अध्याय 20
आयतों का असरदार तरीके से परिचय देना
बाइबल ही वह बुनियाद है जिसके आधार पर कलीसिया की सभाओं में सिखाया जाता है। इतना ही नहीं, प्रचार में हम जो कहते हैं, उसमें भी बाइबल की आयतों की खास अहमियत होती है। लेकिन, हमारी चर्चा में इन आयतों को पढ़ने का फायदा होगा या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम कितने असरदार तरीके से उनका परिचय देते हैं।
इसके लिए आयत का सिर्फ हवाला देना और सामनेवाले व्यक्ति को आपके साथ पढ़ने के लिए कहना ही काफी नहीं। आयतों का परिचय देकर दो मकसद पूरे करने की कोशिश कीजिए: (1) दिलचस्पी जगाइए और (2) आयत इस्तेमाल करने की वजह पर ध्यान दिलाइए। ये आप कई तरीकों से कर सकते हैं।
सवाल पूछिए। अगर सुननेवालों को जवाब समझ नहीं आया है, तो इसके लिए सबसे असरदार तरीका है, सवाल पूछना। अपने सवाल को ऐसे शब्दों में पूछने की कोशिश कीजिए जिससे कि लोग सोचने पर मजबूर हो जाएँ। यीशु ने ऐसा ही किया था। जब फरीसी, मंदिर में यीशु के पास आए और सबके सामने उसकी शास्त्र की समझ को परखने की कोशिश की, तो यीशु ने उनसे पूछा: “मसीह के विषय में तुम क्या समझते हो? वह किस का सन्तान है?” उन्होंने जवाब दिया: “दाऊद का।” यीशु ने फिर पूछा: “तो दाऊद आत्मा में होकर उसे प्रभु क्यों कहता है?” यह सवाल पूछने के बाद यीशु ने भजन 110:1 का हवाला दिया। फरीसियों की बोलती बंद हो गयी। मगर भीड़ को यीशु की बात सुनना अच्छा लग रहा था।—मत्ती 22:41-46.
प्रचार में, शुरूआत करते वक्त आप इस तरह के सवाल पूछ सकते हैं: “मेरा एक नाम है और आपका भी एक नाम है। उसी तरह क्या परमेश्वर का भी कोई अपना नाम है? इसका जवाब हम भजन 83:18 में पढ़ सकते हैं।” “क्या कभी पूरी मानवजाति पर एक ही सरकार का राज्य होगा? देखिए इस बारे में दानिय्येल 2:44 में क्या जवाब दिया गया है।” “क्या बाइबल सचमुच आज के हालात के बारे में बताती है? दूसरा तीमुथियुस 3:1-5 में दिए ब्यौरे को आजकल के हालात के साथ मिलाकर देखिए कि उसमें जो लिखा है ठीक वैसा ही आज आप अपने चारों तरफ देख रहे हैं।” “क्या कभी दुःख-तकलीफ और मौत का अंत होगा? बाइबल में इसका जवाब प्रकाशितवाक्य 21:4, 5 में पाया जा सकता है।”
भाषण के दौरान, आयत का परिचय देने के लिए अच्छे सवाल पूछने से आप सुननेवालों को, जानी-पहचानी आयत को भी नए तरीके से समझने का बढ़ावा देंगे। लेकिन क्या वे सचमुच आयत को नए तरीके से समझने की कोशिश करेंगे? यह इस बात पर निर्भर करता है कि जो सवाल आपने पूछे हैं, क्या वे ऐसे मसले हैं, जिनके बारे में वे चिंता करते हैं। कभी-कभी विषय चाहे कितना ही दिलचस्प क्यों न हों, मगर जब आप जानी-मानी आयतें पढ़ते हैं, तो सुननेवालों का ध्यान भटक जाता है। अगर आप ऐसा नहीं होने देना चाहते, तो आपको अपनी पेशकश को और भी निखारना होगा जिससे कि लोगों का ध्यान आपकी बातों पर लगा रहे।
किसी समस्या का ज़िक्र कीजिए। आप किसी समस्या के बारे में बता सकते हैं और फिर सुननेवालों का ध्यान उस आयत की तरफ दिला सकते हैं जिसमें कुछ हद तक समस्या का हल बताया गया है। अपने सुननेवालों की हद-से-ज़्यादा उम्मीद मत बंधाइए क्योंकि अकसर एक आयत में समाधान का सिर्फ एक हिस्सा दिया होता है। मगर फिर भी, आप अपने सुननेवालों से कह सकते हैं कि अभी हमने जिस समस्या का ज़िक्र किया है, उसका सामना करने के बारे में यह आयत क्या सलाह देती है उस पर ज़रा ध्यान दीजिए, मैं इसे पढ़ता हूँ।
इसी तरह, आप परमेश्वर को भानेवाले चालचलन का एक सिद्धांत बता सकते हैं और फिर उस सिद्धांत को मानने में कितनी अक्लमंदी है, यह दिखाने के लिए बाइबल की कोई घटना बता सकते हैं। अगर आयत में चर्चा किए जा रहे विषय से जुड़े दो (या शायद उससे ज़्यादा) खास मुद्दे दिए हों, तो कुछ वक्ता अपने सुननेवालों से उन पर ध्यान देने के लिए कहते हैं। अगर सुननेवालों में कुछ ऐसे लोग हैं जिन्हें समस्या का समाधान करना मुश्किल लगता है, तो उसे सुलझाने के तरीके बताकर आप उन्हें सोचने पर मजबूर कर सकते हैं। इसके बाद, आप आयत पढ़कर और उसे लागू करके समस्या का समाधान बता सकते हैं।
बाइबल के अधिकार का हवाला दीजिए। अगर आप अपने विषय के बारे में सुननेवालों की दिलचस्पी जगा चुके हैं, और उसके किसी पहलू के बारे में चंद लोगों की राय पेश कर चुके हैं, तो आप सिर्फ यह कहकर आयत का परिचय दे सकते हैं: “गौर कीजिए कि इस बारे में परमेश्वर का वचन क्या कहता है।” इससे पता चलता है कि जो आप पढ़ने जा रहे हैं, उस पर क्यों विश्वास किया जा सकता है।
यहोवा ने बाइबल के कुछ भागों को लिखने के लिए यूहन्ना, लूका, पौलुस, और पतरस जैसे पुरुषों का इस्तेमाल किया। लेकिन वे सब सिर्फ लिखनेवाले थे; बाइबल का असली रचनाकर यहोवा है। इसलिए खास तौर पर जब हम ऐसे लोगों से बात करते हैं, जो पवित्रशास्त्र से अच्छी तरह वाकिफ नहीं हैं, तो आयत का परिचय देने के लिए यह कहने से कि “पतरस ने लिखा” या “पौलुस ने कहा” उतना असर नहीं होगा जितना यह कहने से होगा कि देखिए परमेश्वर का वचन क्या कहता है। यह बात ध्यान देने लायक है कि कुछ मौकों पर यहोवा ने यिर्मयाह को संदेश का परिचय यूँ देने के लिए कहा था: “यहोवा का वचन सुनो।” (यिर्म. 7:2; 17:20; 19:3; 22:2) चाहे हम आयतों का परिचय देने में यहोवा का नाम इस्तेमाल करें या नहीं, हमें अपनी चर्चा खत्म करने से पहले दूसरों को यह बात बतानी चाहिए कि जो कुछ बाइबल में लिखा है, वह परमेश्वर का वचन है।
संदर्भ का ध्यान रखिए। आयतों का किस तरह परिचय दें, यह तय करते वक्त आपको आयत के संदर्भ या आस-पास की आयतों की अच्छी जानकारी होनी चाहिए। कुछ मामलों में आप सीधे-सीधे बता सकते हैं कि संदर्भ क्या है; मगर कई मामलों में संदर्भ से यह तय होगा कि आप आयत का परिचय देते वक्त क्या कहेंगे। उदाहरण के लिए, क्या आप परमेश्वर का भय माननेवाले अय्यूब की कही बातों को पढ़ने से पहले वैसा ही परिचय देंगे जैसे आप झूठा दिलासा देनेवाले उसके दोस्तों के लिए देंगे? संदर्भ का ध्यान रखने में यह गौर करना भी शामिल है कि आयत में किसकी कही बात दर्ज़ है। मसलन, प्रेरितों की किताब, लूका ने लिखी थी लेकिन उसने दूसरों के कहे शब्दों का भी हवाला दिया जैसे याकूब, पतरस, पौलुस, फिलिप्पुस, स्तिफनुस और स्वर्गदूतों का, यहाँ तक कि गमलीएल और दूसरे यहूदियों का जो मसीही नहीं थे। आप जो शब्द पढ़ने जा रहे हैं, वे किसने कहे इस बारे में आप क्या परिचय देंगे? याद रखिए कि भजन संहिता के सभी भजन दाऊद ने नहीं लिखे और ना ही नीतिवचन की पूरी किताब सुलैमान ने लिखी है। इसके अलावा, यह जानना भी फायदेमंद होगा कि फलाँ बाइबल लेखक किसे लिख रहा था और किस विषय पर चर्चा कर रहा था।
आयत के पीछे की जानकारी का इस्तेमाल करना। ऐसी जानकारी खासकर तब फायदेमंद होती है, जब इसके ज़रिए आप दिखा सकें कि आप जिन हालात पर चर्चा कर रहे हैं, वही हालात तब भी मौजूद थे जब बाइबल की यह घटना घटी थी। और कुछ मामलों में विषय या किसी आयत को समझने के लिए उसके पीछे की जानकारी देना काफी फायदेमंद होता है। उदाहरण के लिए, छुड़ौती के विषय पर भाषण देते वक्त अगर आपको इब्रानियों 9:12, 24 पढ़ना है, तो उससे पहले आपको चंद शब्दों में निवासस्थान के सबसे अंदरवाले हिस्से के बारे में समझाने की ज़रूरत पड़ सकती है। क्योंकि इन आयतों में बताया गया है कि यह हिस्सा, उस जगह का नमूना है जहाँ यीशु स्वर्ग लौटने के बाद दाखिल हुआ था। लेकिन इस तरह आयत का परिचय देने में, ध्यान रखें कि पीछे की जानकारी इतनी भी न दें जिससे आयत ही छिप जाए।
आयतों का परिचय देने के मामले में सुधार करने के लिए, ध्यान से देखिए कि अनुभवी वक्ता क्या करते हैं। जिन अलग-अलग तरीकों का वे इस्तेमाल करते हैं, उन्हें लिख लीजिए। और ये तरीके कितने असरदार हैं, इस पर ध्यान दीजिए। जब आप अपना भाषण तैयार करते हैं, तो यह जानने की कोशिश कीजिए कि भाषण की खास आयतें कौन-सी हैं और इस बारे में अच्छी तरह सोचिए कि हर आयत को पढ़ने से क्या हासिल किया जा सकता है। हर खास आयत का आप कैसे परिचय देंगे, इसके बारे में ध्यान से सोचिए ताकि आयत पढ़ने पर उसका बेहतरीन असर हो। बाद में, अपने भाषण की सभी आयतों का परिचय देने की कोशिश कीजिए। जैसे-जैसे आप भाषण देने के इस पहलू में सुधार करेंगे, आप लोगों का ध्यान, परमेश्वर के वचन की तरफ खींच पाएँगे।