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  • अहम मसले को हमेशा याद रखिए

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  • अहम मसले को हमेशा याद रखिए
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (अध्ययन)—2017
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (अध्ययन)—2017
w17 जून पेज 22-26
अपने दावे को सच साबित करने के लिए शैतान अय्यूब पर एक-के-बाद-एक मुसीबतें लाता है जैसे, उसे गंभीर बीमारी से पीड़ित करता है और उसके साथी आकर उसका दुख और बढ़ाते हैं

अहम मसले को हमेशा याद रखिए

“लोग जानें कि सिर्फ तू जिसका नाम यहोवा है, सारी धरती के ऊपर परम-प्रधान है।”—भज. 83:18.

गीत: 46, 136

आपने क्या सीखा?

  • यहोवा की हुकूमत का बुलंद किया जाना सब इंसानों के लिए एक अहम मसला क्यों है?

  • अय्यूब ने यहोवा की हुकूमत का साथ कैसे दिया? लेकिन उसकी सोच क्यों सुधारी गयी?

  • हम किन अहम तरीकों से दिखा सकते हैं कि हम यहोवा की हुकूमत का साथ देते हैं?

1, 2. (क) विश्‍व का सबसे ज़रूरी मसला क्या है? (ख) यह बात याद रखने से हमें क्या फायदा हो सकता है?

आज कई लोगों के लिए पैसा ही सबकुछ है। वे दिन-रात इसी के बारे में सोचते हैं और चिंता करते हैं। उनका ज़्यादातर समय पैसा कमाने में लग जाता है या फिर उस पैसे को सँभालने में निकल जाता है। वहीं दूसरी तरफ कुछ लोगों के लिए परिवार, सेहत या अपने लक्ष्यों को हासिल करना ही सबसे ज़्यादा अहमियत रखता है।

2 लेकिन एक ऐसी बात है जो इन सबसे ज़्यादा अहमियत रखती है। वह है, यहोवा की हुकूमत का बुलंद किया जाना। यह पूरे विश्‍व का सबसे ज़रूरी मसला है। मगर रोज़मर्रा की चिंताएँ और मुश्‍किलें हमारा ध्यान इस कदर भटका सकती हैं कि हम भूल जाएँ कि यहोवा की हुकूमत का मसला कितना अहम है। अगर हम यहोवा की हुकूमत का साथ दें तो हम उसके और करीब आ पाएँगे और अपनी मुश्‍किलों का सामना भी कर पाएँगे।

यह क्यों एक अहम मसला है?

3. शैतान ने परमेश्‍वर की हुकूमत के बारे में क्या दावा किया है?

3 शैतान ने यहोवा के हुकूमत करने के हक पर सवाल खड़ा किया है। उसका दावा है कि यहोवा एक अच्छा राजा नहीं है और वह इंसानों की भलाई नहीं चाहता। अगर इंसान खुद हुकूमत करे तो वह ज़्यादा खुश रहेगा। (उत्प. 3:1-5) उसने यह भी दावा किया है कि कोई भी इंसान परमेश्‍वर का वफादार नहीं है, अगर उस पर मुसीबतें आएँ तो वह यहोवा को अपना राजा मानने से इनकार कर देगा। (अय्यू. 2:4, 5) इस वजह से यहोवा आज तक समय दे रहा है ताकि सब यह जान लें कि उसकी हुकूमत के बिना ज़िंदगी खुशहाल नहीं हो सकती।

4. हुकूमत के मसले को सुलझाया जाना क्यों ज़रूरी है?

4 बेशक यहोवा जानता है कि शैतान के दावे झूठे हैं। फिर भी उसने शैतान को अपनी बात साबित करने के लिए वक्‍त क्यों दिया? वह इसलिए कि इस मसले में इंसान और स्वर्गदूत दोनों शामिल हैं और वे साबित कर सकते हैं कि हुकूमत के मसले में वे किसकी तरफ हैं। (भजन 83:18 पढ़िए।) आदम और हव्वा ने यहोवा की हुकूमत ठुकरा दी और उसके बाद से कइयों ने ऐसा किया है। इस वजह से कुछ लोगों या स्वर्गदूतों को शायद लगे कि शैतान का दावा सही है। जब तक इस मसले को पूरी तरह नहीं सुलझाया जाता तब तक स्वर्ग और धरती पर सच्ची शांति और एकता कायम नहीं हो सकती। लेकिन जब यह साबित हो जाएगा कि सिर्फ यहोवा को हुकूमत करने का हक है तो सब उसे राजा मानेंगे और खुश रहेंगे। उस वक्‍त पूरे विश्‍व में सच्ची शांति होगी।—इफि. 1:9, 10.

5. हुकूमत के मसले में हमारी क्या भूमिका है?

5 बहुत जल्द परमेश्‍वर की हुकूमत बुलंद की जाएगी। यह साबित हो जाएगा कि शैतान और इंसान शासन करने में नाकाम हैं और उनका राज मिटा दिया जाएगा। परमेश्‍वर अपने मसीहाई राज के ज़रिए राज करेगा। वफादार लोग यह साबित कर चुके होंगे कि इंसान निर्दोष बने रह सकते हैं और परमेश्‍वर की हुकूमत का पूरा साथ दे सकते हैं। (यशा. 45:23, 24) क्या हम नहीं चाहते कि हम उन वफादार लोगों में गिने जाएँ? बिलकुल चाहते हैं! इसके लिए यह समझना ज़रूरी है कि हुकूमत का मसला कितना अहम है।

हुकूमत का बुलंद किया जाना, उद्धार से ज़्यादा ज़रूरी

6. यहोवा की हुकूमत का बुलंद किया जाना किस बात से ज़्यादा ज़रूरी है?

6 यहोवा की हुकूमत का बुलंद किया जाना हमारी अपनी खुशी से ज़्यादा ज़रूरी है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हमारा उद्धार यहोवा के लिए कोई मायने नहीं रखता या उसे हमारी कोई परवाह नहीं। आइए देखें कि हम ऐसा क्यों कह सकते हैं।

7, 8. यहोवा की हुकूमत के बुलंद किए जाने से हमें क्या फायदा होगा?

7 यहोवा इंसानों से बेहद प्यार करता है और उन्हें अनमोल समझता है। हमारी खातिर उसने अपने बेटे को कुरबान किया ताकि हमें हमेशा की ज़िंदगी मिल सके। (यूह. 3:16; 1 यूह. 4:9) भविष्य के लिए यहोवा ने जो-जो वादे किए हैं, अगर वह उन्हें पूरा न करे तो यह साबित होगा कि शैतान और बाकी विरोधी सही हैं। वह कैसे? शैतान ने दावा किया था कि यहोवा झूठा है, वह इंसानों को अच्छी चीज़ें नहीं देता और उसके हुकूमत करने का तरीका सही नहीं। यही नहीं, विरोधी भी परमेश्‍वर की खिल्ली उड़ाते हुए कहते हैं, “उसने वादा किया था कि वह मौजूद होगा, मगर वह कहाँ है? जब से हमारे पुरखे मौत की नींद सो गए हैं, तब से सबकुछ बिलकुल वैसा ही चल रहा है, जैसा सृष्टि की शुरूआत में था।” (2 पत. 3:3, 4) मगर यहोवा अपने वादे ज़रूर पूरे करेगा। अपनी हुकूमत को बुलंद करने के साथ-साथ वह आज्ञा माननेवाले इंसानों का उद्धार भी करेगा। (यशायाह 55:10, 11 पढ़िए।) यहोवा प्यार से हुकूमत करता है इसलिए हम यकीन रख सकते हैं कि वह अपने वफादार सेवकों से हमेशा प्यार करेगा और उन्हें अनमोल समझेगा।—निर्ग. 34:6.

8 यहोवा की हुकूमत का बुलंद किया जाना सबसे अहम मसला है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हमारा उद्धार उसके लिए कोई अहमियत नहीं रखता। यहोवा को हमारी बहुत परवाह है। आइए हम हमेशा याद रखें कि सबसे अहम मसला क्या है और वफादारी से यहोवा की हुकूमत का साथ दें।

अय्यूब ने अपनी सोच कैसे सुधारी?

9. शैतान ने अय्यूब के बारे में क्या दावा किया? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

9 यहोवा की हुकूमत के बारे में सही नज़रिया रखना हमारे लिए बेहद ज़रूरी है। क्यों? इसका जवाब हमें अय्यूब की किताब से मिलता है, जो बाइबल की लिखी पहली किताबों में से एक है। वहाँ हम पढ़ते हैं कि शैतान ने दावा किया कि अगर अय्यूब पर दुख-तकलीफें लायी जाएँ तो वह परमेश्‍वर को ठुकरा देगा। उसने परमेश्‍वर को अय्यूब पर तकलीफें लाने के लिए भी कहा। यहोवा ने ऐसा नहीं किया मगर उसने शैतान को इजाज़त दी कि वह अय्यूब को परखे। उसने कहा, “अय्यूब का जो कुछ है वह मैं तेरे हाथ में देता हूँ।” (अय्यूब 1:7-12 पढ़िए।) फिर अय्यूब पर एक-के-बाद-एक कई मुसीबतें आयीं। उसके सेवक मारे गए, उसकी धन-संपत्ति लूट ली गयी और एक हादसे में उसके दस बच्चों की मौत हो गयी। शैतान ने ये सब इस तरह किया कि अय्यूब को लगे कि परमेश्‍वर ने ही उस पर ये सारी मुसीबतें लायी हैं। (अय्यू. 1:13-19) इसके बाद शैतान ने अय्यूब को एक दर्दनाक और घिनौनी बीमारी से पीड़ित किया। (अय्यू. 2:7) और-तो-और उसकी पत्नी और तीन झूठे दोस्तों ने उसे चुभनेवाली बातें कहीं और उसका दुख और बढ़ा दिया।—अय्यू. 2:9; 3:11; 16:2.

10. (क) अय्यूब ने कैसे दिखाया कि वह यहोवा का वफादार है? (ख) उसकी सोच क्यों सुधारी गयी?

10 क्या अय्यूब के बारे में शैतान का दावा सही था? नहीं। अय्यूब ने कई मुसीबतें सहीं फिर भी उसने यहोवा को नहीं ठुकराया। (अय्यू. 27:5) लेकिन कुछ समय के लिए वह भूल गया कि क्या बात सबसे ज़्यादा मायने रखती है और वह खुद के बारे में ही सोचने लगा। वह बार-बार कहता रहा कि उसने कोई पाप नहीं किया है। उसे यह भी लगा कि उसे यह जानने का हक है कि उस पर इतनी मुसीबतें क्यों आयी हैं। (अय्यू. 7:20; 13:24) हम शायद समझ सकते हैं कि अय्यूब को क्यों ऐसा लगा होगा। फिर भी यहोवा जानता था कि अय्यूब का नज़रिया सही नहीं है और उसने उसकी सोच सुधारी। कैसे?

11, 12. यहोवा ने अय्यूब को क्या समझने में मदद दी और अय्यूब ने कैसा रवैया दिखाया?

11 ध्यान दीजिए कि अय्यूब की किताब के अध्याय 38 से 41 में यहोवा ने अय्यूब से क्या कहा। उसने अय्यूब को यह नहीं समझाया कि उस पर तकलीफें क्यों आयीं। इसके बजाय, उसने उसे यह समझने में मदद दी कि परमेश्‍वर की तुलना में वह कितना छोटा है। उसने यह भी समझाया कि कुछ ऐसे मसले हैं जो अय्यूब की तकलीफों से ज़्यादा अहमियत रखते हैं। (अय्यूब 38:18-21 पढ़िए।) यहोवा की बातों से अय्यूब अपनी सोच सुधार पाया।

12 अय्यूब ने बहुत कुछ सहा था, क्या ऐसे में यहोवा का उसे सुधारना सही था? बिलकुल सही था और अय्यूब को भी यह सही लगा। वह यहोवा की बात समझ गया। उसने कहा, “मैं अपने शब्द वापस लेता हूँ, धूल और राख में बैठकर पश्‍चाताप करता हूँ।” (अय्यू. 42:1-6) इससे पहले भी एलीहू नाम के एक जवान आदमी ने अय्यूब की सोच सुधारी थी। (अय्यू. 32:5-10) अय्यूब ने यहोवा की बुद्धि-भरी सलाह मानी और अपनी सोच को बदला। इसके बाद यहोवा ने दूसरों को बताया कि वह अय्यूब की वफादारी से बहुत खुश है।—अय्यू. 42:7, 8.

13. मुसीबतों का दौर खत्म होने के बाद भी अय्यूब को यहोवा की सलाह से कैसे फायदा हुआ होगा?

13 मुसीबतों का दौर खत्म होने के बाद भी अय्यूब को यहोवा की सलाह से फायदा हुआ होगा। “यहोवा ने अय्यूब को उसके पहले के दिनों से ज़्यादा आशीष दी।” कुछ समय बाद, उसके ‘सात बेटे और तीन बेटियाँ और हुईं।’ (अय्यू. 42:12-14) अय्यूब को अपने इन बच्चों से प्यार था, फिर भी उसे अपने उन बच्चों की कमी खलती होगी जो हादसे में मारे गए थे। यही नहीं, उस पर और उसके परिवार पर जो कुछ बीता था वे बातें उसे रह-रहकर याद आती होंगी। अय्यूब को शायद बाद में अपनी तकलीफों की वजह पता चली हो, मगर उसके मन में यह खयाल आया होगा कि आखिर क्यों परमेश्‍वर ने मुझ पर इतनी तकलीफें आने दीं। अगर अय्यूब ने ऐसा सोचा होगा तो उसे ज़रूर यहोवा की सलाह पर ध्यान देने से फायदा हुआ होगा। उसे दिलासा मिला होगा और सही सोच रखने में मदद मिली होगी।—भज. 94:19, फु.

अस्पताल में एक बीमार बहन गवाही देती है; एक भाई एक तसवीर को सीने से लगाता है; एक दुर्घटना-ग्रस्त इलाके में एक माँ अपनी बेटी को सँभालती है

क्या हम अपनी परेशानियों से ज़्यादा यहोवा की हुकूमत पर ध्यान देंगे? (पैराग्राफ 14 देखिए)

14. अय्यूब की घटना से हम क्या सीखते हैं?

14 अय्यूब की घटना पर मनन करने से हम अपनी सोच सुधार सकते हैं और दिलासा पा सकते हैं। यहोवा ने अय्यूब की किताब इसलिए लिखवायी ताकि “हम [इससे] सीखें और शास्त्र से हमें धीरज धरने में मदद मिले और हम दिलासा पाएँ ताकि हमारे पास आशा हो।” (रोमि. 15:4) इससे हम सीखते हैं कि हमें अपनी परेशानियों में इतना नहीं डूब जाना चाहिए कि हम यहोवा की हुकूमत का अहम मसला भूल जाएँ। जब हम मुश्‍किलों के बावजूद अय्यूब की तरह वफादार रहते हैं तो हम यहोवा की हुकूमत का साथ दे रहे होते हैं।

15. मुश्‍किलों के बावजूद वफादार रहने से क्या मुमकिन होता है?

15 अय्यूब की घटना से हमें कैसे दिलासा मिलता है? हम सीखते हैं कि परीक्षाएँ आने का मतलब यह नहीं कि यहोवा हमसे नाराज़ है। इसके बजाय, इन मुश्‍किल घड़ियों में हमें यह दिखाने का मौका मिलता है कि हम यहोवा की हुकूमत के पक्ष में हैं। (नीति. 27:11) जब हम मुश्‍किलों में धीरज धरते हैं और वफादार रहते हैं तो हम यहोवा को खुश करते हैं और भविष्य की हमारी आशा और पक्की हो जाती है। (रोमियों 5:3-5 पढ़िए।) अय्यूब की घटना दिखाती है कि “यहोवा गहरा लगाव रखनेवाला और दयालु परमेश्‍वर है।” (याकू. 5:11) अगर हम यहोवा की हुकूमत का साथ दें तो वह हमें भी इनाम देगा। यह बात जानने से हम “खुशी से और सब्र रखते हुए धीरज धर” पाएँगे।—कुलु. 1:11.

अहम मसले को हमेशा याद रखिए

16. हमें खुद को क्यों याद दिलाते रहना चाहिए कि हुकूमत का मसला सबसे अहम है?

16 यह सच है कि जब हम मुश्‍किलों से घिरे होते हैं, तो शायद उस वक्‍त हुकूमत के मसले को याद रखना आसान न हों। अगर हम छोटी-छोटी परेशानियों के बारे में बहुत ज़्यादा सोचें तो वे हमें पहाड़ समान लग सकती हैं। इसलिए हमें खुद को याद दिलाते रहना चाहिए कि हम पर चाहे कैसी भी मुश्‍किलें आएँ, हम हर हाल में परमेश्‍वर की हुकूमत का साथ देंगे।

17. क्या बात दिखाती है कि यहोवा के काम में लगे रहने से हम अपना ध्यान हुकूमत के मसले पर लगाए रख पाते हैं?

17 यहोवा के काम में लगे रहने से हम अपना ध्यान हुकूमत के मसले पर लगाए रख पाएँगे। रैने नाम की एक बहन पर गौर कीजिए। उसे स्ट्रोक हुआ था, वह हमेशा दर्द में रहती थी और उसे कैंसर भी था। जब वह अस्पताल में इलाज के लिए जाती थी तो वह वहाँ के कर्मचारियों, मरीज़ों और मरीज़ों से मिलने आए लोगों को प्रचार करती थी। एक बार उसे अस्पताल में ढाई हफ्ते के लिए भरती किया गया, उस दौरान उसने गवाही देने में 80 घंटे बिताए। रैने जानती थी कि वह ज़्यादा दिन तक ज़िंदा नहीं रहेगी फिर भी वह कभी नहीं भूली कि क्या बात सबसे ज़्यादा मायने रखती है। वह है हुकूमत के मसले में यहोवा का साथ देना और ऐसा करके उसे बहुत सुकून मिला।

18. यहोवा की हुकूमत का साथ देने के बारे में हम जैनिफर से क्या सीखते हैं?

18 रोज़मर्रा की छोटी-छोटी परेशानियों का सामना करते वक्‍त भी हम यहोवा की हुकूमत का साथ दे सकते हैं। जैनिफर नाम की एक बहन ने ऐसा ही किया। उसे तीन दिन तक एक हवाई अड्डे पर रुकना पड़ा क्योंकि एक-के-बाद-एक कई फ्लाइट रद्द हो गयी थीं। उसे घर जाने के लिए कोई फ्लाइट नहीं मिल रही थी। वह बहुत थक चुकी थी और अकेला भी महसूस कर रही थी। ऐसे में वह अपने हालात को लेकर निराश हो सकती थी और सिर्फ अपने बारे में सोचने लग सकती थी। लेकिन उसने यहोवा से प्रार्थना की और मदद माँगी ताकि वह दूसरे यात्रियों को खुशखबरी सुना सके। उसने कई लोगों को गवाही दी और ढेर सारे प्रकाशन दिए। वह कहती है, “यहोवा ने मुझे उस मुश्‍किल घड़ी में आशीष दी और मुझे इतनी हिम्मत दी कि मैं उसके नाम के बारे में अच्छी गवाही दे सकूँ।”

19. क्या बात सच्चे उपासकों को अलग ठहराती है?

19 यहोवा की हुकूमत का मसला कितना अहम है यह सिर्फ उसके लोग ही समझ सकते हैं। यही समझ यहोवा के सच्चे उपासकों को दूसरे सभी झूठे उपासकों से अलग ठहराती है। इसलिए हम सबको इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हम यहोवा की हुकूमत का साथ देते रहें।

20. यहोवा की हुकूमत का साथ देने के लिए आप जो मेहनत करते हैं उसके बारे में वह कैसा महसूस करता है?

20 जब आप यहोवा की हुकूमत का साथ देने के लिए वफादारी से उसकी सेवा करते हैं और मुश्‍किलों में धीरज धरते हैं तो वह आपकी मेहनत पर ध्यान देता है और उसकी कदर करता है। (भज. 18:25) अगले लेख में समझाया जाएगा कि यहोवा की हुकूमत का साथ देने की और क्या वजह हैं और आप किन तरीकों से उसकी हुकूमत का पूरा-पूरा साथ दे सकते हैं।

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