गीत 143
अँधेरी दुनिया में सच की रौशनी
छपा हुआ संस्करण
स्या-ही सा है अँ-धे-रा पर
सच की लौ जल र-ही।
झल-का नूर उस स-वे-रे का
जो आ-ए-गा जल्द ही।
(कोरस)
सं-देश ये ह-मा-रा,
चीर के घ-ना अँ-धे-रा
आ-शा का दीप बन-ता—
हम-को है दि-खा-ता
दिन वो सु-नह-रा कल का—
जो बी-ते ना।
जा-गें वो जो हैं सो र-हे
सच की रौश-नी दे-खें।
बीत र-हीं वक्त की घ-ड़ि-याँ।
अब वो देर ना क-रें!
(कोरस)
सं-देश ये ह-मा-रा,
चीर के घ-ना अँ-धे-रा
आ-शा का दीप बन-ता—
हम-को है दि-खा-ता
दिन वो सु-नह-रा कल का—
जो बी-ते ना।
(यूह. 3:19; 8:12; रोम. 13:11, 12; 1 पत. 2:9 भी देखिए।)