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परमेश्‍वर की सेवा स्कूल से फायदा उठाइए
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अध्याय 8

सही आवाज़

आपको क्या करने की ज़रूरत है?

बोलते वक्‍त आपकी आवाज़ ऊँची या तेज़ होनी चाहिए। कैसी आवाज़ में बोलना ठीक होगा, इसके लिए आगे दीं बातों पर ध्यान दीजिए: (1) सभा कितनी बड़ी है और उसमें कौन लोग हैं, (2) ध्यान भटकानेवाली आवाज़ें, (3) चर्चा की जा रही जानकारी और (4) आपका मकसद।

इसकी क्या अहमियत है?

अगर दूसरों को आपकी आवाज़ ठीक से सुनायी नहीं देगी, तो उनका ध्यान यहाँ-वहाँ भटक सकता है। इससे आपकी बातें, उनकी समझ में नहीं आएँगी। लेकिन अगर आप कुछ ज़्यादा ही ज़ोर से बात करेंगे, तो लोग चिढ़ जाएँगे, यहाँ तक कि यह सोचकर बुरा मान जाएँगे कि आप उनका अपमान कर रहे हैं।

अगर भाषण देनेवाला काफी ज़ोर से बात नहीं करेगा, तो सुननेवालों में से कुछ लोग शायद ऊँघने लगें। अगर एक प्रचारक साक्षी देते वक्‍त धीरे-धीरे बोलेगा, तो वह घर-मालिक का ध्यान खींचकर नहीं रख पाएगा। और अगर सभाओं में कोई धीमी आवाज़ में जवाब देगा, तो मौजूद बाकी लोगों का उन जवाबों से हौसला नहीं बढ़ेगा। (इब्रा. 10:24, 25) दूसरी तरफ, अगर एक भाषण देनेवाला गलत समय पर अपनी आवाज़ ऊँची करेगा, तो सुननेवालों को बेचैनी होगी, यहाँ तक कि वे चिढ़ जाएँगे।—नीति. 27:14.

अपने सुननेवालों पर गौर कीजिए। आप किससे बात कर रहे हैं? एक जन से? परिवार से? प्रचार की सभा के लिए इकट्ठा हुए छोटे-से समूह से? पूरी कलीसिया से? या एक बड़े अधिवेशन में हाज़िर लोगों से? आप चाहे किसी से भी बात कर रहे हों, एक बात तय है कि जो आवाज़ एक जगह ठीक लगती है, वही दूसरी जगह शायद ठीक न लगे।

परमेश्‍वर के सेवकों ने कई मौकों पर भरी सभा के सामने बात की। मिसाल के तौर पर, यरूशलेम में मंदिर के उद्‌घाटन को लीजिए, जिस दौरान सुलैमान ने लोगों से बात की थी। उन दिनों लाउडस्पीकर, माइक्रोफोन जैसे बिजली के उपकरण नहीं थे। इसलिए सुलैमान ने एक ऊँचे मंच पर खड़े होकर “ऊंचे स्वर” में लोगों को आशीर्वाद दिया। (1 राजा 8:55; 2 इति. 6:13) उसके सदियों बाद, सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त के दिन जब यरूशलेम में मसीहियों के एक छोटे-से समूह पर पवित्र आत्मा उँडेली गयी, तब उनके चारों तरफ बड़ी भीड़ जमा हो गयी। उस भीड़ में से कुछ लोगों ने दिलचस्पी दिखायी, तो कुछ ने उनकी खिल्ली उड़ायी। पतरस, सूझ-बूझ से काम लेते हुए “खड़ा हुआ . . . और ऊंचे शब्द से कहने लगा।” (प्रेरि. 2:14) इस तरह बड़ी ज़बरदस्त गवाही दी गयी।

आप यह कैसे बता सकते हैं कि हालात के हिसाब से आपकी आवाज़ सही है या नहीं? यह पता करने का सबसे उम्दा तरीका है, अपने सुननेवालों के चेहरे के भाव पढ़ना। अगर आप देखते हैं कि सुननेवालों में से कुछेक को सुनने के लिए अपने कानों पर ज़ोर देना पड़ रहा है, तो आपको अपनी आवाज़ बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए।

चाहे आप एक जन से बात कर रहे हों या भरी सभा से, इस बात पर ध्यान देना अक्लमंदी होगी कि आपके सुननेवालों में कौन-कौन लोग हैं। उनमें से अगर कोई ऊँचा सुनता है, तो आपको ज़ोर से बात करनी होगी। लेकिन कभी-कभी ढलती उम्र की वजह से कुछ लोगों को जवाब देने में थोड़ा वक्‍त लगता है। ऐसे में अगर आप उनके साथ ऊँची आवाज़ में बात करेंगे, तो उन्हें आपके बात करने का लहज़ा अच्छा नहीं लगेगा। और-तो-और, चिल्लाकर बात करने से ऐसा भी लग सकता है कि आपमें बात करने की ज़रा भी तहज़ीब नहीं है। कुछ संस्कृतियों में गला फाड़कर बात करने का यह भी मतलब होता है कि एक इंसान या तो गुस्से में है, या फिर बड़ा उतावला है।

ध्यान भटकानेवाली आवाज़ों पर गौर कीजिए। जब आप प्रचार में जाते हैं, तब साक्षी देते वक्‍त आपको हालात के हिसाब से ठीक आवाज़ में बात करनी पड़ सकती है। गाड़ियों का शोर, बच्चों का हल्ला-गुल्ला, कुत्तों का भौंकना, तेज़ संगीत और टी.वी. की तेज़ आवाज़, ऐसे शोर-शराबे के बीच आपको शायद ऊँची आवाज़ में बात करनी पड़े। दूसरी तरफ, जिन इलाकों में घर बहुत पास-पास होते हैं, वहाँ अगर हम ज़ोर-ज़ोर से बात करेंगे, तो पड़ोसियों के कान खड़े हो सकते हैं और इससे घर-मालिक झिझक महसूस कर सकता है।

जो भाई, कलीसिया या अधिवेशन में भाषण देते हैं, उन्हें भी कई तरह के हालात का सामना करना पड़ता है। खुली जगह पर और हॉल में भाषण देने में बहुत फर्क होता है, क्योंकि हॉल की चारदीवारी के अंदर आवाज़ काफी अच्छी तरह सुनायी देती है। एक मज़ेदार किस्से पर ध्यान दीजिए। लैटिन अमरीका में एक बार, दो मिशनरियों ने दिलचस्पी दिखानेवाले के घर के आँगन में जन भाषण दिया, जबकि कुछ ही दूरी पर, चौक पर पटाखे छूट रहे थे, साथ ही पड़ोस में एक मुर्गा बाँग-पर-बाँग दिया जा रहा था, वह रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था!

भाषण के बीच अचानक कुछ आवाज़ हो सकती है, जिसकी वजह से आपको शोर खत्म होने तक रुकना पड़ सकता है या अपनी आवाज़ बढ़ानी पड़ सकती है। उदाहरण के लिए, अगर सभा एक ऐसे मकान में हो रही है जिसकी छत टीन की बनी है, तो अचानक ज़ोर से बारिश पड़ने से भाषण देनेवाले की आवाज़ साफ सुनायी नहीं देगी। इसके अलावा, बच्चे के रोने की आवाज़ या देर से आनेवालों के शोर से भी सुनने में रुकावट पैदा हो सकती है। शोर की वजह से जो बातें सुननेवाले सुन न सकें, उन्हें दोहराना सीखिए ताकि आप जो जानकारी पेश कर रहे हैं, उससे सुननेवालों को पूरा-पूरा फायदा हो।

अगर साउंड सिस्टम उपलब्ध है, तो यह काफी मददगार साबित हो सकता है। लेकिन इसके होते हुए भी भाषण देनेवाले को अपनी आवाज़ बढ़ाने की ज़रूरत पड़ सकती है। कुछ जगहों पर बिजली का चला जाना आम है, ऐसे में भाषण देनेवालों को बिना माइक्रोफोन के अपना भाषण जारी रखना चाहिए।

चर्चा की जा रही जानकारी पर गौर कीजिए। आपको कितनी ज़ोर से या धीमे बात करनी है, यह आपके भाषण की जानकारी पर भी निर्भर करता है। अगर आपके भाषण का विषय ऐसा है जिसमें बल देकर बात करने की ज़रूरत है, तो धीमी आवाज़ में बोलकर अपने भाषण को कमज़ोर मत बनाइए। जैसे कि बाइबल की ऐसी आयत पढ़ते वक्‍त जिसमें प्यार दिखाने के बारे में सलाह दी गयी है, आपको ज़ोर से बोलने की ज़रूरत नहीं होती, मगर न्यायदंड के बारे में पढ़ते वक्‍त आपको अपनी आवाज़ में ज़्यादा मज़बूती और बल लाने की ज़रूरत है। जानकारी के हिसाब से आवाज़ में बदलाव लाइए, मगर ध्यान रखें, कहीं आप ऐसा तरीका ना अपनाएँ जिससे कि लोग भाषण के बजाय आप पर ध्यान देने लगें।

अपने मकसद पर गौर कीजिए। अगर आप अपने सुननेवालों को जोश के साथ कोई काम करने के लिए उकसाना चाहते हैं, तो आपको अपनी आवाज़ में दम लाना होगा। अगर आप किसी विषय के बारे उनकी सोच बदलना चाहते हैं, तो इतनी ज़ोर से भी न बोलें जिससे कि वे आपकी बातें सुनने से इनकार कर दें। अगर आप किसी को दिलासा दे रहे हैं, तो कोमल आवाज़ में बात करना बेहतर होगा।

ऊँची आवाज़ को बेहतरीन तरीके से इस्तेमाल करना।अगर कोई शख्स अपने काम में डूबा हुआ है, तो उसका ध्यान अपनी तरफ खींचने के लिए आपको ऊँची आवाज़ में बुलाना होगा। यह बात, माता-पिता से बेहतर और कोई नहीं जानता, क्योंकि बाहर खेल में डूबे बच्चों को अंदर बुलाने के लिए वे ज़ोर से आवाज़ देते हैं। कलीसिया की सभा या सम्मेलन में जब चेयरमैन, हाज़िर सभी को अपनी-अपनी जगह पर बैठ जाने के लिए कहता है, तब उसे भी अपनी आवाज़ बढ़ाकर बोलने की ज़रूरत पड़ सकती है। प्रचार करते वक्‍त, प्रकाशक बाहर काम करनेवालों की तरफ बढ़ते हुए ज़ोर से नमस्ते कह सकते हैं।

एक व्यक्‍ति का ध्यान अपनी तरफ खींचने के बाद भी आपको ज़ोर से बात करते रहना चाहिए। दबी-दबी आवाज़ में बोलने से लोगों को लग सकता है कि बोलनेवाले ने ठीक से तैयारी नहीं की है या फिर उसमें विश्‍वास की कमी है।

जब किसी को ऊँची आवाज़ में आदेश दिया जाता है, तो वह फौरन उसका पालन करने के लिए तैयार हो जाता है। (प्रेरि. 14:9, 10) उसी तरह, चिल्लाकर हुक्म देने से बड़े अनर्थ को रोका जा सकता है। फिलिप्पी में जब एक दारोगा ने सोचा कि उसके सारे कैदी फरार हो गए हैं, तो वह खुद की जान लेने ही वाला था कि ऐन वक्‍त पर “पौलुस ने ऊंचे शब्द से पुकारकर कहा; अपने आप को कुछ हानि न पहुंचा, क्योंकि हम सब यहां हैं।” इस तरह एक इंसान खुदकुशी करते-करते बच गया। उसके बाद पौलुस और सीलास ने उस दारोगा और उसके परिवार को गवाही दी जिससे उन सभों ने सच्चाई अपना ली।—प्रेरि. 16:27-33.

अपनी आवाज़ सुधारने के तरीके। कुछ लोगों को यह सीखने के लिए बड़ा यत्न करना पड़ता है कि आवाज़ का ठीक तरह से कैसे इस्तेमाल किया जाए। एक इंसान जिसकी आवाज़ कमज़ोर है, वह शायद बहुत आहिस्ता बोले। फिर भी, कोशिश करने पर वह सुधार कर सकता है, हालाँकि उसकी आवाज़ बाद में भी शायद धीमी ही रहे। साँस लेने, साथ ही खड़े होने और बैठने के ढंग पर ध्यान दीजिए। सीधे तनकर बैठने और सीधे खड़े होने की आदत डालिए। कंधे पीछे करके, सीना बाहर निकालकर गहरी साँस लीजिए। ध्यान दीजिए कि आपको अपने फेफड़ों के निचले हिस्से तक हवा भरनी है। इसी हवा को ठीक तरह से बाहर छोड़ने से, बात करते वक्‍त आप अपनी आवाज़ पर काबू रख पाएँगे।

कुछ लोगों की समस्या यह है कि वे कुछ ज़्यादा ही ज़ोर से बात करने के आदी हैं। हो सकता है कि बाहर खुली जगहों पर या शोर-शराबेवाले माहौल में काम करने से उन्हें यह आदत लग गयी है। या फिर ऐसा भी हो सकता है कि वे ऐसे माहौल में पले-बड़े हों, जहाँ सभी ऊँची आवाज़ में बात करते और एक-दूसरे की बात काटते हैं। इस वजह से उनके मन में यह बात बैठ जाती है कि अपनी बात कहने का बस एक ही तरीका है, वह यह कि दूसरों से ज़्यादा ऊँची आवाज़ में बोलना। लेकिन जब वे धीरे-धीरे बाइबल की इस सलाह पर अमल करते हैं कि ‘बड़ी करुणा, और भलाई, और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता धारण करें,’ तो वे दूसरों से बातचीत करते वक्‍त अपनी आवाज़ में ज़रूर बदलाव करेंगे।—कुलु. 3:12.

अगर आप अच्छी तैयारी करें, प्रचार में नियमित रूप से हिस्सा लेकर तजुर्बा हासिल करें और यहोवा से प्रार्थना करें, तो आप सही आवाज़ में बात करने में ज़रूर कामयाब होंगे। चाहे आप स्टेज से बात कर रहे हों या फिर प्रचार में किसी से, हमेशा इस बात पर ध्यान लगाने की कोशिश कीजिए कि आपकी सुनने से सामनेवाले को कितना फायदा हो सकता है।—नीति. 18:21.

कब शायद ऊँची आवाज़ में बोलना ज़रूरी हो

  • जब एक बड़े समूह का ध्यान बाँधे रखना हो।

  • जब ध्यान भटकानेवाली आवाज़ों को दबाना हो।

  • जब बहुत ज़रूरी बात पर ध्यान खींचना हो।

  • जब कदम उठाने के लिए उकसाना हो।

  • जब एक इंसान या किसी समूह का ध्यान खींचना हो।

सुधार कैसे करें

  • अपने सुननेवालों पर गौर कीजिए कि वे सुन पा रहे हैं या नहीं; सही आवाज़ में बात कीजिए ताकि वे आराम से आपकी सुन सकें।

  • साँस लेते वक्‍त अपने फेफड़ों के निचले हिस्से तक हवा भरने की कोशिश कीजिए।

अभ्यास: सबसे पहले प्रेरितों 19:23-41 को मन-ही-मन पढ़िए ताकि आप इन आयतों में बतायी गयी घटना और आस-पास की आयतों से अच्छी तरह समझ सकें कि यह घटना किस माहौल में घटी। ध्यान दीजिए कि कौन बात कर रहा है और किस मिज़ाज से। फिर इन आयतों के हर भाग को सही आवाज़ के साथ, ज़ोर से पढ़िए।

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