गीत 14
सबकुछ नया बन गया
1. स्वर्ग में याह के राज की हु-ई है स-हर
रो-का यी-शु ने शै-ता-नी क़-हर।
व-हाँ दौड़ उ-ठी ख़ु-शी की ल-हर
ज़-मीं पे क-रे-गा ख़ु-दा मे-हर।
(कोरस)
ल-गा-ओ मे-ले ख़ु-शी के
याह हो-गा अब संग ह-मा-रे।
मौत का फिर उ-ठे-गा ज-ना-ज़ा
आँ-सू का ना र-हे त-का-ज़ा।
हो-गा य-हो-वा का व-चन पू-रा
‘मैं सब न-या कर दूँ-गा।’
2. आ-यी है दुल्-हन, रा-जा की सं-गि-नी
स-जी सँ-व-री, है वो आस्-मा-नी।
य-रू-श-लेम है ये न-यी, न्या-री
च-मक-ती ज-हाँ रौ-श-नी याह की।
(कोरस)
ल-गा-ओ मे-ले ख़ु-शी के
याह हो-गा अब संग ह-मा-रे।
मौत का फिर उ-ठे-गा ज-ना-ज़ा
आँ-सू का ना र-हे त-का-ज़ा।
हो-गा य-हो-वा का व-चन पू-रा
‘मैं सब न-या कर दूँ-गा।’
3. पा-एँ इस दुल्-हन से आ-शी-षें त-माम
इस-की रौ-श-नी में च-ले ज-हान।
रू-हा-नी ये बा-तें हैं, याह का ज्ञान
तो मिल के क-रें आ-ओ हम ऐ-लान।
(कोरस)
ल-गा-ओ मे-ले ख़ु-शी के
याह हो-गा अब संग ह-मा-रे।
मौत का फिर उ-ठे-गा ज-ना-ज़ा
आँ-सू का ना र-हे त-का-ज़ा।
हो-गा य-हो-वा का व-चन पू-रा
‘मैं सब न-या कर दूँ-गा।’
(मत्ती 16:3; प्रका. 12:7-9; 21:23-25 भी देखिए।)