि जैसे इंसानी सरकारों में राज करनेवाले होते हैं, प्रजा होती है, नियम होते हैं, न्याय करने की व्यवस्था और प्रजा की शिक्षा का इंतज़ाम होता है, उसी तरह परमेश्वर के राज्य में भी ये सभी पहलू हैं।
बाइबल की सलाह मानने में अक्लमंदी क्यों है, यह बताने के लिए सच्ची जीवन-कहानियाँ बतायी जा सकती हैं। आप जो कहते हैं, उसकी सच्चाई समझाने के लिए खुद के अनुभव भी बता सकते हैं। मसलन, अगर आप किसी को बाइबल पढ़ने और उसका अध्ययन करने की अहमियत समझाना चाहते हैं, तो आप यह बता सकते हैं कि ऐसा करने से आपकी ज़िंदगी कैसे बेहतर बनी है। प्रेरित पतरस ने अपने भाइयों का हौसला बढ़ाने के लिए, रूपांतरण के दर्शन का हवाला दिया, जिसका वह खुद एक चश्मदीद गवाह था। (2 पत. 1:16-18) पौलुस ने भी अपनी ज़िंदगी के अनुभव बताए। (2 कुरि. 1:8-10; 12:7-9) लेकिन ध्यान रहे कि आप अपने अनुभव बहुत कम ही सुनाएँ, वरना सुननेवालों का सारा ध्यान आप पर ही रहेगा।
लोगों की संस्कृति और सोच-विचार में फर्क होता है, इसलिए जो सबूत एक इंसान को यकीन दिलाने के लिए काफी होता है, वह शायद दूसरे के लिए काफी न हो। इसलिए जब आप यह तय करते हैं कि आप कौन-सी दलीलें देंगे और इन्हें कैसे पेश करेंगे, तो अपने सुननेवालों की राय को भी ध्यान में रखिए। नीतिवचन 16:23 (बुल्के बाइबिल) कहती है: “ज्ञानी का हृदय उसे अच्छा वक्ता बनाता और उसकी वाणी को मनवाने की शक्ति प्रदान करता है।”