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th अध्याय 2 पेज 5

गुण नंबर 2

बातचीत की शैली

आयत

2 कुरिंथियों 2:17

क्या करना है: स्वाभाविक तरीके से बात कीजिए। तब सुननेवाले जान पाएँगे कि आप जो कह रहे हैं, वह दिल से कह रहे हैं और आप उनका भला चाहते हैं।

कैसे करना है:

  • प्रार्थना करके अच्छी तैयारी कीजिए। परमेश्‍वर से मदद माँगिए ताकि आपका ध्यान आपकी बातों पर रहे, न कि इस पर कि आप कितने घबराए हुए हैं। मुख्य मुद्दे मन में बिठा लीजिए। जो लिखा है वह शब्द-ब-शब्द बोलने के बजाय, अपने शब्दों में बोलिए।

    सुझाव

    अगर आप बाइबल या किसी प्रकाशन से कुछ पढ़ने जा रहे हैं, तो वे बातें अच्छी तरह समझ लीजिए ताकि आप बिना अटके पढ़ सकें। अगर उसमें किसी की बातों का हवाला दिया गया है, तो पढ़ते वक्‍त उसकी भावनाएँ ज़ाहिर कीजिए, मगर ध्यान रखिए कि आपके पढ़ने का अंदाज़ नाटकीय न हो।

  • दिल से बोलिए। सोचिए कि आप जो बताना चाहते हैं, वह लोगों के लिए क्यों ज़रूरी है। उन पर ध्यान लगाइए। तब आपके खड़े रहने या बैठने के तरीके से और आपके हाथों और चेहरे के हाव-भाव से पता चलेगा कि आप दिल से और दोस्ताना अंदाज़ में बोल रहे हैं।

    सुझाव

    स्वाभाविक तरीके से बात करने का यह मतलब नहीं कि आप जैसा चाहें वैसा बात करें। आपकी बोली साफ होनी चाहिए और व्याकरण सही होना चाहिए। इससे आपकी बातों में गरिमा होगी।

  • नज़रें मिलाकर बात कीजिए। जहाँ बुरा नहीं माना जाता, वहाँ लोगों को देखकर बात कीजिए। भाषण देते वक्‍त, सब लोगों को एक-साथ देखने के बजाय, कुछ पल के लिए किसी एक व्यक्‍ति की तरफ देखकर बात कीजिए।

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