मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले
4-10 फरवरी
पाएँ बाइबल का खज़ाना | रोमियों 1-3
“अपने ज़मीर को प्रशिक्षित करते रहिए”
परमेश्वर की नज़र में साफ ज़मीर
6 जो लोग यहोवा को नहीं जानते, उन्हें भी पता रहता है कि क्या सही है और क्या गलत। बाइबल कहती है, “उनकी खुद की सोच उन्हें या तो कसूरवार ठहराती है या बेकसूर।” (रोमियों 2:14, 15) ऐसे कई लोग हैं, जो जानते हैं कि खून करना और चोरी करना गलत है और वे ऐसे काम नहीं करते। इस तरह अनजाने में वे अपने ज़मीर की बात सुन रहे होते हैं। यहोवा ने उनके अंदर सही-गलत का जो एहसास डाला है, वे उसके मुताबिक काम कर रहे होते हैं। देखा जाए तो वे भी यहोवा के सिद्धांतों को मान रहे हैं, जो उसने इंसानों को सही फैसले करने के लिए दिए हैं।
प्यार के लायक पेज 19-20 पै 8-9
परमेश्वर की नज़र में साफ ज़मीर
8 कुछ लोग सोचते हैं कि अपने ज़मीर की बात सुनने का मतलब है, अपने दिल की सुनना। वे सोचते हैं कि जो काम उन्हें बुरा नहीं लगता, उसे वे कर सकते हैं। लेकिन हमें ध्यान रखना है कि पापी होने की वजह से हमारा दिल हमें बहका सकता है। यह हमारे ज़मीर की आवाज़ को दबा सकता है। बाइबल कहती है, “दिल सबसे बड़ा धोखेबाज़ है और यह उतावला होता है। इसे कौन जान सकता है?” (यिर्मयाह 17:9) हो सकता है कि हम ऐसे काम को सही मानने लगें, जो बिलकुल गलत है। पौलुस से भी यही गलती हुई थी। मसीही बनने से पहले वह परमेश्वर के लोगों पर बहुत ज़ुल्म करता था और मानता था कि वह सही कर रहा है। उसकी नज़र में उसका ज़मीर साफ था। मगर बाद में उसे पता चला कि ‘उसकी जाँच-पड़ताल करनेवाला यहोवा है।’ (1 कुरिंथियों 4:4; प्रेषितों 23:1; 2 तीमुथियुस 1:3) उसे एहसास हुआ कि उसके काम यहोवा की नज़र में गलत हैं, इसलिए उसने अपने अंदर बदलाव किए। इन बातों से पता चलता है कि कोई भी फैसला करने से पहले हमें सोचना चाहिए कि यहोवा मुझसे क्या चाहता है, न कि यह सोचना चाहिए कि मेरा दिल क्या कहता है।
9 अगर आप किसी से प्यार करते हैं, तो आप उसे दुखी नहीं करना चाहेंगे। हम यहोवा से प्यार करते हैं, इसलिए हम ऐसा कोई काम नहीं करना चाहेंगे, जो उसे बिलकुल अच्छा नहीं लगता। हम यहोवा को दुखी करने की बात कभी सोच भी नहीं सकते। नहेमायाह के उदाहरण पर गौर कीजिए। वह एक राज्यपाल था और अपने पद का गलत इस्तेमाल करके दौलत कमा सकता था। मगर उसने ऐसा नहीं किया, क्योंकि वह “परमेश्वर का डर मानता” था। (नहेमायाह 5:15) वह यहोवा की नज़र में कोई गलत काम नहीं करना चाहता था। नहेमायाह की तरह अगर हम भी यहोवा का डर मानें, तो जो काम उसे बुरा लगता है, वह हम नहीं करेंगे। बाइबल पढ़ने से हम जान सकते हैं कि यहोवा किन बातों से खुश होता है।—पेज 240 पर “परमेश्वर का डर” देखिए।
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रोमियों किताब की झलकियाँ
3:4. जब इंसान की बातें परमेश्वर के वचन में लिखी बातों के खिलाफ होती हैं, तो हम बाइबल के संदेश पर भरोसा रखते हैं और परमेश्वर की इच्छा के मुताबिक चलते हैं, और इस तरह हम साबित करते हैं कि “परमेश्वर सच्चा” है। साथ ही, हम राज्य का प्रचार करने और चेला बनाने के काम में जोश के साथ हिस्सा लेकर लोगों को भी यह जानने में मदद दे सकते हैं कि परमेश्वर सच्चा है।
रोमियों किताब की झलकियाँ
3:24, 25—“मसीह यीशु” ने “छुटकारे” या छुड़ौती की जो कीमत अदा की, उसकी बिना पर उन पापों की माफी कैसे मिली “जो पाप [छुड़ौती देने से] पहिले किए गए” थे? उत्पत्ति 3:15 में दर्ज़, मसीहा के बारे में की गयी पहली भविष्यवाणी सा.यु. 33 में पूरी हुई, जब यीशु को यातना स्तंभ पर मार डाला गया। (गल. 3:13, 16) लेकिन जब यहोवा परमेश्वर ने वह पहली भविष्यवाणी की, दरअसल उसी वक्त उसकी नज़र में छुड़ौती की कीमत अदा हो चुकी थी, क्योंकि परमेश्वर को अपना मकसद पूरा करने से कोई नहीं रोक सकता। यहोवा जानता था कि यीशु छुड़ौती बलिदान देगा, इसलिए उसने उसकी बिना पर आदम की उन संतानों के पापों को माफ किया, जिन्होंने मसीहा के आने के वादे पर विश्वास किया। छुड़ौती की बदौलत उन लोगों का पुनरुत्थान भी मुमकिन हुआ है, जो मसीह से पहले जीए थे।—प्रेरि. 24:15.
11-17 फरवरी
पाएँ बाइबल का खज़ाना | रोमियों 4-6
“परमेश्वर ने हमारे लिए अपने प्यार का सबूत दिया”
परमेश्वर ने अपने प्यार की अच्छाई हम पर ज़ाहिर की है
5 इसी बात को समझाने के लिए पौलुस ने सबसे पहले यह बताया, “एक आदमी से पाप दुनिया में आया और पाप से मौत आयी, और इस तरह मौत सब इंसानों में फैल गयी क्योंकि सबने पाप किया।” (रोमि. 5:12) हमारे लिए यह बात समझना आसान है क्योंकि यहोवा परमेश्वर ने बाइबल में लिखवाया है कि इंसानी जीवन की शुरूआत में क्या हुआ था। परमेश्वर ने दो इंसानों की सृष्टि की थी, आदम और हव्वा। हमारा सृष्टिकर्ता सिद्ध है और हमारे पूर्वज यानी आदम और हव्वा भी सिद्ध थे। परमेश्वर ने उन्हें एक आज्ञा दी थी और साफ-साफ बताया था कि अगर वे उस आज्ञा को तोड़ेंगे, तो उन्हें सज़ा-ए-मौत मिलेगी। (उत्प. 2:17) लेकिन उन्होंने जानबूझकर वह आसान-सी आज्ञा तोड़ दी और इस तरह उन्होंने कानून देनेवाले और जहान के महाराजा और मालिक यहोवा को ठुकरा दिया।—व्यव. 32:4, 5.
परमेश्वर ने अपने प्यार की अच्छाई हम पर ज़ाहिर की है
6 आदम के पाप करने के बाद ही उसकी संतानें पैदा हुईं। इस तरह उसकी सभी संतानों में पाप और उसके बुरे अंजाम फैल गए। बेशक इन संतानों ने आदम की तरह परमेश्वर की आज्ञा नहीं तोड़ी थी, इसलिए उन्हें उसके पाप के लिए कसूरवार नहीं ठहराया जा सकता था और न ही उसके जैसी सज़ा दी जा सकती थी। और-तो-और उस वक्त तक परमेश्वर ने कोई कानून-व्यवस्था भी नहीं दी थी। (उत्प. 2:17) लेकिन फिर भी उसकी संतानों को पाप विरासत में मिला। इस तरह पाप और मौत ने उस समय तक राजा बनकर राज किया जब तक परमेश्वर ने इसराएलियों को कानून-व्यवस्था नहीं दी। इससे पता चलता है कि वे सभी पापी थे। (रोमियों 5:13, 14 पढ़िए।) विरासत में मिले पाप की तुलना हम एक ऐसी बीमारी से कर सकते हैं, जो माँ-बाप से बच्चों में पीढ़ी-दर-पीढ़ी फैलती है। हो सकता है परिवार में कुछ बच्चों को यह बीमारी हो और कुछ को न हो। लेकिन पाप के साथ ऐसा नहीं है। हम सबको आदम से विरासत में पाप मिला है और इस वजह से एक-न-एक दिन हमें मौत आनी ही है। क्या कभी इस दर्दनाक हालात से छुटकारा पाया जा सकता था?
परमेश्वर ने अपने प्यार की अच्छाई हम पर ज़ाहिर की है
9 जिन यूनानी शब्द का अनुवाद “नेक करार दिया जाना” और “नेक ठहराया जाना” किया गया है, उनका क्या मतलब है? बाइबल अनुवादक विलियम्स, जिनका लेख की शुरूआत में ज़िक्र किया गया है, उन्होंने समझाते हुआ कहा: “इन शब्दों को एक रूपक के तौर पर इस्तेमाल किया गया है। यह पूरी तरह कानूनी शब्द नहीं, मगर इसमें कुछ कानूनी पहलू ज़रूर जुड़े हैं। यह दिखाता है कि एक इंसान अंदरूनी तौर पर नहीं बदलता बल्कि परमेश्वर के साथ उसका रिश्ता बदल जाता है . . . इस रूपक में परमेश्वर को एक न्यायी बताया गया है। और उसकी अदालत में एक ऐसा इंसान लाया गया है जिस पर पापी होने का इलज़ाम है। मगर परमेश्वर उसके पक्ष में फैसला सुनाता है। वह उस इंसान पर लगाए इलज़ामों से उसे बाइज़्ज़त बरी कर देता है।”
10 किस बिनाह पर “पृथ्वी का न्यायी” पापी इंसानों को नेक ठहराता है? (उत्प. 18:25) सबसे पहले, परमेश्वर ने प्यार की खातिर अपने एकलौते बेटे को धरती पर भेजा। यीशु ने धरती पर मुश्किल-से-मुश्किल परीक्षाओं का सामना किया, उसकी खिल्ली उड़ायी गयी और उसके साथ बदसलूकी की गयी। इसके बावजूद, उसने अपने पिता की मरज़ी पूरी की। यहाँ तक कि यातना की सूली पर मरते वक्त भी वह परमेश्वर का वफादार बना रहा। (इब्रा. 2:10) अपना सिद्ध जीवन देकर यीशु ने फिरौती का दाम चुकाया और आदम की संतान को पाप और मौत से छुड़ाया।—मत्ती 20:28; रोमि. 5:6-8.
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रोमियों किताब की झलकियाँ
6:3-5—मसीह यीशु में बपतिस्मा लेने और उसकी मृत्यु में बपतिस्मा लेने का क्या मतलब है? जब यहोवा अपनी पवित्र शक्ति से मसीह के चेलों का अभिषेक करता है, तो वे यीशु के साथ एकता में बंध जाते हैं और मसीह की देह यानी उस कलीसिया के सदस्य बन जाते हैं, जिसका मुखिया यीशु है। (1 कुरि. 12:12, 13, 27; कुलु. 1:18) इस तरह अभिषिक्त मसीही, मसीह यीशु में बपतिस्मा लेते हैं। वे “[मसीह] की मृत्यु का बपतिस्मा” भी लेते हैं। वह कैसे? वे त्याग की ज़िंदगी जीते हैं और धरती पर हमेशा की ज़िंदगी जीने की इच्छा से इनकार करते हैं। इसलिए यीशु की तरह, उनकी मृत्यु भी एक त्याग है, फिर चाहे उनकी मौत से छुड़ौती की कीमत अदा न भी होती हो। अभिषिक्त जनों के लिए मसीह की मृत्यु में बपतिस्मा तब जाकर पूरा होता है, जब उनकी मौत हो जाने के बाद उन्हें स्वर्ग में जिलाया जाता है।
प्र14 6/1 पेज 11 पै 1, अँग्रेज़ी
क्या मेरे पूर्वजों को दोबारा जीवन मिलेगा?
जो बुरे लोग ज़िंदा किए जाएँगे, उनका फैसला किस आधार पर किया जाएगा? क्या उनका फैसला उन कामों के आधार पर किया जाएगा, जो उन्होंने जीते-जी किए थे? जी नहीं। रोमियों 6:7 कहता है, “जो मर चुका है, वह अपने पाप से छूट गया है।” इन लोगों ने जीते-जी जो बुरे काम किए थे, उसकी सज़ा वे पा चुके होंगे क्योंकि उनकी मौत हो चुकी होगी। इसलिए ज़िंदा होने के बाद वे जो काम करेंगे, उसके आधार पर भविष्य में उनका फैसला होगा, न कि उन्होंने पहले अनजाने में जो बुरे काम किए थे, उसके आधार पर। इससे कैसे उनका भला होगा?
18-24 फरवरी
पाएँ बाइबल का खज़ाना | रोमियों 7-8
“क्या आप ‘बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं’?”
यहोवा की बतायी राह पर चलकर सच्ची आज़ादी पाइए!
17 भविष्य में यहोवा धरती पर रहनेवाले अपने सेवकों को जो आज़ादी देगा, उसके बारे में बताते वक्त पौलुस ने कहा: “सृष्टि, परमेश्वर के बेटों के ज़ाहिर होने का इंतज़ार करते हुए बड़ी बेताबी से आस लगाए हुए है।” फिर उसने कहा: “सृष्टि भी भ्रष्टता की गुलामी से आज़ाद होकर परमेश्वर के बच्चे होने की शानदार आज़ादी पाएगी।” (रोमि. 8:19-21) यहाँ शब्द “सृष्टि” उन लोगों के लिए इस्तेमाल किया गया है, जिन्हें धरती पर जीने की आशा है। इन लोगों को तब आशीषें मिलेंगी जब पवित्र शक्ति से अभिषिक्त परमेश्वर के बेटे ‘ज़ाहिर होंगे।’ इन “बेटों” का ज़ाहिर होना तब शुरू होगा जब वे स्वर्ग में जी उठाए जाने के बाद, मसीह के साथ मिलकर धरती से बुराई को दूर करेंगे और एक नयी व्यवस्था में दाखिल होने के लिए “बड़ी भीड़” की मदद करेंगे।—प्रका. 7:9, 14.
अपनी आशा की वजह से खुशी मनाइए!
11 यहोवा ने इंसानों को ‘आशा का आधार’ तब दिया, जब उसने “वंश” के ज़रिए ‘पुराने साँप’ यानी शैतान को नाश करके मानवजाति को छुटकारा दिलाने का वादा किया। (उत्प. 3:15; प्रका. 12:9) इस “वंश” का मुख्य हिस्सा यीशु मसीह है। (गला. 3:16) यीशु की मौत और उसके जी उठने से इंसानों को पाप और मौत की गुलामी से छुटकारा पाने की आशा का पक्का आधार मिला। इस आशा के पूरा होने का ताल्लुक, “परमेश्वर के बेटों के ज़ाहिर होने” से है। जो अभिषिक्त मसीही स्वर्ग में जी उठाए जाते हैं वे “वंश” का दूसरा हिस्सा हैं। जब वे मसीह के साथ मिलकर शैतान की व्यवस्था का नाश करेंगे तब वे ‘ज़ाहिर होंगे।’ (प्रका. 2:26, 27) इससे महा-संकट से बच निकलनेवाली दूसरी भेड़ों का उद्धार होगा।—प्रका. 7:9, 10, 14.
अपनी आशा की वजह से खुशी मनाइए!
12 मसीह के हज़ार साल के शासन के दौरान “सृष्टि,” यानी इंसानों को क्या ही राहत मिलेगी! उस वक्त ‘परमेश्वर के बेटे’ एक और तरीके से “ज़ाहिर” होंगे। वे मसीह के साथ याजकों के तौर पर सेवा करेंगे ताकि पूरी मानवजाति को यीशु के फिरौती बलिदान से फायदा पहुँचे। मसीहाई राज की प्रजा के नाते “सृष्टि” को पाप और मौत के बुरे अंजामों से छुटकारा मिलेगा। आज्ञा माननेवाले इंसान, धीरे-धीरे “भ्रष्टता की गुलामी से आज़ाद” हो जाएँगे। अगर वे मसीह के हज़ार साल के शासन और आखिरी परीक्षा के दौरान यहोवा के वफादार रहें, तो उनके नाम “जीवन की किताब” में हमेशा के लिए लिख दिए जाएँगे। वे “परमेश्वर के बच्चे होने की शानदार आज़ादी” पाएँगे। (प्रका. 20:7, 8, 11, 12) क्या ही शानदार आशा है यह!
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क्या आपको याद है?
“शरीर की बातों पर ध्यान लगाने” और “पवित्र शक्ति की बातों पर ध्यान लगाने” में क्या फर्क है? (रोमि. 8:6)
शरीर की बातों पर मन लगानेवाला इंसान शरीर की बातों में गहरी दिलचस्पी लेता है, उन्हीं के बारे में बात करता रहता है और उनका गुलाम बन जाता है। वहीं दूसरी तरफ, पवित्र शक्ति की बातों पर मन लगानेवाला इंसान यहोवा की सोच अपनाता है और उसकी पवित्र शक्ति के मुताबिक अपनी सोच ढालता है। शरीर पर मन लगाने का अंजाम मौत है जबकि पवित्र शक्ति पर मन लगाने से जीवन और शांति मिलती है।—प्र16.12, पेज 15-17.
आपकी प्रार्थनाएँ आपके बारे में क्या ज़ाहिर करती हैं?
20 निजी प्रार्थना करते वक्त कई बार हमें नहीं सूझता कि हम क्या कहें। पौलुस ने लिखा: “समस्या यह है कि जब हमें प्रार्थना करनी चाहिए, तब हम नहीं जानते कि हम क्या प्रार्थना करें। मगर पवित्र शक्ति खुद हमारी दबी हुई आहों के साथ हमारे लिए बिनती करती है। और दिलों को जाँचनेवाला [परमेश्वर] जानता है कि पवित्र शक्ति का क्या मतलब है।” (रोमि. 8:26, 27) यहोवा ने बाइबल में बहुत-सी प्रार्थनाएँ दर्ज़ करवायी हैं। जब हम प्रार्थना में कुछ बोल नहीं पाते, तब वह इन प्रार्थनाओं को हमारी गुज़ारिश समझकर कबूल करता है। और फिर उन्हें पूरा करता है। परमेश्वर हमें अच्छी तरह जानता है। साथ ही, वह उन बातों का मतलब भी समझता है, जो बाइबल के लेखकों ने पवित्र शक्ति के उभारे जाने पर लिखीं। इसलिए इन मायनों में जब उसकी पवित्र शक्ति हमारे लिए “बिनती” करती है, तो यहोवा हमारी दुआओं का जवाब देता है। लेकिन जैसे-जैसे हम यहोवा के वचन से वाकिफ होते हैं, हम सीख जाते हैं कि हमें प्रार्थना में क्या कहना चाहिए।
25 फरवरी–3 मार्च
पाएँ बाइबल का खज़ाना | रोमियों 9-11
“जैतून के पेड़ की मिसाल”
‘वाह! परमेश्वर की बुद्धि क्या ही अथाह है!’
13 प्रेषित पौलुस ने अब्राहम के वंश के दूसरे भाग की तुलना लाक्षणिक जैतून के पेड़ की डालियों से की। (रोमि. 11:21) रोपा गया यह जैतून का पेड़ इस बात को दर्शाता है कि परमेश्वर ने कैसे अब्राहम की वाचा से जुड़ा अपना मकसद पूरा किया। इस पेड़ की जड़ पवित्र है और यहोवा को दर्शाती है जो आध्यात्मिक इसराएल को जीवन देता है। (यशा. 10:20; रोमि. 11:16) पेड़ का तना, यीशु को दर्शाता है जो अब्राहम के वंश का सबसे पहला भाग है। और सभी डालियाँ मिलकर अब्राहम के वंश के दूसरे भाग की ‘पूरी गिनती’ को दर्शाती हैं।
‘वाह! परमेश्वर की बुद्धि क्या ही अथाह है!’
15 फिर यहोवा ने अपने मकसद को पूरा करने के लिए क्या किया? पौलुस ने समझाया कि जंगली जैतून की कलमें, रोपे गए जैतून के पेड़ में लगायी गयीं। (रोमियों 11:17, 18 पढ़िए।) उसी तरह पवित्र शक्ति से अभिषिक्त मसीहियों की लाक्षणिक कलमें, रोपे गए लाक्षणिक जैतून के पेड़ में लगायी गयीं। और इन अभिषिक्त मसीहियों में रोम की मंडली के कुछ सदस्य भी शामिल थे। इस तरह वे अब्राहम के वंश का भाग बन गए। दरअसल वे जंगली जैतून के पेड़ की डालियाँ थे जिन्हें इस खास वाचा का भाग बनने की कोई आशा नहीं थी। लेकिन यहोवा ने उनके लिए आध्यात्मिक यहूदी बनने का रास्ता खोल दिया।—रोमि. 2:28, 29.
‘वाह! परमेश्वर की बुद्धि क्या ही अथाह है!’
19 जी हाँ, यहोवा ने “परमेश्वर के इसराएल” के लिए अपना मकसद बड़े ही शानदार तरीके से पूरा किया। (गला. 6:16) पौलुस ने कहा: “सारा इसराएल उद्धार पाएगा।” (रोमि. 11:26) यहोवा के ठहराए वक्त में “सारा इसराएल” यानी आध्यात्मिक इसराएलियों की पूरी गिनती, स्वर्ग में राजा और याजक के तौर पर राज करेगा। और यहोवा का मकसद पूरा होने से कोई नहीं रोक सकेगा!
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
यहोवा के अनुशासन के मुताबिक ढलने के लिए तैयार रहिए
5 लेकिन अगर एक इंसान ढीठ होकर महान कुम्हार यहोवा के हाथों ढलने से इनकार कर दे, तब क्या? तब यहोवा कुम्हार के नाते अपना अधिकार कैसे इस्तेमाल करता है? ज़रा सोचिए, अगर मिट्टी को किसी खास किस्म का रूप न दिया जा सके, तब कुम्हार उसका क्या करता है? या तो वह उससे कोई दूसरा बर्तन बनाता है या फिर उसे फेंक देता है। ज़्यादातर मामलों में जब मिट्टी इस्तेमाल के लायक नहीं होती, तो गलती कुम्हार की होती है। लेकिन यहोवा के साथ ऐसा कभी नहीं होता। (व्यव. 32:4) जब एक इंसान यहोवा के हाथों खुद को ढलने नहीं देता, तो इसमें गलती यहोवा की नहीं, हमेशा उस इंसान की होती है। मगर ऐसे में भी यहोवा कुम्हार के नाते अपनी भूमिका निभाता है। वह कैसे? उसके ढाले जाने पर लोग जिस तरह का रवैया दिखाते हैं, उसी के मुताबिक यहोवा उनके साथ पेश आता है। जब लोग यहोवा की आज्ञा मानते हैं, तो वह उन्हें अपनी सेवा में इस्तेमाल करता है। उदाहरण के लिए, अभिषिक्त मसीही ‘दया के बर्तन’ हैं, जो “आदर के काम के लिए” ढाले जाते हैं। वहीं दूसरी तरफ, जो ढीठ होकर परमेश्वर का विरोध करते हैं, वे ‘क्रोध के बर्तन’ बन जाते हैं “जो नाश होने के लायक हैं।”—रोमि. 9:19-23.
इंसाइट-1 पेज 1260 पैरा 2
जोश
ऐसा जोश जो सही नहीं होता। एक व्यक्ति किसी काम के लिए सच्चे दिल से जोश दिखा सकता है, मगर हो सकता है कि ऐसा जोश दिखाना सही न हो और परमेश्वर उससे खुश न हो। इस तरह का जोश पहली सदी के बहुत-से यहूदियों में था। वे सोचते थे कि मूसा के कानून में बताए काम करने से वे नेक ठहरेंगे। मगर पौलुस ने साबित किया कि ऐसा जोश होना सही नहीं है, क्योंकि उन्हें सही जानकारी नहीं थी। इसलिए वे परमेश्वर की नज़रों में नेक नहीं ठहरे। उन्हें समझना था कि वे जो कर रहे हैं वह गलत है। उन्हें मसीह के द्वारा परमेश्वर के पास जाना था ताकि परमेश्वर उन्हें नेक ठहराए। तब वे सज़ा से बरी हो जाते क्योंकि मूसा के कानून ने उन्हें सज़ा के लायक ठहराया था। (रोम 10:1-10) एक मसीही बनने से पहले पौलुस में भी ऐसा ही जोश था। वह उस वक्त तरसुस का रहनेवाला शाऊल कहलाता था। उसे यहूदी धर्म के लिए इतना जुनून था कि वह “परमेश्वर की मंडली को बुरी तरह सताता था और उसे तबाह करता” था। (गला 1:13, 14; फिल 3:6) उसका जोश सही ज्ञान के मुताबिक नहीं था। लेकिन वह दिल का सच्चा था, इसलिए यहोवा ने मसीह के ज़रिए उस पर महा-कृपा की और उसे सच्ची उपासना की राह दिखायी।—1ती 1:12, 13.