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  • क्या मसीही सेवकों का कुँवारे रहना ज़रूरी है?

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  • क्या मसीही सेवकों का कुँवारे रहना ज़रूरी है?
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (जनता के लिए)—2017
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (जनता के लिए)—2017
wp17 अंक 2 पेज 8-9
यीशु पतरस की सास को ठीक करता है

यीशु ने पतरस की सास को ठीक किया।—मत्ती 8:14, 15; मरकुस 1:29-31

क्या मसीही सेवकों का कुँवारे रहना ज़रूरी है?

दुनिया में बहुत-से ऐसे धर्म हैं, जिनमें यह प्रथा होती है कि उनके धर्मगुरु या पादरी कुँवारे ही रहते हैं। जैसे, बौद्ध धर्म में, रोमन कैथोलिक और ऑर्थोडॉक्स चर्चों में। वहीं कुछ लोगों को लगता है कि इस प्रथा की वजह से ही आजकल बहुत-से धर्मगुरु लैंगिक दुष्कर्म करते हैं।

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या बाइबल में मसीही सेवकों को कुँवारे रहने के लिए कहा गया है? जवाब जानने के लिए हमें पहले यह पता करना होगा कि इस प्रथा की शुरूआत कैसे हुई और कैसे यह फैलती चली गयी। हम यह भी गौर करेंगे कि इस बारे में परमेश्‍वर क्या सोचता है।

कुँवारे रहने की धार्मिक प्रथा का इतिहास

इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका में बताया गया है कि कुँवारे रहने की शपथ अकसर धर्मगुरु या भक्‍त लेते हैं और इस वजह से वे शादी नहीं करते और लैंगिक संबंध नहीं रखते। सन्‌ 2006 में पोप बेनेडिक्ट सोलहवें ने रोमन कैथोलिक चर्च के अधिकारियों (रोमन क्यूरिया) को दिए एक भाषण में कहा कि धर्मगुरुओं का कुँवारे रहना ज़रूरी है क्योंकि यह प्रथा करीब-करीब प्रेषितों के ज़माने से चली आ रही है।

लेकिन पहली सदी के मसीहियों में कुँवारे रहना कोई धार्मिक रिवाज़ नहीं था। प्रेषित पौलुस भी पहली सदी में जीया था। उसने तो इस बारे में मसीहियों को चेतावनी भी दी थी कि कुछ लोग ‘गुमराह करनेवाले प्रेरित वचन’ कहेंगे और “शादी करने से मना करेंगे।”—1 तीमुथियुस 4:1-3.

दूसरी सदी में जाकर कुँवारे रहने की प्रथा उन ईसाई चर्चों में शुरू होने लगी, जो बाद में रोमन कैथोलिक चर्च के नाम से जाने गए। कुँवारे रहना और धार्मिक रिवाज़ (अँग्रेज़ी) नाम की किताब में बताया गया है कि उस वक्‍त रोमी साम्राज्य में लैंगिक इच्छाओं पर काबू पाने की नयी शिक्षा फैली थी और कुँवारे रहने की प्रथा उसी के मुताबिक थी।

उसके बाद की सदियों में चर्च के परिषदों ने और धर्मशास्त्रियों (चर्च फादर) ने भी पादरियों को कुँवारे रहने का बढ़ावा दिया। उनका मानना था कि लैंगिक संबंध रखने से एक व्यक्‍ति अपवित्र हो जाता है और पादरी बनकर सेवा करने के योग्य नहीं रहता। लेकिन इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका में बताया गया है, ‘दसवीं सदी के आते-आते बहुत-से पादरी, यहाँ तक कि कुछ बिशप भी शादी करने लगे थे।’

सन्‌ 1123 और 1139 में रोम में रखी गयीं लैटर्न परिषदों में यह फैसला किया गया कि पादरियों को कुँवारे ही रहना चाहिए। इसकी वजह यह थी कि शादीशुदा पादरी चर्च की संपत्ति अपने बच्चों के नाम करने लगे थे। लेकिन अब इस फैसले की वजह से चर्च का दबदबा और आमदनी चर्च की ही बनी रह सकती थी। आज भी रोमन कैथोलिक चर्च में पादरियों के कुँवारे रहने की प्रथा है।

कुँवारे रहने के बारे में परमेश्‍वर की सोच

मसीही सेवकों को कुँवारे रहना चाहिए या नहीं, इस बारे में परमेश्‍वर की सोच बाइबल से साफ पता चलती है। बाइबल में हम पढ़ते हैं कि यीशु “स्वर्ग के राज के लिए” कुँवारा रहा और उसने उन लोगों के बारे में भी बताया, जो उसकी तरह कुँवारे रहे। (मत्ती 19:12) उसी तरह प्रेषित पौलुस ने भी उन मसीहियों के बारे में बताया, जो उसकी तरह “खुशखबरी की खातिर” कुँवारे रहे।—1 कुरिंथियों 7:37, 38; 9:23.

लेकिन न तो यीशु ने और न ही पौलुस ने परमेश्‍वर के सेवकों को कुँवारे रहने की आज्ञा दी। यीशु ने यह ज़रूर कहा कि कुँवारे रहना एक “तोहफा” है, जो हर किसी के पास नहीं है। जब पौलुस ने “कुँवारे लोगों” के बारे में लिखा, तब उसने यह भी कहा कि इस बारे में ‘प्रभु से मुझे कोई आज्ञा नहीं मिली है। मगर मैं अपनी राय बताता हूँ।’—मत्ती 19:11; 1 कुरिंथियों 7:25.

बाइबल में यह भी लिखा है कि पहली सदी में कई मसीही शादीशुदा थे, जैसे प्रेषित पतरस और दूसरे लोग। (मत्ती 8:14; मरकुस 1:29-31; 1 कुरिंथियों 9:5) पौलुस ने शादीशुदा मसीही निगरानों के लिए कुछ हिदायतें भी दीं, क्योंकि उस वक्‍त रोम में अनैतिक काम बहुत ज़्यादा हो रहे थे। उसने कहा कि एक निगरान की “एक ही पत्नी हो” और उसके ‘बच्चे उसके अधीन रहते हों।’—1 तीमुथियुस 3:2, 4.

ऐसा नहीं था कि वे मसीही शादीशुदा होते हुए भी कुँवारे रहते थे, क्योंकि बाइबल में साफ-साफ लिखा है कि “पति अपनी पत्नी का हक अदा करे” और पति-पत्नी “एक-दूसरे को इस हक से वंचित न” रखें। (1 कुरिंथियों 7:3-5) इससे पता चलता है कि परमेश्‍वर कुँवारे रहने की माँग नहीं करता और न ही यह मसीही सेवकों के लिए ज़रूरी है।

खुशखबरी की खातिर कुँवारे

अगर मसीही सेवकों का कुँवारे रहना ज़रूरी नहीं है, तो फिर यीशु और पौलुस ने यह क्यों कहा कि कुँवारे रहना अच्छा है? वह इसलिए कि कुँवारे रहने से एक व्यक्‍ति के पास लोगों को खुशखबरी सुनाने के लिए ज़्यादा वक्‍त होता है। उन्हें वे परेशानियाँ नहीं उठानी पड़तीं, जो शादीशुदा लोगों को होती हैं, इसलिए वे परमेश्‍वर की सेवा ज़्यादा कर पाते हैं।—1 कुरिंथियों 7:32-35.

ज़रा डेवीड पर ध्यान दीजिए। वह मैक्सिको सिटी में अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी कर रहा था। लेकिन वह नौकरी छोड़कर कोस्टारिका के एक गाँव में जाकर रहने लगा, ताकि वहाँ पर लोगों को बाइबल के बारे में सिखा सके। उसका मानना है कि कुँवारे होने की वजह से वह ऐसा कर पाया। वह कहता है, “नयी जगह और नए माहौल में खुद को ढालना आसान नहीं था। लेकिन मैं अकेला था और मुझे सिर्फ अपना खयाल रखना था, इसलिए वहाँ के माहौल में ढलना मेरे लिए ज़्यादा मुश्‍किल नहीं था।”

क्लॉडीया भी एक अविवाहित मसीही है, जो परमेश्‍वर के बारे में लोगों को सिखाने के लिए अलग-अलग इलाकों में गयी है। वह कहती है, “मुझे परमेश्‍वर की सेवा करने से बहुत खुशी मिलती है। परमेश्‍वर जिस तरह मेरा खयाल रखता है, उससे उस पर मेरा विश्‍वास बढ़ गया है और उसके साथ मेरी दोस्ती और भी गहरी हो गयी है।”

“इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप शादीशुदा हैं या कुँवारे। अगर आप तन-मन से परमेश्‍वर यहोवा की सेवा करेंगे, तो आप खुश रहेंगे।”—क्लॉडीया

ऐसा नहीं है कि परमेश्‍वर की सेवा करने के लिए एक व्यक्‍ति को कुँवारे ही रहना होगा। क्लॉडिया कहती है, “इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप शादीशुदा हैं या कुँवारे। अगर आप तन-मन से परमेश्‍वर यहोवा की सेवा करेंगे, तो आप खुश रहेंगे।”—भजन 119:1, 2.

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