गीत 37
परमेश्वर की प्रेरणा से लिखा शास्त्र
1. शा-स्त्र फै-ला-ता है नूर
मन का कर अँ-धे-रा दूर।
है म-शाल ये सच्-चा-ई की
जो दि-खा-ए रस्-ता स-ही।
2. शा-स्त्र है वो ख़त प्या-रा
जो पि-ता याह से मि-ला।
रोज़-ब-रोज़ गर इ-से प-ढ़ें
हो-गा भ-ला इस जी-वन में।
3. याह सि-खा-ए शा-स्त्र से
दे न-सी-हत, सम-झा-ए।
गर अ-मल इस पे हम क-रें
जी-वन स-दा का भी पा-एँ।
(भज. 119:105; नीति. 4:13 भी देखिए।)