गीत 127
यहोवा चाहे जैसा, बनूँ मैं वैसा
तोहफा ज़िंदगी का याह तूने दिया,
कैसे मैं चुकाऊँ ए-ह-साँ ये तेरा?
झाँकूँ जो दिल में आइना-ए-वचन से,
कमज़ोरी जो भी हो मेरी, तू दिखा दे।
(खास पंक्तियाँ)
वादा है जीऊँगा याह तेरे लिए,
मैं फर्ज़ ना समझूँगा जो भी करना मुझे,
दिल से मैं करूँगा इबादत तेरी,
आँखों का तारा बनूँगा मैं भी।
कर मेरी मदद याह, बता तू मुझे,
जैसा तू चाहेगा बनूँ वैसा ही मैं।
वफाएँ मेरी, हैं बसी तेरे दिल में,
तू कर ले मुझे भी पसंद ये चाहूँ मैं।
(भज. 18:25; 116:12; नीति. 11:20 भी देखें।)